Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1427

Page 1427

ਜਿਹ ਸਿਮਰਤ ਗਤਿ ਪਾਈਐ ਤਿਹ ਭਜੁ ਰੇ ਤੈ ਮੀਤ ॥ जिह सिमरत गति पाईऐ तिह भजु रे तै मीत ॥ हे मित्र ! जिसका सुमिरन (स्मरण) करने से मुक्ति प्राप्त होती है, उसी का तुम कीर्तिगान करो।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨੁ ਰੇ ਮਨਾ ਅਉਧ ਘਟਤ ਹੈ ਨੀਤ ॥੧੦॥ कहु नानक सुनु रे मना अउध घटत है नीत ॥१०॥ गुरु नानक कहते हैं केि हे मन ! मेरी बात सुन, जिंदगी हर रोज़ घट रही है॥१०॥
ਪਾਂਚ ਤਤ ਕੋ ਤਨੁ ਰਚਿਓ ਜਾਨਹੁ ਚਤੁਰ ਸੁਜਾਨ ॥ पांच तत को तनु रचिओ जानहु चतुर सुजान ॥ हे चतुर व्यक्तियो ! यह जान लो कि ईश्वर ने पाँच तत्वों से तन की रचना की है।
ਜਿਹ ਤੇ ਉਪਜਿਓ ਨਾਨਕਾ ਲੀਨ ਤਾਹਿ ਮੈ ਮਾਨੁ ॥੧੧॥ जिह ते उपजिओ नानका लीन ताहि मै मानु ॥११॥ नानक का कथन है कि यह अच्छी तरह मान लो, जिससे उत्पन्न हुए हो, उसी में विलीन हो जाना है ॥११॥
ਘਟ ਘਟ ਮੈ ਹਰਿ ਜੂ ਬਸੈ ਸੰਤਨ ਕਹਿਓ ਪੁਕਾਰਿ ॥ घट घट मै हरि जू बसै संतन कहिओ पुकारि ॥ संत पुरुष पुकार कर यही कहते हैं कि ईश्वर घट-घट में रहता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਭਜੁ ਮਨਾ ਭਉ ਨਿਧਿ ਉਤਰਹਿ ਪਾਰਿ ॥੧੨॥ कहु नानक तिह भजु मना भउ निधि उतरहि पारि ॥१२॥ गुरु नानक निर्देश करते हैं कि हे मन ! हरि भजन कर लो, भव-सागर से पार उतर जाओगे ॥१२॥
ਸੁਖੁ ਦੁਖੁ ਜਿਹ ਪਰਸੈ ਨਹੀ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥ सुखु दुखु जिह परसै नही लोभु मोहु अभिमानु ॥ जिसे कोई सुख-दुख, लोभ, मोह एवं अभिमान स्पर्श नहीं करते।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨੁ ਰੇ ਮਨਾ ਸੋ ਮੂਰਤਿ ਭਗਵਾਨ ॥੧੩॥ कहु नानक सुनु रे मना सो मूरति भगवान ॥१३॥ नानक संबोधन करते हैं कि हे मन ! सुन, दरअसल वही भगवान की मूर्ति है॥१३॥
ਉਸਤਤਿ ਨਿੰਦਿਆ ਨਾਹਿ ਜਿਹਿ ਕੰਚਨ ਲੋਹ ਸਮਾਨਿ ॥ उसतति निंदिआ नाहि जिहि कंचन लोह समानि ॥ जिसे प्रशंसा अथवा निंदा का असर नहीं होता, लोहे एवं सोने को भी बराबर ही मानता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨਿ ਰੇ ਮਨਾ ਮੁਕਤਿ ਤਾਹਿ ਤੈ ਜਾਨਿ ॥੧੪॥ कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जानि ॥१४॥ नानक फुरमाते हैं कि हे मन ! सुन, उसी से मुक्ति मिल सकती है॥१४॥
ਹਰਖੁ ਸੋਗੁ ਜਾ ਕੈ ਨਹੀ ਬੈਰੀ ਮੀਤ ਸਮਾਨਿ ॥ हरखु सोगु जा कै नही बैरी मीत समानि ॥ जिसे खुशी अथवा गम प्रभावित नहीं करता, शत्रुओं एवं मित्रों को भी बराबर मानता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨਿ ਰੇ ਮਨਾ ਮੁਕਤਿ ਤਾਹਿ ਤੈ ਜਾਨਿ ॥੧੫॥ कहु नानक सुनि रे मना मुकति ताहि तै जानि ॥१५॥ गुरु नानक कथन करते हैं कि हे मन ! सुन, उसी से मुक्ति निहित है॥१५॥
