Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1366

Page 1366

ਐਸੇ ਮਰਨੇ ਜੋ ਮਰੈ ਬਹੁਰਿ ਨ ਮਰਨਾ ਹੋਇ ॥੨੯॥ ऐसे मरना चाहिए कि पुनः मृत्यु प्राप्त न हो अर्थात् जन्म-मरण से मुक्ति ही मिल जाए॥ २६॥
ਕਬੀਰ ਮਾਨਸ ਜਨਮੁ ਦੁਲੰਭੁ ਹੈ ਹੋਇ ਨ ਬਾਰੈ ਬਾਰ ॥ कबीर जी उपदेश करते हैं कि मनुष्य जन्म दुर्लभ है, यह बार-बार प्राप्त नहीं होता।
ਜਿਉ ਬਨ ਫਲ ਪਾਕੇ ਭੁਇ ਗਿਰਹਿ ਬਹੁਰਿ ਨ ਲਾਗਹਿ ਡਾਰ ॥੩੦॥ जैसे वन में फल पक कर भूमि पर गिर जाए तो दोबारा डाली पर नहीं लगता॥ ३०॥
ਕਬੀਰਾ ਤੁਹੀ ਕਬੀਰੁ ਤੂ ਤੇਰੋ ਨਾਉ ਕਬੀਰੁ ॥ कबीर जी उद्बोधन करते हैं कि तू ही कबीर है, तेरा नाम कबीर है (आत्मा-परमात्मा अभिन्न है)
ਰਾਮ ਰਤਨੁ ਤਬ ਪਾਈਐ ਜਉ ਪਹਿਲੇ ਤਜਹਿ ਸਰੀਰੁ ॥੩੧॥ जब पहले संसारिक शरीर छोड़ा जाता है तो ही राम प्राप्त होता है॥ ३१॥
ਕਬੀਰ ਝੰਖੁ ਨ ਝੰਖੀਐ ਤੁਮਰੋ ਕਹਿਓ ਨ ਹੋਇ ॥ कबीर जी उद्बोधन करते हैं- फालतू बातें नहीं करनी चाहिएँ, तुम्हारे कहने से कुछ नहीं हो सकता।
ਕਰਮ ਕਰੀਮ ਜੁ ਕਰਿ ਰਹੇ ਮੇਟਿ ਨ ਸਾਕੈ ਕੋਇ ॥੩੨॥ क्योंकि ईश्वर जो कुछ कर रहा है, उसे कोई बदल नहीं सकता॥ ३२॥
ਕਬੀਰ ਕਸਉਟੀ ਰਾਮ ਕੀ ਝੂਠਾ ਟਿਕੈ ਨ ਕੋਇ ॥ हे कबीर ! राम की कसौटी पर कोई भी झूठा व्यक्ति टिक नहीं पाता (उसका झूठ सामने आ हो जाता है)
ਰਾਮ ਕਸਉਟੀ ਸੋ ਸਹੈ ਜੋ ਮਰਿ ਜੀਵਾ ਹੋਇ ॥੩੩॥ राम की कसौटी पर वही सच्चा सिद्ध होता है, जो मरजीवा होता है॥ ३३॥
ਕਬੀਰ ਊਜਲ ਪਹਿਰਹਿ ਕਾਪਰੇ ਪਾਨ ਸੁਪਾਰੀ ਖਾਹਿ ॥ कबीर जी उद्बोधन करते हैं कि बेशक साफ-सुथरे कपड़े पहन लिए जाएँ, चाहे पान-सुपारी खाया जाए,
ਏਕਸ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਬਾਧੇ ਜਮ ਪੁਰਿ ਜਾਂਹਿ ॥੩੪॥ लेकिन परमात्मा के नाम बिन तो बांधकर यमपुरी ले जाया जाता है॥ ३४॥
ਕਬੀਰ ਬੇੜਾ ਜਰਜਰਾ ਫੂਟੇ ਛੇਂਕ ਹਜਾਰ ॥ हे कबीर ! जब जीवन रूपी बेड़ा टूट-फूट कर पुराना हो जाता है तो उसमें हजारों छेद हो जाते हैं।
ਹਰੂਏ ਹਰੂਏ ਤਿਰਿ ਗਏ ਡੂਬੇ ਜਿਨ ਸਿਰ ਭਾਰ ॥੩੫॥ शुभ कर्म करने वाले हल्के (भले पुरुष) तो तैर कर किनारे लग जाते हैं परन्तु जिनके सिर पर पापों का बोझ लदा होता है, वे डूब जाते हैं।॥ ३५॥
