Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1210

Page 1210

ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਮਨਮੋਹਨ ਲਾਲਨ ਸੁਖਦਾਈ ਸਰਬਾਂਗੈ ॥ गुण निधान मनमोहन लालन सुखदाई सरबांगै ॥ गुणों का भण्डार प्रियतम प्रभु सुख प्रदान करने वाला है, सर्वव्यापी है।
ਗੁਰਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਪਾਹਿ ਪਠਾਇਓ ਮਿਲਹੁ ਸਖਾ ਗਲਿ ਲਾਗੈ ॥੨॥੫॥੨੮॥ गुरि नानक प्रभ पाहि पठाइओ मिलहु सखा गलि लागै ॥२॥५॥२८॥ नानक का कथन है कि गुरु ने मुझे प्रभु के पास भेजा है, ताकि उस सखा को गले लगाकर मिलो ॥ २ ॥५॥ २८ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅਬ ਮੋਰੋ ਠਾਕੁਰ ਸਿਉ ਮਨੁ ਮਾਨਾਂ ॥ अब मोरो ठाकुर सिउ मनु मानां ॥ अब मेरा मन ठाकुर जी के प्रति पूर्ण विश्वस्त हो गया है।
ਸਾਧ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦਇਆਲ ਭਏ ਹੈ ਇਹੁ ਛੇਦਿਓ ਦੁਸਟੁ ਬਿਗਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ साध क्रिपाल दइआल भए है इहु छेदिओ दुसटु बिगाना ॥१॥ रहाउ ॥ साधु पुरुष हम पर दयालु कृपालु हुए हैं और उन्होंने द्विधाभाव को काट डाला है॥१॥ रहाउ॥।
ਤੁਮ ਹੀ ਸੁੰਦਰ ਤੁਮਹਿ ਸਿਆਨੇ ਤੁਮ ਹੀ ਸੁਘਰ ਸੁਜਾਨਾ ॥ तुम ही सुंदर तुमहि सिआने तुम ही सुघर सुजाना ॥ हे प्रभु ! तुम ही सुन्दर, तुम ही समझदार और तुम ही चतुर हो।
ਸਗਲ ਜੋਗ ਅਰੁ ਗਿਆਨ ਧਿਆਨ ਇਕ ਨਿਮਖ ਨ ਕੀਮਤਿ ਜਾਨਾਂ ॥੧॥ सगल जोग अरु गिआन धिआन इक निमख न कीमति जानां ॥१॥ सभी योग, ज्ञान एवं ध्यान भी हरिनाम की महत्ता को समझ नहीं सके ॥१॥
ਤੁਮ ਹੀ ਨਾਇਕ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਹਿ ਛਤ੍ਰਪਤਿ ਤੁਮ ਪੂਰਿ ਰਹੇ ਭਗਵਾਨਾ ॥ तुम ही नाइक तुम्हहि छत्रपति तुम पूरि रहे भगवाना ॥ तुम ही नायक, तुम ही छत्रपति हो, हे भगवान ! तुम संसार के कण कण में विद्यमान हो।
ਪਾਵਉ ਦਾਨੁ ਸੰਤ ਸੇਵਾ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨਾਂ ॥੨॥੬॥੨੯॥ पावउ दानु संत सेवा हरि नानक सद कुरबानां ॥२॥६॥२९॥ नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु ! मैं संतों की सेवा का ही दान चाहता हूँ और तुझ पर सदा कुर्बान हूँ॥२॥६॥ २६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਚੀਤਿ ਆਏ ਪ੍ਰਿਅ ਰੰਗਾ ॥ मेरै मनि चीति आए प्रिअ रंगा ॥ प्रियतम प्रभु का प्रेम मेरे मन में अवस्थित हो गया है।
ਬਿਸਰਿਓ ਧੰਧੁ ਬੰਧੁ ਮਾਇਆ ਕੋ ਰਜਨਿ ਸਬਾਈ ਜੰਗਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बिसरिओ धंधु बंधु माइआ को रजनि सबाई जंगा ॥१॥ रहाउ ॥ इससे माया का बन्धन व संसारिक कार्य भूल गया है और जीवन-रात्रि विकारों से संधर्ष करते व्यतीत होती है॥१॥रहाउ॥।
