Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 147

ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਨੀਸਾਣਿ ਠਾਕ ਨ ਪਾਈਐ ॥ जब व्यक्ति को सत्य-नाम का आशीर्वाद प्राप्त होता है तो उसे ईश्वर को महसूस करने में कोई बाधा नहीं आती है।
ਸਚੁ ਸੁਣਿ ਬੁਝਿ ਵਖਾਣਿ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਈਐ ॥੧੮॥ जो व्यक्ति भगवान् के सत्यनाम को सुनता, समझता एवं उसे जपता है, वह आत्म-स्वरूप में निमंत्रित कर लिया जाता है॥१८॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਪਹਿਰਾ ਅਗਨਿ ਹਿਵੈ ਘਰੁ ਬਾਧਾ ਭੋਜਨੁ ਸਾਰੁ ਕਰਾਈ ॥ यदि मैं अग्नि की पोशाक धारण कर लूँ, हिम में अपना घर बना लूँ और लोहे को अपना आहार बना लूँ,
ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਪਾਣੀ ਕਰਿ ਪੀਵਾ ਧਰਤੀ ਹਾਕ ਚਲਾਈ ॥ समस्त दुःखों को यदि मैं जल की भाँति पान कर लूँ और धरती को पशुओं की भाँति हॉक कर चलाऊँ।
ਧਰਿ ਤਾਰਾਜੀ ਅੰਬਰੁ ਤੋਲੀ ਪਿਛੈ ਟੰਕੁ ਚੜਾਈ ॥ और अगर मैं पूरे आकाश को एक तराजू पर रखूं और उसे एक तांबे के सिक्के से संतुलित कर दूँ,
ਏਵਡੁ ਵਧਾ ਮਾਵਾ ਨਾਹੀ ਸਭਸੈ ਨਥਿ ਚਲਾਈ ॥ और यदि मैं इतना बड़ा हो जाऊं कि मुझे रोका न जा सके, और यदि मुझे सभी को नियंत्रित और नेतृत्व करना पड़े,
ਏਤਾ ਤਾਣੁ ਹੋਵੈ ਮਨ ਅੰਦਰਿ ਕਰੀ ਭਿ ਆਖਿ ਕਰਾਈ ॥ यदि मेरे मन में इतना बल हो कि मैं जो चाहूँ कर सकूँ और करवा सकूँ।
ਜੇਵਡੁ ਸਾਹਿਬੁ ਤੇਵਡ ਦਾਤੀ ਦੇ ਦੇ ਕਰੇ ਰਜਾਈ ॥ जितना महान परमेश्वर है उतने महान ही उसके दान हैं। भले ही वह अपनी इच्छानुसार मुझे इनमें से अधिक उपहार या शक्तियाँ दे, फिर भी यह सब व्यर्थ होगा।
ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਉਪਰਿ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥ हे नानक ! जिस पर प्रभु अपनी कृपा-दृष्टि करता है, उसको सत्य नाम की महानता प्राप्त होती है ॥ १ ॥
ਮਃ ੨ ॥ श्लोक, दूसरे गुरु द्वारा: २॥
ਆਖਣੁ ਆਖਿ ਨ ਰਜਿਆ ਸੁਨਣਿ ਨ ਰਜੇ ਕੰਨ ॥ मनुष्य कभी संतुष्ट नहीं होता, भले ही वह अंतहीन बातें करता रहे और निंदा सुनने से भी नहीं थकता।
ਅਖੀ ਦੇਖਿ ਨ ਰਜੀਆ ਗੁਣ ਗਾਹਕ ਇਕ ਵੰਨ ॥ और उसकी आँखें सुन्दर रूप देख-देखकर तृप्त नहीं होती (चाहे वे कितनी भी सुंदरता देख लें)। हमारी सभी इंद्रियों का यही एक गुण है कि ये कभी तृप्त नहीं होतीं।
ਭੁਖਿਆ ਭੁਖ ਨ ਉਤਰੈ ਗਲੀ ਭੁਖ ਨ ਜਾਇ ॥ भूखों की भूख केवल शब्दों से कभी निवृत्त नहीं होती।
ਨਾਨਕ ਭੁਖਾ ਤਾ ਰਜੈ ਜਾ ਗੁਣ ਕਹਿ ਗੁਣੀ ਸਮਾਇ ॥੨॥ हे नानक ! भूखा मनुष्य तभी तृप्त होता है यदि वह गुणों के भण्डार परमात्मा की महिमा करके उसमें समा जाता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਵਿਣੁ ਸਚੇ ਸਭੁ ਕੂੜੁ ਕੂੜੁ ਕਮਾਈਐ ॥ सत्य नाम के अतिरिक्त सभी कार्य झूठे हैं और सभी झूठ कर्म ही करते हैं।
