Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1157

Page 1157

ਕੋਟਿ ਮੁਨੀਸਰ ਮੋੁਨਿ ਮਹਿ ਰਹਤੇ ॥੭॥ कोटि मुनीसर मोनि महि रहते ॥७॥ करोड़ों मुनिवर मौन धारण किए रखते हैं॥७॥
ਅਵਿਗਤ ਨਾਥੁ ਅਗੋਚਰ ਸੁਆਮੀ ॥ अविगत नाथु अगोचर सुआमी ॥ वह अव्यक्त नाथ इन्द्रियातीत सबका स्वामी है,
ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਘਟ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥ पूरि रहिआ घट अंतरजामी ॥ वह अन्तर्यामी घट-घट में व्याप्त है।
ਜਤ ਕਤ ਦੇਖਉ ਤੇਰਾ ਵਾਸਾ ॥ ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰਿ ਕੀਓ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ॥੮॥੨॥੫॥ जत कत देखउ तेरा वासा ॥ नानक कउ गुरि कीओ प्रगासा ॥८॥२॥५॥ जहाँ कहीं देखता हूँ, हे प्रभु ! तेरा ही वास है। नानक को गुरु ने यह ज्ञानालोक दिया है॥ ८॥२॥५॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥ भैरउ महला ५ ॥ भैरउ महला ५॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਕੀਨੋ ਦਾਨੁ ॥ सतिगुरि मो कउ कीनो दानु ॥ सतगुरु ने मुझे दान दिया है
ਅਮੋਲ ਰਤਨੁ ਹਰਿ ਦੀਨੋ ਨਾਮੁ ॥ अमोल रतनु हरि दीनो नामु ॥ हरि-नाम रूपी अमूल्य रत्न प्रदान किया है।
ਸਹਜ ਬਿਨੋਦ ਚੋਜ ਆਨੰਤਾ ॥ ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਲਿਓ ਅਚਿੰਤਾ ॥੧॥ सहज बिनोद चोज आनंता ॥ नानक कउ प्रभु मिलिओ अचिंता ॥१॥ सहज स्वभाव आनंद-विनोद एवं अद्भुत लीला करने वाला प्रभु नानक को स्वतः ही मिल गया है॥१॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕੀਰਤਿ ਹਰਿ ਸਾਚੀ ॥ कहु नानक कीरति हरि साची ॥ हे नानक ! परमात्मा की कीर्ति शाश्वत है,
ਬਹੁਰਿ ਬਹੁਰਿ ਤਿਸੁ ਸੰਗਿ ਮਨੁ ਰਾਚੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बहुरि बहुरि तिसु संगि मनु राची ॥१॥ रहाउ ॥ यह मन हरदम उसके संग लीन रहता है।॥१॥ रहाउ॥
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਭੋਜਨ ਭਾਉ ॥ अचिंत हमारै भोजन भाउ ॥ स्वभावतः हमारा प्रेम भोजन होता है,
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਲੀਚੈ ਨਾਉ ॥ अचिंत हमारै लीचै नाउ ॥ नैसर्गिक ही हमारे यहाँ परमेश्वर का नाम जपा जाता है।
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਸਬਦਿ ਉਧਾਰ ॥ अचिंत हमारै सबदि उधार ॥ स्वतः हमारा शब्द द्वारा उद्धार होता है और
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰ ॥੨॥ अचिंत हमारै भरे भंडार ॥२॥ स्वाभाविक ही हमारे भण्डार भरे रहते हैं।॥२॥
