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ਸਦਾ ਅਕਲ ਲਿਵ ਰਹੈ ਕਰਨ ਸਿਉ ਇਛਾ ਚਾਰਹ ॥
हे गुरु ! तेरा ध्यान सदैव परमात्मा में लगा रहता है और अपनी इच्छानुसार कार्य करने में तुम स्वतंत्र हो।
ਦ੍ਰੁਮ ਸਪੂਰ ਜਿਉ ਨਿਵੈ ਖਵੈ ਕਸੁ ਬਿਮਲ ਬੀਚਾਰਹ ॥
जैसे फलों से भरा हुआ पेड़ झुका रहता है, वैसे ही पावन विचारधारा के कारण लोगों की बातों को सहन करते हो।
ਇਹੈ ਤਤੁ ਜਾਣਿਓ ਸਰਬ ਗਤਿ ਅਲਖੁ ਬਿਡਾਣੀ ॥
तुमने यह तथ्य जान लिया है कि अद्भुत लीला करने वाला अलख प्रभु सब में विद्यमान है।
ਸਹਜ ਭਾਇ ਸੰਚਿਓ ਕਿਰਣਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਲ ਬਾਣੀ ॥
तुमने अमृतवाणी द्वारा सहज स्वाभाविक सब को आकर्षित किया है।
ਗੁਰ ਗਮਿ ਪ੍ਰਮਾਣੁ ਤੈ ਪਾਇਓ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਗ੍ਰਾਹਜਿ ਲਯੌ ॥
हे गुरु अंगद ! (गुरु नानक देव जी की गद्दी पर आसीन होकर) तुमने गुरु वाला पद पा लिया है और सत्य तेरे मन में अवस्थित है तथा संतोष को ग्रहण किया हुआ है।
ਹਰਿ ਪਰਸਿਓ ਕਲੁ ਸਮੁਲਵੈ ਜਨ ਦਰਸਨੁ ਲਹਣੇ ਭਯੌ ॥੬॥
कलसहार का कथन है कि जिन लोगों ने भाई लहणा (गुरु अंगद देव) के दर्शन किए हैं, उन्होंने तो मानो ईश्वर का ही चरण स्पर्श पा लिया है॥६ ॥
ਮਨਿ ਬਿਸਾਸੁ ਪਾਇਓ ਗਹਰਿ ਗਹੁ ਹਦਰਥਿ ਦੀਓ ॥
तुम्हारे मन में विश्वास हो गया है, हजरत नानक ने गहन-गम्भीरता प्रदान की है।
ਗਰਲ ਨਾਸੁ ਤਨਿ ਨਠਯੋ ਅਮਿਉ ਅੰਤਰਗਤਿ ਪੀਓ ॥
तुम्हारे तन में से मोह रूपी जहर नाश हो गया है और अन्तरात्मा ने नाम अमृतपान किया है।
ਰਿਦਿ ਬਿਗਾਸੁ ਜਾਗਿਓ ਅਲਖਿ ਕਲ ਧਰੀ ਜੁਗੰਤਰਿ ॥
तुम्हारा हृदय खिलकर जाग्रत हो गया है, युग-युगांतर रहने वाले अलख ने अपनी शक्ति स्थापित कर दी है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਰਵਿਓ ਸਾਮਾਨਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ॥
जो प्रभु समान रूप से सब में मौजूद है, सतगुरु अंगद स्वाभाविक उसी की समाधि में लीन रहता है।
ਉਦਾਰਉ ਚਿਤ ਦਾਰਿਦ ਹਰਨ ਪਿਖੰਤਿਹ ਕਲਮਲ ਤ੍ਰਸਨ ॥
हे गुरु अंगद ! तू उदारचित है, गरीबी को दूर करने वाला है, तेरे दर्शनों से पाप-दोष नाश हो जाते हैं।
ਸਦ ਰੰਗਿ ਸਹਜਿ ਕਲੁ ਉਚਰੈ ਜਸੁ ਜੰਪਉ ਲਹਣੇ ਰਸਨ ॥੭॥
कलसहार कहता है कि वह सहज स्वभाव प्रेम से गुरु अंगद देव जी का यश उच्चारण करता है और रसना से उनका नाम जपता है| ॥
ਨਾਮੁ ਅਵਖਧੁ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ਅਰੁ ਨਾਮੁ ਸਮਾਧਿ ਸੁਖੁ ਸਦਾ ਨਾਮ ਨੀਸਾਣੁ ਸੋਹੈ ॥
हरिनाम सर्व रोगों की औषधि है, नाम ही जीवन का आसरा है और नाम ही परम सुख प्रदान करने वाला है। हरिनाम पूरे विश्व में शोभायमान है।
ਰੰਗਿ ਰਤੌ ਨਾਮ ਸਿਉ ਕਲ ਨਾਮੁ ਸੁਰਿ ਨਰਹ ਬੋਹੈ ॥
कलसहार का कथन है कि गुरु अंगद देव जी उस हरिनाम में लीन हैं, जो देवताओं एवं मनुष्यों को महक प्रदान कर रहा है।
ਨਾਮ ਪਰਸੁ ਜਿਨਿ ਪਾਇਓ ਸਤੁ ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਰਵਿ ਲੋਇ ॥
जिसने गुरु से नाम पाया है, उसकी कीर्ति सूर्य की तरह चमक रही है।
ਦਰਸਨਿ ਪਰਸਿਐ ਗੁਰੂ ਕੈ ਅਠਸਠਿ ਮਜਨੁ ਹੋਇ ॥੮॥
सो उस गुरु अंगद देव जी के दर्शन एवं चरण स्पर्श से अड़सठ तीर्थों का स्नान हो जाता है।॥८॥
ਸਚੁ ਤੀਰਥੁ ਸਚੁ ਇਸਨਾਨੁ ਅਰੁ ਭੋਜਨੁ ਭਾਉ ਸਚੁ ਸਦਾ ਸਚੁ ਭਾਖੰਤੁ ਸੋਹੈ ॥
