Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1365

Page 1365

ਲੈ ਫਾਹੇ ਉਠਿ ਧਾਵਤੇ ਸਿ ਜਾਨਿ ਮਾਰੇ ਭਗਵੰਤ ॥੧੦॥ वे चाकू-पिस्तौल इत्यादि सामान लेकर भागते फिरते हैं परन्तु सच मानो ऐसे लोगों को ईश्वर ने ही मारा हुआ है।॥ १०॥
ਕਬੀਰ ਚੰਦਨ ਕਾ ਬਿਰਵਾ ਭਲਾ ਬੇੜ੍ਹ੍ਹਿਓ ਢਾਕ ਪਲਾਸ ॥ "[कबीर जी संत-महात्मा की तरफ संकेत करते हैं, जिनकी संगत का लोग लाभ प्राप्त करते हैंI} हे कबीर ! चन्दन का पौधा भला है, जो ढाक प्लास के पौधों से घिरा रहता है।
ਓਇ ਭੀ ਚੰਦਨੁ ਹੋਇ ਰਹੇ ਬਸੇ ਜੁ ਚੰਦਨ ਪਾਸਿ ॥੧੧॥ वस्तुतः चंदन के निकट रहने वाले पौधे भी चन्दन की तरह महकदार हो जाते हैं॥ ११॥
ਕਬੀਰ ਬਾਂਸੁ ਬਡਾਈ ਬੂਡਿਆ ਇਉ ਮਤ ਡੂਬਹੁ ਕੋਇ ॥ कबीर जी चेताते हैं कि बांस अपने (लम्बे होने के) अभिमान में डूबा रहता है, इसी तरह कोई अपने बड़े होने के अभिमान में मत डूबना।
ਚੰਦਨ ਕੈ ਨਿਕਟੇ ਬਸੈ ਬਾਂਸੁ ਸੁਗੰਧੁ ਨ ਹੋਇ ॥੧੨॥ बांस बेशक चन्दन के निकट रहता है परन्तु सुगन्धित नहीं होता।।१२ ।।
ਕਬੀਰ ਦੀਨੁ ਗਵਾਇਆ ਦੁਨੀ ਸਿਉ ਦੁਨੀ ਨ ਚਾਲੀ ਸਾਥਿ ॥ हे कबीर ! दुनिया की खातिर मनुष्य अपना धर्म-ईमान छोड़ देता है परन्तु दुनिया साथ नहीं चलती
ਪਾਇ ਕੁਹਾੜਾ ਮਾਰਿਆ ਗਾਫਲਿ ਅਪੁਨੈ ਹਾਥਿ ॥੧੩॥ गाफिल व्यक्ति अपने हाथ से पाँवों पर कुल्हाड़ा ही मारता है॥ १३॥
ਕਬੀਰ ਜਹ ਜਹ ਹਉ ਫਿਰਿਓ ਕਉਤਕ ਠਾਓ ਠਾਇ ॥ हे कबीर ! मैं जहाँ-जहाँ घूमा हूँ हर जगह ईश्वर की लीला देखी है।
ਇਕ ਰਾਮ ਸਨੇਹੀ ਬਾਹਰਾ ਊਜਰੁ ਮੇਰੈ ਭਾਂਇ ॥੧੪॥ प्यारे प्रभु के बिना मेरे लिए सब उजाड़ है॥ १४॥
ਕਬੀਰ ਸੰਤਨ ਕੀ ਝੁੰਗੀਆ ਭਲੀ ਭਠਿ ਕੁਸਤੀ ਗਾਉ ॥ हे कबीर ! भले पुरुषों की झोंपड़ी झूठे एवं पापियों के गांव से भली है।
ਆਗਿ ਲਗਉ ਤਿਹ ਧਉਲਹਰ ਜਿਹ ਨਾਹੀ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਉ ॥੧੫॥ उन बड़े-बड़े महलों-कोठियों को आग लगा देनी चाहिए, जहाँ हरिनाम का भजन नहीं होता॥ १५॥
ਕਬੀਰ ਸੰਤ ਮੂਏ ਕਿਆ ਰੋਈਐ ਜੋ ਅਪੁਨੇ ਗ੍ਰਿਹਿ ਜਾਇ ॥ कबीर जी समझाते हैं कि संतों की मृत्यु पर भला क्या रोना, जो अपने सच्चे घर (प्रभु-चरणों) में चले जाते हैं।
