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                    ਚਰਨ ਸੇਵ ਸੰਤ ਸਾਧ ਕੇ ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰੇ ॥੩॥
                   
                    
                                              
                        संतों व साधु जनों के चरणों की सेवा करने से मेरी समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण हो गई हैं॥ ३॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਘਟਿ ਘਟਿ ਏਕੁ ਵਰਤਦਾ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰੇ ॥੪॥
                   
                    
                                              
                        कण-कण में एक ईश्वर ही विद्यमान है। जल, थल एवं गगन में भी वही समाया हुआ है॥ ४॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਾਪ ਬਿਨਾਸਨੁ ਸੇਵਿਆ ਪਵਿਤਰ ਸੰਤਨ ਕੀ ਧੂਰੇ ॥੫॥
                   
                    
                                              
                        संतों के चरणों की धूलि द्वारा पवित्र होकर मैंने पाप विनाशक प्रभु की सेवा की है॥ ५॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਭ ਛਡਾਈ ਖਸਮਿ ਆਪਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਭਈ ਠਰੂਰੇ ॥੬॥
                   
                    
                                              
                        भगवान् का ध्यान करने से सारी सृष्टि शांत हो जाती है। स्वयं प्रभु ने ही सारे संसार को विकारों के कष्टों से मुक्ति दिलाई है। ६॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਰਤੈ ਕੀਆ ਤਪਾਵਸੋ ਦੁਸਟ ਮੁਏ ਹੋਇ ਮੂਰੇ ॥੭॥
                   
                    
                                              
                        सृजनहार प्रभु ने यह न्याय किया है कि काम, क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि सभी दुष्ट मूक होकर प्राण त्याग गए हैं॥ ७॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਰਤਾ ਸਚਿ ਨਾਇ ਹਰਿ ਵੇਖੈ ਸਦਾ ਹਜੂਰੇ ॥੮॥੫॥੩੯॥੧॥੩੨॥੧॥੫॥੩੯॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! जो व्यक्ति सत्य-नाम में मग्न हो जाता है, वह प्रभु-परमेश्वर को सदैव अपने नेत्रों के समक्ष प्रत्यक्ष देखता है। ॥८॥५॥३९॥१॥३२॥१॥५॥३९॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਾਰਹ ਮਾਹਾ ਮਾਂਝ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪
                   
                    
                                              
                        बारह माहा मांझ महला पांचवें गुरु, चौथी तान द्वारा:५ घरु ४
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
                   
                    
                                              
                        ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਿਰਤਿ ਕਰਮ ਕੇ ਵੀਛੁੜੇ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਲਹੁ ਰਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        हे मेरे राम ! पूर्व जन्म के कृत-कर्मों के कारण हम आपसे विलग हो गए हैं, अतः कृपा करके हमें अपने साथ मिला लो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ ਦਹ ਦਿਸ ਭ੍ਰਮੇ ਥਕਿ ਆਏ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        हे प्रभु ! हम संसार के चारों कोनों एवं दसों दिशाओं में भटकने के पश्चात थककर आपकी शरण में आए हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਧੇਨੁ ਦੁਧੈ ਤੇ ਬਾਹਰੀ ਕਿਤੈ ਨ ਆਵੈ ਕਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        जिस प्रकार दूध न देने वाली गाय किसी काम की नहीं होती।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਲ ਬਿਨੁ ਸਾਖ ਕੁਮਲਾਵਤੀ ਉਪਜਹਿ ਨਾਹੀ ਦਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        जल के बिना फसल मुरझा जाती है और उससे कोई आय नहीं कर पाते।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਨਾਹ ਨ ਮਿਲੀਐ ਸਾਜਨੈ ਕਤ ਪਾਈਐ ਬਿਸਰਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        ठीक उसी प्रकार, यदि जीवात्मा अपने प्रभु-पति मित्र से न मिलें तो वह किस तरह विश्राम या शान्ति प्राप्त कर सकती है ?
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਹਰਿ ਕੰਤੁ ਨ ਪ੍ਰਗਟਈ ਭਠਿ ਨਗਰ ਸੇ ਗ੍ਰਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        जिस मनुष्य (आत्मा-वधू) के हृदय में ईश्वर प्रकट नहीं हुआ है, उसका शरीर और मन जलती हुई भट्टी के तुल्य है। 
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸ੍ਰਬ ਸੀਗਾਰ ਤੰਬੋਲ ਰਸ ਸਣੁ ਦੇਹੀ ਸਭ ਖਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        उसके लिए सभी हार-श्रृंगार एवं रस सहित शरीर के सभी अंग व्यर्थ हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਕੰਤ ਵਿਹੂਣੀਆ ਮੀਤ ਸਜਣ ਸਭਿ ਜਾਮ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु-परमेश्वर के बिना सभी मित्र एवं सखा यमदूत के तुल्य प्रतीत होते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀਆ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦੀਜੈ ਨਾਮੁ ॥
                   
                    
                                              
