Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1304

Page 1304

ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਲੋਭਿ ਬਿਆਪਿਓ ਜਨਮ ਹੀ ਕੀ ਖਾਨਿ ॥ बिखै रस सिउ आसकत मूड़े काहे सुख मानि ॥१॥ मूर्ख लोग विषय-विकारों के रस में आसक्त रहते हैं, फिर भला कैसे सुख पा सकते हैं।॥१॥
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਸਰਨਿ ਆਇਓ ਉਧਰੁ ਨਾਨਕ ਜਾਨਿ ॥੨॥੧੨॥੩੧॥ पतित पावन सरनि आइओ उधरु नानक जानि ॥२॥१२॥३१॥ नानक की विनती है कि यह समझ लो कि पतितपावन परमेश्वर की शरण में आने से मुक्ति होती॥२॥१२॥३१॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कानड़ा महला ५ ॥ कानड़ा महला ५ ॥
ਅਵਿਲੋਕਉ ਰਾਮ ਕੋ ਮੁਖਾਰਬਿੰਦ ॥ अविलोकउ राम को मुखारबिंद ॥ मैं परमात्मा के मुखमण्डल को निहारता हूँ।
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਰਤਨੁ ਪਾਇਓ ਬਿਸਰੀ ਸਭ ਚਿੰਦ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ खोजत खोजत रतनु पाइओ बिसरी सभ चिंद ॥१॥ रहाउ ॥ खोजते-खोजते मैंने हरिनाम रत्न पा लिया है, जिससे मेरी सब चिन्ताएँ दूर हो गई हैं।॥१॥रहाउ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਰਿਦੈ ਧਾਰਿ ॥ चरन कमल रिदै धारि ॥ जब से परमात्मा के चरण-कमल को हृदय में धारण किया है,
ਉਤਰਿਆ ਦੁਖੁ ਮੰਦ ॥੧॥ उतरिआ दुखु मंद ॥१॥ दुख-क्लेश दूर हो गया है॥१॥
ਰਾਜ ਧਨੁ ਪਰਵਾਰੁ ਮੇਰੈ ਸਰਬਸੋ ਗੋਬਿੰਦ ॥ राज धनु परवारु मेरै सरबसो गोबिंद ॥ मेरा राज्य, धन, परिवार इत्यादि सर्वस्व ईश्वर ही है।
ਸਾਧਸੰਗਮਿ ਲਾਭੁ ਪਾਇਓ ਨਾਨਕ ਫਿਰਿ ਨ ਮਰੰਦ ॥੨॥੧੩॥੩੨॥ साधसंगमि लाभु पाइओ नानक फिरि न मरंद ॥२॥१३॥३२॥ हे नानक ! साधु-पुरुषों की संगत में ऐसा लाभ पाया है कि जन्म-मरण से मुक्त हो गया हँ॥२॥१३॥३२॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੫ कानड़ा महला ५ घरु ५ कानड़ा महला ५ घरु ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਪ੍ਰਭ ਪੂਜਹੋ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਿ ॥ प्रभ पूजहो नामु अराधि ॥ प्रभु की पूजा करो, हरिनाम की आराधना करो,
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਨੀ ਲਾਗਿ ॥ गुर सतिगुर चरनी लागि ॥ गुरु के चरणों में तल्लीन रहो।
ਹਰਿ ਪਾਵਹੁ ਮਨੁ ਅਗਾਧਿ ॥ हरि पावहु मनु अगाधि ॥ निष्ठापूर्वक मन में ही परमात्मा को पा लो।
ਜਗੁ ਜੀਤੋ ਹੋ ਹੋ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾਧਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जगु जीतो हो हो गुर किरपाधि ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु की कृपा से जगत को जीत लो॥१॥रहाउ॥
ਅਨਿਕ ਪੂਜਾ ਮੈ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਖੋਜੀ ਸਾ ਪੂਜਾ ਜਿ ਹਰਿ ਭਾਵਾਸਿ ॥ अनिक पूजा मै बहु बिधि खोजी सा पूजा जि हरि भावासि ॥ मैंने अनेक प्रकार से पूजा-अर्चना की है, लेकिन पूजा वही है, जो परमात्मा को अच्छी लगती है।
ਮਾਟੀ ਕੀ ਇਹ ਪੁਤਰੀ ਜੋਰੀ ਕਿਆ ਏਹ ਕਰਮ ਕਮਾਸਿ ॥ माटी की इह पुतरी जोरी किआ एह करम कमासि ॥ मिट्टी के पुतले मानव में क्या बल है कि वह कोई कर्म कर सके।
ਪ੍ਰਭ ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਜਿਸੁ ਮਾਰਗਿ ਪਾਵਹੁ ਸੋ ਤੁਧੁ ਜੰਤ ਮਿਲਾਸਿ ॥੧॥ प्रभ बाह पकरि जिसु मारगि पावहु सो तुधु जंत मिलासि ॥१॥ प्रभु बांह पकड़कर जिस मार्ग पर लगा देता है, जीव उसी में मिल जाता है।॥१॥
ਅਵਰ ਓਟ ਮੈ ਕੋਇ ਨ ਸੂਝੈ ਇਕ ਹਰਿ ਕੀ ਓਟ ਮੈ ਆਸ ॥ अवर ओट मै कोइ न सूझै इक हरि की ओट मै आस ॥ मुझे अन्य कोई आसरा नहीं सूझता, केवल ईश्वर का आसरा ही मेरी आशा है।
