Guru Granth Sahib Translation Project

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ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹਿ ਤਾ ਕਰਹਿ ਬਿਭੂਤਾ ਸਿੰਙੀ ਨਾਦੁ ਵਜਾਵਹਿ ॥ जब आपको अच्छा लगता है तो प्राणी अपने शरीर पर विभूति मलता है और सिंगी नाद बजाता है।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਪੜਹਿ ਕਤੇਬਾ ਮੁਲਾ ਸੇਖ ਕਹਾਵਹਿ ॥ जब आपको अच्छा लगता है तो मनुष्य कुरान पढ़ता है और मुल्लां और शेख कहलाया जाता है।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਹੋਵਹਿ ਰਾਜੇ ਰਸ ਕਸ ਬਹੁਤੁ ਕਮਾਵਹਿ ॥ हे नाथ ! जब आपकी इच्छा होती है, तो कुछ राजा बन जाते हैं और अधिकतर स्वादों का आनंद लेते हैं।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤੇਗ ਵਗਾਵਹਿ ਸਿਰ ਮੁੰਡੀ ਕਟਿ ਜਾਵਹਿ ॥ हे ठाकुर ! जब आपको उपयुक्त लगता है तो मनुष्य तलवार चलाते हैं और शीश को धड़ से काट फेंकते हैं।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਜਾਹਿ ਦਿਸੰਤਰਿ ਸੁਣਿ ਗਲਾ ਘਰਿ ਆਵਹਿ ॥ हे स्वामी ! जब आपकी इच्छा होती है तो लोग देश-देशांतरों में जाते हैं और अनेकों सूचनाएँ श्रवण करके घर लौट आते हैं।
ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਨਾਇ ਰਚਾਵਹਿ ਤੁਧੁ ਭਾਣੇ ਤੂੰ ਭਾਵਹਿ ॥ हे प्राणपति ! जब तुझे उपयुक्त लगता है, तो मनुष्य आपके नाम में लीन हो जाता है और जो आपकी इच्छानुसार रहते हैं, वें आपको अच्छा लगने लग जाते हैं।
ਨਾਨਕੁ ਏਕ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਹੋਰਿ ਸਗਲੇ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਹਿ ॥੧॥ नानक एक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! आपकी इच्छा में चलने वालों के अतिरिक्त शेष सभी जीव झूठ ही कमाते हैं।॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਜਾ ਤੂੰ ਵਡਾ ਸਭਿ ਵਡਿਆਂਈਆ ਚੰਗੈ ਚੰਗਾ ਹੋਈ ॥ हे ईश्वर ! आप बहुत महान है, तो सारी महानता आप से ही प्रकट होती है। आप स्वयं भले हो और आपसे भलाई ही होनी है।
ਜਾ ਤੂੰ ਸਚਾ ਤਾ ਸਭੁ ਕੋ ਸਚਾ ਕੂੜਾ ਕੋਇ ਨ ਕੋਈ ॥ जब आप स्वयं सत्य है तो जो आपकी पूजा करते हैं वह सभी सत्यवादी बन जाते हैं। आपके सच्चे भक्त को कोई भी मनुष्य झूठा दिखाई नहीं देता।
ਆਖਣੁ ਵੇਖਣੁ ਬੋਲਣੁ ਚਲਣੁ ਜੀਵਣੁ ਮਰਣਾ ਧਾਤੁ ॥ जीवों का कहना, देखना, बोलना, चलना, जीना एवं मरना इत्यादि यह आपकी माया का खेल ही है।
