Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 156

Page 156

ਏਕਸੁ ਚਰਣੀ ਜੇ ਚਿਤੁ ਲਾਵਹਿ ਲਬਿ ਲੋਭਿ ਕੀ ਧਾਵਸਿਤਾ ॥੩॥ यदि तुम अपना मन एक प्रभु के चरणों से लगा लो तो झूठ, लोभ के कारण बनी तेरी दुविधा दूर हो जाए॥ ३॥
ਜਪਸਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਰਚਸਿ ਮਨਾ ॥ हे योगी ! निरंजन प्रभु की आराधना करने से तेरा मन उस में लीन हो जाएगा।
ਕਾਹੇ ਬੋਲਹਿ ਜੋਗੀ ਕਪਟੁ ਘਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे योगी ! तुम इतना बड़ा छल-कपट रहित असत्य क्यों बोलते हो ॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਾਇਆ ਕਮਲੀ ਹੰਸੁ ਇਆਣਾ ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਤ ਬਿਹਾਣੀਤਾ ॥ आपका शरीर जंगली है इंद्रियाँ विकारों का पीछा कर रही हैं, और मन बचकाना है जो जीवन का सही तरीका नहीं जानता। तेरी समस्त अवस्था माया के मोह में बीतती जा रही है।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਨਾਗੀ ਦਾਝੈ ਫਿਰਿ ਪਾਛੈ ਪਛੁਤਾਣੀਤਾ ॥੪॥੩॥੧੫॥ नानक विनती करता है कि नग्न देहि जब जल जाती है तो समय समाप्त हुआ जानकर आत्मा पश्चाताप करती है।॥ ४ ॥ ३॥ १५॥
ਗਉੜੀ ਚੇਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग गौड़ी चैती, प्रथम गुरु: १ ॥
ਅਉਖਧ ਮੰਤ੍ਰ ਮੂਲੁ ਮਨ ਏਕੈ ਜੇ ਕਰਿ ਦ੍ਰਿੜੁ ਚਿਤੁ ਕੀਜੈ ਰੇ ॥ हे मेरे मन ! यदि आप सत्य नाम को अपने मन में दृढ़ता से स्थापित कर लेंगे, तो आपको पता चल जाएगा कि सभी रोगों का मूल और सर्वोत्तम मंत्र और उपाय भगवान् का नाम है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਪਾਪ ਕਰਮ ਕੇ ਕਾਟਨਹਾਰਾ ਲੀਜੈ ਰੇ ॥੧॥ तो तू जन्म-जन्मांतरों में किए पापों का नाश करने वाले परमेश्वर को प्राप्त कर लेगा।॥ १॥
ਮਨ ਏਕੋ ਸਾਹਿਬੁ ਭਾਈ ਰੇ ॥ हे मेरे भाई ! मेरे मन को एक ईश्वर ही अच्छा लगता है।
ਤੇਰੇ ਤੀਨਿ ਗੁਣਾ ਸੰਸਾਰਿ ਸਮਾਵਹਿ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖਣਾ ਜਾਈ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे परमेश्वर ! तेरी तीन विशेषताओं में जगत् समाया हुआ है अर्थात् त्रिगुणी इन्द्रियां संसार के मोह में लगी हुई हैं और उस अलक्ष्य परमेश्वर को समझा नहीं जा सकता॥१॥ रहाउ॥
ਸਕਰ ਖੰਡੁ ਮਾਇਆ ਤਨਿ ਮੀਠੀ ਹਮ ਤਉ ਪੰਡ ਉਚਾਈ ਰੇ ॥ यह माया शक्कर व चीनी की भाँति शरीर को मधुर लगती है। हम प्राणियों ने माया का बोझ उठाया हुआ है।
ਰਾਤਿ ਅਨੇਰੀ ਸੂਝਸਿ ਨਾਹੀ ਲਜੁ ਟੂਕਸਿ ਮੂਸਾ ਭਾਈ ਰੇ ॥੨॥ हे भाई, ज्ञानहीन रूपी अंधेरी रात में कुछ दिखाई नहीं देता हम यह नहीं जानते कि हमारे जीवन की अवधि कैसे कम हो रही है और मृत्यु का चूहा (यमराज) जीवन की रस्सी काटता जा रहा है।॥ २॥ ।
