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                    ਮਃ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਕੁ ਪਰਾਇਆ ਨਾਨਕਾ ਉਸੁ ਸੂਅਰ ਉਸੁ ਗਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! पराया हक खाना मुसलमान के लिए सूअर खाने के समान है और हिन्दू के लिए गाय खाने के समान है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੁਰੁ ਪੀਰੁ ਹਾਮਾ ਤਾ ਭਰੇ ਜਾ ਮੁਰਦਾਰੁ ਨ ਖਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        हिन्दुओं के गुरु एवं मुसलमानों का पीर खुदा की दरगाह में तभी मनुष्य के साथ तभी खड़े होंगे यदि वह पराया हक न खाए।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਲੀ ਭਿਸਤਿ ਨ ਜਾਈਐ ਛੁਟੈ ਸਚੁ ਕਮਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        केवल बातें करने से प्राणी स्वर्गलोक को नहीं जाता। मुक्ति तो सत्य की कमाई द्वारा ही संभव है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਾਰਣ ਪਾਹਿ ਹਰਾਮ ਮਹਿ ਹੋਇ ਹਲਾਲੁ ਨ ਜਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        जैसे निषिद्ध खाद्य पदार्थ मसाले डालकर स्वीकार्य नहीं हो जाते, वैसे ही पाप कर्मों को तर्कों से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਗਲੀ ਕੂੜੀਈ ਕੂੜੋ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! असत्य बातों से केवल असत्य ही प्राप्त होता है।॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਃ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪੰਜਿ ਨਿਵਾਜਾ ਵਖਤ ਪੰਜਿ ਪੰਜਾ ਪੰਜੇ ਨਾਉ ॥
                   
                    
                                              
                        मुसलमानों के लिए पाँच नमाजें हैं, एवं नमाज़ों के लिए पाँच ही वक्त हैं और पाँचों नमाजो के पांच अलग-अलग नाम हैं ।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਹਿਲਾ ਸਚੁ ਹਲਾਲ ਦੁਇ ਤੀਜਾ ਖੈਰ ਖੁਦਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        पहली नमाज यह है कि सच्चे खुदा की बंदगी करो । दूसरी नमाज है कि हक हलाल अर्थात् धर्म की कमाई करो। तीसरी नमाज यह है कि अल्लाह से सबकी भलाई माँगो, दान-पुण्य करो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਚਉਥੀ ਨੀਅਤਿ ਰਾਸਿ ਮਨੁ ਪੰਜਵੀ ਸਿਫਤਿ ਸਨਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        चौथी नमाज यह है की अपनी नीयत एवं मन को साफ रखो। पाँचवी नमाज यह है कि अल्लाह की महिमा एवं प्रशंसा करो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਰਣੀ ਕਲਮਾ ਆਖਿ ਕੈ ਤਾ ਮੁਸਲਮਾਣੁ ਸਦਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        तू शुभ कर्मों का कलमा पढ़ और तभी तू स्वयं को सच्चा मुसलमान कहलवा सकता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਜੇਤੇ ਕੂੜਿਆਰ ਕੂੜੈ ਕੂੜੀ ਪਾਇ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! ऐसी प्रार्थनाओं से रहित लोग झूठे हैं और उनका यश और प्रतिष्ठा भी झूठी है। ॥ ३ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਉੜੀ ॥
                   
                    
                                              