ਕਬੀਰ ਹਾਡ ਜਰੇ ਜਿਉ ਲਾਕਰੀ ਕੇਸ ਜਰੇ ਜਿਉ ਘਾਸੁ ॥ हे कबीर ! मनुष्य की हड़ियाँ ऐसे जलती हैं, जैसे लकड़ियाँ होती हैं और सिर के बाल घास की तरह जलते हैं।
ਇਹੁ ਜਗੁ ਜਰਤਾ ਦੇਖਿ ਕੈ ਭਇਓ ਕਬੀਰੁ ਉਦਾਸੁ ॥੩੬॥ कबीर जी कथन करते हैं कि इस प्रकार लोगों को जलता देखकर मन उदास हो गया है॥ ३६॥
ਕਬੀਰ ਗਰਬੁ ਨ ਕੀਜੀਐ ਚਾਮ ਲਪੇਟੇ ਹਾਡ ॥ कबीर जी कथन करते हैं- तन पर अभिमान नहीं करना चाहिए, यह तो हड़ियों पर लपेटी चमड़ी मात्र है।
ਹੈਵਰ ਊਪਰਿ ਛਤ੍ਰ ਤਰ ਤੇ ਫੁਨਿ ਧਰਨੀ ਗਾਡ ॥੩੭॥ जो घोड़ों पर सवारी एवं छत्र के नीचे विराजमान थे, अंतत: वे भी धरती में गाड़ दिए गए॥ ३७॥
ਕਬੀਰ ਗਰਬੁ ਨ ਕੀਜੀਐ ਊਚਾ ਦੇਖਿ ਅਵਾਸੁ ॥ कबीर जी चेताते हैं कि ऊँचा मकान देखकर अभिमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि
ਆਜੁ ਕਾਲ੍ਹ੍ਹਿ ਭੁਇ ਲੇਟਣਾ ਊਪਰਿ ਜਾਮੈ ਘਾਸੁ ॥੩੮॥ आज अथवा कल जमीन पर लेटना है और ऊपर घास उग जाएगी॥ ३८॥
ਕਬੀਰ ਗਰਬੁ ਨ ਕੀਜੀਐ ਰੰਕੁ ਨ ਹਸੀਐ ਕੋਇ ॥ कबीर जी चेताते हैं कि अपने अमीर होने का अभिमान नहीं करना चाहिए और न ही किसी गरीब का मजाक उड़ाना चाहिए,
ਅਜਹੁ ਸੁ ਨਾਉ ਸਮੁੰਦ੍ਰ ਮਹਿ ਕਿਆ ਜਾਨਉ ਕਿਆ ਹੋਇ ॥੩੯॥ क्योंकि जीवन-नैया अभी संसार-समुद्र में ही है, क्या पता पल में क्या हो जाए॥ ३६॥
ਕਬੀਰ ਗਰਬੁ ਨ ਕੀਜੀਐ ਦੇਹੀ ਦੇਖਿ ਸੁਰੰਗ ॥ हे कबीर ! सुन्दर देह को देखकर अहंकार नहीं करना चाहिए,
ਆਜੁ ਕਾਲ੍ਹ੍ਹਿ ਤਜਿ ਜਾਹੁਗੇ ਜਿਉ ਕਾਂਚੁਰੀ ਭੁਯੰਗ ॥੪੦॥ आज अथवा कल इसे छोड़ जाना है, जैसे साँप केंचुली छोड़ जाता है।॥ ४०॥
ਕਬੀਰ ਲੂਟਨਾ ਹੈ ਤ ਲੂਟਿ ਲੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਹੈ ਲੂਟਿ ॥ कबीर जी उद्बोधन करते हैं- हे जीव ! अगर लूटना है तो राम नाम लूट ले, जितना हो सके लूट ले (अर्थात् परमात्मा का भजन कर ले)"
ਫਿਰਿ ਪਾਛੈ ਪਛੁਤਾਹੁਗੇ ਪ੍ਰਾਨ ਜਾਹਿੰਗੇ ਛੂਟਿ ॥੪੧॥ जब प्राण छूट जाएँगे तो बाद में पछतावा होगा॥ ४१॥
ਕਬੀਰ ਐਸਾ ਕੋਈ ਨ ਜਨਮਿਓ ਅਪਨੈ ਘਰਿ ਲਾਵੈ ਆਗਿ ॥ हे कबीर ! ऐसा कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ, जिसने अपने घर (अहम्) को आग लगाई हो या
ਪਾਂਚਉ ਲਰਿਕਾ ਜਾਰਿ ਕੈ ਰਹੈ ਰਾਮ ਲਿਵ ਲਾਗਿ ॥੪੨॥ फिर पाँच लड़कों (अर्थात् विकारों) को जलाकर परमात्मा में ध्यान लगाया हो॥ ४२॥
