Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 195

Page 195

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਜਿਸ ਕਾ ਦੀਆ ਪੈਨੈ ਖਾਇ ॥ हे जननी ! जिस भगवान का दिया हुआ वस्त्र इन्सान पहनता है और दिया हुआ भोजन खाता रहता है,
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਆਲਸੁ ਕਿਉ ਬਨੈ ਮਾਇ ॥੧॥ उस भगवान का सिमरन करने में आलस्य नहीं करना चाहिए ॥ १॥
ਖਸਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਆਨ ਕੰਮਿ ਲਾਗਹਿ ॥ जो जीव-स्त्री अपने प्रभु-पति को भुलाकर दूसरे कामों में व्यस्त होती हैं,
ਕਉਡੀ ਬਦਲੇ ਰਤਨੁ ਤਿਆਗਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह कौड़ी के भाव अपने हीरे जैसे अमूल्य जीवन को व्यर्थ गंवा देती है॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਭੂ ਤਿਆਗਿ ਲਾਗਤ ਅਨ ਲੋਭਾ ॥ वह प्रभु को त्यागकर दूसरे पदार्थों की तृष्णा में लगी हुई है।
ਦਾਸਿ ਸਲਾਮੁ ਕਰਤ ਕਤ ਸੋਭਾ ॥੨॥ लेकिन प्रभु की बजाय उसकी दासी माया को वन्दना करने से किसने शोभा पाई है ? ॥ २॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਖਾਵਹਿ ਖਾਨ ਪਾਨ ॥ मनुष्य अमृत समान स्वादिष्ट खानपान को चखता है
ਜਿਨਿ ਦੀਏ ਤਿਸਹਿ ਨ ਜਾਨਹਿ ਸੁਆਨ ॥੩॥ परन्तु कुत्ता उसको नहीं जानता, जो (यह पदार्थ) प्रदान करता है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਮ ਲੂਣ ਹਰਾਮੀ ॥ नानक का कथन है कि हे ईश्वर ! हम (प्राणी) कृतघ्न नमकहरामी हैं।
ਬਖਸਿ ਲੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੪॥੭੬॥੧੪੫॥ हे अन्तर्यामी प्रभु ! हमें क्षमा कर दीजिए॥ ४॥ ७६॥ १४५॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਚਰਨ ਮਨ ਮਾਹਿ ਧਿਆਨੁ ॥ हे मेरे भाई ! प्रभु के चरणों का अपने मन में ध्यान करो।
ਸਗਲ ਤੀਰਥ ਮਜਨ ਇਸਨਾਨੁ ॥੧॥ चूंकि प्रभु के चरणों का ध्यान ही तमाम तीर्थ-स्थानों का स्नान है॥ १॥
ਹਰਿ ਦਿਨੁ ਹਰਿ ਸਿਮਰਨੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥ प्रतिदिन हरि-परमेश्वर का सिमरन करो।
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੀ ਮਲੁ ਲਹਿ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चूंकि हरि का सिमरन करने से करोड़ों जन्मों की मैल दूर हो जाती है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕੀ ਕਥਾ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਬਸਾਈ ॥ जो व्यक्ति हरि की कथा अपने हृदय में बसा कर रखता है,
ਮਨ ਬਾਂਛਤ ਸਗਲੇ ਫਲ ਪਾਈ ॥੨॥ उसे मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं ॥ २ ॥
ਜੀਵਨ ਮਰਣੁ ਜਨਮੁ ਪਰਵਾਨੁ ॥ उसका जीवन, मृत्यु एवं जन्म स्वीकार हो जाता है
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਵਸੈ ਭਗਵਾਨੁ ॥੩॥ जिसके हृदय में भगवान निवास करता है ॥३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੇਈ ਜਨ ਪੂਰੇ ॥ हे नानक ! वहीं व्यक्ति पूर्ण हैं,
ਜਿਨਾ ਪਰਾਪਤਿ ਸਾਧੂ ਧੂਰੇ ॥੪॥੭੭॥੧੪੬॥ जिन्हें संतों की चरण-धूलि प्राप्त हो जाती है। ॥४॥७७॥१४६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਖਾਦਾ ਪੈਨਦਾ ਮੂਕਰਿ ਪਾਇ ॥ जो प्राणी प्रभु की नियामतें खाता और पहनता रहता है लेकिन इस बात को अस्वीकार करता है कि ये प्रभु ने दिए हैं,
ਤਿਸ ਨੋ ਜੋਹਹਿ ਦੂਤ ਧਰਮਰਾਇ ॥੧॥ उस प्राणी को यमराज के दूत अपनी दृष्टि में रखते हैं।॥ १॥
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਬੇਮੁਖੁ ਜਿਨਿ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦੀਨਾ ॥ जिस भगवान ने मनुष्य को आत्मा एवं शरीर दिए हैं, वह उससे ही विमुख बना रहता है।