                        पउड़ी।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਕਿ ਰਤਨ ਪਦਾਰਥ ਵਣਜਦੇ ਇਕਿ ਕਚੈ ਦੇ ਵਾਪਾਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जीव जगत् में व्यापार करने आते हैं। कई जीव नाम रूपी रत्न पदार्थों का व्यापार करते हैं और कई जीव कांच अर्थात् क्षणभंगुर सुखों का व्यापार करते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਤਿਗੁਰਿ ਤੁਠੈ ਪਾਈਅਨਿ ਅੰਦਰਿ ਰਤਨ ਭੰਡਾਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        यदि सतगुरु प्रसन्न हो जाए तो यह नाम रूपी रत्न-पदार्थों का अक्षय भण्डार मिल जाता है। जो पहले से ही स्वयं के भीतर गहराई में विद्यमान है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਕਿਨੈ ਨ ਲਧਿਆ ਅੰਧੇ ਭਉਕਿ ਮੁਏ ਕੂੜਿਆਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु के बिना किसी को भी यह नाम रूपी खज़ाना नहीं मिला अर्थात् परमेश्वर प्राप्त नहीं होता। नाम के सच्चे धन की तलाश में कितने ही झूठे एवं अज्ञानी लोग प्राण त्याग गए हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨਮੁਖ ਦੂਜੈ ਪਚਿ ਮੁਏ ਨਾ ਬੂਝਹਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        मनमुख लोग द्वैत भाव में पड़कर नष्ट हो जाते हैं क्योंकि वह आध्यात्मिक ज्ञान को नहीं समझते।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਕਸੁ ਬਾਝਹੁ ਦੂਜਾ ਕੋ ਨਹੀ ਕਿਸੁ ਅਗੈ ਕਰਹਿ ਪੁਕਾਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        एक ईश्वर के अतिरिक्त संसार में दूसरा कोई भी नहीं। वह किसके समक्ष जाकर प्रार्थना करें?
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਕਿ ਨਿਰਧਨ ਸਦਾ ਭਉਕਦੇ ਇਕਨਾ ਭਰੇ ਤੁਜਾਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        कई धनहीन निर्धन हैं और हमेशा भटकते फिरते हैं और कईओं के खजाने दौलत से परिपूर्ण हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਹੋਰੁ ਧਨੁ ਨਾਹੀ ਹੋਰੁ ਬਿਖਿਆ ਸਭੁ ਛਾਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        लेकिन इस संसार में हरि नाम के अतिरिक्त शेष कोई भी धन जीव के साथ जाने वाला नहीं। अन्य सब कुछ विष रूपी माया-धन धूलि के तुल्य है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰੇ ਆਪਿ ਹੁਕਮਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥੭॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! ईश्वर स्वयं कार्य करता है, दूसरों से कार्य कराता है, तथा अपनी ही आज्ञा से हमें सुशोभित करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੁਸਲਮਾਣੁ ਕਹਾਵਣੁ ਮੁਸਕਲੁ ਜਾ ਹੋਇ ਤਾ ਮੁਸਲਮਾਣੁ ਕਹਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        मुसलमान कहलाना बड़ा कठिन है। यदि कोई इस्लाम का सच्चा अनुयायी है तो ही वह अपने आपको मुसलमान कहलवा सकता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅਵਲਿ ਅਉਲਿ ਦੀਨੁ ਕਰਿ ਮਿਠਾ ਮਸਕਲ ਮਾਨਾ ਮਾਲੁ ਮੁਸਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        सच्चा मुसलमान बनने के लिए सर्वप्रथम वह अपने पैगम्बर के चलाए धर्म को मीठा समझकर माने। दूसरा वह अपनी सम्पति का अभिमान त्याग कर अपनी मेहनत की कमाई का धन गरीबों में बांट दे।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹੋਇ ਮੁਸਲਿਮੁ ਦੀਨ ਮੁਹਾਣੈ ਮਰਣ ਜੀਵਣ ਕਾ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        वह अपने पैगम्बर के धर्म का सच्चा शिष्य होकर मृत्यु एवं जीवन के भ्रम को मिटा दे।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਬ ਕੀ ਰਜਾਇ ਮੰਨੇ ਸਿਰ ਉਪਰਿ ਕਰਤਾ ਮੰਨੇ ਆਪੁ ਗਵਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        सच्चे दिल से वह ईश्वर की इच्छा को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकृत करे और अपना स्वार्थ एवं अहंकार त्याग सृष्टिकर्ता को सबसे ऊपर मानना चाहिए।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਉ ਨਾਨਕ ਸਰਬ ਜੀਆ ਮਿਹਰੰਮਤਿ ਹੋਇ ਤ ਮੁਸਲਮਾਣੁ ਕਹਾਵੈ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! यदि वह समस्त प्राणियों से प्रेम करेगा और उन पर दयालु रहेगा तो ही वह मुसलमान कहलवा सकता है॥१॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਹਲਾ ੪ ॥
                   
                    
                                              
