Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 134

ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਬੇਨਤੀ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਹੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥ हे प्रभु! नानक की आपके समक्ष प्रार्थना है कि कृपया मुझसे आकर मिलो ताकि मैं आपको प्राप्त कर सकूँ।
ਵੈਸਾਖੁ ਸੁਹਾਵਾ ਤਾਂ ਲਗੈ ਜਾ ਸੰਤੁ ਭੇਟੈ ਹਰਿ ਸੋਇ ॥੩॥ वैसाख का महीना मुझे तभी सुन्दर लगता है यदि कोई हरि का संत मिल जाए॥ ३॥
ਹਰਿ ਜੇਠਿ ਜੁੜੰਦਾ ਲੋੜੀਐ ਜਿਸੁ ਅਗੈ ਸਭਿ ਨਿਵੰਨਿ ॥ ज्येष्ठ के महीने में सिमरन द्वारा उस भगवान् से जुड़ने का प्रयास करना चाहिए जिसके समक्ष जगत् के सभी जीव अपना सिर झुकाते हैं।
ਹਰਿ ਸਜਣ ਦਾਵਣਿ ਲਗਿਆ ਕਿਸੈ ਨ ਦੇਈ ਬੰਨਿ ॥ जो व्यक्ति हरि-प्रभु के आँचल से जुड़ा हुआ है अर्थात् शरण में है, उसे यम इत्यादि कोई भी बंदी नहीं बना सकता।
ਮਾਣਕ ਮੋਤੀ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭ ਉਨ ਲਗੈ ਨਾਹੀ ਸੰਨਿ ॥ प्रभु का नाम ऐसे माणिक-मोतियों के तुल्य है, जिसे कोई भी ना तो चुरा सकता है और ना हीं छिन सकता है।
ਰੰਗ ਸਭੇ ਨਾਰਾਇਣੈ ਜੇਤੇ ਮਨਿ ਭਾਵੰਨਿ ॥ जितने भी रंग-रूप मन को प्रिय लगते हैं, वे सभी रंग नारायण के ही हैं।
ਜੋ ਹਰਿ ਲੋੜੇ ਸੋ ਕਰੇ ਸੋਈ ਜੀਅ ਕਰੰਨਿ ॥ भगवान् और उसके द्वारा रचित जगत् के सभी जीव वही सब करते जो उसकी इच्छा होती है।
ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਤੇ ਆਪਣੇ ਸੇਈ ਕਹੀਅਹਿ ਧੰਨਿ ॥ इस संसार में वहीं जीव धन्य कहे जाते हैं जिन्हें प्रभु ने अपना बनाया है।
ਆਪਣ ਲੀਆ ਜੇ ਮਿਲੈ ਵਿਛੁੜਿ ਕਿਉ ਰੋਵੰਨਿ ॥ यदि मनुष्य को भगवान् उसके अपने प्रयास से मिल सकता हो तो वह उनसे जुदा होकर क्यों विलाप करें?
ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਪਰਾਪਤੇ ਨਾਨਕ ਰੰਗ ਮਾਣੰਨਿ ॥ हे नानक ! जिन्हें संतों की संगति मिल जाती है, वे प्रभु से मिलकर आनंद भोगते हैं।
ਹਰਿ ਜੇਠੁ ਰੰਗੀਲਾ ਤਿਸੁ ਧਣੀ ਜਿਸ ਕੈ ਭਾਗੁ ਮਥੰਨਿ ॥੪॥ ज्येष्ठ का महीना उसके लिए ही हर्षोल्लास वाला है, जिसे जगत् का स्वामी भगवान् मिल जाते हैं। लेकिन भगवान् उसे ही मिलते हैं जिसके माथे पर किस्मत के शुभ लेख लिखे होते हैं ॥ ४ ॥
ਆਸਾੜੁ ਤਪੰਦਾ ਤਿਸੁ ਲਗੈ ਹਰਿ ਨਾਹੁ ਨ ਜਿੰਨਾ ਪਾਸਿ ॥ आषाढ़ का महीना, उसे ही तपता हुआ लगता है जिसके पास हरि-प्रभु नहीं है।
ਜਗਜੀਵਨ ਪੁਰਖੁ ਤਿਆਗਿ ਕੈ ਮਾਣਸ ਸੰਦੀ ਆਸ ॥ जो जीव-स्त्री जगजीवन प्रभु को त्याग कर मनुष्य पर उम्मीद और विश्वास रखती है,
ਦੁਯੈ ਭਾਇ ਵਿਗੁਚੀਐ ਗਲਿ ਪਈਸੁ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸ ॥ वह मोह-माया में फँसकर नष्ट हो जाती है और मरणोपरांत उसके गले में यम की फाँसी डाली जाती है।
