Page 1393
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਸਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਰਦਾਯਉ ਉਲਟਿ ਗੰਗ ਪਸ੍ਚਮਿ ਧਰੀਆ ॥
जो हरिनाम गुरु नानक ने रसना से उच्चरित करके जिज्ञासुओं को प्रदान किया और (अपने शिष्य भाई लहणा को गुरु-गद्दी सौंपकर) गंगा पश्चिम की ओर उलटी दिशा बहा दी।
ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਅਛਲੁ ਭਗਤਹ ਭਵ ਤਾਰਣੁ ਅਮਰਦਾਸ ਗੁਰ ਕਉ ਫੁਰਿਆ ॥੧॥
वह अछल नाम जो भक्तों को संसार-सागर से पार उतारने वाला है, वह गुरु अमरदास जी के अन्तर्मन में भी अवस्थित हो गया ॥१॥
ਸਿਮਰਹਿ ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਜਖ੍ ਅਰੁ ਕਿੰਨਰ ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਸਮਾਧਿ ਹਰਾ ॥
उस हरिनाम का सिमरन तो यक्ष, किन्नर, सिद्ध-साधक एवं शिव भी कर रहे हैं।
ਸਿਮਰਹਿ ਨਖ੍ਯ੍ਯਤ੍ਰ ਅਵਰ ਧ੍ਰੂ ਮੰਡਲ ਨਾਰਦਾਦਿ ਪ੍ਰਹਲਾਦਿ ਵਰਾ ॥
अनेकों नक्षत्र, भक्त ध्रुव-मंडल, नारद मुनि, प्रहलाद भक्त भी उसी का जाप कर रहे हैं।
ਸਸੀਅਰੁ ਅਰੁ ਸੂਰੁ ਨਾਮੁ ਉਲਾਸਹਿ ਸੈਲ ਲੋਅ ਜਿਨਿ ਉਧਰਿਆ ॥
सूर्य एवं चन्द्रमा भी हरिनाम को ही चाहते हैं, जिसने पत्थरों-पहाड़ों का भी उद्धार कर दिया है।
ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਅਛਲੁ ਭਗਤਹ ਭਵ ਤਾਰਣੁ ਅਮਰਦਾਸ ਗੁਰ ਕਉ ਫੁਰਿਆ ॥੨॥
वह अछल नाम जो भक्तों को संसार-सागर से मुक्त करने वाला है, वह गुरु अमरदास जी के मन में भी स्थिर हुआ है ॥२॥
ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਸਿਵਰਿ ਨਵ ਨਾਥ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸਿਵ ਸਨਕਾਦਿ ਸਮੁਧਰਿਆ ॥
उसी पावन-स्वरूप हरिनाम का जाप करके गौरख, मच्छंदर सरीखे नौ नाथ, शिव-शंकर सनक-सनंदन की भी मुक्ति हो गई।
ਚਵਰਾਸੀਹ ਸਿਧ ਬੁਧ ਜਿਤੁ ਰਾਤੇ ਅੰਬਰੀਕ ਭਵਜਲੁ ਤਰਿਆ ॥
चौरासी सिद्ध, बुद्ध जिस नाम में लीन थे, राजा अम्बरीक भी भवसागर से तैर गए।
ਉਧਉ ਅਕ੍ਰੂਰੁ ਤਿਲੋਚਨੁ ਨਾਮਾ ਕਲਿ ਕਬੀਰ ਕਿਲਵਿਖ ਹਰਿਆ ॥
उद्धव, अक्रूर, त्रिलोचन, नामदेव एवं कबीर ने भी कलियुग में हरिनाम से पापों का निवारण किया।
ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਅਛਲੁ ਭਗਤਹ ਭਵ ਤਾਰਣੁ ਅਮਰਦਾਸ ਗੁਰ ਕਉ ਫੁਰਿਆ ॥੩॥
वह छलरहित हरिनाम जो भक्तों का संसार-सागर से पार उतारा करने वाला है, वह गुरु अमरदास जी के मन में भी बस गया है ।।३।।
