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ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਮਦ ਮਤਸਰ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬਿਨਸਿ ਜਾਹਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਚਾਰੀ ॥
हरिनाम का उच्चारण करने से काम, क्रोध, अभिमान एवं तृष्णा सब नष्ट हो जाते हैं।
ਇਸਨਾਨ ਦਾਨ ਤਾਪਨ ਸੁਚਿ ਕਿਰਿਆ ਚਰਣ ਕਮਲ ਹਿਰਦੈ ਪ੍ਰਭ ਧਾਰੀ ॥
यदि प्रभु के चरण कमल को हृदय में धारण किया जाए तो स्नान, दान-पुण्य, तपस्या, शुद्धिकरण का फल प्राप्त हो जाता है।
ਸਾਜਨ ਮੀਤ ਸਖਾ ਹਰਿ ਬੰਧਪ ਜੀਅ ਧਾਨ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰੀ ॥
हरि ही हमारा साजन, मित्र, सखा एवं बंधु है और वही हमारा जीवन एवं प्राणाधार है।
ਓਟ ਗਹੀ ਸੁਆਮੀ ਸਮਰਥਹ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਦਾ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੯॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि हमने उस समर्थ स्वामी का आसरा लिया है और उस पर हम सदैव कुर्बान जाते हैं।॥६॥
ਆਵਧ ਕਟਿਓ ਨ ਜਾਤ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸੰਗਿ ॥
जो जिज्ञासु प्रभु के प्रेम रस एवं चरण कमल में अनुरक्त रहता है, उसे किसी शस्त्र अथवा हथियार से काटा नहीं जा सकता।
ਦਾਵਨਿ ਬੰਧਿਓ ਨ ਜਾਤ ਬਿਧੇ ਮਨ ਦਰਸ ਮਗਿ ॥.
जिसका मन भगवान के दर्शन-मार्ग में बिंध जाता है, उसे किसी रस्सी से बांधकर भी रोकना असंभव है।
ਪਾਵਕ ਜਰਿਓ ਨ ਜਾਤ ਰਹਿਓ ਜਨ ਧੂਰਿ ਲਗਿ ॥
जो हरि-भक्तों की चरण-धूलि में लीन हो जाता है, उसे अग्नि भी जला नहीं पाती।
ਨੀਰੁ ਨ ਸਾਕਸਿ ਬੋਰਿ ਚਲਹਿ ਹਰਿ ਪੰਥਿ ਪਗਿ ॥
जिसके पैर प्रभु-मार्ग पर चलते हैं, उसे पानी भी डुबा नहीं पाता।
ਨਾਨਕ ਰੋਗ ਦੋਖ ਅਘ ਮੋਹ ਛਿਦੇ ਹਰਿ ਨਾਮ ਖਗਿ ॥੧॥੧੦॥
गुरु नानक कथन करते हैं कि हरिनाम रूपी बाण से समस्त रोग, दोष, पाप एवं मोह मिट जाते हैं ॥१ ॥१० ॥
ਉਦਮੁ ਕਰਿ ਲਾਗੇ ਬਹੁ ਭਾਤੀ ਬਿਚਰਹਿ ਅਨਿਕ ਸਾਸਤ੍ਰ ਬਹੁ ਖਟੂਆ ॥
संसार अनेक प्रकार के कार्यों में लगा हुआ है, कई व्यक्ति छः शास्त्रों के चिंतन में लीन हैं।
ਭਸਮ ਲਗਾਇ ਤੀਰਥ ਬਹੁ ਭ੍ਰਮਤੇ ਸੂਖਮ ਦੇਹ ਬੰਧਹਿ ਬਹੁ ਜਟੂਆ ॥
कोई विभूति लगाकर तीर्थ यात्रा करता है तो कोई शरीर को निर्बल करके जटाएँ धारण कर लेता है।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਜਨ ਸਗਲ ਦੁਖ ਪਾਵਤ ਜਿਉ ਪ੍ਰੇਮ ਬਢਾਇ ਸੂਤ ਕੇ ਹਟੂਆ ॥.
परन्तु भगवान के भजन बिना सब दुख ही प्राप्त करते हैं, ज्यों मकड़ी जाल में फँस जाती है, वैसे ही इनका हाल होता है।
ਪੂਜਾ ਚਕ੍ਰ ਕਰਤ ਸੋਮਪਾਕਾ ਅਨਿਕ ਭਾਂਤਿ ਥਾਟਹਿ ਕਰਿ ਥਟੂਆ ॥੨॥੧੧॥੨੦॥
लोग पूजा, तिलक, सोमपाक इत्यादि अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड कर रहे है ॥२॥११॥२० ॥
ਸਵਈਏ ਮਹਲੇ ਪਹਿਲੇ ਕੇ ੧
सवईए महले पहिले के १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
वह परब्रह्मा केवल एक (ओंकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਇਕ ਮਨਿ ਪੁਰਖੁ ਧਿਆਇ ਬਰਦਾਤਾ ॥
मैं एकाग्रचित होकर परम परमेश्वर का ध्यान करता हूँ, वह वर देने वाला है,
ਸੰਤ ਸਹਾਰੁ ਸਦਾ ਬਿਖਿਆਤਾ ॥.
