Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1344

Page 1344

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ਦਖਣੀ ॥ प्रभाती महला १ दखणी ॥
ਗੋਤਮੁ ਤਪਾ ਅਹਿਲਿਆ ਇਸਤ੍ਰੀ ਤਿਸੁ ਦੇਖਿ ਇੰਦ੍ਰੁ ਲੁਭਾਇਆ ॥ तपस्वी गौतम की खूबसूरत स्त्री अहल्या को देखकर देवराज इन्द्र उस पर मोहित हो गया।
ਸਹਸ ਸਰੀਰ ਚਿਹਨ ਭਗ ਹੂਏ ਤਾ ਮਨਿ ਪਛੋਤਾਇਆ ॥੧॥ "(तो उसने छलपूर्वक उससे संभोग किया) जब गौतम ने श्राप दिया तो उसके शरीर पर भग के हजारों चिन्ह बन गए, तत्पश्चात् अपनी भूल के कारण वह मन में बहुत पछताया॥ १॥
ਕੋਈ ਜਾਣਿ ਨ ਭੂਲੈ ਭਾਈ ॥ हे भाई ! कोई जान-बूझकर भूल मत करो।
ਸੋ ਭੂਲੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਭੁਲਾਏ ਬੂਝੈ ਜਿਸੈ ਬੁਝਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दरअसल वही भूल करता है, जिसे परमात्मा स्वयं भुला देता है और जिसे वह समझाता है, वही समझता है॥ १॥रहाउ॥
ਤਿਨਿ ਹਰੀ ਚੰਦਿ ਪ੍ਰਿਥਮੀ ਪਤਿ ਰਾਜੈ ਕਾਗਦਿ ਕੀਮ ਨ ਪਾਈ ॥ पृथ्वीपति राजा हरिश्चन्द्र अपने भाग्य को समझ नहीं पाया।
ਅਉਗਣੁ ਜਾਣੈ ਤ ਪੁੰਨ ਕਰੇ ਕਿਉ ਕਿਉ ਨੇਖਾਸਿ ਬਿਕਾਈ ॥੨॥ यदि वह अपने पुण्य कर्म को अवगुण मानता तो गुलामों की मण्डी में भला क्यों बिकता॥ २॥
ਕਰਉ ਅਢਾਈ ਧਰਤੀ ਮਾਂਗੀ ਬਾਵਨ ਰੂਪਿ ਬਹਾਨੈ ॥ वामन रूप धारण करके भगवान ने राजा बलि से अढ़ाई कदम भूमि मांगी।
ਕਿਉ ਪਇਆਲਿ ਜਾਇ ਕਿਉ ਛਲੀਐ ਜੇ ਬਲਿ ਰੂਪੁ ਪਛਾਨੈ ॥੩॥ यद्यपि राजा बलि वामन रुप को पहचान लेता तो धोखा नहीं खाता और न ही पाताल में जाता॥ ३॥
ਰਾਜਾ ਜਨਮੇਜਾ ਦੇ ਮਤੀ ਬਰਜਿ ਬਿਆਸਿ ਪੜ੍ਹ੍ਹਾਇਆ ॥ मुनि व्यास ने राजा जनमेजय को उपदेश देकर समझाया (कि सुन्दर कन्या से विवाह मत करना, न ही यज्ञ इत्यादि करवाना) परन्तु उसने उपदेश का पालन नहीं किया,
ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਿ ਕਰਿ ਜਗ ਅਠਾਰਹ ਘਾਏ ਕਿਰਤੁ ਨ ਚਲੈ ਚਲਾਇਆ ॥੪॥ उसने पत्नी के आग्रह पर यज्ञ करवाया और क्रोधित होकर अठारह ब्राह्मणों की हत्या करवा दी, इसके फलस्वरूप वह कोढ़ का शिकार हो गया, वस्तुतः भाग्य को कभी बदला नहीं जा सकता॥ ४॥
ਗਣਤ ਨ ਗਣੀ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਾ ਬੋਲੀ ਭਾਇ ਸੁਭਾਈ ॥ कितने ही ऐसे लोग हुए हैं, जिनकी मैं गणना नहीं कर सकता। परमात्मा के हुक्म को मानकर सहज-स्वाभाविक ही बोल रहा हूँ।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਵਰਤੈ ਤੁਧੈ ਸਲਾਹੀ ਸਭ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥੫॥ हे प्रभु ! जो कुछ हो रहा है, तेरी ही स्तुति है, सब तेरा बड़प्पन है॥ ५॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਲਿਪਤੁ ਲੇਪੁ ਕਦੇ ਨ ਲਾਗੈ ਸਦਾ ਰਹੈ ਸਰਣਾਈ ॥ गुरुमुख अलिप्त रहता है, उसे कभी पापों की मैल नहीं लगती और वह सदा प्रभु की शरण में रहता है।
ਮਨਮੁਖੁ ਮੁਗਧੁ ਆਗੈ ਚੇਤੈ ਨਾਹੀ ਦੁਖਿ ਲਾਗੈ ਪਛੁਤਾਈ ॥੬॥ परन्तु मूर्ख स्वेच्छाचारी सत्य की ओर ध्यान नहीं देता और दुखी होने के उपरांत पछताता है॥ ६॥
ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਏ ਕਰਤਾ ਜਿਨਿ ਏਹ ਰਚਨਾ ਰਚੀਐ ॥ जिसने इस संसार की रचना की है, वह बनाने वाला परमात्मा स्वयं ही सब करता और करवाता है।
ਹਰਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਨ ਜਾਈ ਜੀਅਹੁ ਅਭਿਮਾਨੇ ਪੈ ਪਚੀਐ ॥੭॥ मनुष्य के दिल से अभिमान दूर नहीं होता और वह अभिमान में ही जलता रहता है॥ ७॥
ਭੁਲਣ ਵਿਚਿ ਕੀਆ ਸਭੁ ਕੋਈ ਕਰਤਾ ਆਪਿ ਨ ਭੁਲੈ ॥ उस कर्ता-परमेश्वर ने पूरे संसार को भूल करने लायक बना दिया है परन्तु वह स्वयं कोई भूल नहीं करता।
ਨਾਨਕ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ਕੋ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਅਘੁਲੈ ॥੮॥੪॥ गुरु नानक का फुरमान है कि गुरु की कृपा से जो परमात्मा का स्मरण करता है, वही जीव बन्धनों से मुक्ति पाता है॥ ८॥ ४॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ प्रभाती महला १ ॥
