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ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਰਮਤ ਰਾਮ ਰਾਇ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਗੁਰੂ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ॥
राम प्रत्येक हृदय में विद्यमान है। गुरु के शब्द एवं गुरु द्वारा प्रभु में वृति लगती है।
ਹਉ ਮਨੁ ਤਨੁ ਦੇਵਉ ਕਾਟਿ ਗੁਰੂ ਕਉ ਮੇਰਾ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਭਾਗੇ ॥੨॥
अपने मन एवं तन गुरु के समक्ष अर्पण करता हूँ क्योंकि गुरु के वचन द्वारा मेरा भ्रम एवं भय निवृत हो गए। ॥२॥
ਅੰਧਿਆਰੈ ਦੀਪਕ ਆਨਿ ਜਲਾਏ ਗੁਰ ਗਿਆਨਿ ਗੁਰੂ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ॥
जब मेरे मन की अज्ञानता के अन्धेरे में गुरु ने अपना ज्ञान-रुपी दीपक प्रज्वलित कर दिया तो मेरी वृत्ति परमात्मा में लग गई।
ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰਾ ਬਿਨਸਿ ਬਿਨਾਸਿਓ ਘਰਿ ਵਸਤੁ ਲਹੀ ਮਨ ਜਾਗੇ ॥੩॥
मेरे हृदय में से अज्ञानता का अँधेरा नाश हो गया और माया के मोह में निद्रामग्न मेरा मन जाग गया। मेरे मन को हृदय-घर में ही नाम रूपी वस्तु मिल गई है। ॥३॥
ਸਾਕਤ ਬਧਿਕ ਮਾਇਆਧਾਰੀ ਤਿਨ ਜਮ ਜੋਹਨਿ ਲਾਗੇ ॥
भगवान से विमुख, हिंसक, पतित एवं मायाधारी जीवों को ही यमदूत मृत्यु के बन्धन में बांधता है।
ਉਨ ਸਤਿਗੁਰ ਆਗੈ ਸੀਸੁ ਨ ਬੇਚਿਆ ਓਇ ਆਵਹਿ ਜਾਹਿ ਅਭਾਗੇ ॥੪॥
जिन्होंने अहंकारवश सतगुरु के समक्ष अपना सिर समर्पित नहीं किया, वे भाग्यहीन आवागमन (जीवन-मृत्यु) के चक्र में पड़े रहते हैं। ॥४ ॥
ਹਮਰਾ ਬਿਨਉ ਸੁਨਹੁ ਪ੍ਰਭ ਠਾਕੁਰ ਹਮ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭੂ ਹਰਿ ਮਾਗੇ ॥
हे प्रभु-ठाकुर ! मेरी एक विनती सुनो। मैं प्रभु की शरणागत हैं और हरि नाम की याचना करता हूँ।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੀ ਲਜ ਪਾਤਿ ਗੁਰੂ ਹੈ ਸਿਰੁ ਬੇਚਿਓ ਸਤਿਗੁਰ ਆਗੇ ॥੫॥੧੦॥੨੪॥੬੨॥
गुरु ही नानक की लाज-प्रतिष्ठा रखने वाला है। उन्होंने पूर्णतः अपना सिर सतगुरु के समक्ष समर्पण कर दिया है मानो उन्होंने स्वयं को उनके हाथों बेच दिया हो। ॥५॥१०॥२४॥६२॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग गौड़ी पूरबी, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹਮ ਅਹੰਕਾਰੀ ਅਹੰਕਾਰ ਅਗਿਆਨ ਮਤਿ ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ॥
हम (प्राणी) बड़े अहंकारी हैं, हमारी बुद्धि अहंकार और अज्ञानता वाली बनी रहती है। लेकिन गुरु से मिलकर हमारा अहंकार नष्ट हो गया है।
ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥੧॥
हमारे हृदय में से अहंकार का रोग निवृत हो गया है और हमें सुख उपलब्ध हो गया है। इसलिए, मैं कहता हूं कि हरि-परमेश्वर का रूप गुरु धन्य-धन्य हैं।॥ १॥
ਰਾਮ ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरे राम ! गुरु के वचन द्वारा मैंने प्रभु को पा लिया है। १॥ रहाउ॥
ਮੇਰੈ ਹੀਅਰੈ ਪ੍ਰੀਤਿ ਰਾਮ ਰਾਇ ਕੀ ਗੁਰਿ ਮਾਰਗੁ ਪੰਥੁ ਬਤਾਇਆ ॥
मेरे हृदय में राम का प्रेम है। गुरु ने मुझे प्रभु-मिलन का मार्ग दिखा दिया है।
ਮੇਰਾ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਸਤਿਗੁਰ ਆਗੈ ਜਿਨਿ ਵਿਛੁੜਿਆ ਹਰਿ ਗਲਿ ਲਾਇਆ ॥੨॥
मेरी आत्मा एवं देहि सब कुछ सतगुरु के समक्ष समर्पित हैं, जिन्होंने मुझ बिछुड़े हुए को परमात्मा से आलिंगन करवा दिया है। २॥
ਮੇਰੈ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਦੇਖਨ ਕਉ ਗੁਰਿ ਹਿਰਦੇ ਨਾਲਿ ਦਿਖਾਇਆ ॥