ਜੇਹਾ ਬੀਜੈ ਸੋ ਲੁਣੈ ਮਥੈ ਜੋ ਲਿਖਿਆਸੁ ॥ प्राणी जिस तरह बोएगा वैसे ही काटेगा अर्थात् मनुष्य जैसा कर्म करेगा, वैसा ही फल प्राप्त होगा, जो कुछ भाग्य में विद्यमान है।
ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਣੀ ਪਛੁਤਾਣੀ ਉਠਿ ਚਲੀ ਗਈ ਨਿਰਾਸ ॥ जब जीव-स्त्री की प्रभु के बिना जीवन-रात्रि व्यतीत हो जाती है तो वह पश्चाताप करती हुई निराश होकर संसार त्याग देती है।
ਜਿਨ ਕੌ ਸਾਧੂ ਭੇਟੀਐ ਸੋ ਦਰਗਹ ਹੋਇ ਖਲਾਸੁ ॥ दूसरी ओर जो मनुष्य संतों से मिलते हैं और उनकी आज्ञा पालन करते हैं, वह प्रभु के दरबार में बन्धनमुक्त हुए शोभायमान होते हैं।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਆਪਣੀ ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਹੋਇ ਪਿਆਸ ॥ हे प्रभु ! मुझ पर कृपा कीजिए जिससे तेरे दर्शनों की अभिलाषा हो।
ਪ੍ਰਭ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਕੋ ਨਹੀ ਨਾਨਕ ਕੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥ हे प्रभु ! नानक की यही विनम्र प्रार्थना है कि आपके अतिरिक्त मेरा अन्य कोई भी नहीं ।
ਆਸਾੜੁ ਸੁਹੰਦਾ ਤਿਸੁ ਲਗੈ ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਹਰਿ ਚਰਣ ਨਿਵਾਸ ॥੫॥ आषाढ़ का महीना उसे ही सुहावना लगता है, जिसके ह्रदय में ईश्वर के चरणों का निवास हो जाता है।॥ ५ ॥
ਸਾਵਣਿ ਸਰਸੀ ਕਾਮਣੀ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਪਿਆਰੁ ॥ श्रावण के महीने में वहीं जीव-स्त्री वनस्पति की तरह प्रफुल्लित होती है, जिसका प्रभु के चरण-कमलों से प्रेम है।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਰਤਾ ਸਚ ਰੰਗਿ ਇਕੋ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥ उसका तन-मन सद्पुरुष के प्रेम से मग्न हो जाता है और सत्य-परमेश्वर का नाम ही उसका एकमात्र सहारा बन जाता है।
ਬਿਖਿਆ ਰੰਗ ਕੂੜਾਵਿਆ ਦਿਸਨਿ ਸਭੇ ਛਾਰੁ ॥ विष-रूपी माया का मोह झूठा है। सब कुछ जो दृष्टिमान होता है, वह क्षणभंगुर है।
ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬੂੰਦ ਸੁਹਾਵਣੀ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਪੀਵਣਹਾਰੁ ॥ हरि-नाम रुपी अमृत की बूंद बहुत सुन्दर है। संतों-गुरुओं से मिलकर मनुष्य उसका पान करता है।
ਵਣੁ ਤਿਣੁ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਮਉਲਿਆ ਸੰਮ੍ਰਥ ਪੁਰਖ ਅਪਾਰੁ ॥ प्रभु के मिलन से सारी वनस्पति वन एवं तृण प्रफुल्लित हो गए हैं। प्रभु बेअंत एवं सब कुछ करने में सामर्थ्यवान है।
ਹਰਿ ਮਿਲਣੈ ਨੋ ਮਨੁ ਲੋਚਦਾ ਕਰਮਿ ਮਿਲਾਵਣਹਾਰੁ ॥ ईश्वर के मिलन हेतु मेरा हृदय बहुत व्याकुल है। परन्तु प्रभु अपनी कृपा से ही जीव को अपने साथ मिलाते हैं।