ਤਿਤੁ ਨਾਮਿ ਲਾਗਿ ਤੇਤੀਸ ਧਿਆਵਹਿ ਜਤੀ ਤਪੀਸੁਰ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ॥
उस हरिनाम में लीन होकर तेंतीस करोड़ देवता भी ध्यान करते हैं, बड़े-बड़े ब्रह्मचारी एवं तपस्वियों के मन में भी नाम ही बसा हुआ है।
ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਸਿਮਰਿ ਗੰਗੇਵ ਪਿਤਾਮਹ ਚਰਣ ਚਿਤ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸਿਆ ॥
गंगा-पुत्र भीष्म पितामह ने भी उस हरिनाम का स्मरण किया और प्रभु चरणों में चित लगाकर नामामृत का रस पाया।
ਤਿਤੁ ਨਾਮਿ ਗੁਰੂ ਗੰਭੀਰ ਗਰੂਅ ਮਤਿ ਸਤ ਕਰਿ ਸੰਗਤਿ ਉਧਰੀਆ ॥
उस नाम में तल्लीन होकर गहन-गम्भीर गुरु द्वारा दृढ़-निश्चय धारण करने वाले लोगों का उद्धार हो रहा है।
ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਅਛਲੁ ਭਗਤਹ ਭਵ ਤਾਰਣੁ ਅਮਰਦਾਸ ਗੁਰ ਕਉ ਫੁਰਿਆ ॥੪॥
भक्तों को मुक्ति प्रदान करने वाला वह अछल हरिनाम गुरु अमरदास जी के अन्तर्मन में भी अवस्थित हुआ है।४ ।।
ਨਾਮ ਕਿਤਿ ਸੰਸਾਰਿ ਕਿਰਣਿ ਰਵਿ ਸੁਰਤਰ ਸਾਖਹ ॥
हरिनाम की कीर्ति संसार में सूर्य की किरणों मानिंद यूं फैली हुई है, जैसे कल्पवृक्ष की शाखाएँ महक बिखेर रही हों।
ਉਤਰਿ ਦਖਿਣਿ ਪੁਬਿ ਦੇਸਿ ਪਸ੍ਚਮਿ ਜਸੁ ਭਾਖਹ ॥
उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के देशों में रहने वाले लोग परमात्मा का ही यश गा रहे हैं।
ਜਨਮੁ ਤ ਇਹੁ ਸਕਯਥੁ ਜਿਤੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸੈ ॥
उसी का जन्म सफल होता है, जिसके हृदय में परमात्मा का नाम अवस्थित होता है।
ਸੁਰਿ ਨਰ ਗਣ ਗੰਧਰਬ ਛਿਅ ਦਰਸਨ ਆਸਾਸੈ ॥
देवता, मनुष्य, गण, गंधर्व एवं छः दर्शन-योगी, सन्यासी, वैष्णव इत्यादि भी हरिनाम की कामना कर रहे हैं।
ਭਲਉ ਪ੍ਰਸਿਧੁ ਤੇਜੋ ਤਨੌ ਕਲ੍ਯ੍ਯ ਜੋੜਿ ਕਰ ਧ੍ਯ੍ਯਾਇਅਓ ॥
तेजभान जी के सुपुत्र भल्ला कुल में प्रसिद्ध अमरदास जी को कवि कल्ह हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है-
ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਭਗਤ ਭਵਜਲ ਹਰਣੁ ਗੁਰ ਅਮਰਦਾਸ ਤੈ ਪਾਇਓ ॥੫॥
हे गुरु अमरदास ! भक्तों को संसार के बन्धनों से मुक्ति प्रदान करने वाला परमेश्वर का नाम तुम्हें भी प्राप्त हुआ है ॥५॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹਿ ਦੇਵ ਤੇਤੀਸ ਅਰੁ ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਨਰ ਨਾਮਿ ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਧਾਰੇ ॥
