Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1209

Page 1209

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ਦੁਪਦੇ ਘਰੁ ੪ सारग महला ५ दुपदे घरु ४ सारग महला ५ दुपदे घरु ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮੋਹਨ ਘਰਿ ਆਵਹੁ ਕਰਉ ਜੋਦਰੀਆ ॥ मोहन घरि आवहु करउ जोदरीआ ॥ हे प्रभु! मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ, घर चले आओ।
ਮਾਨੁ ਕਰਉ ਅਭਿਮਾਨੈ ਬੋਲਉ ਭੂਲ ਚੂਕ ਤੇਰੀ ਪ੍ਰਿਅ ਚਿਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मानु करउ अभिमानै बोलउ भूल चूक तेरी प्रिअ चिरीआ ॥१॥ रहाउ ॥ चाहे मान करती हूँ, अभिमान में बोलती हूँ, इन भूल-चूक के बावजूद भी तेरी दासी हूँ॥१॥रहाउ॥।
ਨਿਕਟਿ ਸੁਨਉ ਅਰੁ ਪੇਖਉ ਨਾਹੀ ਭਰਮਿ ਭਰਮਿ ਦੁਖ ਭਰੀਆ ॥ निकटि सुनउ अरु पेखउ नाही भरमि भरमि दुख भरीआ ॥ मैंने सुना है कि तू निकट है और देखती नहीं, भ्रम में पड़कर दुखों से भरी हुई हूँ।
ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੁਰ ਲਾਹਿ ਪਾਰਦੋ ਮਿਲਉ ਲਾਲ ਮਨੁ ਹਰੀਆ ॥੧॥ होइ क्रिपाल गुर लाहि पारदो मिलउ लाल मनु हरीआ ॥१॥ जब गुरु कृपालु होकर अज्ञान का पर्दा उतार देता है तो प्रभु को मिलकर मन खिल उठता है १॥
ਏਕ ਨਿਮਖ ਜੇ ਬਿਸਰੈ ਸੁਆਮੀ ਜਾਨਉ ਕੋਟਿ ਦਿਨਸ ਲਖ ਬਰੀਆ ॥ एक निमख जे बिसरै सुआमी जानउ कोटि दिनस लख बरीआ ॥ यदि एक पल भी स्वामी भूलता है तो वह समय करोड़ों दिवस एवं लाख बरस मानती हूँ।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੀ ਭੀਰ ਜਉ ਪਾਈ ਤਉ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਮਿਰੀਆ ॥੨॥੧॥੨੪॥ साधसंगति की भीर जउ पाई तउ नानक हरि संगि मिरीआ ॥२॥१॥२४॥ हे नानक ! जब साधु पुरुषों की संगत प्राप्त हुई तो मेरा प्रभु मुझे मिल गया॥२॥१॥ २४॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅਬ ਕਿਆ ਸੋਚਉ ਸੋਚ ਬਿਸਾਰੀ ॥ अब किआ सोचउ सोच बिसारी ॥ अब भला क्या सोचना है, हमने सब परेशानियों को भुला दिया है।
ਕਰਣਾ ਸਾ ਸੋਈ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ਦੇਹਿ ਨਾਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ करणा सा सोई करि रहिआ देहि नाउ बलिहारी ॥१॥ रहाउ ॥ जो ईश्वर ने करना है, वही कर रहा है। हे जगदीश्वर ! मुझे नाम प्रदान करो, मैं तुझ पर कुर्बान हूँ॥१॥रहाउ॥।
ਚਹੁ ਦਿਸ ਫੂਲਿ ਰਹੀ ਬਿਖਿਆ ਬਿਖੁ ਗੁਰ ਮੰਤ੍ਰੁ ਮੂਖਿ ਗਰੁੜਾਰੀ ॥ चहु दिस फूलि रही बिखिआ बिखु गुर मंत्रु मूखि गरुड़ारी ॥ चारों दिशाओं में मोह-माया का जहर फैला हुआ है और गुरु का मंत्र गारुड़ी है, जो इस जहर को खत्म कर सकता है।
ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖਿਓ ਕਰਿ ਅਪੁਨਾ ਜਿਉ ਜਲ ਕਮਲਾ ਅਲਿਪਾਰੀ ॥੧॥ हाथ देइ राखिओ करि अपुना जिउ जल कमला अलिपारी ॥१॥ ईश्वर ने अपना सेवक मानकर हाथ देकर बचाया है, ज्यों कमल जल में अलिप्त रहता है॥१॥
ਹਉ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਮੈ ਕਿਆ ਹੋਸਾ ਸਭ ਤੁਮ ਹੀ ਕਲ ਧਾਰੀ ॥ हउ नाही किछु मै किआ होसा सभ तुम ही कल धारी ॥ मैं नांचीज कुछ भी नहीं हूँ और भला मुझसे क्या हो सकता है, सब तुम्हारी ही शक्ति कार्य कर रही है।
ਨਾਨਕ ਭਾਗਿ ਪਰਿਓ ਹਰਿ ਪਾਛੈ ਰਾਖੁ ਸੰਤ ਸਦਕਾਰੀ ॥੨॥੨॥੨੫॥ नानक भागि परिओ हरि पाछै राखु संत सदकारी ॥२॥२॥२५॥ हे नानक ! ईश्वर की भक्ति में तल्लीन हो गया हूँ और संतों के सदके बचाव हुआ है॥२ ॥२ ॥ २५ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅਬ ਮੋਹਿ ਸਰਬ ਉਪਾਵ ਬਿਰਕਾਤੇ ॥ अब मोहि सरब उपाव बिरकाते ॥ अब मैंने सभी उपाय पूर्णतया त्याग दिए हैं,
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਏਕਸੁ ਤੇ ਮੇਰੀ ਗਾਤੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ करण कारण समरथ सुआमी हरि एकसु ते मेरी गाते ॥१॥ रहाउ ॥ स्वामी प्रभु सब करने-करवाने में समर्थ है और एक यही मेरी मुक्ति कर सकता है॥१॥रहाउ॥।
ਦੇਖੇ ਨਾਨਾ ਰੂਪ ਬਹੁ ਰੰਗਾ ਅਨ ਨਾਹੀ ਤੁਮ ਭਾਂਤੇ ॥ देखे नाना रूप बहु रंगा अन नाही तुम भांते ॥ मैंने विभिन्न प्रकार के बहुत सारे रूप रंग देखे हैं, परन्तु तेरे जैसा कोई नहीं।
ਦੇਂਹਿ ਅਧਾਰੁ ਸਰਬ ਕਉ ਠਾਕੁਰ ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਸੁਖਦਾਤੇ ॥੧॥ देंहि अधारु सरब कउ ठाकुर जीअ प्रान सुखदाते ॥१॥ हे प्रभु ! तू सबका मालिक है, आसरा देने वाला है और तू ही प्राणों का सुखदाता है॥१॥
ਭ੍ਰਮਤੌ ਭ੍ਰਮਤੌ ਹਾਰਿ ਜਉ ਪਰਿਓ ਤਉ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਚਰਨ ਪਰਾਤੇ ॥ भ्रमतौ भ्रमतौ हारि जउ परिओ तउ गुर मिलि चरन पराते ॥ भटकते-भटकते जब हार गया तो गुरु को मिलकर उसके चरणों में पड़ गया।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੈ ਸਰਬ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਇਹ ਸੂਖਿ ਬਿਹਾਨੀ ਰਾਤੇ ॥੨॥੩॥੨੬॥ कहु नानक मै सरब सुखु पाइआ इह सूखि बिहानी राते ॥२॥३॥२६॥ नानक कथन करते हैं कि इस तरह मैंने सर्व सुखों को पा लिया और अब मेरी जीवन-रात्रि सुखमय व्यतीत हो रही है॥२॥३॥ २६ ॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਅਬ ਮੋਹਿ ਲਬਧਿਓ ਹੈ ਹਰਿ ਟੇਕਾ ॥ अब मोहि लबधिओ है हरि टेका ॥ अब मुझे भगवान का आश्रय प्राप्त हो गया है।