ਆਖਣਾ ਸੁਨਣਾ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥ ईश्वर का स्तुतिगान करना एवं उसका संकीर्तन सुनना ही हमारा आसरा बन चुका है और
ਧੰਧਾ ਛੁਟਕਿ ਗਇਆ ਵੇਕਾਰੁ ॥ अन्य बेकार कार्यों से हम मुक्त हो गए हैं।
ਜਿਉ ਮਨਮੁਖਿ ਦੂਜੈ ਪਤਿ ਖੋਈ ॥ ज्यों स्वेच्छाचारी द्वैतभाव में अपनी इज्जत खो देता है परन्तु उसका त्याग नहीं करता,
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੧॥ इसी तरह मैं परमात्मा के नाम बिना किसी अन्य को नहीं मानता॥ १॥
ਸੁਣਿ ਮਨ ਅੰਧੇ ਮੂਰਖ ਗਵਾਰ ॥ हे अन्धे, मूर्ख, गंवार मन ! मेरी बात सुन,
ਆਵਤ ਜਾਤ ਲਾਜ ਨਹੀ ਲਾਗੈ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਬੂਡੈ ਬਾਰੋ ਬਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पुनः जन्म-मरण में पड़कर तुझे शर्म नहीं आती, गुरु के बिना बार-बार डूब रहे हो॥ १॥रहाउ॥
ਇਸੁ ਮਨ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਬਿਨਾਸੁ ॥ इस मन का माया-मोह में नाश होता है,
ਧੁਰਿ ਹੁਕਮੁ ਲਿਖਿਆ ਤਾਂ ਕਹੀਐ ਕਾਸੁ ॥ जब प्रारम्भ से ही भाग्य में लिखा हुआ है तो कैसे कहा जाए।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹੈ ਕੋਈ ॥ गुरु से कोई विरला पुरुष ही तथ्य को जानता है कि
ਨਾਮ ਬਿਹੂਨਾ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੨॥ प्रभु-नाम से विहीन रहकर मुक्ति नहीं होती॥ २॥
ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਡੋਲੈ ਲਖ ਚਉਰਾਸੀ ॥ मनुष्य चौरासी लाख योनियों के चक्र में घूमता रहता है और
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਬੂਝੇ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ॥ गुरु के बिना मौत के फंदे को नहीं समझता।
ਇਹੁ ਮਨੂਆ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਊਭਿ ਪਇਆਲਿ ॥ यह मन पल-पल बड़ी-बड़ी बातें करता है और तो कभी निम्न हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਛੂਟੈ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥੩॥ परन्तु गुरु के द्वारा हरिनाम स्मरण द्वारा ही बन्धनों से मुक्त होता है।॥ ३॥
ਆਪੇ ਸਦੇ ਢਿਲ ਨ ਹੋਇ ॥ ईश्वर स्वयं मृत्यु का बुलावा देता है और कोई देरी नहीं होती।
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਸਹਿਲਾ ਜੀਵੈ ਸੋਇ ॥ प्रभु-शब्द पर न्यौछावर होने वाला ही सुखद जीवन बिताता है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸੋਝੀ ਕਿਸੈ ਨ ਹੋਇ ॥ गुरु के बिना किसी को ज्ञान प्राप्त नहीं होता,
ਆਪੇ ਕਰੈ ਕਰਾਵੈ ਸੋਇ ॥੪॥ संसार में करने-करवाने वाला स्वयं परमेश्वर है॥ ४॥
ਝਗੜੁ ਚੁਕਾਵੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥ जो परमात्मा के गुण गाता है, उसके सब झगड़े समाप्त हो जाते हैं।
ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵੈ ॥ पूर्ण सतगुरु उसे सहजावस्था में लीन कर देता है और
ਇਹੁ ਮਨੁ ਡੋਲਤ ਤਉ ਠਹਰਾਵੈ ॥ यह मन दोलायमान होने से रुक जाता है।
ਸਚੁ ਕਰਣੀ ਕਰਿ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥੫॥ इस प्रकार वह सत्कर्म करता है॥ ५॥
ਅੰਤਰਿ ਜੂਠਾ ਕਿਉ ਸੁਚਿ ਹੋਇ ॥ जिसका अन्तर्मन झूठ से भरा हुआ है, वह कैसे शुद्ध हो सकता है।
ਸਬਦੀ ਧੋਵੈ ਵਿਰਲਾ ਕੋਇ ॥ कोई विरला पुरुष ही गुरु की शिक्षा से इसे शुद्ध करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੋਈ ਸਚੁ ਕਮਾਵੈ ॥ कोई गुरुमुख ही सत्कर्म करता है,
ਆਵਣੁ ਜਾਣਾ ਠਾਕਿ ਰਹਾਵੈ ॥੬॥ उसका आवागमन का चक्र समाप्त हो जाता है।॥ ६॥


© 2017 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top