संतों-भक्तों का सदा सहायक है, वह अखिलेश्वर सर्वदा कीर्तियोग्य है।
ਤਾਸੁ ਚਰਨ ਲੇ ਰਿਦੈ ਬਸਾਵਉ ॥
मैं उसके चरण-कमल हृदय में बसाकर
ਤਉ ਪਰਮ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਗੁਨ ਗਾਵਉ ॥੧॥
परम गुरु नानक देव जी के गुण गाता हूँ॥१॥
ਗਾਵਉ ਗੁਨ ਪਰਮ ਗੁਰੂ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਦੁਰਤ ਨਿਵਾਰਣ ਸਬਦ ਸਰੇ ॥
मैं परम गुरु नानक देव जी के गुणों का गान करता हूँ। वे सुखों क सागर हैं, पापों का निवारण करने वाले हैं एवं शब्द के सरोवर हैं।
ਗਾਵਹਿ ਗੰਭੀਰ ਧੀਰ ਮਤਿ ਸਾਗਰ ਜੋਗੀ ਜੰਗਮ ਧਿਆਨੁ ਧਰੇ ॥.
गहन-गंभीर, धैर्यवान, बुद्धिमान व्यक्ति भी सुखसागर गुरु नानक का यशोगान करते हैं, बड़े-बड़े योगी, सन्यासी भी उनके ध्यान में लीन रहते है।
ਗਾਵਹਿ ਇੰਦ੍ਰਾਦਿ ਭਗਤ ਪ੍ਰਹਿਲਾਦਿਕ ਆਤਮ ਰਸੁ ਜਿਨਿ ਜਾਣਿਓ ॥
इन्द्र सरीखे देवता, भक्त प्रहलाद इत्यादि, जिन्होंने आत्मानंद प्राप्त किया है, वे भी उनका स्तुतिगान करते हैं।
ਕਬਿ ਕਲ ਸੁਜਸੁ ਗਾਵਉ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ਜਿਨਿ ਮਾਣਿਓ ॥੨॥
कवि कल्ह का कथन है कि जिन्होंने राज-योग का आनंद प्राप्त किया, मैं उस गुरु नानक का सुयश गाता हूँ॥२॥
ਗਾਵਹਿ ਜਨਕਾਦਿ ਜੁਗਤਿ ਜੋਗੇਸੁਰ ਹਰਿ ਰਸ ਪੂਰਨ ਸਰਬ ਕਲਾ ॥
राजा जनक सरीखे एवं बड़े-बड़े योगीश्वर भी हरिनाम में लीन सर्वकला सम्पूर्ण गुरु नानक का यश गाते हैं।
ਗਾਵਹਿ ਸਨਕਾਦਿ ਸਾਧ ਸਿਧਾਦਿਕ ਮੁਨਿ ਜਨ ਗਾਵਹਿ ਅਛਲ ਛਲਾ ॥.
जिनको माया भी छल नहीं सकती, उनकी स्तुति ब्रह्मा जी के पुत्र सनक, सनंदन इत्यादि, सिद्ध-साधक एवं मुनिजन भी गाते हैं।
ਗਾਵੈ ਗੁਣ ਧੋਮੁ ਅਟਲ ਮੰਡਲਵੈ ਭਗਤਿ ਭਾਇ ਰਸੁ ਜਾਣਿਓ ॥
जिसने भक्तिभाव द्वारा अटल पद धारण किया, उस भक्त धुव एवं धौम्य ऋषि ने भी गुरु नानक का ही गुणगान किया।
ਕਬਿ ਕਲ ਸੁਜਸੁ ਗਾਵਉ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ਜਿਨਿ ਮਾਣਿਓ ॥੩॥
कवि “कल्ह” गुरु नानक देव जी का सुयश गाता है, जिन्होंने राज-योग का आनंद लिया है॥३॥
ਗਾਵਹਿ ਕਪਿਲਾਦਿ ਆਦਿ ਜੋਗੇਸੁਰ ਅਪਰੰਪਰ ਅਵਤਾਰ ਵਰੋ ॥
कपिल ऋषि आदि योगेश्वर उस ईश्वर के अवतार अपरंपार नानक की महिमा गाते हैं।
ਗਾਵੈ ਜਮਦਗਨਿ ਪਰਸਰਾਮੇਸੁਰ ਕਰ ਕੁਠਾਰੁ ਰਘੁ ਤੇਜੁ ਹਰਿਓ ॥.
जमदग्निं सुत परशुराम भी उनका मंगल कर रहा है, जिसने हाथ में परशु लेकर श्रीराम चन्द्र जी का तेज-प्रताप छीन लिया था।
ਉਧੌ ਅਕ੍ਰੂਰੁ ਬਿਦਰੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸਰਬਾਤਮੁ ਜਿਨਿ ਜਾਣਿਓ ॥
जिन्होंने सर्वात्म को जान लिया था, उस गुरु के गुण तो उद्धव, अक्रूर एवं विदुर भी गा रहे हैं।
ਕਬਿ ਕਲ ਸੁਜਸੁ ਗਾਵਉ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਰਾਜੁ ਜੋਗੁ ਜਿਨਿ ਮਾਣਿਓ ॥੪॥
कवि कल्ह का कथन है कि जिन्होंने राज-योग का आनंद लिया, मैं उसी गुरु नानक देव जी का सुयश गान कर रहा हूँ॥४॥