ਵਿਣੁ ਸਚੇ ਕੂੜਿਆਰੁ ਬੰਨਿ ਚਲਾਈਐ ॥ सत्यनाम के बिना झूठा व्यक्ति माया के बंधन में फंस जाता है।
ਵਿਣੁ ਸਚੇ ਤਨੁ ਛਾਰੁ ਛਾਰੁ ਰਲਾਈਐ ॥ सत्य नाम के अतिरिक्त यह तन मिट्टी समान है और मिट्टी में ही मिल जाता है।
ਵਿਣੁ ਸਚੇ ਸਭ ਭੁਖ ਜਿ ਪੈਝੈ ਖਾਈਐ ॥ सत्यनाम के अतिरिक्त सभी भोजन और कपड़े असंतोषजनक हैं और सांसारिक धन की इच्छाओं को बढ़ाते हैं।
ਵਿਣੁ ਸਚੇ ਦਰਬਾਰੁ ਕੂੜਿ ਨ ਪਾਈਐ ॥ मनुष्य सत्य नाम के बिना झूठे कार्य करके प्रभु के दरबार को प्राप्त नहीं कर सकता।
ਕੂੜੈ ਲਾਲਚਿ ਲਗਿ ਮਹਲੁ ਖੁਆਈਐ ॥ सच्चे परमात्मा के अतिरिक्त झूठे लोग ईश्वर के मन्दिर को प्राप्त नहीं होते। मिथ्या लोभ में आसक्त होकर ईश्वर प्राप्ति का अवसर खो जाता है।
ਸਭੁ ਜਗੁ ਠਗਿਓ ਠਗਿ ਆਈਐ ਜਾਈਐ ॥ सारा जगत् धोखेबाज माया ने छल लिया है और प्राणी ईश्वर के साथ एकाकार होने के अपने अवसर से धोखा खा जाता है और आवागमन के चक्र में पड़ा रहता है।
ਤਨ ਮਹਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਿ ਸਬਦਿ ਬੁਝਾਈਐ ॥੧੯॥ प्राणी के तन में तृष्णा की अग्नि विद्यमान है। यह प्रभु के नाम से ही बुझाई जा सकती है॥ १९ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਸੰਤੋਖੁ ਰੁਖੁ ਧਰਮੁ ਫੁਲੁ ਫਲ ਗਿਆਨੁ ॥ हे नानक ! गुरु संतोष रूपी वृक्ष है, इस वृक्ष को धार्मिक आचरण के फूल लगते हैं और दिव्य ज्ञान रूपी फल लगते हैं।
ਰਸਿ ਰਸਿਆ ਹਰਿਆ ਸਦਾ ਪਕੈ ਕਰਮਿ ਧਿਆਨਿ ॥ हरि-रस रूपी जल से सीचा हुआ यह वृक्ष सदैव ही हरा-भरा रहता है। भगवान् की कृपा से ध्यान द्वारा यह ज्ञान रूपी फल पकते हैं।
ਪਤਿ ਕੇ ਸਾਦ ਖਾਦਾ ਲਹੈ ਦਾਨਾ ਕੈ ਸਿਰਿ ਦਾਨੁ ॥੧॥ इस ज्ञान रूपी फल को खाने वाला मनुष्य पति-प्रभु के मिलाप के आनंद को प्राप्त करता है। यह ईश्वर का सबसे उत्कृष्ट उपहार है।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਸੁਇਨੇ ਕਾ ਬਿਰਖੁ ਪਤ ਪਰਵਾਲਾ ਫੁਲ ਜਵੇਹਰ ਲਾਲ ॥ गुरु सोने का वृक्ष है, जिसके पत्ते और फूल मूंगा, रत्न और माणिक जैसे कीमती हैं।
ਤਿਤੁ ਫਲ ਰਤਨ ਲਗਹਿ ਮੁਖਿ ਭਾਖਿਤ ਹਿਰਦੈ ਰਿਦੈ ਨਿਹਾਲੁ ॥ यह रत्नों के समान मूल्यवान फल (गुरु के उत्कृष्ट वचन) देता है। जो व्यक्ति गुरु के वचनों को अपने हृदय में बसा लेता है, वह कृतार्थ हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਆ ਹੋਵੈ ਲੇਖੁ ॥ हे नानक ! गुरु के शब्द रूपी फल उस व्यक्ति के मुंह में ही पड़ते हैं, जिस पर भगवान् की कृपा होती है और उसके माथे पर तकदीर का शुभ लेख लिखा होता है।
ਅਠਿਸਠਿ ਤੀਰਥ ਗੁਰ ਕੀ ਚਰਣੀ ਪੂਜੈ ਸਦਾ ਵਿਸੇਖੁ ॥ गुरु के चरणों में आने से अठसठ तीर्थों के स्नान से भी अधिक फल मिलता है। अतः हमेशा ही गुरु के चरणों की पूजा करनी चाहिए।