ਹੁਕਮੁ ਸਾਜਿ ਹੁਕਮੈ ਵਿਚਿ ਰਖੈ ਨਾਨਕ ਸਚਾ ਆਪਿ ॥੨॥ हे नानक ! सत्यस्वरूप परमात्मा स्वयं ही सृष्टि की रचना करता है और अपनी आज्ञा में ही समस्त प्राणियों को रखता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਨਿਸੰਗੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਈਐ ॥ यदि हम सतगुरु की निष्काम सेवा करें तो भ्रम दूर हो जाते है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਆਖੈ ਕਾਰ ਸੁ ਕਾਰ ਕਮਾਈਐ ॥ हमें वहीं कार्य करना चाहिए जो सतगुरु करने के लिए कहते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਤ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥ यदि सतगुरु दयालु हो जाएँ, तो ही हम नाम सिमरन कर सकते हैं।
ਲਾਹਾ ਭਗਤਿ ਸੁ ਸਾਰੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ॥ भक्ति पूजा का लाभ उत्कृष्ट है। यह गुरुमुख द्वारा प्राप्त किया जाता है।
ਮਨਮੁਖਿ ਕੂੜੁ ਗੁਬਾਰੁ ਕੂੜੁ ਕਮਾਈਐ ॥ मनमुख व्यक्ति के लिए अज्ञानता का अँधेरा बना रहता और वे झूठे धन की ही कमाई करते रहते हैं।
ਸਚੇ ਦੈ ਦਰਿ ਜਾਇ ਸਚੁ ਚਵਾਂਈਐ ॥ यदि हम विनम्रतापूर्वक भगवान् के नाम का ध्यान करें,
ਸਚੈ ਅੰਦਰਿ ਮਹਲਿ ਸਚਿ ਬੁਲਾਈਐ ॥ ऐसे सत्यवादी सत्य प्रभु के दरबार में स्वीकार किये जाते हैं।।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਸਦਾ ਸਚਿਆਰੁ ਸਚਿ ਸਮਾਈਐ ॥੧੫॥ हे नानक ! जो व्यक्ति हमेशा ही सत्य-नाम का सिमरन करता रहता है, वहीं सत्यवादी है और वह सत्य में ही समा जाता है॥ १५ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਕਲਿ ਕਾਤੀ ਰਾਜੇ ਕਾਸਾਈ ਧਰਮੁ ਪੰਖ ਕਰਿ ਉਡਰਿਆ ॥ कलियुग छुरी है और बादशाह कसाई है। धर्म पंख लगाकर दुनिया में से उड़ गया है अर्थात् कलियुग में धर्म का नाश हो गया है।
ਕੂੜੁ ਅਮਾਵਸ ਸਚੁ ਚੰਦ੍ਰਮਾ ਦੀਸੈ ਨਾਹੀ ਕਹ ਚੜਿਆ ॥ झूठ की इस अमावस्या की रात्रि में सत्य का चाँद कहीं उदय हुआ दिखाई नहीं देता अर्थात हर तरफ झूठ ही विद्यमान है और सत्य का नाश हो गया है।
ਹਉ ਭਾਲਿ ਵਿਕੁੰਨੀ ਹੋਈ ॥ मैं सत्य की खोज-तलाश करते हुए निराश हो गया हूँ,
ਆਧੇਰੈ ਰਾਹੁ ਨ ਕੋਈ ॥ इस अंधेरे में, मुझे रास्ता नहीं मिल रहा है।
ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਕਰਿ ਦੁਖੁ ਰੋਈ ॥ सारी दुनिया ही झूठ के अंधेरे में अहंकारवश दुःखी होकर विलाप कर रही है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਨਿ ਬਿਧਿ ਗਤਿ ਹੋਈ ॥੧॥ हे नानक ! इस झूठ से किस विधि द्वारा जीवों की मुक्ति होगी ? ॥ १॥
ਮਃ ੩ ॥ श्लोक, तीसरे गुरु द्वारा: ३॥
ਕਲਿ ਕੀਰਤਿ ਪਰਗਟੁ ਚਾਨਣੁ ਸੰਸਾਰਿ ॥ कलियुग में भगवान् की महिमा दुनिया में ज्ञान रूपी प्रकाश प्रगट कर देती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੋਈ ਉਤਰੈ ਪਾਰਿ ॥ कोई विरला गुरमुख ही इस दिव्य प्रकाश (ज्ञान) का उपयोग करके संसार के विकारों के सागर से पार हो जाता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਿਸੁ ਦੇਵੈ ॥ हे नानक ! जिस व्यक्ति पर भगवान् अपनी कृपा-दृष्टि करता है, उसे ही अपनी महिमा की देन प्रदान करता है