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਭਰਮਹਿ ਬਹੁ ਜੂਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभु से विमुख रहने वाला व्यक्ति करोड़ों ही जन्म अधिकतर योनियों में भटकता रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਕਤ ਕੀ ਐਸੀ ਹੈ ਰੀਤਿ ॥ भगवान से टूटे हुए शाक्त व्यक्ति का यही जीवन-आचरण है कि
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸਗਲ ਬਿਪਰੀਤਿ ॥੨॥ जो कुछ भी वह करता है, सब विपरीत ही करता है॥ २ ॥
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਣ ਜਿਨਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਧਾਰਿਆ ॥ ਸੋਈ ਠਾਕੁਰੁ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰਿਆ ॥੩॥ जिसने उसकी आत्मा, प्राण, मन और शरीर का निर्माण किया है जीव अपने मन से उस प्रभु को विस्मृत कर देता है ॥ ३ ॥
ਬਧੇ ਬਿਕਾਰ ਲਿਖੇ ਬਹੁ ਕਾਗਰ ॥ नास्तिक प्राणी के पाप इतने बढ़ जाते हैं कि ढेर सारे कागजों पर लिखे जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਉਧਰੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ॥੪॥ नानक की प्रार्थना है कि हे सुख के सागर ! हम प्राणियों की रक्षा करो ॥ ४॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਇ ॥ हे पारब्रह्म प्रभु! जो व्यक्ति तेरी शरण में आ जाता है,
ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਤਰੈ ਹਰਿ ਨਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੭੮॥੧੪੭॥ वह हरि-नाम के फलस्वरूप बन्धनों को तोड़कर भवसागर से पार हो जाता है॥ १ ॥ रहाउ दूजा ॥ ७८ ॥ १४७ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਅਪਨੇ ਲੋਭ ਕਉ ਕੀਨੋ ਮੀਤੁ ॥ मनुष्य अपने लोभ हेतु ईश्वर को अपना मित्र बनाता है।
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਮੁਕਤਿ ਪਦੁ ਦੀਤੁ ॥੧॥ ईश्वर उसके सभी मनोरथ पूर्ण करता है और उसे मोक्ष की पदवी प्रदान कर देता है॥ १॥
ਐਸਾ ਮੀਤੁ ਕਰਹੁ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥ हरेक मनुष्य ऐसे ईश्वर को अपना मित्र बनाए,
ਜਾ ਤੇ ਬਿਰਥਾ ਕੋਇ ਨ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसके द्वार से कोई खाली नहीं लौटता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਅਪੁਨੈ ਸੁਆਇ ਰਿਦੈ ਲੈ ਧਾਰਿਆ ॥ जिस मनुष्य ने अपने स्वार्थ हेतु भी उस प्रभु को मन में बसाया है,
ਦੂਖ ਦਰਦ ਰੋਗ ਸਗਲ ਬਿਦਾਰਿਆ ॥੨॥ प्रभु उसके दुःख-दर्द एवं तमाम रोग निवृत्त कर देता है॥ २॥
ਰਸਨਾ ਗੀਧੀ ਬੋਲਤ ਰਾਮ ॥ जिसकी जिव्हा राम का नाम उच्चारण करना चाहती है,
ਪੂਰਨ ਹੋਏ ਸਗਲੇ ਕਾਮ ॥੩॥ उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।॥ ३॥
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰਾ ॥ हे नानक ! हम अपने गोबिन्द पर अनेक बार कुर्बान जाते हैं,
ਸਫਲ ਦਰਸਨੁ ਗੋਬਿੰਦੁ ਹਮਾਰਾ ॥੪॥੭੯॥੧੪੮॥ हमारा गोविन्द ऐसा है कि उसके दर्शन तमाम फल प्रदान करते हैं ॥४॥७९॥१४८॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥
ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਹਿਰੇ ਖਿਨ ਮਾਹਿ ॥ उसके करोड़ों विघ्न एक क्षण में ही मिट जाते हैं
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸਾਧਸੰਗਿ ਸੁਨਾਹਿ ॥੧॥ जो व्यक्ति संतों की निर्मल सभा में हरि की हरि कथा सुनता है । १॥
ਪੀਵਤ ਰਾਮ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਗੁਣ ਜਾਸੁ ॥ वह राम रस का पान करता है और अमृत गुणों का यश करता है।
ਜਪਿ ਹਰਿ ਚਰਣ ਮਿਟੀ ਖੁਧਿ ਤਾਸੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि के चरणों का ध्यान धारण करने से उसकी भूख निवृत्त हो जाती है।॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ਸੁਖ ਸਹਜ ਨਿਧਾਨ ॥ उसको सर्वकल्याण और सहज सुख के भण्डार प्राप्त हो जाते हैं
ਜਾ ਕੈ ਰਿਦੈ ਵਸਹਿ ਭਗਵਾਨ ॥੨॥ जिसके हृदय में भगवान का निवास हो जाता है।॥ २॥


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