Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1337

Page 1337

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ प्रभाती महला ४ ॥ प्रभाती महला ४ ॥
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਓ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਮ ਮੁਏ ਜੀਵੇ ਹਰਿ ਜਪਿਭਾ ॥ गुर सतिगुरि नामु द्रिड़ाइओ हरि हरि हम मुए जीवे हरि जपिभा ॥ गुरु ने हरिनाम का जाप करवाया है, हरिनाम जपने से मृत प्राणी भी जिंदा हो गए हैं।
ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਬਿਖੁ ਡੁਬਦੇ ਬਾਹ ਦੇਇ ਕਢਿਭਾ ॥੧॥ धनु धंनु गुरू गुरु सतिगुरु पूरा बिखु डुबदे बाह देइ कढिभा ॥१॥ वह पूर्ण गुरु महान् है, धन्य है, उसने हाथ देकर विषम संसार-सागर में डूबने से बचा लिया है॥ १॥
ਜਪਿ ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਅਰਧਾਂਭਾ ॥ जपि मन राम नामु अरधांभा ॥ हे मन ! ईश्वर की अर्चना करो, केवल वही अर्चनीय है।
ਉਪਜੰਪਿ ਉਪਾਇ ਨ ਪਾਈਐ ਕਤਹੂ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਲਾਭਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उपज्मपि उपाइ न पाईऐ कतहू गुरि पूरै हरि प्रभु लाभा ॥१॥ रहाउ ॥ बेशक अनेकों उपाय आजमा लो, प्राप्ति नहीं हो सकती, दरअसल प्रभु की प्राप्ति केवल पूर्णगुरु द्वारा ही होती है॥ १॥रहाउ॥
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਸੁ ਰਾਮ ਰਸਾਇਣੁ ਰਸੁ ਪੀਆ ਗੁਰਮਤਿ ਰਸਭਾ ॥ राम नामु रसु राम रसाइणु रसु पीआ गुरमति रसभा ॥ राम नाम रसों का घर है। गुरु के उपदेशानुसार राम रसायन का रस पान करो।
ਲੋਹ ਮਨੂਰ ਕੰਚਨੁ ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰਿਓ ਗੁਰਿ ਹਰਿਭਾ ॥੨॥ लोह मनूर कंचनु मिलि संगति हरि उर धारिओ गुरि हरिभा ॥२॥ सत्संगत में शामिल होने से लोहे सरीखा व्यक्ति भी स्वर्ण समान श्रेष्ठ हो जाता है और गुरु की कृपा से मानव-जीव हरि को हृदय में धारण करता है॥ २॥
ਹਉਮੈ ਬਿਖਿਆ ਨਿਤ ਲੋਭਿ ਲੁਭਾਨੇ ਪੁਤ ਕਲਤ ਮੋਹਿ ਲੁਭਿਭਾ ॥ हउमै बिखिआ नित लोभि लुभाने पुत कलत मोहि लुभिभा ॥ मनुष्य प्रतिदिन अहंकार एवं विषय-विकारों में लोभायमान रहता है, वह अपने पुत्र-पत्नी के मोह में फंसा रहता है।
ਤਿਨ ਪਗ ਸੰਤ ਨ ਸੇਵੇ ਕਬਹੂ ਤੇ ਮਨਮੁਖ ਭੂੰਭਰ ਭਰਭਾ ॥੩॥ तिन पग संत न सेवे कबहू ते मनमुख भू्मभर भरभा ॥३॥ वह कभी संतों के चरणों की सेवा नहीं करता और मन के संकेतों पर चलता रहता है॥ ३॥
ਤੁਮਰੇ ਗੁਨ ਤੁਮ ਹੀ ਪ੍ਰਭ ਜਾਨਹੁ ਹਮ ਪਰੇ ਹਾਰਿ ਤੁਮ ਸਰਨਭਾ ॥ तुमरे गुन तुम ही प्रभ जानहु हम परे हारि तुम सरनभा ॥ हे प्रभु ! अपने गुणों को तुम ही जानते हो, हम तो हारकर तुम्हारी शरण में पड़ गए हैं।
ਜਿਉ ਜਾਨਹੁ ਤਿਉ ਰਾਖਹੁ ਸੁਆਮੀ ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਤੁਮਨਭਾ ॥੪॥੬॥ ਛਕਾ ੧ ॥ जिउ जानहु तिउ राखहु सुआमी जन नानकु दासु तुमनभा ॥४॥६॥ छका १ ॥ हे स्वामी ! ज्यों तुम्हें ठीक लगता है, वैसे ही हमें रखो, दास नानक तो तुम्हारी सेवा में सदैव लीन है॥ ४॥ ६॥ छका १॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਬਿਭਾਸ ਪੜਤਾਲ ਮਹਲਾ ੪ प्रभाती बिभास पड़ताल महला ४ प्रभाती बिभास पड़ताल महला ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਜਪਿ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨ ॥ जपि मन हरि हरि नामु निधान ॥ हे मन ! परमात्मा का नाम सुखों का घर है, अतः उसी का जाप करो,
ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨ ॥ हरि दरगह पावहि मान ॥ इसी से प्रभु-दरबार में सम्मान प्राप्त होता है।
