Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 173

Page 173

ਵਡਭਾਗੀ ਮਿਲੁ ਰਾਮਾ ॥੧॥ इस प्रकार हे सौभाग्यशाली ! तू ईश्वर से एकाकार हो जायेगा।॥ १॥
ਗੁਰੁ ਜੋਗੀ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਿਆ ਰੰਗੁ ਮਾਣੀ ਜੀਉ ॥ मैं गुरु से मिला हूँ, जो स्वयं ईश्वर से जुड़े हुए हैं और गुरु की कृपा से मैं ईश्वर के प्रेम का आनंद ले रहा हूँ।
ਗੁਰੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਤੜਾ ਸਦਾ ਨਿਰਬਾਣੀ ਜੀਉ ॥ गुरु परमेश्वर के प्रेम में मग्न रहता है और सदैव विकारों से रहित पावन-पवित्र है।
ਵਡਭਾਗੀ ਮਿਲੁ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣੀ ਜੀਉ ॥ सौभाग्य से मैं चतुर एवं सर्वज्ञ प्रभु से मिल गया हूँ।
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਭਿੰਨਾ ॥੨॥ मेरा मन एवं तन परमेश्वर के रंग में मग्न है। ॥२॥
ਆਵਹੁ ਸੰਤਹੁ ਮਿਲਿ ਨਾਮੁ ਜਪਾਹਾ ॥ हे संतजनों! आओ हम मिलकर प्रभु के नाम का जाप करें।
ਵਿਚਿ ਸੰਗਤਿ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਲੈ ਲਾਹਾ ਜੀਉ ॥ हम सत्संगति में मिलकर सदैव नाम रूपी लाभ प्राप्त करें।
ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਸੰਤਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮੁਖਿ ਪਾਹਾ ਜੀਉ ॥ संतों की सेवा करके एवं गुरु की शिक्षाओं का पालन कर नाम के अमृत का आनंद लें।
ਮਿਲੁ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਅੜੇ ਧੁਰਿ ਕਰਮਾ ॥੩॥ प्रारम्भ से किस्मत में पूर्व कर्मों के लिखे लेखों अनुसार प्रभु से जा मिलो। ॥३॥
ਸਾਵਣਿ ਵਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤਿ ਜਗੁ ਛਾਇਆ ਜੀਉ ॥ ਮਨੁ ਮੋਰੁ ਕੁਹੁਕਿਅੜਾ ਸਬਦੁ ਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ॥ नाम रूपी अमृत को चखकर मेरे मन का मोर प्रसन्न होकर चहचहाने लग गया।जैसे श्रावन(सावन) के महीने में, हर जगह बारिश का पानी गिरता है और मोर चहचहाते और नाचते हैं, उसी तरह जब गुरु के शब्द का अमृत मुझ पर बरसता है, तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरा मन नाच रहा है और भगवान् की स्तुति गा रहा है।
ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵੁਠੜਾ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ਜੀਉ ॥ जब हरि-नाम रूपी अमृत मेरे हृदय में आ बसा तो मुझे प्रभु-परमेश्वर मिल गए।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੇਮਿ ਰਤੰਨਾ ॥੪॥੧॥੨੭॥੬੫॥ हे नानक ! मैं प्रभु की प्रीति में मग्न हो गया हूँ। ॥४॥१॥२७॥६५॥
ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥ राग गौड़ी माझ, चौथे गुरु: ४ ॥
ਆਉ ਸਖੀ ਗੁਣ ਕਾਮਣ ਕਰੀਹਾ ਜੀਉ ॥ हे मेरी सत्संगी सखियों ! आओ, हम प्रभु को प्राप्त करने के लिए शुभ गुणों को धारण करेंऔर
ਮਿਲਿ ਸੰਤ ਜਨਾ ਰੰਗੁ ਮਾਣਿਹ ਰਲੀਆ ਜੀਉ ॥ संतजनों से मिलकर हम प्रभु-प्रेम का सुख एवं आनंद भोगें।
ਗੁਰ ਦੀਪਕੁ ਗਿਆਨੁ ਸਦਾ ਮਨਿ ਬਲੀਆ ਜੀਉ ॥ मेरे हृदय में गुरु के ज्ञान का दीपक सदैव प्रज्वलित रहता है।
ਹਰਿ ਤੁਠੈ ਢੁਲਿ ਢੁਲਿ ਮਿਲੀਆ ਜੀਉ ॥੧॥ यदि भगवान् हम पर दयालु हो जाएं, तो हम कृतज्ञता के साथ उनसे मिल सकते हैं||1||॥ १॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰੇਮੁ ਲਗਾ ਹਰਿ ਢੋਲੇ ਜੀਉ ॥ मेरे मन एवं तन में प्रियतम प्रभु का प्रेम लगा हुआ है।
ਮੈ ਮੇਲੇ ਮਿਤ੍ਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਵੇਚੋਲੇ ਜੀਉ ॥ मेरी यही कामना है कि मेरे मध्यस्थ सतगुरु मुझे मेरे प्रिय मित्र प्रभु से मिला दे।
ਮਨੁ ਦੇਵਾਂ ਸੰਤਾ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲੇ ਜੀਉ ॥ मैं अपना मन उन संतो को अर्पण कर दूँगा जो मुझे मेरे प्रभु से मिला देंगे।
ਹਰਿ ਵਿਟੜਿਅਹੁ ਸਦਾ ਘੋਲੇ ਜੀਉ ॥੨॥ प्रभु पर मैं सदैव बलिहारी जाता हूँ ॥ २॥
ਵਸੁ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰਿਆ ਵਸੁ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿਦਾ ਹਰਿ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮਨਿ ਵਸੁ ਜੀਉ ॥ हे मेरे प्रिय गोविन्द! ब्रह्मांड के स्वामी; कृपा करके मेरे मन में आकर निवास करो।
