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ਅਉਖਧ ਮੰਤ੍ਰ ਤੰਤ ਸਭਿ ਛਾਰੁ ॥
प्रभु के अलावा समस्त औषधियां एवं मंत्र-तंत्र व्यर्थ हैं
ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਰਿਦੇ ਮਹਿ ਧਾਰੁ ॥੩॥
इसलिए सृजनहार प्रभु को अपने हृदय में धारण करो ॥३॥
ਤਜਿ ਸਭਿ ਭਰਮ ਭਜਿਓ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥
हे नानक ! सभी भ्रम त्यागकर पारब्रह्म प्रभु का ही भजन करो
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਅਟਲ ਇਹੁ ਧਰਮੁ ॥੪॥੮੦॥੧੪੯॥
चूंकि यही अटल धर्म है ॥४॥८०॥१४९॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭੇਟੇ ਗੁਰ ਸੋਈ ॥
भगवान जिस व्यक्ति पर अपनी कृपा कर देता है, उसे गुरु मिल जाता है।
ਤਿਤੁ ਬਲਿ ਰੋਗੁ ਨ ਬਿਆਪੈ ਕੋਈ ॥੧॥
ऐसे व्यक्ति को गुरु के बल के फलस्वरूप कोई रोग नहीं लगता ॥ १॥
ਰਾਮ ਰਮਣ ਤਰਣ ਭੈ ਸਾਗਰ ॥
सर्वव्यापक राम की आराधना करने से भयानक संसार सागर पार किया जाता है।
ਸਰਣਿ ਸੂਰ ਫਾਰੇ ਜਮ ਕਾਗਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
शूरवीर गुरु का आश्रय लेने से यमों के लेखे खत्म हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦੀਓ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥
सतिगुरु ने मुझे हरि के नाम का मंत्र प्रदान किया है।
ਇਹ ਆਸਰ ਪੂਰਨ ਭਏ ਕਾਮ ॥੨॥
इस आश्रय द्वारा मेरे सभी कार्य सफल हो गए हैं॥ २॥
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਪੂਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥
मुझे ध्यान, तपस्या, संयम एवं पूर्ण प्रशंसा प्राप्त हो गए,"
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾਲ ਹਰਿ ਭਏ ਸਹਾਈ ॥੩॥
जब गुरु जी कृपा के घर में आए तो भगवान भी सहायक बन गए ॥ ३॥
ਮਾਨ ਮੋਹ ਖੋਏ ਗੁਰਿ ਭਰਮ ॥
हे नानक ! देख, गुरु ने जिस व्यक्ति के घमण्ड, मोह एवं भ्रम नाश कर दिए हैं,
ਪੇਖੁ ਨਾਨਕ ਪਸਰੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ॥੪॥੮੧॥੧੫੦॥
उस व्यक्ति को पारब्रह्म प्रभु के सर्वत्र दर्शन हो गए हैं॥ ४ ॥ ८१ ॥ १५० ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਬਿਖੈ ਰਾਜ ਤੇ ਅੰਧੁਲਾ ਭਾਰੀ ॥
अन्धा मनुष्य अत्याचारी सम्राट से भला है।
ਦੁਖਿ ਲਾਗੈ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੀ ॥੧॥
क्योंकि दुख लगने पर अंधा मनुष्य राम के नाम का भजन करता है। १॥
ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਕਉ ਤੁਹੀ ਵਡਿਆਈ ॥
हे प्रभु ! अपने सेवक की तू ही मान-प्रतिष्ठा है।
ਮਾਇਆ ਮਗਨੁ ਨਰਕਿ ਲੈ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
माया का नशा प्राणी को नरक में ले जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਰੋਗ ਗਿਰਸਤ ਚਿਤਾਰੇ ਨਾਉ ॥
रोग से ग्रस्त हुआ अन्धा मनुष्य नाम का सिमरन करता है।
ਬਿਖੁ ਮਾਤੇ ਕਾ ਠਉਰ ਨ ਠਾਉ ॥੨॥
परन्तु विकारों में मस्त हुए दुराचारी मनुष्य को कोई सुख का स्थान नहीं मिलता॥ २॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
जो व्यक्ति प्रभु के चरण-कमलों से प्रेम करता है,
ਆਨ ਸੁਖਾ ਨਹੀ ਆਵਹਿ ਚੀਤਿ ॥੩॥
वह अन्य लौकिक सुखों का ध्यान ही नहीं करता ॥ ३॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਿਮਰਉ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ॥
सदैव ही जगत् के स्वामी प्रभु का भजन करो।
ਮਿਲੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੪॥੮੨॥੧੫੧॥
नानक की प्रार्थना है कि हे अन्तर्यामी प्रभु! मुझे आकर मिलो॥ ४॥ ८२॥ १५१॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਆਠ ਪਹਰ ਸੰਗੀ ਬਟਵਾਰੇ ॥
आठों प्रहर (कामादिक पांचों विकार) लुटेरे मेरे साथी बने हुए थे।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਲਏ ਨਿਵਾਰੇ ॥੧॥
अपनी कृपा करके प्रभु ने उनको तितर-बितर (नष्ट) कर दिया है॥ १ ॥
ਐਸਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਰਮਹੁ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
प्रत्येक प्राणी ऐसे समर्थ शाली प्रभु के नाम-रस का आस्वादन करे
ਸਰਬ ਕਲਾ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो ईश्वर सर्वकला सम्पूर्ण है। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਮਹਾ ਤਪਤਿ ਸਾਗਰ ਸੰਸਾਰ ॥
कामादिक विकारों की संसार-सागर में बड़ी तेज गर्मी पड़ रही है।
ਪ੍ਰਭ ਖਿਨ ਮਹਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਣਹਾਰ ॥੨॥
लेकिन प्रभु एक क्षण में ही प्राणी को इस जलन से पार कर देने वाला है॥ २ ॥
ਅਨਿਕ ਬੰਧਨ ਤੋਰੇ ਨਹੀ ਜਾਹਿ ॥
ऐसे अनेक बंधन हैं, जो काटे नहीं जा सकते।
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮ ਮੁਕਤਿ ਫਲ ਪਾਹਿ ॥੩॥
लेकिन भगवान के नाम का सिमरन करने से मनुष्य मोक्ष फल प्राप्त कर लेता है॥ ३॥
ਉਕਤਿ ਸਿਆਨਪ ਇਸ ਤੇ ਕਛੁ ਨਾਹਿ ॥
हे नानक ! मनुष्य किसी युक्ति अथवा चतुरता से कुछ नहीं कर सकता।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਹਿ ॥੪॥੮੩॥੧੫੨॥
हे प्रभु ! कृपा कर चूंकि वह तेरा ही यश गायन करता रहे ॥४॥८३॥१५२॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਥਾਤੀ ਪਾਈ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮ ॥
जिसे हरि के नाम का धन प्राप्त हो जाता है,
ਬਿਚਰੁ ਸੰਸਾਰ ਪੂਰਨ ਸਭਿ ਕਾਮ ॥੧॥
वह निसंकोच होकर संसार में गतिमान होता है और उसके सारे कार्य सफल हो जाते हैं।॥ १॥
ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈਐ ॥
सौभाग्यवश ही ईश्वर का भजन गायन किया जा सकता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਤ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरे पारब्रह्म प्रभु ! यदि तू हम प्राणियों को गुणस्तुति की देन प्रदान करे तो ही मिल सकती है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਹਿਰਦੈ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥
प्रभु के सुन्दर चरण अपने हृदय में बसाओ।
ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਚੜਿ ਉਤਰਹਿ ਪਾਰਿ ॥੨॥
प्रभु-चरणों के जहाज पर सवार होने से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है॥ २ ॥
ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਕਰਹੁ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
प्रत्येक प्राणी को संतों की संगति करनी चाहिए,
ਸਦਾ ਕਲਿਆਣ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਹੋਇ ॥੩॥
जिससे सदैव कल्याण मिलता है और पुनः कोई दुःख प्राप्त नहीं होता ॥ ३॥
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਭਜੁ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ॥
हे नानक ! प्रेमा-भक्ति द्वारा गुणों के भण्डार भगवान का भजन करो,
ਨਾਨਕ ਦਰਗਹ ਪਾਈਐ ਮਾਨੁ ॥੪॥੮੪॥੧੫੩॥
इस तरह प्रभु के दरबार में मान-सम्मान प्राप्त होता है ॥४॥८४॥१५३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਨ ਹਰਿ ਮੀਤ ॥
जल, धरती एवं गगन में मित्र-प्रभु सर्वव्यापक है।
ਭ੍ਰਮ ਬਿਨਸੇ ਗਾਏ ਗੁਣ ਨੀਤ ॥੧॥
उस प्रभु का नित्य यशोगान करने से भ्रम निवृत हो जाते हैं। ॥ १ ॥
ਊਠਤ ਸੋਵਤ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਪਹਰੂਆ ॥
जागते-सोते हर समय प्रभु मनुष्य के साथ रक्षक-रूप में है।
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਜਮ ਨਹੀ ਡਰੂਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उस प्रभु का सिमरन करने से मनुष्य मृत्यु के दूत के भय से रहित हो जाता है। १॥ रहाउ॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਪ੍ਰਭ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸੁ ॥
यदि प्रभु के सुन्दर चरण हृदय में निवास कर जाए तो