Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1332

Page 1332

ਪਸਰੀ ਕਿਰਣਿ ਰਸਿ ਕਮਲ ਬਿਗਾਸੇ ਸਸਿ ਘਰਿ ਸੂਰੁ ਸਮਾਇਆ ॥ जिस की रचना सो बिधि जाणै गुरमुखि गिआनु वीचारा ॥२॥ ज्ञान की किरण फैलने से हृदय कमल खिल उठा है और अन्तर्मन में ज्ञान की रोशनी हो गई है।
ਕਾਲੁ ਬਿਧੁੰਸਿ ਮਨਸਾ ਮਨਿ ਮਾਰੀ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ॥੩॥ कालु बिधुंसि मनसा मनि मारी गुर प्रसादि प्रभु पाइआ ॥३॥ काल को नाश करके वासनाएँ मन में ही दूर हो गई और गुरु की कृपा से प्रभु को पा लिया है॥ ३॥
ਅਤਿ ਰਸਿ ਰੰਗਿ ਚਲੂਲੈ ਰਾਤੀ ਦੂਜਾ ਰੰਗੁ ਨ ਕੋਈ ॥ अति रसि रंगि चलूलै राती दूजा रंगु न कोई ॥ मैं गहरे प्रेम रंग में लीन हूँ और उसे कोई अन्य रंग नहीं भाता।
ਨਾਨਕ ਰਸਨਿ ਰਸਾਏ ਰਾਤੇ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥੪॥੧੫॥ नानक रसनि रसाए राते रवि रहिआ प्रभु सोई ॥४॥१५॥ हे नानक ! यह जिव्हा हरिनाम में लीन है, वह प्रभु सर्वव्यापक है॥ ४॥ १५॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ प्रभाती महला १ ॥ प्रभाती महला १ ॥
ਬਾਰਹ ਮਹਿ ਰਾਵਲ ਖਪਿ ਜਾਵਹਿ ਚਹੁ ਛਿਅ ਮਹਿ ਸੰਨਿਆਸੀ ॥ बारह महि रावल खपि जावहि चहु छिअ महि संनिआसी ॥ बारह सम्प्रदायों में विभक्त योगी तथा दस सम्प्रदायों में बंटे हुए सन्यासी मृत्यु को ही प्राप्त होते हैं।
ਜੋਗੀ ਕਾਪੜੀਆ ਸਿਰਖੂਥੇ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਗਲਿ ਫਾਸੀ ॥੧॥ जोगी कापड़ीआ सिरखूथे बिनु सबदै गलि फासी ॥१॥ अनेक योगी, कापड़िया एवं सिर मुंडाकर रहने वाले भी प्रभु-शब्द बिना गले में मौत का फंदा ही डालते हैं।॥ १॥
ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਪੂਰੇ ਬੈਰਾਗੀ ॥ सबदि रते पूरे बैरागी ॥ जो प्रभु-शब्द में लीन रहते हैं, केवल वही पूर्ण वैराग्यवान हैं।
ਅਉਹਠਿ ਹਸਤ ਮਹਿ ਭੀਖਿਆ ਜਾਚੀ ਏਕ ਭਾਇ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अउहठि हसत महि भीखिआ जाची एक भाइ लिव लागी ॥१॥ रहाउ ॥ वे अपने हाथ में भिक्षा ग्रहण करते हैं और उनकी परमात्मा में लगन लगी रहती है॥ १॥ रहाउ॥
ਬ੍ਰਹਮਣ ਵਾਦੁ ਪੜਹਿ ਕਰਿ ਕਿਰਿਆ ਕਰਣੀ ਕਰਮ ਕਰਾਏ ॥ ब्रहमण वादु पड़हि करि किरिआ करणी करम कराए ॥ ब्राह्मण पाठ-पठन करते हैं और अनेक क्रिया-कर्म करते हैं।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਕਿਛੁ ਸੂਝੈ ਨਾਹੀ ਮਨਮੁਖੁ ਵਿਛੁੜਿ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ॥੨॥ बिनु बूझे किछु सूझै नाही मनमुखु विछुड़ि दुखु पाए ॥२॥ सत्य को जाने बिना उन्हें कुछ मालूम नहीं होता और मन के संकेतों पर चलकर ईश्वर से बिछुड़कर दुखी होते हैं।॥ २॥
ਸਬਦਿ ਮਿਲੇ ਸੇ ਸੂਚਾਚਾਰੀ ਸਾਚੀ ਦਰਗਹ ਮਾਨੇ ॥ सबदि मिले से सूचाचारी साची दरगह माने ॥ जिसे प्रभु-शब्द मिल जाता है, वही सत्यशील है और प्रभु के दरबार में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮਿ ਰਤਨਿ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਸਾਚਿ ਸਮਾਨੇ ॥੩॥ अनदिनु नामि रतनि लिव लागे जुगि जुगि साचि समाने ॥३॥ जिनकी दिन-रात हरिनाम में लगन लगी रहती है, वे युग-युग सत्य में ही समाहित रहते हैं।॥ ३॥
ਸਗਲੇ ਕਰਮ ਧਰਮ ਸੁਚਿ ਸੰਜਮ ਜਪ ਤਪ ਤੀਰਥ ਸਬਦਿ ਵਸੇ ॥ सगले करम धरम सुचि संजम जप तप तीरथ सबदि वसे ॥ सभी कर्म-धर्म, , संयम, जप-तपस्या प्रभु-शब्द में ही बसते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇਆ ਦੂਖ ਪਰਾਛਤ ਕਾਲ ਨਸੇ ॥੪॥੧੬॥ नानक सतिगुर मिलै मिलाइआ दूख पराछत काल नसे ॥४॥१६॥ गुरु नानक फुरमान करते हैं- जब सतगुरु से भेंट हो जाती है तो पाप-दुख एवं मृत्यु का भय नष्ट हो जाता है॥ ४॥ १६॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ प्रभाती महला १ ॥ प्रभाती महला १ ॥
ਸੰਤਾ ਕੀ ਰੇਣੁ ਸਾਧ ਜਨ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਤਰੁ ਤਾਰੀ ॥ संता की रेणु साध जन संगति हरि कीरति तरु तारी ॥ हे लोगो ! संतों की चरण-धूल लो, साधुजनों की संगत में परमात्मा का कीर्तिगान करो, इस तरह संसार के बन्धनों से मुक्त हो जाओ।