ਮਨਿ ਚਿੰਦਿਅੜਾ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦਾ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਵੇਖਿ ਵਿਗਸੁ ਜੀਉ ॥ हे मेरे गोविन्द! मुझे मनोवांछित फल मिल गया है। पूर्ण गुरु के दर्शन करके मैं अत्यंत प्रसन्न हो गई हूँ।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮਿਲਿਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦਾ ਮਨਿ ਅਨਦਿਨੁ ਅਨਦੁ ਰਹਸੁ ਜੀਉ ॥ हे मेरे गोविन्द! मुझे गुरु से हरि-नाम मिल गया है और मैं सुहागिन बन गई हूँ। अब मेरे मन में दिन-रात प्रसन्नता एवं आनंद बना रहता है।
ਹਰਿ ਪਾਇਅੜਾ ਵਡਭਾਗੀਈ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦਾ ਨਿਤ ਲੈ ਲਾਹਾ ਮਨਿ ਹਸੁ ਜੀਉ ॥੩॥ हे मेरे गोविन्द! बड़े भाग्य से मैंने प्रभु को पाया है और मैं नित्य ही नाम रूपी लाभ प्राप्त करके अपने मन में मुस्कराती रहती हूँ।॥ ३ ॥
ਹਰਿ ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਹਰਿ ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਹਰਿ ਆਪੇ ਕਾਰੈ ਲਾਇਆ ਜੀਉ ॥ भगवान् ने स्वयं ही जीवों को उत्पन्न किया है और वह स्वयं ही उनकी देखभाल करते हैं। भगवान् ने स्वयं ही जीवों को कामकाज में लगाया है।
ਇਕਿ ਖਾਵਹਿ ਬਖਸ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਇਕਨਾ ਫਕਾ ਪਾਇਆ ਜੀਉ ॥ कुछ लोग प्रभु की नियामतें सेवन करते हैं, जिनमें कभी कमी नहीं आती और कुछ को केवल मुट्ठी भर ही मिलता है।
ਇਕਿ ਰਾਜੇ ਤਖਤਿ ਬਹਹਿ ਨਿਤ ਸੁਖੀਏ ਇਕਨਾ ਭਿਖ ਮੰਗਾਇਆ ਜੀਉ ॥ प्रभु की कृपा से कई लोग राजा के रूप में सिंहासन पर बैठते हैं और निरंतर सुखों का आनंद लेते हैं, जबकि कुछ ऐसे भी हैं जिनसे वह भीख मांगते हैं।
ਸਭੁ ਇਕੋ ਸਬਦੁ ਵਰਤਦਾ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿਦਾ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਜੀਉ ॥੪॥੨॥੨੮॥੬੬॥ हे मेरे गोविन्द ! सर्वत्र एक आपका नाम ही विद्यमान है। हे नानक ! प्रभु का सेवक प्रभु नाम का ही ध्यान करता है ॥४॥२॥२८॥६६॥
ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੪ ॥ राग गौड़ी माझ, चौथे गुरु: ४ ॥
ਮਨ ਮਾਹੀ ਮਨ ਮਾਹੀ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦਾ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਤਾ ਮਨ ਮਾਹੀ ਜੀਉ ॥ हे मेरे गोविन्द! जिस पर आपकी कृपा होती है उसका मन में ही हरि प्रेम से परिपूर्ण रहता है।
ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਨਾਲਿ ਨ ਲਖੀਐ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿਦਾ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਅਲਖੁ ਲਖਾਹੀ ਜੀਉ ॥ हे मेरे गोविन्द! हरि रंग प्रत्येक जीव के भीतर उसके साथ ही रहता है, उसे देखा नहीं जा सकता परन्तु पूर्ण गुरु ने मुझे अदृश्य प्रभु के दर्शन करा दिए हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਰਗਾਸਿਆ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦਾ ਸਭ ਦਾਲਦ ਦੁਖ ਲਹਿ ਜਾਹੀ ਜੀਉ ॥ हे मेरे गोविन्द! जिनके मन में आपका नाम प्रकाशित हो जाता है, उनके सभी दुःख-दरिद्र दूर हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਪਦੁ ਊਤਮੁ ਪਾਇਆ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦਾ ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਮਿ ਸਮਾਹੀ ਜੀਉ ॥੧॥ हे मेरे गोविन्द! जो लोग अच्छे भाग्य से भगवान् के साथ एकता की सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त करते हैं, वे नाम में विलीन रहते हैं। ॥१॥
ਨੈਣੀ ਮੇਰੇ ਪਿਆਰਿਆ ਨੈਣੀ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿਦਾ ਕਿਨੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਡਿਠੜਾ ਨੈਣੀ ਜੀਉ ॥ हे मेरे प्रिय गोविन्द! हरि-प्रभु को किसी विरले पुरुष ने ही अपने नेत्रों से देखा है।
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਬਹੁਤੁ ਬੈਰਾਗਿਆ ਮੇਰੇ ਗੋਵਿੰਦਾ ਹਰਿ ਬਾਝਹੁ ਧਨ ਕੁਮਲੈਣੀ ਜੀਉ ॥ हे मेरे गोविन्द! मेरा मन एवं तन तेरे विरह में वैराग्यवान हो गया है। मालिक-प्रभु के बिना मैं जीव-स्त्री बहुत उदास हो गई हूँ।


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