परम सत्य (हरिनाम) ही गुरु अंगद देव जी का तीर्थ, स्नान है, सच्चा हरिनाम जपना ही उनका भोजन एवं प्रेम है।
ਸਚੁ ਪਾਇਓ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਸੰਗਤੀ ਬੋਹੈ ॥
गुरु जी सत्य बोलते (हरिनामोच्चारण करते) शोभा दे रहे हैं।
ਜਿਸੁ ਸਚੁ ਸੰਜਮੁ ਵਰਤੁ ਸਚੁ ਕਬਿ ਜਨ ਕਲ ਵਖਾਣੁ ॥
गुरु नानक के शब्द द्वारा गुरु अंगद ने सत्य को प्राप्त किया और सच्चा नाम संगत को सुगन्धित कर रहा है।
ਦਰਸਨਿ ਪਰਸਿਐ ਗੁਰੂ ਕੈ ਸਚੁ ਜਨਮੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥੯॥
कवि कलसहार बखान करता है कि जिस गुरु अंगद का संयम, व्रत सब सत्य (हरिनाम) ही है, उस गुरु के दर्शनों से जन्म सफल हो जाता है।॥६॥
ਅਮਿਅ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸੁਭ ਕਰੈ ਹਰੈ ਅਘ ਪਾਪ ਸਕਲ ਮਲ ॥
गुरु अंगद जिस पर भी अपनी शुभ अमृत दृष्टि करते हैं, उसके पाप-दोषों की मैल सब दूर हो जाती है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਅਰੁ ਲੋਭ ਮੋਹ ਵਸਿ ਕਰੈ ਸਭੈ ਬਲ ॥
उन्होंने काम, क्रोध एवं लोभ, मोह सब को वश में कर लिया है।
ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਦੁਖੁ ਸੰਸਾਰਹ ਖੋਵੈ ॥
उनके मन में सदैव सुख बस रहा है और वे संसार के दुखों को दूर कर रहे हैं।
ਗੁਰੁ ਨਵ ਨਿਧਿ ਦਰੀਆਉ ਜਨਮ ਹਮ ਕਾਲਖ ਧੋਵੈ ॥
गुरु अंगद नौ निधियों का दरिया है, जो हमारे जन्मों की पापों की मैल को दूर कर रहा है।
ਸੁ ਕਹੁ ਟਲ ਗੁਰੁ ਸੇਵੀਐ ਅਹਿਨਿਸਿ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
कवि टल्ल (कलसहार) का कथन है कि दिन-रात सहज स्वभाव गुरु अंगद की सेवा करो,
ਦਰਸਨਿ ਪਰਸਿਐ ਗੁਰੂ ਕੈ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥੧੦॥
उस गुरु के दर्शन से जन्म-मरण का दुख निवृत्त हो जाता है ॥१०॥
ਸਵਈਏ ਮਹਲੇ ਤੀਜੇ ਕੇ ੩
सवईए महले तीजे के ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
वह परब्रह्म केवल एक (ओंकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਸੋਈ ਪੁਰਖੁ ਸਿਵਰਿ ਸਾਚਾ ਜਾ ਕਾ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਅਛਲੁ ਸੰਸਾਰੇ ॥
उस सत्यस्वरूप परम परमेश्वर का स्मरण करो, जिसका नाम संसार में अछल है।
ਜਿਨਿ ਭਗਤ ਭਵਜਲ ਤਾਰੇ ਸਿਮਰਹੁ ਸੋਈ ਨਾਮੁ ਪਰਧਾਨੁ ॥
जिसने भक्तों को संसार-सागर से पार उतार दिया, उस उत्तम हरिनाम का सिमरन करो।
ਤਿਤੁ ਨਾਮਿ ਰਸਿਕੁ ਨਾਨਕੁ ਲਹਣਾ ਥਪਿਓ ਜੇਨ ਸ੍ਰਬ ਸਿਧੀ ॥
गुरु नानक उस हरिनाम के रसिया थे, उस नाम द्वारा भाई लहणा गुरु अंगद के रूप में स्थापित हुए, जिनको सर्वसिद्धियाँ प्राप्त हुईं।
ਕਵਿ ਜਨ ਕਲ੍ ਸਬੁਧੀ ਕੀਰਤਿ ਜਨ ਅਮਰਦਾਸ ਬਿਸ੍ਤਰੀਯਾ ॥
कवि कल्ह का कथन है कि हरिनाम द्वारा सुबुद्धि वाले गुरु अमरदास जी का यश संसार भर में फैल गया है।
ਕੀਰਤਿ ਰਵਿ ਕਿਰਣਿ ਪ੍ਰਗਟਿ ਸੰਸਾਰਹ ਸਾਖ ਤਰੋਵਰ ਮਵਲਸਰਾ ॥
जैसे मौलश्री के पेड़ की शाखाएँ फैलती हैं, वैसे ही गुरु अमरदास जी का यश सूर्य की किरणों की तरह सब ओर फैल गया है।
ਉਤਰਿ ਦਖਿਣਹਿ ਪੁਬਿ ਅਰੁ ਪਸ੍ਚਮਿ ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਜਪੰਥਿ ਨਰਾ ॥
जिस कारण उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम में लोग गुरु अमरदास जी की जय-जयकार कर रहे हैं।