ਭੈ ਕਾਹੂ ਕਉ ਦੇਤ ਨਹਿ ਨਹਿ ਭੈ ਮਾਨਤ ਆਨ ॥ भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन ॥ जो न किसी व्यक्ति को डराता है, न ही किसी का डर मानता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨਿ ਰੇ ਮਨਾ ਗਿਆਨੀ ਤਾਹਿ ਬਖਾਨਿ ॥੧੬॥ कहु नानक सुनि रे मना गिआनी ताहि बखानि ॥१६॥ नानक का कथन है कि हे मन ! सुन, उसी को ज्ञानी कहना चाहिए ॥१६॥
ਜਿਹਿ ਬਿਖਿਆ ਸਗਲੀ ਤਜੀ ਲੀਓ ਭੇਖ ਬੈਰਾਗ ॥ जिहि बिखिआ सगली तजी लीओ भेख बैराग ॥ जो विषय-विकारों को छोड़ देता है, संसार को त्याग कर वैराग्यवान हो जाता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨੁ ਰੇ ਮਨਾ ਤਿਹ ਨਰ ਮਾਥੈ ਭਾਗੁ ॥੧੭॥ कहु नानक सुनु रे मना तिह नर माथै भागु ॥१७॥ नानक का कथन है कि हे मन ! सुन, वही व्यक्ति भाग्यवान् है॥१७॥
ਜਿਹਿ ਮਾਇਆ ਮਮਤਾ ਤਜੀ ਸਭ ਤੇ ਭਇਓ ਉਦਾਸੁ ॥ जिहि माइआ ममता तजी सभ ते भइओ उदासु ॥ जो माया-ममता सब छोड़कर विरक्त हो गया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨੁ ਰੇ ਮਨਾ ਤਿਹ ਘਟਿ ਬ੍ਰਹਮ ਨਿਵਾਸੁ ॥੧੮॥ कहु नानक सुनु रे मना तिह घटि ब्रहम निवासु ॥१८॥ नानक संयोधन करते हैं- हे मन ! सुन, दरअसल उसी के दिल में ब्रह्म का निवास है॥१८ ॥
ਜਿਹਿ ਪ੍ਰਾਨੀ ਹਉਮੈ ਤਜੀ ਕਰਤਾ ਰਾਮੁ ਪਛਾਨਿ ॥ जिहि प्रानी हउमै तजी करता रामु पछानि ॥ जिस प्राणी ने अहम् को छोड़कर कर्ता परमेश्वर को पहचान लिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਵਹੁ ਮੁਕਤਿ ਨਰੁ ਇਹ ਮਨ ਸਾਚੀ ਮਾਨੁ ॥੧੯॥ कहु नानक वहु मुकति नरु इह मन साची मानु ॥१९॥ नानक का कथन है कि दरअसल वही व्यक्ति संसार के बन्धनों से मुक्त है, इस सच्चाई को मन में स्वीकार कर लो॥१६॥
ਭੈ ਨਾਸਨ ਦੁਰਮਤਿ ਹਰਨ ਕਲਿ ਮੈ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ॥ भै नासन दुरमति हरन कलि मै हरि को नामु ॥ कलियुग में परमात्मा का नाम भय को नष्ट करने वाला और दुर्मति का हरण करने वाला है।
ਨਿਸਿ ਦਿਨੁ ਜੋ ਨਾਨਕ ਭਜੈ ਸਫਲ ਹੋਹਿ ਤਿਹ ਕਾਮ ॥੨੦॥ निसि दिनु जो नानक भजै सफल होहि तिह काम ॥२०॥ गुरु नानक फुरमाते हैं- जो व्यक्ति रात-दिन परमात्मा का भजन करते हैं, उनके सब काम सफल हो जाते हैं ॥ २० ॥
ਜਿਹਬਾ ਗੁਨ ਗੋਬਿੰਦ ਭਜਹੁ ਕਰਨ ਸੁਨਹੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥ जिहबा गुन गोबिंद भजहु करन सुनहु हरि नामु ॥ जिह्म से गोविन्द का भजन करो, कानों से हरिनाम-कीर्तन सुनो।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨਿ ਰੇ ਮਨਾ ਪਰਹਿ ਨ ਜਮ ਕੈ ਧਾਮ ॥੨੧॥ कहु नानक सुनि रे मना परहि न जम कै धाम ॥२१॥ नानक संबोधन करते हैं कि हे मन ! सुन, इससे यमपुरी में नहीं पड़ोगे ॥ २१ ॥
ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਮਮਤਾ ਤਜੈ ਲੋਭ ਮੋਹ ਅਹੰਕਾਰ ॥ जो प्रानी ममता तजै लोभ मोह अहंकार ॥ जो प्राणी ममता, लोभ, मोह एवं अहंकार को तज देता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਆਪਨ ਤਰੈ ਅਉਰਨ ਲੇਤ ਉਧਾਰ ॥੨੨॥ कहु नानक आपन तरै अउरन लेत उधार ॥२२॥ नानक का कथन है कि वह आप तो संसार-सागर से तैरता ही है, अन्य लोगों का भी उद्धार कर देता है॥ २२ ॥