ਕੋ ਹੈ ਲਰਿਕਾ ਬੇਚਈ ਲਰਿਕੀ ਬੇਚੈ ਕੋਇ ॥ क्या कोई ऐसा है, जो अपने लड़के (मोह) एवं लड़कों (आशा आकांक्षा) को बेच डाले।
ਸਾਝਾ ਕਰੈ ਕਬੀਰ ਸਿਉ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਬਨਜੁ ਕਰੇਇ ॥੪੩॥ अगर है तो फिर वह कबीर के साथ हिस्सेदारी करके हरि-भजन का व्यापार कर सकता है॥ ४३॥
ਕਬੀਰ ਇਹ ਚੇਤਾਵਨੀ ਮਤ ਸਹਸਾ ਰਹਿ ਜਾਇ ॥ कबीर जी कहते हैं कि हे मनुष्य ! यह हमारी चेतावनी है, ताकि कोई शक की गुंजायश न रह जाए।
ਪਾਛੈ ਭੋਗ ਜੁ ਭੋਗਵੇ ਤਿਨ ਕੋ ਗੁੜੁ ਲੈ ਖਾਹਿ ॥੪੪॥ भूतकाल में जो भोग-विलास किए, उनका अब कोई महत्व नहीं, उसका तो गुड़ भी खाने को नहीं मिल सकता॥ ४४॥
ਕਬੀਰ ਮੈ ਜਾਨਿਓ ਪੜਿਬੋ ਭਲੋ ਪੜਿਬੇ ਸਿਉ ਭਲ ਜੋਗੁ ॥ कबीर जी कहते हैं- (काशी में ब्राह्मणों को वेद-शास्त्र पढ़ता देखकर) पहले मैं विद्या को भला मान बैठा था और विद्या के उपरांत मैंने योग-साधना को उत्तम मान लिया।आखिरकार मेरी भक्ति में पूर्ण निष्ठा हुई।
ਭਗਤਿ ਨ ਛਾਡਉ ਰਾਮ ਕੀ ਭਾਵੈ ਨਿੰਦਉ ਲੋਗੁ ॥੪੫॥ अब लोग भला मेरी कितनी ही निन्दा करें परन्तु मैं राम की भक्ति नहीं छोडूंगा ॥४५॥
ਕਬੀਰ ਲੋਗੁ ਕਿ ਨਿੰਦੈ ਬਪੁੜਾ ਜਿਹ ਮਨਿ ਨਾਹੀ ਗਿਆਨੁ ॥ हे कबीर! जिनके मन में ज्ञान नहीं, बेचारे ऐसे लोगों की निन्दा से कोई फर्क नहीं पड़ता।
ਰਾਮ ਕਬੀਰਾ ਰਵਿ ਰਹੇ ਅਵਰ ਤਜੇ ਸਭ ਕਾਮ ॥੪੬॥ क्योंकि कबीर तो अन्य सब काम छोड़कर परमात्मा का ही भजन कर रहा है॥ ४६ ॥
ਕਬੀਰ ਪਰਦੇਸੀ ਕੈ ਘਾਘਰੈ ਚਹੁ ਦਿਸਿ ਲਾਗੀ ਆਗਿ ॥ हे कबीर ! जीव-परदेसी के जीवन रूपी घाघरे में चारों तरफ से आग लगी हुई है।
ਖਿੰਥਾ ਜਲਿ ਕੋਇਲਾ ਭਈ ਤਾਗੇ ਆਂਚ ਨ ਲਾਗ ॥੪੭॥ शरीर रूपी गुदड़ी जलकर कोयला हो चुकी है परन्तु आत्मा रूपी सूत्र को जरा-सी आंच नहीं लगी ॥४७॥
ਕਬੀਰ ਖਿੰਥਾ ਜਲਿ ਕੋਇਲਾ ਭਈ ਖਾਪਰੁ ਫੂਟ ਮਫੂਟ ॥ हे कबीर ! कफनी जलकर कोयला हो गई, जीव रूपी योगी का खप्पर भी टूट-फूट गया है।
ਜੋਗੀ ਬਪੁੜਾ ਖੇਲਿਓ ਆਸਨਿ ਰਹੀ ਬਿਭੂਤਿ ॥੪੮॥ बेचारा जीव रूपी योगी अपना जीवन-तमाशा रचकर संसार से जा चुका है, अब तो आसन पर राख ही बची है॥ ४८ ॥


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