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ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦੀਆ ਮਨੁ ਠਾਢੇ ॥੧॥
लेकिन बड़े सौभाग्य से मुझे पूर्ण गुरु मिल गए हैं, जिन्होंने मुझे हरि नाम रूपी मंत्र प्रदान किया है, जिससे यह अस्थिर मन शांत हो गया है। १॥
ਰਾਮ ਹਮ ਸਤਿਗੁਰ ਲਾਲੇ ਕਾਂਢੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरे राम ! मुझे सतगुरु का सेवक कहा जाता है। १॥ रहाउ॥
ਹਮਰੈ ਮਸਤਕਿ ਦਾਗੁ ਦਗਾਨਾ ਹਮ ਕਰਜ ਗੁਰੂ ਬਹੁ ਸਾਢੇ ॥
मुझ पर गुरु का इतना बड़ा ऋण है, इसलिए मुझे उनका सेवक कहा जाता है।
ਪਰਉਪਕਾਰੁ ਪੁੰਨੁ ਬਹੁ ਕੀਆ ਭਉ ਦੁਤਰੁ ਤਾਰਿ ਪਰਾਢੇ ॥੨॥
गुरु ने मुझ पर बहुत बड़ा परोपकार एवं उदार किया है और मुझे इस कठिन एवं भयानक संसार-सागर से पार कर दिया है। ॥२॥
ਜਿਨ ਕਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਰਿਦੈ ਹਰਿ ਨਾਹੀ ਤਿਨ ਕੂਰੇ ਗਾਢਨ ਗਾਢੇ ॥
जिन लोगों के हृदय में प्रभु का प्यार नहीं होता, उन्होंने स्वयं को झूठे बंधनों में बांध लिया है।
ਜਿਉ ਪਾਣੀ ਕਾਗਦੁ ਬਿਨਸਿ ਜਾਤ ਹੈ ਤਿਉ ਮਨਮੁਖ ਗਰਭਿ ਗਲਾਢੇ ॥੩॥
जैसे जल में कागज का नाश हो जाता है, वैसे ही स्वेच्छाचारी जीव अहंकार में योनियों के चक्र में फंसकर नष्ट हो जाता है। ३॥
ਹਮ ਜਾਨਿਆ ਕਛੂ ਨ ਜਾਨਹ ਆਗੈ ਜਿਉ ਹਰਿ ਰਾਖੈ ਤਿਉ ਠਾਢੇ ॥
मुझे भूतकाल का कुछ पता नहीं, न ही मैं भविष्यकाल बारे कुछ जानता हूँ, जैसे परमेश्वर हमें रखता है, उसी अवस्था में हम रहते हैं।
ਹਮ ਭੂਲ ਚੂਕ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਹੁ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੁਤਰੇ ਕਾਢੇ ॥੪॥੭॥੨੧॥੫੯॥
नानक कहते हैं, हे सतगुरु! हम आपके पालतू कुत्तों की तरह हैं, कृपया दया करें और हमारी गलतियों पर ध्यान न दें। ॥ ४॥ ७॥ २१॥ ५९ ॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग गौड़ी पूरबी, चौथे गुरु: ४ ॥
ਕਾਮਿ ਕਰੋਧਿ ਨਗਰੁ ਬਹੁ ਭਰਿਆ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਖੰਡਲ ਖੰਡਾ ਹੇ ॥
यह मानव शरीर रूपी-नगर काम-क्रोध जैसे विकारों से पूरी तरह भरा हुआ है। लेकिन सन्तजनों की शिक्षाओं का पालन करके तुम इन्हें क्षीण कर सकते हो।
ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਤ ਲਿਖੇ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਮਨਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਮੰਡਲ ਮੰਡਾ ਹੇ ॥੧॥
जिस मनुष्य ने पूर्व लिखित कर्मों के माध्यम से गुरु को प्राप्त किया है, उसका चंचल मन ही भगवान् में लीन हो जाता है। १॥
ਕਰਿ ਸਾਧੂ ਅੰਜੁਲੀ ਪੁੰਨੁ ਵਡਾ ਹੇ ॥
संतजनों को हाथ जोड़कर नमन करना बड़ा पुण्य कर्म है।
ਕਰਿ ਡੰਡਉਤ ਪੁਨੁ ਵਡਾ ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उन्हें दण्डवत् प्रणाम करना भी वास्तव में महान् पुण्य कर्म है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਕਤ ਹਰਿ ਰਸ ਸਾਦੁ ਨ ਜਾਨਿਆ ਤਿਨ ਅੰਤਰਿ ਹਉਮੈ ਕੰਡਾ ਹੇ ॥
पतित मनुष्यों (माया में लिप्त अथवा जो भगवान् से विस्मृत) ने हरि-रस का आनंद प्राप्त नहीं किया, क्योंकि उनके अन्तर्मन में अहंकार रूपी कांटा होता है।
ਜਿਉ ਜਿਉ ਚਲਹਿ ਚੁਭੈ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਜਮਕਾਲੁ ਸਹਹਿ ਸਿਰਿ ਡੰਡਾ ਹੇ ॥੨॥
जैसे-जैसे वह अहंकारवश जीवन मार्ग पर चलते हैं, वह अहं का कांटा उन्हें चुभ-चुभकर कष्ट देता रहता है और अन्तिम समय में यमों द्वारा दी जाने वाली यातना को सहन करते हैं। २॥
ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੇ ਦੁਖੁ ਜਨਮ ਮਰਣ ਭਵ ਖੰਡਾ ਹੇ ॥
प्रभु के भक्त प्रभु-परमेश्वर के नाम सिमरन में लीन रहते हैं और वे आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त करके संसार के दुःखों से छूट जाते हैं।
ਅਬਿਨਾਸੀ ਪੁਰਖੁ ਪਾਇਆ ਪਰਮੇਸਰੁ ਬਹੁ ਸੋਭ ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡਾ ਹੇ ॥੩॥