ਜਿਉ ਸੁਪਨਾ ਅਰੁ ਪੇਖਨਾ ਐਸੇ ਜਗ ਕਉ ਜਾਨਿ ॥ जिउ सुपना अरु पेखना ऐसे जग कउ जानि ॥ ज्यों सपना एवं थोड़ी देर के लिए कुछ देखना है, ऐसे ही दुनिया को मान।
ਇਨ ਮੈ ਕਛੁ ਸਾਚੋ ਨਹੀ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਭਗਵਾਨ ॥੨੩॥ इन मै कछु साचो नही नानक बिनु भगवान ॥२३॥ नानक का कथन है कि भगवान के बिना इन में से कुछ भी सत्य नहीं ॥ २३॥
ਨਿਸਿ ਦਿਨੁ ਮਾਇਆ ਕਾਰਨੇ ਪ੍ਰਾਨੀ ਡੋਲਤ ਨੀਤ ॥| निसि दिनु माइआ कारने प्रानी डोलत नीत ॥ धन-दौलत की खातिर प्राणी दिन-रात डोलता फिरता है।
ਕੋਟਨ ਮੈ ਨਾਨਕ ਕੋਊ ਨਾਰਾਇਨੁ ਜਿਹ ਚੀਤਿ ॥੨੪॥ कोटन मै नानक कोऊ नाराइनु जिह चीति ॥२४॥ हे नानक ! करोड़ों में कोई विरला ही है, जिसके दिल में ईश्वर रहता है।॥२४॥
ਜੈਸੇ ਜਲ ਤੇ ਬੁਦਬੁਦਾ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸੈ ਨੀਤ ॥ जैसे जल ते बुदबुदा उपजै बिनसै नीत ॥ जैसे जल से बुलबुला रोज़ उत्पन्न व नष्ट होता है।
ਜਗ ਰਚਨਾ ਤੈਸੇ ਰਚੀ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨਿ ਮੀਤ ॥੨੫॥ जग रचना तैसे रची कहु नानक सुनि मीत ॥२५॥ नानक का कथन है कि हे मित्र ! सुन, जगत-रचना भी वैसे ही रची हुई है॥२५॥
ਪ੍ਰਾਨੀ ਕਛੂ ਨ ਚੇਤਈ ਮਦਿ ਮਾਇਆ ਕੈ ਅੰਧੁ ॥ प्रानी कछू न चेतई मदि माइआ कै अंधु ॥ माया के नशे में अन्धा बनकर प्राणी को कुछ याद नहीं रहता।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਜਨ ਪਰਤ ਤਾਹਿ ਜਮ ਫੰਧ ॥੨੬॥ कहु नानक बिनु हरि भजन परत ताहि जम फंध ॥२६॥ हे नानक ! परमात्मा के भजन बिना तभी यम के फंदे में पड़ता है॥२६॥
ਜਉ ਸੁਖ ਕਉ ਚਾਹੈ ਸਦਾ ਸਰਨਿ ਰਾਮ ਕੀ ਲੇਹ ॥ जउ सुख कउ चाहै सदा सरनि राम की लेह ॥ यदि सदैव सुख चाहते हो तो राम की शरण लो।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨਿ ਰੇ ਮਨਾ ਦੁਰਲਭ ਮਾਨੁਖ ਦੇਹ ॥੨੭॥ कहु नानक सुनि रे मना दुरलभ मानुख देह ॥२७॥ गुरु नानक निर्देश करते हैं कि हे मन ! सुन, यह मानव शरीर दुर्लभ है, इसे व्यर्थ मत गंवाना॥२७॥
ਮਾਇਆ ਕਾਰਨਿ ਧਾਵਹੀ ਮੂਰਖ ਲੋਗ ਅਜਾਨ ॥ माइआ कारनि धावही मूरख लोग अजान ॥ मूर्ख लोग धन की खातिर दौड़ते फिरते हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਜਨ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਸਿਰਾਨ ॥੨੮॥ कहु नानक बिनु हरि भजन बिरथा जनमु सिरान ॥२८॥ हे नानक ! भगवान के भजन बिना जीवन व्यर्थ हो जाता है॥२८ ॥
ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਨਿਸਿ ਦਿਨੁ ਭਜੈ ਰੂਪ ਰਾਮ ਤਿਹ ਜਾਨੁ ॥ जो प्रानी निसि दिनु भजै रूप राम तिह जानु ॥ जो प्राणी दिन-रात भजन करता है, उसे परमात्मा का रूप मानो।


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