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ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
संतों की कृपा से मुझे परम पद (मोक्ष) मिल गया है॥ २॥
ਜਨ ਕੀ ਕੀਨੀ ਆਪਿ ਸਹਾਇ ॥
अपने सेवकों की प्रभु स्वयं ही सहायता करता है।
ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਲਗਿ ਦਾਸਹ ਪਾਇ ॥
प्रभु के सेवकों के चरण स्पर्श करके मुझे सुख उपलब्ध हो गया है।
ਆਪੁ ਗਇਆ ਤਾ ਆਪਹਿ ਭਏ ॥
जब अहंत्व चला जाता है तो मनुष्य स्वयं ही स्वामी हो जाता है
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਕੀ ਸਰਨੀ ਪਏ ॥੩॥
और दया के भण्डार प्रभु की शरण लेता है ॥ ३॥
ਜੋ ਚਾਹਤ ਸੋਈ ਜਬ ਪਾਇਆ ॥
जब मनुष्य भगवान को पा लेता है, जिसकी वह कामना करता रहता है,"
ਤਬ ਢੂੰਢਨ ਕਹਾ ਕੋ ਜਾਇਆ ॥
तब वह उसको ढूंढने के लिए किसी स्थान पर नहीं जाता।
ਅਸਥਿਰ ਭਏ ਬਸੇ ਸੁਖ ਆਸਨ ॥
वह अमर हो जाता है और सुख के आसन में वास करता है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਬਾਸਨ ॥੪॥੧੧੦॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से वह प्रसन्नता के घर में दाखिल हो गया है॥ ४ ॥ ११० ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਕੋਟਿ ਮਜਨ ਕੀਨੋ ਇਸਨਾਨ ॥
उसे मानो करोड़ों तीर्थों पर स्नान का और
ਲਾਖ ਅਰਬ ਖਰਬ ਦੀਨੋ ਦਾਨੁ ॥
लाखों, अरबों एवं खरबों पुण्यदान करने का फल प्राप्त हो जाता है
ਜਾ ਮਨਿ ਵਸਿਓ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ॥੧॥
जिस व्यक्ति के अन्तर्मन में भगवान का नाम निवास कर लेता है ॥ १॥
ਸਗਲ ਪਵਿਤ ਗੁਨ ਗਾਇ ਗੁਪਾਲ ॥
जो व्यवित गोपाल की गुणस्तुति करते हैं, वे सभी पवित्र हैं।
ਪਾਪ ਮਿਟਹਿ ਸਾਧੂ ਸਰਨਿ ਦਇਆਲ ॥ ਰਹਾਉ ॥
दयालु संतों का आश्रय लेने से पाप नाश हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਬਹੁਤੁ ਉਰਧ ਤਪ ਸਾਧਨ ਸਾਧੇ ॥
मानो उसने अधिकतर उल्टे लटककर अनेकों तपों के साधन साध लिए तथा
ਅਨਿਕ ਲਾਭ ਮਨੋਰਥ ਲਾਧੇ ॥
उसे अनेक तरह के लाभ प्राप्त हो गए और मनोकामनाएँ पूरी हो गयी है
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਰਸਨ ਆਰਾਧੇ ॥੨॥
जो व्यक्ति अपनी रसना से हरि-परमेश्वर के नाम की आराधना करता रहता है॥ २॥
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਬੇਦ ਬਖਾਨੇ ॥
मानो उसने स्मृतियां, शास्त्र एवं वेदों का बखान कर लिया है
ਜੋਗ ਗਿਆਨ ਸਿਧ ਸੁਖ ਜਾਨੇ ॥
और उसने योग, ज्ञान एवं सिद्धियों का सुख समझ लिया है
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਮਨ ਮਾਨੇ ॥੩॥
जब मनुष्य प्रभु से संतुष्ट हो जाता है और उसका नाम-स्मरण करता है, ॥३॥
ਅਗਾਧਿ ਬੋਧਿ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥
उस अगम्य, अपरंपार भगवान का ज्ञान अगाध है।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਨਾਮੁ ਰਿਦੇ ਬੀਚਾਰੇ ॥
(अब नानक) नाम का जाप करता है और हरि के नाम का ही वह अपने हृदय में ध्यान करता है
ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੇ ॥੪॥੧੧੧॥
नानक पर ईश्वर ने कृपा की है॥ ४ ॥ १११ ॥
ਗਉੜੀ ਮਃ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
भगवान का सिमरन करने से मुझे सुख प्राप्त हो गया है
ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰ ਰਿਦੈ ਬਸਾਇਆ ॥੧॥
और गुरु के सुन्दर चरण कमल अपने हृदय में बसा लिए हैं।॥ १॥
ਗੁਰ ਗੋਬਿੰਦੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪੂਰਾ ॥
पारब्रह्म, गुरु-गोबिन्द सर्वोपरि है।
ਤਿਸਹਿ ਅਰਾਧਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥
उसकी आराधना करने से मेरा मन धैर्यवान हो गया है ॥ रहाउ ॥
ਅਨਦਿਨੁ ਜਪਉ ਗੁਰੂ ਗੁਰ ਨਾਮ ॥
मैं तो रात-दिन गुरु का नाम ही जपता रहता हूँ।
ਤਾ ਤੇ ਸਿਧਿ ਭਏ ਸਗਲ ਕਾਂਮ ॥੨॥
जिसकी कृपा से मेरे तमाम कार्य सम्पूर्ण हो गए हैं।॥ २॥
ਦਰਸਨ ਦੇਖਿ ਸੀਤਲ ਮਨ ਭਏ ॥
गुरु जी के दर्शन करके मेरा मन शीतल हो गया है
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਗਏ ॥੩॥
और मेरे जन्म-जन्मांतरों के पाप मिट गए हैं॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਹਾ ਭੈ ਭਾਈ ॥
नानक का कथन है कि हे भाई ! मेरे लिए अब भय कहाँ है?