ਹਰਿ ਸੇਵਉ ਹਰਿ ਰਿਦੈ ਬਸਾਵਉ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਸਤਸੰਗਾ ॥ हरि सेवउ हरि रिदै बसावउ हरि पाइआ सतसंगा ॥ परमात्मा की अर्चना करता हूँ, उसे दिल में बसाता हूँ और सत्संग में परमात्मा को ही पाया है।
ਐਸੋ ਮਿਲਿਓ ਮਨੋਹਰੁ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਸੁਖ ਪਾਏ ਮੁਖ ਮੰਗਾ ॥੧॥ ऐसो मिलिओ मनोहरु प्रीतमु सुख पाए मुख मंगा ॥१॥ अब ऐसा प्रियतम प्रभु मिला है, जिससे मनवांछित सुख प्राप्त हुआ है॥१॥
ਪ੍ਰਿਉ ਅਪਨਾ ਗੁਰਿ ਬਸਿ ਕਰਿ ਦੀਨਾ ਭੋਗਉ ਭੋਗ ਨਿਸੰਗਾ ॥ प्रिउ अपना गुरि बसि करि दीना भोगउ भोग निसंगा ॥ गुरु ने प्रिय प्रभु को मेरे वश में कर दिया है और निश्चिंत होकर उससे आनंद करती हूँ।
ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਨਾਨਕ ਭਉ ਮਿਟਿਆ ਹਰਿ ਪਾਇਓ ਪਾਠੰਗਾ ॥੨॥੭॥੩੦॥ निरभउ भए नानक भउ मिटिआ हरि पाइओ पाठंगा ॥२॥७॥३०॥ हे नानक ! प्रभु को पाकर निर्भय हो गया हूँ और सारा भय मिट गया है॥२॥७॥ ३० ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਕੇ ਦਰਸਨ ਕਉ ਕੁਰਬਾਨੀ ॥ हरि जीउ के दरसन कउ कुरबानी ॥ मैं श्री हरि के दर्शन को कुर्बान जाती हूँ।
ਬਚਨ ਨਾਦ ਮੇਰੇ ਸ੍ਰਵਨਹੁ ਪੂਰੇ ਦੇਹਾ ਪ੍ਰਿਅ ਅੰਕਿ ਸਮਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बचन नाद मेरे स्रवनहु पूरे देहा प्रिअ अंकि समानी ॥१॥ रहाउ ॥ मेरे कानों में उसके वचनों का सुरीला स्वर बज रहा है और यह शरीर प्रियतम के चरणों में लीन है॥१॥रहाउ॥।
ਛੂਟਰਿ ਤੇ ਗੁਰਿ ਕੀਈ ਸੋੁਹਾਗਨਿ ਹਰਿ ਪਾਇਓ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਨੀ ॥ छूटरि ते गुरि कीई सोहागनि हरि पाइओ सुघड़ सुजानी ॥ परित्यक्त स्त्री से गुरु ने मुझे सुहागिन बना दिया है और चतुर प्रभु को मैंने प्राप्त कर लिया है।
ਜਿਹ ਘਰ ਮਹਿ ਬੈਸਨੁ ਨਹੀ ਪਾਵਤ ਸੋ ਥਾਨੁ ਮਿਲਿਓ ਬਾਸਾਨੀ ॥੧॥ जिह घर महि बैसनु नही पावत सो थानु मिलिओ बासानी ॥१॥ जिस घर में बैठना भी नसीब नहीं हो रहा था, अब वह स्थान बसने के लिए मिल गया है॥१॥
ਉਨ੍ ਕੈ ਬਸਿ ਆਇਓ ਭਗਤਿ ਬਛਲੁ ਜਿਨਿ ਰਾਖੀ ਆਨ ਸੰਤਾਨੀ ॥ उन्ह कै बसि आइओ भगति बछलु जिनि राखी आन संतानी ॥ जिसने संतों की मान-प्रतिष्ठा को बचाया है, वह भक्तवत्सल उन भक्तजनों के ही वश में आया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਸਭ ਚੂਕੀ ਕਾਣਿ ਲੋੁਕਾਨੀ ॥੨॥੮॥੩੧॥ कहु नानक हरि संगि मनु मानिआ सभ चूकी काणि लोकानी ॥२॥८॥३१॥ हे नानक ! श्री हरि के संग मेरा मन तृप्त हो गया है और दुनिया की निर्भरता सब चूक गई है॥२॥८॥ ३१ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅਬ ਮੇਰੋ ਪੰਚਾ ਤੇ ਸੰਗੁ ਤੂਟਾ ॥ अब मेरो पंचा ते संगु तूटा ॥ अब मेरा पाँच विकारों से संबंध टूट गया है।
ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਭਏ ਮਨਿ ਆਨਦ ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਛੂਟਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दरसनु देखि भए मनि आनद गुर किरपा ते छूटा ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु की कृपा से मैं मुक्त हो गया हूँ और हरि-दर्शन करके मन को आनंद प्राप्त हुआ है॥१॥ रहाउ॥।
ਬਿਖਮ ਥਾਨ ਬਹੁਤ ਬਹੁ ਧਰੀਆ ਅਨਿਕ ਰਾਖ ਸੂਰੂਟਾ ॥ बिखम थान बहुत बहु धरीआ अनिक राख सूरूटा ॥ मानव देह बहुत विषम स्थान है, जिसे पार पाना मुश्किल है और काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी योद्धा इसे संरक्षण देते हैं।
ਬਿਖਮ ਗਾਰ੍ਹ ਕਰੁ ਪਹੁਚੈ ਨਾਹੀ ਸੰਤ ਸਾਨਥ ਭਏ ਲੂਟਾ ॥੧॥ बिखम गार्ह करु पहुचै नाही संत सानथ भए लूटा ॥१॥ इसके चारों तरफ गहरी खाई है, जहाँ हाथ नहीं पहुँचता। परन्तु जब संत सहायता करते हैं तो ये खत्म हो जाते हैं।॥१॥
ਬਹੁਤੁ ਖਜਾਨੇ ਮੇਰੈ ਪਾਲੈ ਪਰਿਆ ਅਮੋਲ ਲਾਲ ਆਖੂਟਾ ॥ बहुतु खजाने मेरै पालै परिआ अमोल लाल आखूटा ॥ मुझे नाम रूपी अमूल्य रत्नों एवं सुखों का अक्षुण्ण भण्डार प्राप्त हुआ है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਤਉ ਮਨ ਮਹਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਘੂਟਾ ॥੨॥੯॥੩੨॥ जन नानक प्रभि किरपा धारी तउ मन महि हरि रसु घूटा ॥२॥९॥३२॥ हे नानक ! जब प्रभु की कृपा हुई तो मन में हरिनाम रस का पान किया ॥२॥६॥ ३२ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅਬ ਮੇਰੋ ਠਾਕੁਰ ਸਿਉ ਮਨੁ ਲੀਨਾ ॥ अब मेरो ठाकुर सिउ मनु लीना ॥ अब मेरा मन मालिक की भक्ति में लीन है।
ਪ੍ਰਾਨ ਦਾਨੁ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਦੀਆ ਉਰਝਾਇਓ ਜਿਉ ਜਲ ਮੀਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रान दानु गुरि पूरै दीआ उरझाइओ जिउ जल मीना ॥१॥ रहाउ ॥ पूरे गुरु ने प्राणों का दान दिया है और जल में मछली की तरह उसमें तल्लीन हूँ॥१॥रहाउ॥।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮਦ ਮਤਸਰ ਇਹ ਅਰਪਿ ਸਗਲ ਦਾਨੁ ਕੀਨਾ ॥ काम क्रोध लोभ मद मतसर इह अरपि सगल दानु कीना ॥ काम, क्रोध, लोभ एवं अभिमान इत्यादि इन सबको छोड़ दिया है।
ਮੰਤ੍ਰ ਦ੍ਰਿੜਾਇ ਹਰਿ ਅਉਖਧੁ ਗੁਰਿ ਦੀਓ ਤਉ ਮਿਲਿਓ ਸਗਲ ਪ੍ਰਬੀਨਾ ॥੧॥ मंत्र द्रिड़ाइ हरि अउखधु गुरि दीओ तउ मिलिओ सगल प्रबीना ॥१॥ जब गुरु ने मंत्र प्रदान कर हरिनाम रूपी औषधि दी तो प्रवीण प्रभु मिल गया ॥१॥
ਗ੍ਰਿਹੁ ਤੇਰਾ ਤੂ ਠਾਕੁਰੁ ਮੇਰਾ ਗੁਰਿ ਹਉ ਖੋਈ ਪ੍ਰਭੁ ਦੀਨਾ ॥ ग्रिहु तेरा तू ठाकुरु मेरा गुरि हउ खोई प्रभु दीना ॥ यह घर तेरा है, तू मेरा मालिक है, गुरु ने अहम्-भावना को खो कर प्रभु से मिला दिया है।


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