ਰੋਵਹੁ ਸਾਕਤ ਬਾਪੁਰੇ ਜੁ ਹਾਟੈ ਹਾਟ ਬਿਕਾਇ ॥੧੬॥ दरअसल उन बदनसीब मायावी लोगों पर रोना चाहिए, जो बुरे कर्मों के कारण (जन्म-मरण के चक्र में) पुनः बिकते फिरते हैं।॥ १६॥
ਕਬੀਰ ਸਾਕਤੁ ਐਸਾ ਹੈ ਜੈਸੀ ਲਸਨ ਕੀ ਖਾਨਿ ॥ कबीर जी बतलाते हैं- जैसी लहसुन की खान होती है, ऐसा ही मायावी पुरुष होता है,
ਕੋਨੇ ਬੈਠੇ ਖਾਈਐ ਪਰਗਟ ਹੋਇ ਨਿਦਾਨਿ ॥੧੭॥ ज्यों कोने में बैठकर लहसुन खाया जाए तो उसकी दुर्गन्ध आसपास आने लग जाती है, इसी तरह उसके कर्म भी ज़ाहिर हो जाते हैं ॥ १७ ॥
ਕਬੀਰ ਮਾਇਆ ਡੋਲਨੀ ਪਵਨੁ ਝਕੋਲਨਹਾਰੁ ॥ कबीर जी उद्बोधन करते हैं- माया मटकी के बराबर है और साँसें मथनी है।
ਸੰਤਹੁ ਮਾਖਨੁ ਖਾਇਆ ਛਾਛਿ ਪੀਐ ਸੰਸਾਰੁ ॥੧੮॥ संत पुरुष परमात्मा का स्मरण करके माखन खाते हैं और संसार के लोग छाछ पीते हैं॥ १८॥
ਕਬੀਰ ਮਾਇਆ ਡੋਲਨੀ ਪਵਨੁ ਵਹੈ ਹਿਵ ਧਾਰ ॥ हे कबीर ! यह माया दूध की मटकी है, जिसमें श्वासों की ठण्डी धारा चल रही है।
ਜਿਨਿ ਬਿਲੋਇਆ ਤਿਨਿ ਖਾਇਆ ਅਵਰ ਬਿਲੋਵਨਹਾਰ ॥੧੯॥ जो ठीक तरह मंथन करता है, वह माखन खाता है, अन्य लोग मंथन ही करते रहते हैं॥ १६॥
ਕਬੀਰ ਮਾਇਆ ਚੋਰਟੀ ਮੁਸਿ ਮੁਸਿ ਲਾਵੈ ਹਾਟਿ ॥ कबीर जी कहते हैं- इस माया लुटेरी ने लोगों को धोखा दे-देकर अपनी दुकान सजाई है।
ਏਕੁ ਕਬੀਰਾ ਨਾ ਮੁਸੈ ਜਿਨਿ ਕੀਨੀ ਬਾਰਹ ਬਾਟ ॥੨੦॥ यह केवल कबीर को धोखा नहीं दे सकी, जिसने इसके काट कर बारह टुकड़े कर दिए॥ २०॥
ਕਬੀਰ ਸੂਖੁ ਨ ਏਂਹ ਜੁਗਿ ਕਰਹਿ ਜੁ ਬਹੁਤੈ ਮੀਤ ॥ कबीर जी समझाते हैं- बहुत अधिक मित्र बनाने से इस दुनिया में सुख प्राप्त नहीं होता।
ਜੋ ਚਿਤੁ ਰਾਖਹਿ ਏਕ ਸਿਉ ਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਨੀਤ ॥੨੧॥ जो अपने दिल में केवल परमात्मा को बसाए रखता है, वास्तव में वह नित्य ही सुख पाता है॥ २१॥
ਕਬੀਰ ਜਿਸੁ ਮਰਨੇ ਤੇ ਜਗੁ ਡਰੈ ਮੇਰੇ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ॥ कबीर जी उद्बोधन करते हैं- जिस मौत से पूरा जगत डर रहा है, उस मौत से मेरे मन में आनंद ही आनंद हो रहा है।
ਮਰਨੇ ਹੀ ਤੇ ਪਾਈਐ ਪੂਰਨੁ ਪਰਮਾਨੰਦੁ ॥੨੨॥ क्योंकेि मरने के बाद ही पूर्ण परमानंद प्राप्त होता है।॥ २२॥
ਰਾਮ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇ ਕੈ ਕਬੀਰਾ ਗਾਂਠਿ ਨ ਖੋਲ੍ਹ੍ਹ ॥ कबीर जी उद्बोधन करते हैं- परमात्मा को पाकर गाँठ मत खोल (अर्थात् लोगों को मत बता) क्योंकि