                        नानक की विनती है कि हे प्रभु ! अपनी कृपा करके मुझे अपना नाम प्रदान कीजिए।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸੁਆਮੀ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭ ਜਿਸ ਕਾ ਨਿਹਚਲ ਧਾਮ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        हे सतगुरु ! मुझे मेरे स्वामी प्रभु से मिला दो, जिसका धाम (वैकुण्ठ) सदैव शाश्वत है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਚੇਤਿ ਗੋਵਿੰਦੁ ਅਰਾਧੀਐ ਹੋਵੈ ਅਨੰਦੁ ਘਣਾ ॥
                   
                    
                                              
                        यदि चैत्र के महीने में गोविन्द का सिमरन किया जाए तो बड़ा आनन्द प्राप्त होता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੰਤ ਜਨਾ ਮਿਲਿ ਪਾਈਐ ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਭਣਾ ॥
                   
                    
                                              
                        संतजनों से मिलकर जिह्वा से नाम का जाप करने से हरि-प्रभु पाया जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਨਿ ਪਾਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣਾ ਆਏ ਤਿਸਹਿ ਗਣਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जिन्होंने हरि-प्रभु को प्राप्त कर लिया है, उनका ही जगत् में जन्म लेना सफल है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਜੀਵਣਾ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਜਣਾ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रभु के बिना एक क्षण भी जीवित रहने से मनुष्य जन्म व्यर्थ समझा जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਿਆ ਰਵਿਆ ਵਿਚਿ ਵਣਾ ॥
                   
                    
                                              
                        परमेश्वर जल, थल, गगन एवं वनों में सर्वत्र विद्यमान है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਈ ਕਿਤੜਾ ਦੁਖੁ ਗਣਾ ॥
                   
                    
                                              
                        यदि वह सर्वव्यापी ईश्वर किसी व्यक्ति के मन में निवास नहीं करता, तो उस व्यक्ति के आध्यात्मिक दुःख का वर्णन नहीं किया जा सकता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਿਨੀ ਰਾਵਿਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੂ ਤਿੰਨਾ ਭਾਗੁ ਮਣਾ ॥
                   
                    
                                              
                        जिन्होंने उस पारब्रह्म-प्रभु को स्मरण किया है, वे बड़े भाग्यवान हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਕੰਉ ਮਨੁ ਲੋਚਦਾ ਨਾਨਕ ਪਿਆਸ ਮਨਾ ॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! मेरा मन हरि के दर्शन करने हेतु अभिलाषी है और मेरे मन में उसके दर्शनों की तीव्र लालसा बनी हुई है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਚੇਤਿ ਮਿਲਾਏ ਸੋ ਪ੍ਰਭੂ ਤਿਸ ਕੈ ਪਾਇ ਲਗਾ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        मैं उसके चरण स्पर्श करता हूँ जो मुझे चैत्र के महीने में उस ईश्वर से मिला दे॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਵੈਸਾਖਿ ਧੀਰਨਿ ਕਿਉ ਵਾਢੀਆ ਜਿਨਾ ਪ੍ਰੇਮ ਬਿਛੋਹੁ ॥
                   
                    
                                              
                        वैसाख के महीने में वह जीव-स्त्रियां कैसे धैर्य करें, जिनका अपने प्रियतम से विरहा हुआ है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਰਿ ਸਾਜਨੁ ਪੁਰਖੁ ਵਿਸਾਰਿ ਕੈ ਲਗੀ ਮਾਇਆ ਧੋਹੁ ॥
                   
                    
                                              
                        अपने हरि-प्रभु साजन को भुलाकर वह झूठी माया के मोह में फँस गई हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਨ ਸੰਗਿ ਧਨਾ ਹਰਿ ਅਵਿਨਾਸੀ ਓਹੁ ॥
                   
                    
                                              
                        वें यह नहीं जानती कि मरणोपरांत पुत्र, पत्नी तथा धन-दौलत प्राणी के साथ नहीं जाते अपितु अविनाशी प्रभु ही उनका रक्षक बनता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਲਚਿ ਪਲਚਿ ਸਗਲੀ ਮੁਈ ਝੂਠੈ ਧੰਧੈ ਮੋਹੁ ॥
                   
                    
                                              
                        सम्पूर्ण सृष्टि झूठे कर्मों की लगन में मोह बद्ध उलझकर आध्यात्मिक रूप से नष्ट हो रही है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਕਸੁ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਅਗੈ ਲਈਅਹਿ ਖੋਹਿ ॥
                   
                    
                                              
                        जीव जब परलोक जाता है तो ईश्वर के नाम के अतिरिक्त सभी कर्म-धर्म छीन लिए जाते हैं। 
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਦਯੁ ਵਿਸਾਰਿ ਵਿਗੁਚਣਾ ਪ੍ਰਭ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        दयालु परमात्मा को विस्मृत करके मनुष्य नष्ट हो जाते हैं। हरि-प्रभु के अतिरिक्त अन्य कोई भी जीव का रक्षक नहीं बनता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪ੍ਰੀਤਮ ਚਰਣੀ ਜੋ ਲਗੇ ਤਿਨ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਸੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        जो लोग प्रेम और भक्ति के साथ भगवान् को स्मरण करते हैं, वे इस लोक में और परलोक में शोभा पातें हैं।