ਮਨਮੁਖਿ ਕਰਹਿ ਤੇਤਾ ਦੁਖੁ ਲਾਗੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲੈ ਵਡਾਈ ਰੇ ॥ स्वेच्छाचारी जीव जितना अधिक धर्म-कर्म करता है, उतना अधिक वह दुःखी होता है। लेकिन गुरमुख को यश प्राप्त होता है।
ਜੋ ਤਿਨਿ ਕੀਆ ਸੋਈ ਹੋਆ ਕਿਰਤੁ ਨ ਮੇਟਿਆ ਜਾਈ ਰੇ ॥੩॥ जो कुछ परमात्मा करता है, वही होता है, जीव की भाग्य रेखा मिटाई नहीं जा सकती॥ ३॥
ਸੁਭਰ ਭਰੇ ਨ ਹੋਵਹਿ ਊਣੇ ਜੋ ਰਾਤੇ ਰੰਗੁ ਲਾਈ ਰੇ ॥ जो प्राणी परमात्मा के चरणों में प्रीति लगाते और मग्न रहते हैं, वे प्रेम-रस से परिपूर्ण रहते हैं और प्रेम से शून्य नहीं होते।
ਤਿਨ ਕੀ ਪੰਕ ਹੋਵੈ ਜੇ ਨਾਨਕੁ ਤਉ ਮੂੜਾ ਕਿਛੁ ਪਾਈ ਰੇ ॥੪॥੪॥੧੬॥ नानक कहते हैं, यदि नानक उनके चरणों की धूलि बन जाए तो उस विमूढ़ (मन) को भी कुछ आध्यात्मिक लाभ प्राप्त हो जाए। ॥ ४॥ ४॥ १६॥
ਗਉੜੀ ਚੇਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग गौड़ी चैती, प्रथम गुरु: १ ॥
ਕਤ ਕੀ ਮਾਈ ਬਾਪੁ ਕਤ ਕੇਰਾ ਕਿਦੂ ਥਾਵਹੁ ਹਮ ਆਏ ॥ "हम जीवों को पापों के कारण अनेक योनियों में भटकना पड़ता है, फिर हम क्या व्यक्त करें कि हमारी माता कौन है, हमारा पिता कौन है, किस स्थान से हम आए हैं ?
ਅਗਨਿ ਬਿੰਬ ਜਲ ਭੀਤਰਿ ਨਿਪਜੇ ਕਾਹੇ ਕੰਮਿ ਉਪਾਏ ॥੧॥ पिता के जल रूपी वीर्य के बुलबुले से माता की गर्भ-अग्नि में पड़कर हम उत्पन्न हुए हैं लेकिन हम यह नहीं जानते कि भगवान् ने किस उद्धेश्य से हमारी रचना की है।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬਾ ਕਉਣੁ ਜਾਣੈ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ॥ हे मेरे भगवान् ! तेरे गुणों को कौन जान सकता है?
ਕਹੇ ਨ ਜਾਨੀ ਅਉਗਣ ਮੇਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मुझ में इतने अवगुण हैं कि उनका वर्णन नहीं किया जा सकता ॥ १॥ रहाउ॥
ਕੇਤੇ ਰੁਖ ਬਿਰਖ ਹਮ ਚੀਨੇ ਕੇਤੇ ਪਸੂ ਉਪਾਏ ॥ हमने अनेक वृक्षों की योनियां देखीं। अनेक बार पशु-योनियों में उत्पन्न हुए।
ਕੇਤੇ ਨਾਗ ਕੁਲੀ ਮਹਿ ਆਏ ਕੇਤੇ ਪੰਖ ਉਡਾਏ ॥੨॥ अनेक बार हम सांपो के वंशों में उत्पन्न हुए और अनेक बार पक्षी बन-बनकर उड़ते रहे॥ २॥
ਹਟ ਪਟਣ ਬਿਜ ਮੰਦਰ ਭੰਨੈ ਕਰਿ ਚੋਰੀ ਘਰਿ ਆਵੈ ॥ मनुष्य नगरों कोठी दुकानों एयं मजबूत महलों को सेंध लगाता है और वहाँ चोरी करके घर आ जाता है।
ਅਗਹੁ ਦੇਖੈ ਪਿਛਹੁ ਦੇਖੈ ਤੁਝ ਤੇ ਕਹਾ ਛਪਾਵੈ ॥੩॥ चोरी करते समय वह मूर्ख अपने आगे-पीछे देखता है ताकि कोई देख न ले किन्तु मूर्ख मनुष्य ईश्वर से अपने आपको कहाँ छिपा सकता है? ॥ ३॥