ਜਿਨੀ ਸਖੀਏ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਹੰਉ ਤਿਨ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰ ॥ जिन सखियों ने ईश्वर को प्राप्त किया हैं, उन पर मैं सदैव बलिहार हूँ।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜੀ ਮਇਆ ਕਰਿ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰੁ ॥ नानक जी का कथन है कि हे प्रभु! मुझ पर दया करो। केवल आप ही हैं जो गुरु के वचन के माध्यम से मेरे जीवन को सुशोभित कर सकते हैं।
ਸਾਵਣੁ ਤਿਨਾ ਸੁਹਾਗਣੀ ਜਿਨ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਉਰਿ ਹਾਰੁ ॥੬॥ श्रावण का महीना उन सुहागिनों के लिए ही सुन्दर है, जिन्होंने राम नाम को अपने हृदय का हार बना लिया है॥ ६॥
ਭਾਦੁਇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੀਆ ਦੂਜੈ ਲਗਾ ਹੇਤੁ ॥ भाद्रों के महीने में जो जीवात्मा पति-प्रभु को छोड़कर द्वैतभाव से प्रीति लगाती है, वह भ्रम में भटकी हुई है।
ਲਖ ਸੀਗਾਰ ਬਣਾਇਆ ਕਾਰਜਿ ਨਾਹੀ ਕੇਤੁ ॥ जीवात्मा चाहे वह लाखों ही हार-श्रृंगार कर ले परन्तु वह किसी भी लाभ के नहीं। भाव (कोई भी व्यक्ति कितने भी अनुष्ठान करके ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है।)
ਜਿਤੁ ਦਿਨਿ ਦੇਹ ਬਿਨਸਸੀ ਤਿਤੁ ਵੇਲੈ ਕਹਸਨਿ ਪ੍ਰੇਤੁ ॥ जिस दिन शरीर नाश होता है, उस समय लोग उसे प्रेत कहते हैं।
ਪਕੜਿ ਚਲਾਇਨਿ ਦੂਤ ਜਮ ਕਿਸੈ ਨ ਦੇਨੀ ਭੇਤੁ ॥ यमदूत आत्मा को पकड़ कर बिना कुछ बताए कि वह उसे कहाँ ले जा रहे हैं चल देते हैं।
ਛਡਿ ਖੜੋਤੇ ਖਿਨੈ ਮਾਹਿ ਜਿਨ ਸਿਉ ਲਗਾ ਹੇਤੁ ॥ जिनके साथ मनुष्य का बड़ा स्नेह होता है, एक क्षण में उस को त्याग कर दूर चले जाते हैं।
ਹਥ ਮਰੋੜੈ ਤਨੁ ਕਪੇ ਸਿਆਹਹੁ ਹੋਆ ਸੇਤੁ ॥ मृत्यु को निकट आते देखकर मनुष्य इतना भयभीत हो जाता है कि हाथ-पैर मलने लगता है, उसका शरीर कांपता है और प्राण निकलने के पश्चात् उसका शरीर काले से सफेद हो जाता है।
ਜੇਹਾ ਬੀਜੈ ਸੋ ਲੁਣੈ ਕਰਮਾ ਸੰਦੜਾ ਖੇਤੁ ॥ मनुष्य जैसा बोता है वैसा ही काटता है अर्थात् जैसे कर्म करता है वैसा ही फल पाता है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਗਤੀ ਚਰਣ ਬੋਹਿਥ ਪ੍ਰਭ ਦੇਤੁ ॥ हे नानक ! जो व्यक्ति प्रभु की शरण में आता है, प्रभु उसे संसार रूपी विकारों के भवसागर से पार कर देते हैं।
ਸੇ ਭਾਦੁਇ ਨਰਕਿ ਨ ਪਾਈਅਹਿ ਗੁਰੁ ਰਖਣ ਵਾਲਾ ਹੇਤੁ ॥੭॥ जिनके इष्ट तारणहार गुरु हैं, उन्हें भादों मास की भाँति कष्ट नहीं सहना पड़ता। ॥ ७॥
ਅਸੁਨਿ ਪ੍ਰੇਮ ਉਮਾਹੜਾ ਕਿਉ ਮਿਲੀਐ ਹਰਿ ਜਾਇ ॥ आश्विन के महीने में मेरे मन में प्रभु से प्रेम करने के लिए उत्साह उत्पन्न हुआ है। मैं सोचती हूँ कि कैसे जाकर अपने ईश्वर से मिलूँ ?


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