फिर वे अविनाशी सर्वव्यापक प्रभु को पा लेते हैं और वे खण्डों-ब्रह्मण्डों में शोभा पाते हैं। ३ ।
ਹਮ ਗਰੀਬ ਮਸਕੀਨ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੇ ਹਰਿ ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਵਡ ਵਡਾ ਹੇ ॥
हे प्रभु! हम निर्धन व निराश्रय आपके ही अधीन हैं आप सर्वोच्चतम शक्ति हो, इसलिए हमें इन विकारों से बचा लो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਟੇਕ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਮੰਡਾ ਹੇ ॥੪॥੮॥੨੨॥੬੦॥
हे नानक ! जीव को आपके ही नाम का आधार है, हरि-नाम में लिप्त होने से ही आत्मिक सुखों की उपलब्धि होती है ॥४॥८॥२२॥६०॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग गौड़ी पूरबी, चौथे गुरु: ४ ॥
ਇਸੁ ਗੜ ਮਹਿ ਹਰਿ ਰਾਮ ਰਾਇ ਹੈ ਕਿਛੁ ਸਾਦੁ ਨ ਪਾਵੈ ਧੀਠਾ ॥
सांसारिक विकारों में डूबे रहने के कारण, जिद्दी प्राणी शरीर के भीतर सर्वोच्च ईश्वर की उपस्थिति के आनंद का आनंद नहीं ले पाता है।
ਹਰਿ ਦੀਨ ਦਇਆਲਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਕੀਆ ਹਰਿ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਚਖਿ ਡੀਠਾ ॥੧॥
जब दीनदयालु ईश्वर ने मुझ पर करुणा-दृष्टि की तो मैंने गुरु के शब्द द्वारा हरि-रस के स्वाद को चख कर देख लिया ॥ १॥
ਰਾਮ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗੁਰ ਲਿਵ ਮੀਠਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरे राम ! गुरु में सुरति धारण कर परमेश्वर का यश गायन करना मुझे मीठा लगने लग गया ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਹੈ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਲਾਗਿ ਬਸੀਠਾ ॥
हरि-परमेश्वर अगम्य, अगोचर एवं पारब्रह्म है। सतगुरु की कृपा से ही वह मिलता है।
ਜਿਨ ਗੁਰ ਬਚਨ ਸੁਖਾਨੇ ਹੀਅਰੈ ਤਿਨ ਆਗੈ ਆਣਿ ਪਰੀਠਾ ॥੨॥
जिनके हृदय को गुरु का वचन सुखदायक लगता है, गुरु उनके समक्ष नाम रूपी अमृत रस सेवन करने के लिए परोस दिया जाता है। ॥ २॥
ਮਨਮੁਖ ਹੀਅਰਾ ਅਤਿ ਕਠੋਰੁ ਹੈ ਤਿਨ ਅੰਤਰਿ ਕਾਰ ਕਰੀਠਾ ॥
स्वेच्छाचारी का हृदय बड़ा निष्ठुर है, उनके भीतर मन में बुराई के अंधकार के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
ਬਿਸੀਅਰ ਕਉ ਬਹੁ ਦੂਧੁ ਪੀਆਈਐ ਬਿਖੁ ਨਿਕਸੈ ਫੋਲਿ ਫੁਲੀਠਾ ॥੩॥
यदि हम साँप को कितना भी दूध पिलाएँ, जाँच पड़ताल करने पर उसके भीतर से विष ही निकलेगा, इसी प्रकार मनमुख अपने साथ किए गए सभी अच्छे कार्यों के बदले में केवल बुराई ही लौटाते हैं। ॥ ३॥
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਆਨਿ ਮਿਲਾਵਹੁ ਗੁਰੁ ਸਾਧੂ ਘਸਿ ਗਰੁੜੁ ਸਬਦੁ ਮੁਖਿ ਲੀਠਾ ॥
हे मेरे हरि-प्रभु! मुझे गुरु से मिला दो ताकि मैं उनके वचन का स्मरण करके अपने विकारों का जहर दूर कर सकूं, जैसे जड़ी-बूटी का सेवन करने से सांप का जहर दूर हो जाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਕੇ ਲਾਲੇ ਗੋਲੇ ਲਗਿ ਸੰਗਤਿ ਕਰੂਆ ਮੀਠਾ ॥੪॥੯॥੨੩॥੬੧॥
हे नानक ! मैं गुरु का सेवक एवं गुलाम हूँ। उनकी सत्संग से मिलकर कड़वा विष भी मीठा अमृत बन जाता है ॥४॥९॥२३॥६१॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग गौड़ी पूरबी, चौथे गुरु: ४ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਰਥਿ ਸਰੀਰੁ ਹਮ ਬੇਚਿਆ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਆਗੇ ॥
हरि-परमेश्वर मिलन पाने के उद्देश्य से मैंने स्वयं को पूर्णतः गुरु के प्रति समर्पित कर दिया है।
ਸਤਿਗੁਰ ਦਾਤੈ ਨਾਮੁ ਦਿੜਾਇਆ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗ ਸਭਾਗੇ ॥੧॥
दाता सतगुरु ने मेरे हृदय में ईश्वर का नाम सुदृढ़ कर दिया है। मेरे चेहरे एवं मस्तक पर भाग्य जाग गए हैं, मैं बड़ा सौभाग्यशाली हूँ॥ १ ॥
ਰਾਮ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरे राम ! गुरु की मति से मेरी सुरति भगवान् में लग गई है। १॥ रहाउ॥