ਕਹਾ ਕਰੈ ਬਪੁਰਾ ਜਮੁ ਡਰਪੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਿਦੈ ਮੁਰਾਰੀ ॥੧॥ कहा करै बपुरा जमु डरपै गुरमुखि रिदै मुरारी ॥१॥ जिस गुरमुख के हृदय में ईश्वर है, फिर यम बेचारा भी डरकर क्या बिगाड़ सकता है॥ १॥
ਜਲਿ ਜਾਉ ਜੀਵਨੁ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ॥ जलि जाउ जीवनु नाम बिना ॥ ईश्वर के नाम बिना जीना तो अग्नि में जल जाने के समान है।
ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਾਪੁ ਜਪਉ ਜਪਮਾਲੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਵੈ ਸਾਦੁ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि जपि जापु जपउ जपमाली गुरमुखि आवै सादु मना ॥१॥ रहाउ ॥ परमात्मा का भजन करो, गुरु के द्वारा हरिनाम की माला फेरते रहो, इसी से मन को आनंद प्राप्त होता है।॥ १॥रहाउ॥
ਗੁਰ ਉਪਦੇਸ ਸਾਚੁ ਸੁਖੁ ਜਾ ਕਉ ਕਿਆ ਤਿਸੁ ਉਪਮਾ ਕਹੀਐ ॥ गुर उपदेस साचु सुखु जा कउ किआ तिसु उपमा कहीऐ ॥ जिसके पास गुरु के उपदेशानुसार सच्चा सुख है, उसकी क्या उपमा की जाए।
ਲਾਲ ਜਵੇਹਰ ਰਤਨ ਪਦਾਰਥ ਖੋਜਤ ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਹੀਐ ॥੨॥ लाल जवेहर रतन पदारथ खोजत गुरमुखि लहीऐ ॥२॥ गुरु के द्वारा ही प्रभु-नाम रूपी अमूल्य रत्न-जवाहर प्राप्त होता है।॥ २॥
ਚੀਨੈ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਧਨੁ ਸਾਚੌ ਏਕ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਵੈ ॥ चीनै गिआनु धिआनु धनु साचौ एक सबदि लिव लावै ॥ ज्ञानी, ध्यानशील ही सच्चे हरिनाम धन की पहचान करता है और केवल प्रभु-शब्द में लीन रहता है।
ਨਿਰਾਲੰਬੁ ਨਿਰਹਾਰੁ ਨਿਹਕੇਵਲੁ ਨਿਰਭਉ ਤਾੜੀ ਲਾਵੈ ॥੩॥ निराल्मबु निरहारु निहकेवलु निरभउ ताड़ी लावै ॥३॥ वह परमात्मा में समाधि लगाता है, जो निरावलंय, भोजन पानी से रहित है, वासनाओं से परे एवं भय से परे है॥ ३॥
ਸਾਇਰ ਸਪਤ ਭਰੇ ਜਲ ਨਿਰਮਲਿ ਉਲਟੀ ਨਾਵ ਤਰਾਵੈ ॥ साइर सपत भरे जल निरमलि उलटी नाव तरावै ॥ उसका मन, बुद्धि एवं पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ निर्मल जल से भर जाती हैं और मोह-माया से उलट रहकर जीवन-नैया चलाता है।
ਬਾਹਰਿ ਜਾਤੌ ਠਾਕਿ ਰਹਾਵੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵੈ ॥੪॥ बाहरि जातौ ठाकि रहावै गुरमुखि सहजि समावै ॥४॥ वह संसार के मोह से मन को काबू में रखता है और सहज-स्वाभाविक ही सत्य में विलीन हो जाता है।॥ ४॥
ਸੋ ਗਿਰਹੀ ਸੋ ਦਾਸੁ ਉਦਾਸੀ ਜਿਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥ सो गिरही सो दासु उदासी जिनि गुरमुखि आपु पछानिआ ॥ वास्तव में वही गृहस्थी, सेवक एवं त्यागी है, जिसने गुरु के द्वारा आत्मज्ञान को जान लिया है।
ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਦੂਜਾ ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੫॥੧੭॥ नानकु कहै अवरु नही दूजा साच सबदि मनु मानिआ ॥५॥१७॥ नानक कहते हैं कि जब सच्चे प्रभु में मन विश्वस्त हो जाता है, तो अन्य कोई दूसरा नहीं होता॥ ५॥ १७॥
ਰਾਗੁ ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੩ ਚਉਪਦੇ रागु प्रभाती महला ३ चउपदे रागु प्रभाती महला ३ चउपदे
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲਾ ਕੋਈ ਬੂਝੈ ਸਬਦੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥ गुरमुखि विरला कोई बूझै सबदे रहिआ समाई ॥ कोई विरला पुरुष ही इस रहस्य को गुरु से समझता है कि परमात्मा कण-कण में व्याप्त है।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ਸਾਚਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧॥ नामि रते सदा सुखु पावै साचि रहै लिव लाई ॥१॥ वह हरिनाम में लीन रहकर सदैव सुख प्राप्त करता है और प्रभु-भक्ति में ही रत रहता है॥ १॥


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