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ਆਪੇ ਖੇਲ ਕਰੇ ਸਭ ਕਰਤਾ ਐਸਾ ਬੂਝੈ ਕੋਈ ॥੩॥
इस सच्चाई को समझ लो कि परमात्मा स्वयं ही लीला करता है।॥ ३॥
ਨਾਉ ਪ੍ਰਭਾਤੈ ਸਬਦਿ ਧਿਆਈਐ ਛੋਡਹੁ ਦੁਨੀ ਪਰੀਤਾ ॥
दुनिया का मोह-प्रेम छोड़कर प्रभातकाल ब्रह्म-शब्द का ध्यान करो।
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸਾ ਜਗਿ ਹਾਰਿਆ ਤਿਨਿ ਜੀਤਾ ॥੪॥੯॥
गुरु नानक विनती करते हैं कि ईश्वर का सेवक जीत गया है और जगत उसके सन्मुख हार गया है॥ ४॥ ९॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
ਮਨੁ ਮਾਇਆ ਮਨੁ ਧਾਇਆ ਮਨੁ ਪੰਖੀ ਆਕਾਸਿ ॥
मन मायावादी है, चलायमान है और आकाश के पक्षी की मानिंद उड़ता है।
ਤਸਕਰ ਸਬਦਿ ਨਿਵਾਰਿਆ ਨਗਰੁ ਵੁਠਾ ਸਾਬਾਸਿ ॥
जब जीव शब्द द्वारा कामादिक लुटेरों का निवारण करता है तो शरीर रूपी नगरी का सुशील नागरिक बन जाता है।
ਜਾ ਤੂ ਰਾਖਹਿ ਰਾਖਿ ਲੈਹਿ ਸਾਬਤੁ ਹੋਵੈ ਰਾਸਿ ॥੧॥
हे परमेश्वर ! जिसे तू मोह-माया से बचा लेता है, उसी की नाम-राशि सार्थक होती है।॥ १॥
ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਨਿਧਿ ਮੇਰੈ ॥
हरिनाम रूपी रत्नों का मेरे पास सुखों का भण्डार है।
ਗੁਰਮਤਿ ਦੇਹਿ ਲਗਉ ਪਗਿ ਤੇਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु ने यही शिक्षा दी है कि तेरे चरणों में लीन रहूँ॥ १॥रहाउ॥
ਮਨੁ ਜੋਗੀ ਮਨੁ ਭੋਗੀਆ ਮਨੁ ਮੂਰਖੁ ਗਾਵਾਰੁ ॥
मन योगी एवं भोगी है तथा मन मूर्ख एवं गंवार भी है।
ਮਨੁ ਦਾਤਾ ਮਨੁ ਮੰਗਤਾ ਮਨ ਸਿਰਿ ਗੁਰੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥
यह मन ही दानी और भिखारी है। मन पर गुरु परमेश्वर नियंता है।
ਪੰਚ ਮਾਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਐਸਾ ਬ੍ਰਹਮੁ ਵੀਚਾਰੁ ॥੨॥
ब्रह्म का चिंतन करके कामादिक पाँच दुष्टों को मारकर ही सुख प्राप्त करता है॥ २॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਏਕੁ ਵਖਾਣੀਐ ਕਹਉ ਨ ਦੇਖਿਆ ਜਾਇ ॥
घट घट में एक परमेश्वर के व्यापक होने की बात की जाती है, पर कहने मात्र से देखा नहीं जाता।
ਖੋਟੋ ਪੂਠੋ ਰਾਲੀਐ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਪਤਿ ਜਾਇ ॥
खोटे लोगों को उलटा लटका कर गर्भ योनि के दुखों में धकेल दिया जाता है और प्रभु नाम के बिना प्रतिष्ठा नहीं रहती।
ਜਾ ਤੂ ਮੇਲਹਿ ਤਾ ਮਿਲਿ ਰਹਾਂ ਜਾਂ ਤੇਰੀ ਹੋਇ ਰਜਾਇ ॥੩॥
हे परमेश्वर ! जब तेरी रज़ा होती है तो तू स्वयं ही मिला लेता है॥ ३॥
ਜਾਤਿ ਜਨਮੁ ਨਹ ਪੂਛੀਐ ਸਚ ਘਰੁ ਲੇਹੁ ਬਤਾਇ ॥
ईश्वर के घर में जाति-धर्म की पूछ-पड़ताल नहीं होती।
ਸਾ ਜਾਤਿ ਸਾ ਪਤਿ ਹੈ ਜੇਹੇ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥
मनुष्य जैसे कर्म करता है, वैसे ही जाति एवं प्रतिष्ठा का हकदार बनता है।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖੁ ਕਾਟੀਐ ਨਾਨਕ ਛੂਟਸਿ ਨਾਇ ॥੪॥੧੦॥
गुरु नानक का फुरमान है कि ईश्वर के नाम स्मरण से मुक्ति मिलती है और जन्म-मरण के सब दुख कट जाते हैं।॥ ४॥ १०॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
ਜਾਗਤੁ ਬਿਗਸੈ ਮੂਠੋ ਅੰਧਾ ॥
अज्ञान में अंधा बना हुआ मनुष्य स्वयं को जाग्रत मानकर खुशी महसूस करता है।
ਗਲਿ ਫਾਹੀ ਸਿਰਿ ਮਾਰੇ ਧੰਧਾ ॥
काम-धंधों में लीन रहकर इसके गले में मोह-माया का फन्दा पड़ जाता है।
ਆਸਾ ਆਵੈ ਮਨਸਾ ਜਾਇ ॥
अनेक आशाएँ लेकर आता है और मन में ही लेकर संसार से चला जाता है।
ਉਰਝੀ ਤਾਣੀ ਕਿਛੁ ਨ ਬਸਾਇ ॥੧॥
इसकी जीवन-डोर उलझी रहती है और इसका कोई वश नहीं चलता॥ १॥