मेरे अन्तर्मन में प्रभु के दर्शनों की प्रीति उत्पन्न हुई है। गुरु ने मुझे मेरे हृदय में ही मेरे साथ विद्यमान प्रभु को दिखा दिया है।
ਸਹਜ ਅਨੰਦੁ ਭਇਆ ਮਨਿ ਮੋਰੈ ਗੁਰ ਆਗੈ ਆਪੁ ਵੇਚਾਇਆ ॥੩॥
मेरे मन में सहज आनंद उत्पन्न हो गया है। इसलिए मैंने स्वयं को पूरी तरह से गुरु को समर्पित कर दिया है जैसे कि मैंने स्वयं को उन्हें बेच दिया हो।॥ ३॥
ਹਮ ਅਪਰਾਧ ਪਾਪ ਬਹੁ ਕੀਨੇ ਕਰਿ ਦੁਸਟੀ ਚੋਰ ਚੁਰਾਇਆ ॥
मैंने बहुत अपराध एवं पाप किए हैं। जैसे कोई चोर अपनी की हुई चोरी को छिपाता है, वैसे ही मैंने बुराइयां करके उन्हें छिपाया है।
ਅਬ ਨਾਨਕ ਸਰਣਾਗਤਿ ਆਏ ਹਰਿ ਰਾਖਹੁ ਲਾਜ ਹਰਿ ਭਾਇਆ ॥੪॥੧੧॥੨੫॥੬੩॥
हे हरि ! अब मैं नानक हरि की शरण में आया हूँ। जैसे आपको उपयुक्त लगे, वैसे ही मेरी लाज रखो।॥ ४ ॥ ११॥ २५॥ ६३ ॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग गौड़ी पूरबी, चौथे गुरु: ४ ॥
ਗੁਰਮਤਿ ਬਾਜੈ ਸਬਦੁ ਅਨਾਹਦੁ ਗੁਰਮਤਿ ਮਨੂਆ ਗਾਵੈ ॥
गुरु के उपदेश से मेरे अन्तर में अनहद शब्द गूंजने लग गया है और गुरु के उपदेश से ही मेरा मन परमात्मा का यश गायन करता है।
ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥੧॥
केवल बहुत भाग्यशाली व्यक्ति ही गुरु की धन्य दृष्टि को देख पाते हैं, और धन्य है वह गुरु जो उन्हें ईश्वर के प्रेम में लीन होने के लिए प्रेरित करते हैं।||1|| १॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से ही ईश्वर में वृत्ति लगती है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਮਰਾ ਠਾਕੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਮਨੁ ਗੁਰ ਕੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥
पूर्ण सतगुरु ही मेरा ठाकुर है और मेरा मन गुरु की ही सेवा करता है।
ਹਮ ਮਲਿ ਮਲਿ ਧੋਵਹ ਪਾਵ ਗੁਰੂ ਕੇ ਜੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਨਾਵੈ ॥੨॥
मैं गुरु के चरण मल-मल कर धोता हूँ, जो मुझे हरि की हरि कथा सुनाते हैं। २॥
ਹਿਰਦੈ ਗੁਰਮਤਿ ਰਾਮ ਰਸਾਇਣੁ ਜਿਹਵਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
गुरु की शिक्षाओं के माध्यम से भगवान् के नाम का अमृत मेरे मन में स्थापित हो गया है और मेरी जिह्वा भगवान् की स्तुति गाती है।
ਮਨ ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਹਰਿ ਰਸਿ ਆਘਾਨੇ ਫਿਰਿ ਬਹੁਰਿ ਨ ਭੂਖ ਲਗਾਵੈ ॥੩॥
मेरा मन प्रेम में भीगकर ईश्वर के अमृत से तृप्त हो गया है और तदुपरांत इसको दोबारा सांसारिक विषयों की भूख नहीं लगती ॥३ ॥
ਕੋਈ ਕਰੈ ਉਪਾਵ ਅਨੇਕ ਬਹੁਤੇਰੇ ਬਿਨੁ ਕਿਰਪਾ ਨਾਮੁ ਨ ਪਾਵੈ ॥
चाहे कोई अनेक उपाय करे किन्तु प्रभु की कृपा बिना उसको नाम प्राप्त नहीं होता।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਵੈ ॥੪॥੧੨॥੨੬॥੬੪॥
नानक पर हरि-परमेश्वर ने अपनी कृपा की वर्षा की है, गुरु के उपदेश से उनके हृदय में हरि का नाम बस गया है। ॥ ४॥ १२ ॥ २६ ॥ ६४ ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग गौड़ी माझ, चौथे गुरु: ४ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿੰਦੂ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਕਰੰਮਾ ॥
हे मेरे प्राण ! गुरु के सान्निध्य में रहकर परमात्मा के नाम का जाप करो।
ਮਤਿ ਮਾਤਾ ਮਤਿ ਜੀਉ ਨਾਮੁ ਮੁਖਿ ਰਾਮਾ ॥
हे मेरे प्राण ! गुरु प्रदत्त बुद्धि को अपनी माँ की तरह जीवन में अपना सहारा बना और भगवान् का नाम जपें।
ਸੰਤੋਖੁ ਪਿਤਾ ਕਰਿ ਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਅਜਨਮਾ ॥
अपने पिता की तरह संतोष को जीवन में अपना मार्गदर्शक सिद्धांत बनाएं और गुरु की शिक्षाओं का पालन करें जो अमर अजन्मे भगवान् का अवतार हैं।