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕੀ ਆਪਿ ਪੈਜ ਰਖਾਈ ॥੪॥੧੧੨॥
अपने सेवक की गुरु ने स्वयं ही लाज-प्रतिष्ठा रखी है ॥ ४ ॥ ११२ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਆਪਿ ਸਹਾਈ ॥
भगवान अपने सेवक का स्वयं ही सहायक होता है।
ਨਿਤ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੈ ਬਾਪ ਜੈਸੇ ਮਾਈ ॥੧॥
वह नित्य ही ऐसे देखभाल करता है जैसे माता-पिता करते हैं। ॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਨਿ ਉਬਰੈ ਸਭ ਕੋਇ ॥
प्रभु की शरण में आने से हरेक व्यक्ति का उद्धार हो जाता है।
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਪੂਰਨ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥ ਰਹਾਉ ॥
वह परमात्मा ही सबकुछ करता एवं जीवों से करवाता है, जो सदैव सत्य एवं सर्वव्यापक है। ॥ रहाउ ॥
ਅਬ ਮਨਿ ਬਸਿਆ ਕਰਨੈਹਾਰਾ ॥
अब मेरा मन उस जगत् के रचयिता प्रभु में वास करता है।
ਭੈ ਬਿਨਸੇ ਆਤਮ ਸੁਖ ਸਾਰਾ ॥੨॥
जिससे सभी भय नाश हो गए हैं और आत्मा को सुख प्राप्त हो गया है ॥ २ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨੇ ਜਨ ਰਾਖੇ ॥
अपने सेवकों को प्रभु ने कृपा धारण करके बचा लिया है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਲਾਥੇ ॥੩॥
उनके जन्म-जन्मांतरों के पाप निवृत्त हो गए हैं ॥ ३ ॥
ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
प्रभु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਦਾ ਸਰਨਾਈ ॥੪॥੧੧੩॥
हे नानक ! प्रभु के सेवक सदैव प्रभु की शरण में रहते हैं। ॥ ४॥ ११३॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਚੇਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦੇ ॥
रागु गउड़ी चेती महला ५ दुपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਮ ਕੋ ਬਲੁ ਪੂਰਨ ਭਾਈ ॥
हे भाई ! राम की शक्ति सर्वव्यापक है।
ਤਾ ਤੇ ਬ੍ਰਿਥਾ ਨ ਬਿਆਪੈ ਕਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम की उस शक्ति के प्रभाव से कोई दुःख-क्लेश प्रभावित नहीं करता ॥ १॥ रहाउ॥
ਜੋ ਜੋ ਚਿਤਵੈ ਦਾਸੁ ਹਰਿ ਮਾਈ ॥
हे मेरी माता! जो कुछ भी प्रभु का सेवक अपने मन में कल्पना करता है,"
ਸੋ ਸੋ ਕਰਤਾ ਆਪਿ ਕਰਾਈ ॥੧॥
वह सब कुछ परमात्मा स्वयं ही करवा देता है॥ १॥
ਨਿੰਦਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭਿ ਪਤਿ ਗਵਾਈ ॥
निन्दा करने वालों की प्रभु इज्जत गंवा देता है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਣ ਨਿਰਭਉ ਗਾਈ ॥੨॥੧੧੪॥
नानक निडर प्रभु की गुणस्तुति करता रहता है। ॥ २॥ ११४॥