                        चौथे गुरु द्वारा श्लोक: ४॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਰਹਰਿ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧੁ ਝੂਠੁ ਨਿੰਦਾ ਤਜਿ ਮਾਇਆ ਅਹੰਕਾਰੁ ਚੁਕਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति काम, क्रोध, झूठ, निंदा एवं धन-दौलत को त्यागकर अपना अहंकार मिटा देता है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਜਿ ਕਾਮੁ ਕਾਮਿਨੀ ਮੋਹੁ ਤਜੈ ਤਾ ਅੰਜਨ ਮਾਹਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਪਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        और स्त्रियों के प्रति वासनापूर्ण आसक्ति को त्याग देता है, तब माया (सांसारिक आसक्ति) के अंधकार में रहते हुए भी, मनुष्य निरंजन प्रभु को पा लेता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਜਿ ਮਾਨੁ ਅਭਿਮਾਨੁ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸੁਤ ਦਾਰਾ ਤਜਿ ਪਿਆਸ ਆਸ ਰਾਮ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! सत्यस्वरूप प्रभु उस व्यक्ति के मन में आकर निवास करता है, जो व्यक्ति मान-अभिमान, अपने पुत्र एवं स्त्री का प्रेम, माया की तृष्णा एवं इच्छा को त्याग कर राम में सुरति लगाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਸਾਚਾ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        तब हे नानक! अविनाशी परमात्मा उसके मन में वास करने लगेगा और गुरु के सत्य वचन से वह परमात्मा के नाम में लीन हो जाएगा।॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਉੜੀ ॥
                   
                    
                                              
                        पउड़ी ll
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਾਜੇ ਰਯਤਿ ਸਿਕਦਾਰ ਕੋਇ ਨ ਰਹਸੀਓ ॥
                   
                    
                                              
                        इस संसार में राजा, प्रजा एवं नेता में कोई भी सदा नहीं रहेगा।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਟ ਪਟਣ ਬਾਜਾਰ ਹੁਕਮੀ ਢਹਸੀਓ ॥
                   
                    
                                              
                        दुकाने, नगर एवं बाज़ार ईश्वर की इच्छा से नष्ट हो जाएँगे।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਕੇ ਬੰਕ ਦੁਆਰ ਮੂਰਖੁ ਜਾਣੈ ਆਪਣੇ ॥
                   
                    
                                              
                        मूर्ख मनुष्य सुन्दर द्वारों वाले पक्के मन्दिरों को अपना समझते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਦਰਬਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ਰੀਤੇ ਇਕਿ ਖਣੇ ॥
                   
                    
                                              
                        धन-दौलत से परिपूर्ण भण्डार एक क्षण में ही खाली हो जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਤਾਜੀ ਰਥ ਤੁਖਾਰ ਹਾਥੀ ਪਾਖਰੇ ॥
                   
                    
                                              
                        घोड़ों, सुन्दर रथों, ऊँट, अम्बारियों वाले हाथी,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਾਗ ਮਿਲਖ ਘਰ ਬਾਰ ਕਿਥੈ ਸਿ ਆਪਣੇ ॥ਤੰਬੂ ਪਲੰਘ ਨਿਵਾਰ ਸਰਾਇਚੇ ਲਾਲਤੀ ॥
                   
                    
                                              
                        उद्यान, सम्पत्तियाँ, घर एवं इमारतें इत्यादि जिन्हें मनुष्य अपना जानता है, वे अपने कहाँ हैं? तम्बू, निवार के पलंग, अतलस की कनातें सब क्षणभंगुर हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਸਚ ਦਾਤਾਰੁ ਸਿਨਾਖਤੁ ਕੁਦਰਤੀ ॥੮॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! सबका दाता केवल ईश्वर ही शाश्वत है। वह अपने स्वरूप से प्रकट होता है। ॥८॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਦੀਆ ਹੋਵਹਿ ਧੇਣਵਾ ਸੁੰਮ ਹੋਵਹਿ ਦੁਧੁ ਘੀਉ ॥
                   
                    
                                              
                        हे भगवान् ! यदि मेरे लिए नदियां कामधेनु गाय बन जाएँ, समुद्रों का जल दूध एवं घी बन जाए,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਗਲੀ ਧਰਤੀ ਸਕਰ ਹੋਵੈ ਖੁਸੀ ਕਰੇ ਨਿਤ ਜੀਉ ॥
                   
                    
                                              
                        सारी धरती शक्कर बन जाए और मेरा मन इन पदार्थों का सेवन करके प्रसन्न होता हो,
                                            
                    
                    
                
                    
             
				