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ਆਠ ਪਹਰ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਧਿਆਈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਗੁਨ ਗਾਇਆ ॥
सासि सासि पारब्रहमु अराधी अपुने सतिगुर कै बलि जाई ॥२॥
हमने तो आठ प्रहर परब्रह्म का ध्यान किया है और सदैव उसके गुण गाते रहते हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰੇ ਪੂਰੇ ਮਨੋਰਥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੪॥
अगम अगोचरु बिअंतु सुआमी ता का अंतु न पाईऐ ॥
नानक कथन करते हैं कि परब्रह्म गुरु को पाकर मेरा मनोरथ पूरा हो गया है॥ ४॥ ४॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
लाहा खाटि होईऐ धनवंता अपुना प्रभू धिआईऐ ॥३॥
प्रभाती महला ५ ॥
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਕਿਲਬਿਖ ਸਭਿ ਨਾਸੇ ॥
सिमरत नामु किलबिख सभि नासे ॥
ईश्वर का स्मरण करने से सब पाप दूर हो जाते हैं।
ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਗੁਰਿ ਦੀਨੀ ਰਾਸੇ ॥
सचु नामु गुरि दीनी रासे ॥
गुरु ने सच्चे नाम की राशि प्रदान की है।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਦਰਗਹ ਸੋਭਾਵੰਤੇ ॥
प्रभ की दरगह सोभावंते ॥
भक्तजन प्रभु के दरबार में शोभा के पात्र बनते हैं और
ਸੇਵਕ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਸੋਹੰਤੇ ॥੧॥
सेवक सेवि सदा सोहंते ॥१॥
भक्ति करके सदैव सुन्दर लगते हैं।॥ १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
हरि हरि नामु जपहु मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई ! परमात्मा के नाम का जाप करो;
ਸਗਲੇ ਰੋਗ ਦੋਖ ਸਭਿ ਬਿਨਸਹਿ ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰਾ ਮਨ ਤੇ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगले रोग दोख सभि बिनसहि अगिआनु अंधेरा मन ते जाई ॥१॥ रहाउ ॥
इससे सब रोग दोष नाश हो जाते हैं और मन से अज्ञान का अंधेरा समाप्त हो जाता है॥ १॥रहाउ॥
ਜਨਮ ਮਰਨ ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਮੀਤ ॥
जनम मरन गुरि राखे मीत ॥
मित्र गुरु ने मुझे जन्म-मरण के चक्र से बचा लिया है और
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
हरि के नाम सिउ लागी प्रीति ॥
हमारी परमात्मा के नाम से प्रीति लग गई है।
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਗਏ ਕਲੇਸ ॥
कोटि जनम के गए कलेस ॥
इससे करोड़ों जन्मों के दुख-क्लेश मिट गए हैं।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਭਲ ਹੋਸ ॥੨॥
जो तिसु भावै सो भल होस ॥२॥
जो उसे मंजूर है, वह अच्छा ही होता है।॥ २॥
ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਹਉ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
तिसु गुर कउ हउ सद बलि जाई ॥
मैं उस गुरु को सदैव कुर्बान जाता हूँ,
ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥
जिसु प्रसादि हरि नामु धिआई ॥
जिसकी कृपा से परमात्मा का ध्यान किया है।
ਐਸਾ ਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ਵਡਭਾਗੀ ॥
ऐसा गुरु पाईऐ वडभागी ॥
सो ऐसा गुरु भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है,
ਜਿਸੁ ਮਿਲਤੇ ਰਾਮ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥੩॥
जिसु मिलते राम लिव लागी ॥३॥
जिसे मिलकर ईश्वर में लगन लगती है॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸੁਆਮੀ ॥ ਸਗਲ ਘਟਾ ਕੇ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
करि किरपा पारब्रहम सुआमी ॥
हे परब्रह्म स्वामी ! कृपा करो,तू सबके दिल की जानता है।
ਆਠ ਪਹਰ ਅਪੁਨੀ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਨਾਇ ॥੪॥੫॥
सगल घटा के अंतरजामी ॥
आठ प्रहर अपनी भक्ति में लगाकर रखो,"हे प्रभु ! दास नानक तेरी शरण में है॥ ४॥ ५॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आठ पहर अपुनी लिव लाइ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨੇ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਏ ॥
जनु नानकु प्रभ की सरनाइ ॥४॥५॥
प्रभु ने कृपा करके मुझे अपना बना लिया है और
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਪਨ ਕਉ ਦੀਏ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
मुझे हरिनाम जपने के लिए प्रदान कर दिया है।
ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਨ ਗਾਇ ਗੁਬਿੰਦ ॥
करि किरपा अपुने प्रभि कीए ॥
अब मैं आठ प्रहर ईश्वर का गुणगान करता रहता हूँ,
ਭੈ ਬਿਨਸੇ ਉਤਰੀ ਸਭ ਚਿੰਦ ॥੧॥
हरि का नामु जपन कउ दीए ॥
जिससे सब भय नाश हो गए हैं और मेरी सारी चिंता दूर हो गई है॥ १॥
ਉਬਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਨੀ ਲਾਗਿ ॥
आठ पहर गुन गाइ गुबिंद ॥