ਜਿਨਿ ਜਪਿਆ ਤੇ ਪਾਰਿ ਪਰਾਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिनि जपिआ ते पारि परान ॥१॥ रहाउ ॥ जिसने भी परमात्मा का नाम जपा है, वह संसार-सागर से मुक्त हो गया है॥ १॥रहाउ॥
ਸੁਨਿ ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕਰਿ ਧਿਆਨੁ ॥ सुनि मन हरि हरि नामु करि धिआनु ॥ हे मन ! जरा सुनो; ईश्वर के नाम का मनन करो,
ਸੁਨਿ ਮਨ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਅਠਸਠਿ ਮਜਾਨੁ ॥ सुनि मन हरि कीरति अठसठि मजानु ॥ परमात्मा का कीर्तिगान अड़सठ तीर्थों के फल समान है,"
ਸੁਨਿ ਮਨ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨੁ ॥੧॥ सुनि मन गुरमुखि पावहि मानु ॥१॥ गुरु के द्वारा महिमागान करने से मान-सम्मान मिलता है।॥ १॥
ਜਪਿ ਮਨ ਪਰਮੇਸੁਰੁ ਪਰਧਾਨੁ ॥ जपि मन परमेसुरु परधानु ॥ हे मन ! संसार में परमेश्वर ही सर्वोपरि है,
ਖਿਨ ਖੋਵੈ ਪਾਪ ਕੋਟਾਨ ॥ खिन खोवै पाप कोटान ॥ अतः उसी की वंदना करो, वह पल में करोड़ों पाप नष्ट कर देता है।
ਮਿਲੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਗਵਾਨ ॥੨॥੧॥੭॥ मिलु नानक हरि भगवान ॥२॥१॥७॥ नानक विनय करते हैं कि नाम जपकर जीव भगवान में ही मिल जाता है॥ २॥१॥७॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ਬਿਭਾਸ प्रभाती महला ५ बिभास प्रभाती महला ५ बिभास
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮਨੁ ਹਰਿ ਕੀਆ ਤਨੁ ਸਭੁ ਸਾਜਿਆ ॥ मनु हरि कीआ तनु सभु साजिआ ॥ यह मन तन सर्वस्व ईश्वर ने बनाया है,
ਪੰਚ ਤਤ ਰਚਿ ਜੋਤਿ ਨਿਵਾਜਿਆ ॥ पंच तत रचि जोति निवाजिआ ॥ पंच तत्वों को मिलाकर उसने प्राण ज्योति स्थापित की है।
ਸਿਹਜਾ ਧਰਤਿ ਬਰਤਨ ਕਉ ਪਾਨੀ ॥ सिहजा धरति बरतन कउ पानी ॥ धरती को शय्या बना दिया और उपयोग के लिए पानी दे दिया।
ਨਿਮਖ ਨ ਵਿਸਾਰਹੁ ਸੇਵਹੁ ਸਾਰਿਗਪਾਨੀ ॥੧॥ निमख न विसारहु सेवहु सारिगपानी ॥१॥ अतः उस बनाने वाले मालिक को कदापि न भुलाओ, उसकी भक्ति में ही लीन रहो।॥ १॥
ਮਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਹੋਇ ਪਰਮ ਗਤੇ ॥ मन सतिगुरु सेवि होइ परम गते ॥ हे मन ! सतगुरु की सेवा से परमगति होती है।
ਹਰਖ ਸੋਗ ਤੇ ਰਹਹਿ ਨਿਰਾਰਾ ਤਾਂ ਤੂ ਪਾਵਹਿ ਪ੍ਰਾਨਪਤੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरख सोग ते रहहि निरारा तां तू पावहि प्रानपते ॥१॥ रहाउ ॥ यदि खुशी एवं गम से निर्लिप्त रहा जाए तो ही प्राणपति प्राप्त हो सकता है॥ १॥रहाउ॥
ਕਾਪੜ ਭੋਗ ਰਸ ਅਨਿਕ ਭੁੰਚਾਏ ॥ कापड़ भोग रस अनिक भुंचाए ॥ ईश्वर ने हमें सुन्दर वस्त्र, अनेक रस भोग प्रदान किए हैं।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਕੁਟੰਬ ਸਗਲ ਬਨਾਏ ॥ मात पिता कुट्मब सगल बनाए ॥ माता-पिता एवं पूरा परिवार बनाया है।
ਰਿਜਕੁ ਸਮਾਹੇ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮੀਤ ॥ रिजकु समाहे जलि थलि मीत ॥ वह रोज़ी रोटी देकर हमारी संभाल करता है, पानी, भूमि सर्वत्र हमारा मित्र की तरह ख्याल रखता है।
ਸੋ ਹਰਿ ਸੇਵਹੁ ਨੀਤਾ ਨੀਤ ॥੨॥ सो हरि सेवहु नीता नीत ॥२॥ सो ऐसे परमेश्वर की हर पल भक्ति करो॥ २॥
ਤਹਾ ਸਖਾਈ ਜਹ ਕੋਇ ਨ ਹੋਵੈ ॥ तहा सखाई जह कोइ न होवै ॥ जहाँ कोई सहायता करने वाला नहीं होता, वहीं मददगार बनता है।
ਕੋਟਿ ਅਪ੍ਰਾਧ ਇਕ ਖਿਨ ਮਹਿ ਧੋਵੈ ॥ कोटि अप्राध इक खिन महि धोवै ॥ वह करोड़ों पाप एक पल में धो देता है।
ਦਾਤਿ ਕਰੈ ਨਹੀ ਪਛੋੁਤਾਵੈ ॥ दाति करै नही पछोतावै ॥ वह देता ही रहता है, पर देकर पछतावा नहीं करता।
ਏਕਾ ਬਖਸ ਫਿਰਿ ਬਹੁਰਿ ਨ ਬੁਲਾਵੈ ॥੩॥ एका बखस फिरि बहुरि न बुलावै ॥३॥ वह इतना मेहरबान है कि एक ही दफा सबकुछ प्रदान कर देता है और मांगने के लिए पुनः नहीं बुलाता॥ ३॥


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