तेतीस करोड़ देवता, सिद्ध-साधक एवं मनुष्य भी ईश्वर के नाम का ही ध्यान करते हैं, खण्ड-ब्रह्माण्ड सम्पूर्ण सृष्टि को नाम ने ही धारण किया हुआ है।
ਜਹ ਨਾਮੁ ਸਮਾਧਿਓ ਹਰਖੁ ਸੋਗੁ ਸਮ ਕਰਿ ਸਹਾਰੇ ॥
जिन लोगों ने ईश्वर का मनन किया है, उन्होंने खुशी एवं गम को भी समान ही माना है।
ਨਾਮੁ ਸਿਰੋਮਣਿ ਸਰਬ ਮੈ ਭਗਤ ਰਹੇ ਲਿਵ ਧਾਰਿ ॥
हरिनाम सर्व-शिरोमणि है, भक्तों ने इसी में ध्यान लगाया हुआ है।
ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਅਮਰ ਗੁਰ ਤੁਸਿ ਦੀਓ ਕਰਤਾਰਿ ॥੬॥
हे गुरु अमरदास ! परमेश्वर ने प्रसन्न होकर आपको वहीं हरिनाम पदार्थ ही प्रदान किया है ॥६॥
ਸਤਿ ਸੂਰਉ ਸੀਲਿ ਬਲਵੰਤੁ ਸਤ ਭਾਇ ਸੰਗਤਿ ਸਘਨ ਗਰੂਅ ਮਤਿ ਨਿਰਵੈਰਿ ਲੀਣਾ ॥
गुरु अमरदास जी सत्य का सूरज हैं, सादगी में बलवान एवं उदारचित्त हैं, उनके शिष्य की मण्डली बहुत अधिक है, वह महान्, बुद्धिमान एवं प्रेम भावना सहित ईश्वर में लीन रहते हैं।
ਜਿਸੁ ਧੀਰਜੁ ਧੁਰਿ ਧਵਲੁ ਧੁਜਾ ਸੇਤਿ ਬੈਕੁੰਠ ਬੀਣਾ ॥
जिनके धैर्य का धवल चैकण्ठ में स्थित है अर्थात गुरु जी का धैर्य संगत का नेतृत्व कर रहा है।
ਪਰਸਹਿ ਸੰਤ ਪਿਆਰੁ ਜਿਹ ਕਰਤਾਰਹ ਸੰਜੋਗੁ ॥
जिसका परमात्मा से संयोग बन चुका है, उनसे सभी संत प्रेम करते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੂ ਸੇਵਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਅਮਰਿ ਗੁਰਿ ਕੀਤਉ ਜੋਗੁ ॥੭॥
गुरु अमरदास जी ने इस योग्य बना दिया है कि सतगुरु की सेवा में सब सुख पा रहे हैं ।।७ ।।
ਨਾਮੁ ਨਾਵਣੁ ਨਾਮੁ ਰਸ ਖਾਣੁ ਅਰੁ ਭੋਜਨੁ ਨਾਮ ਰਸੁ ਸਦਾ ਚਾਯ ਮੁਖਿ ਮਿਸ੍ਟ ਬਾਣੀ ॥
हरिनाम ही गुरु अमरदास का स्नान है, नाम जपना ही उनके खाने का रस एवं भोजन है। हरिनाम रस उनका चाव है और मुँह से वे बहुत मीठा बोलते हैं।
ਧਨਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਓ ਜਿਸੁ ਪਸਾਇ ਗਤਿ ਅਗਮ ਜਾਣੀ ॥
जिस सतगुरु अंगद देव जी की उन्होंने सेवा की, वे धन्य हैं, जिनकी कृपा से उन्होंने प्रभु की महिमा को जाना है।
ਕੁਲ ਸੰਬੂਹ ਸਮੁਧਰੇ ਪਾਯਉ ਨਾਮ ਨਿਵਾਸੁ ॥
गुरु जी ने समूह कुलों का उद्धार कर दिया, वे हरिनाम में ही लीन रहते थे।