ਕਿਆ ਦੀਨੁ ਕਰੇ ਅਰਦਾਸਿ ॥ किआ दीनु करे अरदासि ॥ यह दीन क्या प्रार्थना करे,
ਜਉ ਸਭ ਘਟਿ ਪ੍ਰਭੂ ਨਿਵਾਸ ॥ जउ सभ घटि प्रभू निवास ॥ जब सब में प्रभु ही व्याप्त है।
ਪ੍ਰਭ ਚਰਨਨ ਕੀ ਮਨਿ ਪਿਆਸ ॥ प्रभ चरनन की मनि पिआस ॥ मुझे तो प्रभु के चरणों की मन में प्यास लगी हुई है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਕਹੀਅਤੁ ਹੈ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰਾ ਹਉ ਬਲਿ ਬਲਿ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਸ ॥੨॥੧॥੩੩॥ जन नानक दासु कहीअतु है तुम्हरा हउ बलि बलि सद बलि जास ॥२॥१॥३३॥ नानक का कथन है कि हे प्रभु ! मैं तुम्हारा दास कहलाता हूँ और सदैव तुझ पर कुर्बान जाता हूँ॥२॥१॥३३॥
ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੬ कानड़ा महला ५ घरु ६ कानड़ा महला ५ घरु ६
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਜਗਤ ਉਧਾਰਨ ਨਾਮ ਪ੍ਰਿਅ ਤੇਰੈ ॥ जगत उधारन नाम प्रिअ तेरै ॥ हे प्रभु ! तेरा नाम ही संसार का उद्धार करने वाला है।
ਨਵ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹਰਿ ਕੇਰੈ ॥ नव निधि नामु निधानु हरि केरै ॥ हरि का नाम ही नवनिधि एवं सुखों का भण्डार है।
ਹਰਿ ਰੰਗ ਰੰਗ ਰੰਗ ਅਨੂਪੇਰੈ ॥ हरि रंग रंग रंग अनूपेरै ॥ अनेक रंगों में रंगा हुआ प्रभु अद्वितीय है।
ਕਾਹੇ ਰੇ ਮਨ ਮੋਹਿ ਮਗਨੇਰੈ ॥ काहे रे मन मोहि मगनेरै ॥ हे मन ! क्यों मोह-माया में मग्न है।
ਨੈਨਹੁ ਦੇਖੁ ਸਾਧ ਦਰਸੇਰੈ ॥ नैनहु देखु साध दरसेरै ॥ आँखों से साधु-पुरुषों के दर्शन करो।
ਸੋ ਪਾਵੈ ਜਿਸੁ ਲਿਖਤੁ ਲਿਲੇਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सो पावै जिसु लिखतु लिलेरै ॥१॥ रहाउ ॥ जिसके भाग्य में लिखा होता है, वही प्रभु को पाता है।॥१॥रहाउ॥|
ਸੇਵਉ ਸਾਧ ਸੰਤ ਚਰਨੇਰੈ ॥ सेवउ साध संत चरनेरै ॥ मैं साधु-संतों के चरणों की सेवा करता हूँ,
ਬਾਂਛਉ ਧੂਰਿ ਪਵਿਤ੍ਰ ਕਰੇਰੈ ॥ बांछउ धूरि पवित्र करेरै ॥ उनकी चरण-धूल की अभिलाषा करता हूँ, जो पवित्र कर देती है।
ਅਠਸਠਿ ਮਜਨੁ ਮੈਲੁ ਕਟੇਰੈ ॥ अठसठि मजनु मैलु कटेरै ॥ यह अड़सठ तीर्थों में स्नान करने के फल समान है, जो पापों की मैल काट देती है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਧਿਆਵਹੁ ਮੁਖੁ ਨਹੀ ਮੋਰੈ ॥ सासि सासि धिआवहु मुखु नही मोरै ॥ मैं श्वास-श्वास से ईश्वर का ध्यान करता हूँ और उससे विमुख नहीं होता।
ਕਿਛੁ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲੈ ਲਾਖ ਕਰੋਰੈ ॥ किछु संगि न चालै लाख करोरै ॥ लाखों-करोड़ों कुछ भी साथ नहीं जाता और
ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਕੋ ਨਾਮੁ ਅੰਤਿ ਪੁਕਰੋਰੈ ॥੧॥ प्रभ जी को नामु अंति पुकरोरै ॥१॥ प्रभु का नाम ही अंत में सहायक होता है॥१॥
ਮਨਸਾ ਮਾਨਿ ਏਕ ਨਿਰੰਕੇਰੈ ॥ मनसा मानि एक निरंकेरै ॥ मन में केवल निरंकार का मनन करो और
ਸਗਲ ਤਿਆਗਹੁ ਭਾਉ ਦੂਜੇਰੈ ॥ सगल तिआगहु भाउ दूजेरै ॥ द्वैतभाव सब त्याग दो।
ਕਵਨ ਕਹਾਂ ਹਉ ਗੁਨ ਪ੍ਰਿਅ ਤੇਰੈ ॥ कवन कहां हउ गुन प्रिअ तेरै ॥ हे प्रभु! मैं तेरे कौन-से गुण का वर्णन करूँ,
ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਏਕ ਟੁਲੇਰੈ ॥ बरनि न साकउ एक टुलेरै ॥ मैं तो तेरे एक गुण का भी वर्णन नहीं कर सकता।
ਦਰਸਨ ਪਿਆਸ ਬਹੁਤੁ ਮਨਿ ਮੇਰੈ ॥ दरसन पिआस बहुतु मनि मेरै ॥ मेरे मन में तेरे दर्शनों की तीव्र लालसा है,
ਮਿਲੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜਗਤ ਗੁਰ ਕੇਰੈ ॥੨॥੧॥੩੪॥ मिलु नानक देव जगत गुर केरै ॥२॥१॥३४॥ हे जगत्-गुरु ! नानक को आन मिलो॥२॥१॥३४॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top