ਗੁਰ ਦਇਆਲ ਭਏ ਸੁਖਦਾਈ ਅੰਧੁਲੈ ਮਾਣਿਕੁ ਦੇਖਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर दइआल भए सुखदाई अंधुलै माणिकु देखा ॥१॥ रहाउ ॥ सुखदाता गुरु (मुझ पर) दयालु हुआ तो इस अंधे ने नाम रूपी माणिक्य देख लिया ॥१॥ रहाउं॥
ਕਾਟੇ ਅਗਿਆਨ ਤਿਮਰ ਨਿਰਮਲੀਆ ਬੁਧਿ ਬਿਗਾਸ ਬਿਬੇਕਾ ॥ काटे अगिआन तिमर निरमलीआ बुधि बिगास बिबेका ॥ उसने निर्मल बुद्धि और विवेक प्रदान कर मेरा अज्ञान का अंधेरा काट दिया है।
ਜਿਉ ਜਲ ਤਰੰਗ ਫੇਨੁ ਜਲ ਹੋਈ ਹੈ ਸੇਵਕ ਠਾਕੁਰ ਭਏ ਏਕਾ ॥੧॥ जिउ जल तरंग फेनु जल होई है सेवक ठाकुर भए एका ॥१॥ ज्यों जल की तरंग और जल एक ही होते हैं, वैसे ही यह सेवक और मालिक एक रूप हो गए हैं॥१॥
ਜਹ ਤੇ ਉਠਿਓ ਤਹ ਹੀ ਆਇਓ ਸਭ ਹੀ ਏਕੈ ਏਕਾ ॥ जह ते उठिओ तह ही आइओ सभ ही एकै एका ॥ जहाँ से उत्पन्न हुआ, वहाँ ही विलीन हो गया और सब एक ही एक हो गया है।
ਨਾਨਕ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਆਇਓ ਸ੍ਰਬ ਠਾਈ ਪ੍ਰਾਣਪਤੀ ਹਰਿ ਸਮਕਾ ॥੨॥੪॥੨੭॥ नानक द्रिसटि आइओ स्रब ठाई प्राणपती हरि समका ॥२॥४॥२७॥ नानक कथन करते हैं कि प्राणपति हरि समान रूप से हर जगह पर दृष्टिगत हो रहा है॥२॥४॥२७॥
ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सारग महला ५ ॥ सारग महला ५ ॥
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਏਕੈ ਹੀ ਪ੍ਰਿਅ ਮਾਂਗੈ ॥ मेरा मनु एकै ही प्रिअ मांगै ॥ मेरा मन एकमात्र प्रिय प्रभु को ही चाहता है।
ਪੇਖਿ ਆਇਓ ਸਰਬ ਥਾਨ ਦੇਸ ਪ੍ਰਿਅ ਰੋਮ ਨ ਸਮਸਰਿ ਲਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पेखि आइओ सरब थान देस प्रिअ रोम न समसरि लागै ॥१॥ रहाउ ॥ मैं सभी स्थान एवं देश देख आया हूँ लेकिन मेरे प्रिय के रोम बराबर भी कोई नहीं ॥१॥रहाउ॥।
ਮੈ ਨੀਰੇ ਅਨਿਕ ਭੋਜਨ ਬਹੁ ਬਿੰਜਨ ਤਿਨ ਸਿਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨ ਕਰੈ ਰੁਚਾਂਗੈ ॥ मै नीरे अनिक भोजन बहु बिंजन तिन सिउ द्रिसटि न करै रुचांगै ॥ मुझे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट भोजन एवं व्यंजन दिए गए परन्तु इनकी ओर मेरी कोई दिलचस्पी नहीं।
ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਹੈ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰਿਅ ਮੁਖਿ ਟੇਰੈ ਜਿਉ ਅਲਿ ਕਮਲਾ ਲੋਭਾਂਗੈ ॥੧॥ हरि रसु चाहै प्रिअ प्रिअ मुखि टेरै जिउ अलि कमला लोभांगै ॥१॥ मैं हरि रस ही चाहता हूँ, मुंह से प्रिय प्रिय बोलता हूँ, ज्यों भेंवरा कमल पर लोलुप होता है।॥१॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top