गुरु के चरणों में लगकर हम बन्धनों से मुक्त हो गए हैं।
ਜੋ ਗੁਰੁ ਕਹੈ ਸੋਈ ਭਲ ਮੀਠਾ ਮਨ ਕੀ ਮਤਿ ਤਿਆਗਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भै बिनसे उतरी सभ चिंद ॥१॥
जो गुरु कहता है, वही भला है और हमने मन की चतुराई त्याग दी है॥ १॥रहाउ॥
ਮਨਿ ਤਨਿ ਵਸਿਆ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥
उबरे सतिगुर चरनी लागि ॥
हमारे मन तन में केवल प्रभु ही बसा हुआ है,
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਕਿਛੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਹੋਈ ॥
जो गुरु कहै सोई भल मीठा मन की मति तिआगि ॥१॥ रहाउ ॥
जिस कारण कोई कलह-क्लेश एवं विध्न नहीं आता।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭੁ ਜੀਅ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥
मनि तनि वसिआ हरि प्रभु सोई ॥
प्रभु सदैव जीव के साथ रहता है और
ਉਤਰੀ ਮੈਲੁ ਨਾਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੨॥
कलि कलेस किछु बिघनु न होई ॥
प्रभु के नाम में लीन होने से पापों की मैल दूर हो जाती है॥ २॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਪਿਆਰੁ ॥
सदा सदा प्रभु जीअ कै संगि ॥
हमारा तो प्रभु के चरणों से प्रेम लगा हुआ है,
ਬਿਨਸੇ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਅਹੰਕਾਰ ॥
उतरी मैलु नाम कै रंगि ॥२॥
जिससे काम-क्रोध, अहंकार सब नष्ट हो गए हैं।
ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਨ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਜਾਨਾਂ ॥
चरन कमल सिउ लागो पिआरु ॥
मैंने तो प्रभु मिलन का ही मार्ग जाना है और
ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਸਿਉ ਮਨੁ ਮਾਨਾਂ ॥੩॥
बिनसे काम क्रोध अहंकार ॥
परमात्मा की भक्ति से मन संतुष्ट हो गया है।३॥
ਸੁਣਿ ਸਜਣ ਸੰਤ ਮੀਤ ਸੁਹੇਲੇ ॥
प्रभ मिलन का मारगु जानां ॥
हे सज्जनो, संतो, सुखदायी मित्रो ! सुनो;
ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਹਰਿ ਅਗਹ ਅਤੋਲੇ ॥
भाइ भगति हरि सिउ मनु मानां ॥३॥
हरिनाम रत्न असीम है, इसकी तुलना नहीं की जा सकती।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭੁ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਗਾਈਐ ॥
सुणि सजण संत मीत सुहेले ॥
तुम सदैव गुणों के भण्डार प्रभु का गुणगान करो,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਈਐ ॥੪॥੬॥
नामु रतनु हरि अगह अतोले ॥
नानक का कथन है कि वह भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है।॥ ४॥ ६॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सदा सदा प्रभु गुण निधि गाईऐ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
ਸੇ ਧਨਵੰਤ ਸੇਈ ਸਚੁ ਸਾਹਾ ॥
कहु नानक वडभागी पाईऐ ॥४॥६॥
वही लोग धनवान् हैं, वही प्रभु दरबार में सच्चे साहूकार माने जाते हैं,
ਹਰਿ ਕੀ ਦਰਗਹ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਹਾ ॥੧॥
प्रभाती महला ५ ॥
जिनकी हरिनाम पर पूर्ण निष्ठा होती है।॥ १॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਮਨ ਮੀਤ ॥
से धनवंत सेई सचु साहा ॥
हे मेरे मित्र मन ! हरिनाम का जाप करो;
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ਵਡਭਾਗੀ ਨਿਰਮਲ ਪੂਰਨ ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि की दरगह नामु विसाहा ॥१॥
पूर्ण गुरु उत्तम भाग्य से ही प्राप्त होता है, जिसकी रीति पूर्ण निर्मल है॥ १॥रहाउ॥
ਪਾਇਆ ਲਾਭੁ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ॥
हरि हरि नामु जपहु मन मीत ॥
तब लाभ प्राप्त होता है और शुभकामनाएं मिलती हैं
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਈ ॥੨॥
गुरु पूरा पाईऐ वडभागी निरमल पूरन रीति ॥१॥ रहाउ ॥
जब संतों की कृपा से ईश्वर का गुणगान किया जाता है ॥ २॥
ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਜੀਵਨ ਪਰਵਾਣੁ ॥
पाइआ लाभु वजी वाधाई ॥
तब जन्म सफल होता है और तभी जीवन मान्य होता है
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਮਾਣੁ ॥੩॥
संत प्रसादि हरि के गुन गाई ॥२॥
जब गुरु की कृपा से ईश्वर-भक्ति का आनंद पाया जाता है।॥ ३॥
ਬਿਨਸੇ ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਅਹੰਕਾਰ ॥
सफल जनमु जीवन परवाणु ॥
नानक फुरमान करते हैं कि मनुष्य के काम-क्रोध अहंकार सब नष्ट हो जाते हैं और
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਉਤਰਹਿ ਪਾਰਿ ॥੪॥੭॥
गुर परसादी हरि रंगु माणु ॥३॥
गुरु द्वारा वह संसार-समुद्र से पार उतर जाता है।॥ ४॥ ७॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिनसे काम क्रोध अहंकार ॥
प्रभाती महला ५ ॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪੂਰੀ ਤਾ ਕੀ ਕਲਾ ॥
नानक गुरमुखि उतरहि पारि ॥४॥७॥
पूर्ण गुरु की शक्ति भी पूर्ण है,