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਤਨੁ ਸੋ ਲੇਵੈ ॥੨॥ किन्तु गुरमुख ही नाम रूपी रत्न प्राप्त करता है॥ २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਭਗਤਾ ਤੈ ਸੈਸਾਰੀਆ ਜੋੜੁ ਕਦੇ ਨ ਆਇਆ ॥ भगवान् के भक्तों एवं दुनिया के जीवों में कभी भी योग्य मिलाप नहीं बना।
ਕਰਤਾ ਆਪਿ ਅਭੁਲੁ ਹੈ ਨ ਭੁਲੈ ਕਿਸੈ ਦਾ ਭੁਲਾਇਆ ॥ भगवान् स्वयं अचूक है। वह किसी दूसरे के भुलाने से भी भूल नहीं करता।
ਭਗਤ ਆਪੇ ਮੇਲਿਅਨੁ ਜਿਨੀ ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਇਆ ॥ जिन्होंने सत्यवादी बनकर सत्य की ही साधना की है ऐसे भक्तों को भगवान् ने स्वयं ही अपने साथ मिलाया हुआ है।
ਸੈਸਾਰੀ ਆਪਿ ਖੁਆਇਅਨੁ ਜਿਨੀ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬੋਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਇਆ ॥ जिन लोगों ने झूठ बोल-बोलकर माया रूपी विष खाया है, ऐसे लोगों को भगवान् ने स्वयं ही कुमार्गगामी कर दिया हैं।
ਚਲਣ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਨੀ ਕਾਮੁ ਕਰੋਧੁ ਵਿਸੁ ਵਧਾਇਆ ॥ वे परम वास्तविकता को नहीं पहचानते हैं, कि हम सभी एक दिन इस दुनिया से जाएंगे; वे काम और क्रोध के जहर को बढ़ाते रहते हैं।
ਭਗਤ ਕਰਨਿ ਹਰਿ ਚਾਕਰੀ ਜਿਨੀ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥ जिन्होंने दिन-रात नाम का ही ध्यान किया है, ऐसे भक्तजन ही भगवान् की भक्ति एवं सेवा करते रहते हैं।
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ਹੋਇ ਕੈ ਜਿਨੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ॥ जिन्होंने प्रभु के दासों के दास बनकर अपने अन्तर्मन से अहंकार को मिटा दिया है,
ਓਨਾ ਖਸਮੈ ਕੈ ਦਰਿ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਇਆ ॥੧੬॥ ईश्वरीय वचन से अलंकृत होते हुए वें ईश्वर के दरबार में सम्मान प्राप्त करते हैं।॥ १६ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १ ॥
ਸਬਾਹੀ ਸਾਲਾਹ ਜਿਨੀ ਧਿਆਇਆ ਇਕ ਮਨਿ ॥ जो व्यक्ति प्रातः काल एकाग्रचित होकर ईश्वर का यश करते और उसे स्मरण करते हैं,
ਸੇਈ ਪੂਰੇ ਸਾਹ ਵਖਤੈ ਉਪਰਿ ਲੜਿ ਮੁਏ ॥ वही पूर्ण सम्राट हैं और सही वक्त पर लड़कर मृत्यु को प्राप्त हुए हैं।
ਦੂਜੈ ਬਹੁਤੇ ਰਾਹ ਮਨ ਕੀਆ ਮਤੀ ਖਿੰਡੀਆ ॥ दूसरे प्रहर में मन की वृति विखर जाती है और मन अनेक मागों पर दौड़ता है।
ਬਹੁਤੁ ਪਏ ਅਸਗਾਹ ਗੋਤੇ ਖਾਹਿ ਨ ਨਿਕਲਹਿ ॥ मनुष्य बहुत सारे धंधों के झंझटों रूपी अथाह सागर में गिर जाता है और ऐसे गोते खाता है कि उसमें से बाहर निकलने में असमर्थ होता है।


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