Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1306

Page 1306

ਤਟਨ ਖਟਨ ਜਟਨ ਹੋਮਨ ਨਾਹੀ ਡੰਡਧਾਰ ਸੁਆਉ ॥੧॥ कानड़ा महला ५ ॥ तीर्थ स्नान, अध्ययन, अध्यापन दान देना अथवा लेना इन षट कर्मो, लम्बी जटाएँ धारण करने, होम-यज्ञ और योगियों की तरह दण्ड लिए घूमना, इनका कोई लाभ नहीं॥१॥
ਜਤਨ ਭਾਂਤਨ ਤਪਨ ਭ੍ਰਮਨ ਅਨਿਕ ਕਥਨ ਕਥਤੇ ਨਹੀ ਥਾਹ ਪਾਈ ਠਾਉ ॥ प्रभ कहन मलन दहन लहन गुर मिले आन नही उपाउ ॥१॥ रहाउ ॥ अनेक प्रकार के यत्नों, तपस्या, देश भ्रमण, अनेक बातें करने का कोई फायदा अथवा ठौर नहीं।
ਸੋਧਿ ਸਗਰ ਸੋਧਨਾ ਸੁਖੁ ਨਾਨਕਾ ਭਜੁ ਨਾਉ ॥੨॥੨॥੩੯॥ सोधि सगर सोधना सुखु नानका भजु नाउ ॥२॥२॥३९॥ हे नानक ! भलीभांति विश्लेषण करने के पश्चात् यही माना है कि परमात्मा के भजन से ही सच्चा सुख मिलता है।॥२॥२॥३६॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੯ कानड़ा महला ५ घरु ९ कानड़ा महला ५ घरु ९
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨੁ ਭਗਤਿ ਬਛਲੁ ਭੈ ਹਰਨ ਤਾਰਨ ਤਰਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पतित पावनु भगति बछलु भै हरन तारन तरन ॥१॥ रहाउ ॥ हे जिज्ञासुओ ! ईश्वर पतित-पापी लोगों को पावन करने वाला है, भक्तवत्सल, सब भय हरण करने वाला एवं मुक्तिप्रदाता है॥१॥रहाउ॥
ਨੈਨ ਤਿਪਤੇ ਦਰਸੁ ਪੇਖਿ ਜਸੁ ਤੋਖਿ ਸੁਨਤ ਕਰਨ ॥੧॥ नैन तिपते दरसु पेखि जसु तोखि सुनत करन ॥१॥ उसके दर्शनों से आँखें तृप्त हो जाती हैं और यश सुनने से कान आनंदित हो जाते हैं।॥१॥
ਪ੍ਰਾਨ ਨਾਥ ਅਨਾਥ ਦਾਤੇ ਦੀਨ ਗੋਬਿਦ ਸਰਨ ॥ प्रान नाथ अनाथ दाते दीन गोबिद सरन ॥ वह हमारे प्राणों का नाथ, दीन-दुखियों, अनाथों का दाता है, शरण देने वाला है।
ਆਸ ਪੂਰਨ ਦੁਖ ਬਿਨਾਸਨ ਗਹੀ ਓਟ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਚਰਨ ॥੨॥੧॥੪੦॥ आस पूरन दुख बिनासन गही ओट नानक हरि चरन ॥२॥१॥४०॥ गुरु नानक का कथन है कि ईश्वर सब आशाएँ पूरी करने वाला है, दुख-तकलीफ का नाश करने वाला है।अतः उसी के चरणों का आसरा ले लिया है।॥२॥१॥४०॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५॥
ਚਰਨ ਸਰਨ ਦਇਆਲ ਠਾਕੁਰ ਆਨ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥ चरन सरन दइआल ठाकुर आन नाही जाइ ॥ मैं दयालु प्रभु के चरणों की शरण में रहता हूँ, अतः अन्य नहीं जाता।
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਬਿਰਦੁ ਸੁਆਮੀ ਉਧਰਤੇ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पतित पावन बिरदु सुआमी उधरते हरि धिआइ ॥१॥ रहाउ ॥ पतितों को पावन करना स्वामी का स्वभाव है, जो परमात्मा के ध्यान में लीन रहते हैं, उनकी मुक्ति हो जाती है।॥१॥रहाउ॥