ਹੰਸੁ ਹੇਤੁ ਲੋਭੁ ਕੋਪੁ ਚਾਰੇ ਨਦੀਆ ਅਗਿ ॥ हे नानक ! हिंसा, मोह, लालच एवं क्रोध यह चारों ही अग्नि की नदियाँ हैं।
ਪਵਹਿ ਦਝਹਿ ਨਾਨਕਾ ਤਰੀਐ ਕਰਮੀ ਲਗਿ ॥੨॥ हे नानक! इनमें पड़ने से प्राणी जल जाता है। इन नदियों में से वहीं मनुष्य पार होते हैं जो भगवान् की कृपा से नाम-सिमरन में लग जाते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਜੀਵਦਿਆ ਮਰੁ ਮਾਰਿ ਨ ਪਛੋਤਾਈਐ ॥ हे मेरे मित्र! जीवित रहते हुए ही इन दुष्ट आवेगों और अपने अहंकार पर विजय पाओ, ताकि अंत में तुम्हें पछताना न पड़े।
ਝੂਠਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਕਿਨਿ ਸਮਝਾਈਐ ॥ यह दुनिया झूठी है, परन्तु किसी विरले ने ही यह बात गुरु से समझी है।
ਸਚਿ ਨ ਧਰੇ ਪਿਆਰੁ ਧੰਧੈ ਧਾਈਐ ॥ मनुष्य सत्यनाम से प्रेम नहीं करता और दुनिया के धंधों में लगकर भटकता रहता है।
ਕਾਲੁ ਬੁਰਾ ਖੈ ਕਾਲੁ ਸਿਰਿ ਦੁਨੀਆਈਐ ॥ यम बहुत निर्दयी है और जीवों का नाश करने वाला है। यह दुनिया के लोगों पर सवार है।
ਹੁਕਮੀ ਸਿਰਿ ਜੰਦਾਰੁ ਮਾਰੇ ਦਾਈਐ ॥ ईश्वर के आदेश से यमदूत अवसर पाकर मृत्यु का क्रूर दानव सभी पर आक्रमण कर देता है।
ਆਪੇ ਦੇਇ ਪਿਆਰੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈਐ ॥ यदि हम ईश्वर को अपने मन में स्थापित करते हैं तो परमेश्वर स्वयं ही अपना प्रेम प्रदान करते हैं।
ਮੁਹਤੁ ਨ ਚਸਾ ਵਿਲੰਮੁ ਭਰੀਐ ਪਾਈਐ ॥ मनुष्य का शरीर त्यागने में मुहूर्त अथवा क्षण भर का विलम्ब नहीं होता।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੁਝਿ ਸਚਿ ਸਮਾਈਐ ॥੨੦॥ गुरु की कृपा से इस भेद को समझ कर प्राणी सत्य में ही समा जाता है।॥२०॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਤੁਮੀ ਤੁਮਾ ਵਿਸੁ ਅਕੁ ਧਤੂਰਾ ਨਿਮੁ ਫਲੁ ॥ उस व्यक्ति के मन एवं मुंह में तुंधी, विष, आक, धतूरा एवं नीम फल जैसी कड़वाहट बनी रहती है,
ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਵਸਹਿ ਤਿਸੁ ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਹੀ ॥ हे प्रभु ! जिस व्यक्ति को तू हृदय में याद नहीं आता उसके मन में कड़वाहट भर जाती है और वह अशिष्टता से बोलता है।
ਨਾਨਕ ਕਹੀਐ ਕਿਸੁ ਹੰਢਨਿ ਕਰਮਾ ਬਾਹਰੇ ॥੧॥ हे नानक ! ऐसे भाग्यहीन व्यक्ति भटकते रहते हैं और उनकी दुःखद दशा भगवान को छोड़कर किसे बताई जाए॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १ ॥
ਮਤਿ ਪੰਖੇਰੂ ਕਿਰਤੁ ਸਾਥਿ ਕਬ ਉਤਮ ਕਬ ਨੀਚ ॥ आदमी की मति एक पक्षी है। अपने पिछले कर्मों के कारण वह कभी उच्च (गुणी) और कभी नीच (बुरा) होता है।


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