ਜਾਗਸਿ ਜੀਵਣ ਜਾਗਣਹਾਰਾ ॥
हे जीवनदाता ! एकमात्र तू ही जाग्रत है,
ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭੰਡਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तू सुखों का सागर है और तेरे नामामृत के भण्डार भरे हुए हैं।॥ १॥रहाउ॥
ਕਹਿਓ ਨ ਬੂਝੈ ਅੰਧੁ ਨ ਸੂਝੈ ਭੋਂਡੀ ਕਾਰ ਕਮਾਈ ॥
अन्धा मनुष्य कोई शिक्षा नहीं समझता, उसे कोई होश नहीं रहती और कुटिल कर्म ही करता है।
ਆਪੇ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰੇਮ ਪਰਮੇਸੁਰੁ ਕਰਮੀ ਮਿਲੈ ਵਡਾਈ ॥੨॥
ईश्वर स्वयं ही प्रेम भक्ति प्रदान करता है और उसकी कृपा से ही शोभा मिलती है।॥ २॥
ਦਿਨੁ ਦਿਨੁ ਆਵੈ ਤਿਲੁ ਤਿਲੁ ਛੀਜੈ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਘਟਾਈ ॥
जिन्दगी के दिन आकर चले जाते हैं, उम्र कम हो जाती है, लेकिन फिर भी माया का मोह नहीं घटता।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਬੂਡੋ ਠਉਰ ਨ ਪਾਵੈ ਜਬ ਲਗ ਦੂਜੀ ਰਾਈ ॥੩॥
जब तक द्वैतभाव रहता है, गुरु के बिना जीव डूबता है और उसे कोई ठौर-ठिकाना प्राप्त नहीं होता॥ ३॥
ਅਹਿਨਿਸਿ ਜੀਆ ਦੇਖਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੈ ਸੁਖੁ ਦੁਖੁ ਪੁਰਬਿ ਕਮਾਈ ॥
ईश्वर रात-दिन रोजी देकर जीवों का पोषण करता है और कर्मानुसार सुख दुख देता है।
ਕਰਮਹੀਣੁ ਸਚੁ ਭੀਖਿਆ ਮਾਂਗੈ ਨਾਨਕ ਮਿਲੈ ਵਡਾਈ ॥੪॥੧੧॥
नानक विनती करते हैं कि हे परमेश्वर ! मैं बदनसीब तो सच्चे-नाम की भिक्षा मांगता हूँ, जिससे मुझे बड़ाई मिल जाए॥ ४॥ ११॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
ਮਸਟਿ ਕਰਉ ਮੂਰਖੁ ਜਗਿ ਕਹੀਆ ॥
अगर मैं चुप रहता हूँ तो दुनिया मुझे मूर्ख कहती है,
ਅਧਿਕ ਬਕਉ ਤੇਰੀ ਲਿਵ ਰਹੀਆ ॥
परन्तु अधिक बोलने से तेरा ध्यान दूटता है।
ਭੂਲ ਚੂਕ ਤੇਰੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥
भूल-चूक तो तेरे दरबार में क्षमा होगी,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੈਸੇ ਆਚਾਰ ॥੧॥
नाम-स्मरण बिना कोई आचरण क्योंकर योग्य माना जा सकता है॥ १॥
ਐਸੇ ਝੂਠਿ ਮੁਠੇ ਸੰਸਾਰਾ ॥
झूठ में संसार लुट रहा है।
ਨਿੰਦਕੁ ਨਿੰਦੈ ਮੁਝੈ ਪਿਆਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
निंदक जिसकी निंदा करता है, वह मुझे प्यारा लगता है॥ १॥रहाउ॥
ਜਿਸੁ ਨਿੰਦਹਿ ਸੋਈ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥
जिसकी निंदा करता है, वही असल में जीवन-युक्ति जानता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦੇ ਦਰਿ ਨੀਸਾਣੈ ॥
वह गुरु के उपदेश द्वारा प्रभु के द्वार पर मान्य होता है और
ਕਾਰਣ ਨਾਮੁ ਅੰਤਰਗਤਿ ਜਾਣੈ ॥
अन्तर्मन में परमात्मा को मानता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋਈ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥੨॥
जिस पर ईश्वर की करुणा-दृष्टि होती है, वही जीवन-युक्ति को समझता है॥ २॥
ਮੈ ਮੈਲੌ ਊਜਲੁ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥
मैं पापों से मलिन हूँ, केवल ईश्वर ही पावन है।
ਊਤਮੁ ਆਖਿ ਨ ਊਚਾ ਹੋਇ ॥
उत्तम कहने से कोई बड़ा नहीं हो जाता।
ਮਨਮੁਖੁ ਖੂਲਿੑ ਮਹਾ ਬਿਖੁ ਖਾਇ ॥
स्वेच्छाचारी विकारों का जहर सेवन करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਸੁ ਰਾਚੈ ਨਾਇ ॥੩॥
पर जो गुरुमुख बन जाता है, वह परमात्मा के नाम स्मरण में लीन रहता है॥ ३॥
ਅੰਧੌ ਬੋਲੌ ਮੁਗਧੁ ਗਵਾਰੁ ॥
मूर्ख एवं गंवार व्यक्ति बुरे वचन ही बोलता है।