ਸੈਸਾਰ ਗਾਰ ਬਿਕਾਰ ਸਾਗਰ ਪਤਿਤ ਮੋਹ ਮਾਨ ਅੰਧ ॥ सैसार गार बिकार सागर पतित मोह मान अंध ॥ यह संसार-सागर विकारों के कीचड़ से भरा हुआ है, मुझ सरीखा पतित मोह-अभिमान में अंधा बना हुआ है और माया के धंधों से लिप्त रहता है।
ਬਿਕਲ ਮਾਇਆ ਸੰਗਿ ਧੰਧ ॥ बिकल माइआ संगि धंध ॥ प्रभु स्वयं ही हाथ थामकर निकालने वाला है, हे गोविंद ! मुझे बचा लो॥१॥
ਕਰੁ ਗਹੇ ਪ੍ਰਭ ਆਪਿ ਕਾਢਹੁ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਗੋਬਿੰਦ ਰਾਇ ॥੧॥ करु गहे प्रभ आपि काढहु राखि लेहु गोबिंद राइ ॥१॥ अनाथों का नाथ, भक्तजनों का स्वामी करोड़ों ही पाप दूर करने वाला है।
ਅਨਾਥ ਨਾਥ ਸਨਾਥ ਸੰਤਨ ਕੋਟਿ ਪਾਪ ਬਿਨਾਸ ॥ अनाथ नाथ सनाथ संतन कोटि पाप बिनास ॥ मन में उसी के दर्शनों की प्यास बनी हुई है।
ਮਨਿ ਦਰਸਨੈ ਕੀ ਪਿਆਸ ॥ मनि दरसनै की पिआस ॥ प्रभु गुणों का पूर्ण भण्डार है।
ਪ੍ਰਭ ਪੂਰਨ ਗੁਨਤਾਸ ॥ प्रभ पूरन गुनतास ॥ वह कृपानिधि सदैव दया करने वाला है, संसार का पालक है।
ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਗੁਪਾਲ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥੨॥੨॥੪੧॥ क्रिपाल दइआल गुपाल नानक हरि रसना गुन गाइ ॥२॥२॥४१॥ अतः नानक तो हरदम अपनी जीभ से परमात्मा के गुण गाता है॥२॥२॥४१॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५॥
ਵਾਰਿ ਵਾਰਉ ਅਨਿਕ ਡਾਰਉ ॥ ਸੁਖੁ ਪ੍ਰਿਅ ਸੁਹਾਗ ਪਲਕ ਰਾਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वारि वारउ अनिक डारउ ॥ मैं अनेकों सुख कुर्बान कर दूँ
ਕਨਿਕ ਮੰਦਰ ਪਾਟ ਸੇਜ ਸਖੀ ਮੋਹਿ ਨਾਹਿ ਇਨ ਸਿਉ ਤਾਤ ॥੧॥ सुखु प्रिअ सुहाग पलक रात ॥१॥ रहाउ ॥ अपने पति-प्रभु के रात के थोड़े-से सुहाग-सुख पर॥१॥रहाउ॥
ਮੁਕਤ ਲਾਲ ਅਨਿਕ ਭੋਗ ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਨਾਨਕ ਹਾਤ ॥ कनिक मंदर पाट सेज सखी मोहि नाहि इन सिउ तात ॥१॥ हे सत्संगी सखी ! मुझे स्वर्ण सरीखा, सुन्दर घर, रेशमी कपड़ों, सुखदायक सेज इत्यादि इन से कोई रुचि नहीं॥१॥
ਰੂਖੋ ਭੋਜਨੁ ਭੂਮਿ ਸੈਨ ਸਖੀ ਪ੍ਰਿਅ ਸੰਗਿ ਸੂਖਿ ਬਿਹਾਤ ॥੨॥੩॥੪੨॥ मुकत लाल अनिक भोग बिनु नाम नानक हात ॥ नानक का कथन है कि परमात्मा के नाम बिना अनेक भोग-विलास एवं हीरे-मोती सब नाशवान हैं।
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रूखो भोजनु भूमि सैन सखी प्रिअ संगि सूखि बिहात ॥२॥३॥४२॥ हे सखी ! अपने पति-प्रभु के साथ रुखा-सूखा भोजन एवं भूमि पर शयन इत्यादि ही सुखमय है॥२॥३॥४२॥
ਅਹੰ ਤੋਰੋ ਮੁਖੁ ਜੋਰੋ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५॥
ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਕਰਤ ਮਨੁ ਲੋਰੋ ॥ अहं तोरो मुखु जोरो ॥ अभिमान छोड़कर प्रभु-भक्ति में लगन लगाओ।
ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੋ ਮੋਰੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु गुरु करत मनु लोरो ॥ गुरु-गुरु जपना ही मन की आकांक्षा बनाओ।
ਗ੍ਰਿਹਿ ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਆਗਨਿ ਚੈਨਾ ਤੋਰੋ ਰੀ ਤੋਰੋ ਪੰਚ ਦੂਤਨ ਸਿਉ ਸੰਗੁ ਤੋਰੋ ॥੧॥ प्रिअ प्रीति पिआरो मोरो ॥१॥ रहाउ ॥ प्रिय प्रभु से प्रेम प्रीति लगाए रखो॥१॥ रहाउ॥
ਆਇ ਨ ਜਾਇ ਬਸੇ ਨਿਜ ਆਸਨਿ ਊਂਧ ਕਮਲ ਬਿਗਸੋਰੋ ॥ ग्रिहि सेज सुहावी आगनि चैना तोरो री तोरो पंच दूतन सिउ संगु तोरो ॥१॥ कामादिक पाँच दुष्टों से नाता तोड़ लो, इससे हृदय-घर सुहावनी सेज बन जाएगा और मन रूपी आंगन में सुख-शान्ति हो जाएगी॥१॥
ਛੁਟਕੀ ਹਉਮੈ ਸੋਰੋ ॥ आइ न जाइ बसे निज आसनि ऊंध कमल बिगसोरो ॥ आवागमन मिट जाएगा, अपने मूल घर में निवास बन जाएगा और हृदय रूपी अर्ध कमल विकसित हो जाएगा।
ਗਾਇਓ ਰੀ ਗਾਇਓ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਗੁਨੀ ਗਹੇਰੋ ॥੨॥੪॥੪੩॥ छुटकी हउमै सोरो ॥ तुम्हारे अहम् का शोर समाप्त हो जाएगा।
ਕਾਨੜਾ ਮਃ ੫ ਘਰੁ ੯ ॥ गाइओ री गाइओ प्रभ नानक गुनी गहेरो ॥२॥४॥४३॥ नानक का कथन है कि हे सत्संगी सखी ! हमने गुणों के गहरे सागर प्रभु का स्तुतिगान किया है॥२॥४॥४३॥
ਤਾਂ ਤੇ ਜਾਪਿ ਮਨਾ ਹਰਿ ਜਾਪਿ ॥ कानड़ा मः ५ घरु ९ ॥ कानड़ा मः ५ घरु ९॥
ਜੋ ਸੰਤ ਬੇਦ ਕਹਤ ਪੰਥੁ ਗਾਖਰੋ ਮੋਹ ਮਗਨ ਅਹੰ ਤਾਪ ॥ ਰਹਾਉ ॥ तां ते जापि मना हरि जापि ॥ हे मन ! परमात्मा का जाप करो,
ਜੋ ਰਾਤੇ ਮਾਤੇ ਸੰਗਿ ਬਪੁਰੀ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਸੰਤਾਪ ॥੧॥ जो संत बेद कहत पंथु गाखरो मोह मगन अहं ताप ॥ रहाउ ॥ संत-महात्मा जनों एवं वेदों का कथन है कि जीवन-मार्ग बहुत कठिन है, जीव मोह, अभिमान के ताप में ही मगन रहता है, तभी तो जाप करने के लिए कहा है॥रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਸੋਊ ਜਨੁ ਉਧਰੈ ਜਿਸਹਿ ਉਧਾਰਹੁ ਆਪ ॥ जो राते माते संगि बपुरी माइआ मोह संताप ॥१॥ जो माया के मोह में लीन रहते हैं, वे दुखी ही रहते हैं।॥१॥
ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਮੋਹ ਭੈ ਭਰਮਾ ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਪ੍ਰਤਾਪ ॥੨॥੫॥੪੪॥ नामु जपत सोऊ जनु उधरै जिसहि उधारहु आप ॥ परमात्मा का नाम जपकर उसी व्यक्ति का उंद्धार होता है, जिसका वह स्वयं उद्धार करता है।


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