ਤਟ ਤੀਰਥ ਹਮ ਨਵ ਖੰਡ ਦੇਖੇ ਹਟ ਪਟਣ ਬਾਜਾਰਾ ॥ अपने पापों को मिटाने के लिए हम दुनिया भर के पवित्र तटों और नदियों के तटों पर जाना शुरू कर देते हैं और दुकानों, बाजारों और शहरों में भीख मांगने लगते हैं।
ਲੈ ਕੈ ਤਕੜੀ ਤੋਲਣਿ ਲਾਗਾ ਘਟ ਹੀ ਮਹਿ ਵਣਜਾਰਾ ॥੪॥ जीव रूपी व्यापारी आपकी कृपा से अपने हृदय में तराजू लेकर अपने कमाए नाम रूपी धन को तोलता है तब वह समझ जाता है कि आप हमारे हृदय में निवास कर रहे हैं।॥ ४॥
ਜੇਤਾ ਸਮੁੰਦੁ ਸਾਗਰੁ ਨੀਰਿ ਭਰਿਆ ਤੇਤੇ ਅਉਗਣ ਹਮਾਰੇ ॥ हे प्रभु ! हमारे अवगुण सागर में अथाह जल के समान अनगिनत हैं।
ਦਇਆ ਕਰਹੁ ਕਿਛੁ ਮਿਹਰ ਉਪਾਵਹੁ ਡੁਬਦੇ ਪਥਰ ਤਾਰੇ ॥੫॥ हे ईश्वर ! मुझ पर अपनी दया एवं कुछ कृपा दृष्टि करो और मुझ डूबते पत्थर को भवसागर में से पार कर दो॥ ५॥
ਜੀਅੜਾ ਅਗਨਿ ਬਰਾਬਰਿ ਤਪੈ ਭੀਤਰਿ ਵਗੈ ਕਾਤੀ ॥ मेरा हृदय अग्नि की भाँति दीप्यमान हो रहा है और उसके भीतर तृष्णा रूपी कैंची चल रही है।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਸੁਖੁ ਹੋਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ॥੬॥੫॥੧੭॥ नानक कहते हैं कि हे मेरे प्रभु! यदि कोई आपकी आज्ञा को पहचान लेता है तो उसके जीवन में दिन-रात सुख बना रहता है। ॥ ६॥ ५॥ १७॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग गौड़ी बैरागन, प्रथम गुरु: १ ॥
ਰੈਣਿ ਗਵਾਈ ਸੋਇ ਕੈ ਦਿਵਸੁ ਗਵਾਇਆ ਖਾਇ ॥ मनुष्य अपनी रात्रि सोकर और दिन खा-पीकर व्यर्थ ही गंवा देता है।
ਹੀਰੇ ਜੈਸਾ ਜਨਮੁ ਹੈ ਕਉਡੀ ਬਦਲੇ ਜਾਇ ॥੧॥ उसका हीरे समान अनमोल जीवन प्रभु भक्ति के बिना कौड़ी के भाव व्यर्थ चला जाता है॥ १॥
ਨਾਮੁ ਨ ਜਾਨਿਆ ਰਾਮ ਕਾ ॥ हे मूर्ख ! तूने राम के नाम को नहीं जाना।
ਮੂੜੇ ਫਿਰਿ ਪਾਛੈ ਪਛੁਤਾਹਿ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तुम फिर मरणोपरांत पश्चाताप करोगे॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਤਾ ਧਨੁ ਧਰਣੀ ਧਰੇ ਅਨਤ ਨ ਚਾਹਿਆ ਜਾਇ ॥ तूने नाशवान धन संग्रह करके धरती में दबाकर रखा हुआ है। इस धन के कारण ही तेरे मन में अनन्त परमेश्वर के स्मरण की इच्छा उत्पन्न नहीं होती।
ਅਨਤ ਕਉ ਚਾਹਨ ਜੋ ਗਏ ਸੇ ਆਏ ਅਨਤ ਗਵਾਇ ॥੨॥ जो भी नाशवान धन पदार्थ की ओर दौड़ते फिरते हैं, वे अनन्त प्रभु के नाम-धन को गंवा कर आए हैं।॥ २॥
ਆਪਣ ਲੀਆ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤਾ ਸਭੁ ਕੋ ਭਾਗਠੁ ਹੋਇ ॥ यदि स्वयं के प्रयासों से भगवान् के नाम का सच्चा धन प्राप्त किया जा सके, तो हर कोई आध्यात्मिक रूप से समृद्ध हो जाएगा।


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