ਨਹੀ ਪਟਣੁ ਨਹੀ ਪਾਰਖੂ ਨਹੀ ਗਾਹਕੁ ਨਹੀ ਮੋਲੁ ॥੨੩॥ न ही कोई भक्ति स्थल है, न ही पारखी है, न ही कोई भक्ति करने वाला ग्राहक है और न ही कोई महानता को समझता है॥ २३॥
ਕਬੀਰ ਤਾ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ਜਾ ਕੋ ਠਾਕੁਰੁ ਰਾਮੁ ॥ कबीर जी उपदेश करते हैं कि हे सज्जनो ! उन संत-भक्तों से प्रेम करो, जिन्होंने राम को अपना स्वामी मान लिया है।
ਪੰਡਿਤ ਰਾਜੇ ਭੂਪਤੀ ਆਵਹਿ ਕਉਨੇ ਕਾਮ ॥੨੪॥ पण्डित, राजा-महाराजा किसी काम नहीं आने॥ २४॥
ਕਬੀਰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਇਕ ਸਿਉ ਕੀਏ ਆਨ ਦੁਬਿਧਾ ਜਾਇ ॥ कबीर जी बतलाते हैं कि जब परमात्मा से प्रेम लग जाता है तो अन्य सब दुविधाएँ दूर हो जाती हैं।
ਭਾਵੈ ਲਾਂਬੇ ਕੇਸ ਕਰੁ ਭਾਵੈ ਘਰਰਿ ਮੁਡਾਇ ॥੨੫॥ चाहे लम्बी जटाओं वाला साधु हो या सिर मुंडवा सन्यासी हो॥ २५॥
ਕਬੀਰ ਜਗੁ ਕਾਜਲ ਕੀ ਕੋਠਰੀ ਅੰਧ ਪਰੇ ਤਿਸ ਮਾਹਿ ॥ कबीर जी कथन करते हैं कि यह जगत (मोह, माया रूपी) काजल की कोठरी है और अज्ञानांध जीव इसमें पड़े रहते हैं।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ ਕਉ ਪੈਸਿ ਜੁ ਨੀਕਸਿ ਜਾਹਿ ॥੨੬॥ मैं उन सज्जनों पर कुर्बान जाता हूँ, जो कालिमा से बाहर निकल जाते हैं।॥ २६॥
ਕਬੀਰ ਇਹੁ ਤਨੁ ਜਾਇਗਾ ਸਕਹੁ ਤ ਲੇਹੁ ਬਹੋਰਿ ॥ हे कबीर ! यह तन नाश होना ही है, इसे बचाने का बेशक कोई भी उपाय कर ली, इसे बचा नहीं सकते।
ਨਾਂਗੇ ਪਾਵਹੁ ਤੇ ਗਏ ਜਿਨ ਕੇ ਲਾਖ ਕਰੋਰਿ ॥੨੭॥ जिनके पास लाखों-करोड़ों रुपए थे, वे भी नंगे पॉव चले गए हैं।॥ २७॥
ਕਬੀਰ ਇਹੁ ਤਨੁ ਜਾਇਗਾ ਕਵਨੈ ਮਾਰਗਿ ਲਾਇ ॥ कबीर जी उद्बोधन करते हैं- यह तन नाशवान् है, इसे किसी अच्छे रास्ते पर जरूर लगाओ
ਕੈ ਸੰਗਤਿ ਕਰਿ ਸਾਧ ਕੀ ਕੈ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥੨੮॥ या तो साधु पुरुषों की संगत करो या फिर भगवान का गुणगान करो॥ २८॥
ਕਬੀਰ ਮਰਤਾ ਮਰਤਾ ਜਗੁ ਮੂਆ ਮਰਿ ਭੀ ਨ ਜਾਨਿਆ ਕੋਇ ॥ हे कबीर ! मरता-मरता संसार मर रहा है, लेकिन कोई भी मरने का भेद नहीं जानता।


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