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਕਾਰਜ ਪੂਰੇ ॥ अचिंत हमारै कारज पूरे ॥ नैसर्गिक ही हमारे सब कार्य पूरे हो जाते हैं और
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਲਥੇ ਵਿਸੂਰੇ ॥ अचिंत हमारै लथे विसूरे ॥ स्वभावतः हमारे दुःख दर्द दूर हुए हैं।
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਬੈਰੀ ਮੀਤਾ ॥ अचिंत हमारै बैरी मीता ॥ नैसर्गिक ही हमारे शत्रु भी मित्र बन गए हैं और
ਅਚਿੰਤੋ ਹੀ ਇਹੁ ਮਨੁ ਵਸਿ ਕੀਤਾ ॥੩॥ अचिंतो ही इहु मनु वसि कीता ॥३॥ सहज स्वभाव ही यह मन वश में कर लिया है॥३॥
ਅਚਿੰਤ ਪ੍ਰਭੂ ਹਮ ਕੀਆ ਦਿਲਾਸਾ ॥ अचिंत प्रभू हम कीआ दिलासा ॥ स्वभावतः प्रभु ने हमें दिलासा दिया है और
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੀ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ॥ अचिंत हमारी पूरन आसा ॥ स्वतः हमारी सब आशाएँ पूर्ण हुई हैं।
ਅਚਿੰਤ ਹਮ੍ਹ੍ਹਾ ਕਉ ਸਗਲ ਸਿਧਾਂਤੁ ॥ अचिंत हम्हा कउ सगल सिधांतु ॥ स्वतः ही हमें ज्ञान-तत्व प्राप्त हुआ और
ਅਚਿੰਤੁ ਹਮ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਨੋ ਮੰਤੁ ॥੪॥ अचिंतु हम कउ गुरि दीनो मंतु ॥४॥ स्वभावतः ही हमें गुरु ने मंत्र दिया है।॥४॥
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੇ ਬਿਨਸੇ ਬੈਰ ॥ अचिंत हमारे बिनसे बैर ॥ नैसर्गिक हमारी वैर-भावना समाप्त हुई है और
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੇ ਮਿਟੇ ਅੰਧੇਰ ॥ अचिंत हमारे मिटे अंधेर ॥ स्वतः हमारे अज्ञान का अन्धेरा मिटा है।
ਅਚਿੰਤੋ ਹੀ ਮਨਿ ਕੀਰਤਨੁ ਮੀਠਾ ॥ अचिंतो ही मनि कीरतनु मीठा ॥ सहज स्वभाव ही मन को परमेश्वर का संकीर्तन प्रिय लगा है और
ਅਚਿੰਤੋ ਹੀ ਪ੍ਰਭੁ ਘਟਿ ਘਟਿ ਡੀਠਾ ॥੫॥ अचिंतो ही प्रभु घटि घटि डीठा ॥५॥ नैसर्गिक ही घट-घट में प्रभु दिखाई दिया है।॥ ५॥
ਅਚਿੰਤ ਮਿਟਿਓ ਹੈ ਸਗਲੋ ਭਰਮਾ ॥ अचिंत मिटिओ है सगलो भरमा ॥ सब भ्रम स्वतः ही मिट गए हैं और
ਅਚਿੰਤ ਵਸਿਓ ਮਨਿ ਸੁਖ ਬਿਸ੍ਰਾਮਾ ॥ अचिंत वसिओ मनि सुख बिस्रामा ॥ स्वभावतः ही मन में सुख-शान्ति हो गई है।
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਅਨਹਤ ਵਾਜੈ ॥ अचिंत हमारै अनहत वाजै ॥ स्वाभाविक ही मन में अनाहत नाद बजता रहता है और
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਗੋਬਿੰਦੁ ਗਾਜੈ ॥੬॥ अचिंत हमारै गोबिंदु गाजै ॥६॥ स्वतः ही प्रभु हमारे अन्तर्मन में साक्षात् हो गया है॥ ६॥
ਅਚਿੰਤ ਹਮਾਰੈ ਮਨੁ ਪਤੀਆਨਾ ॥ अचिंत हमारै मनु पतीआना ॥ नैसर्गिक ही हमारा मन प्रसन्न हो गया है और
ਨਿਹਚਲ ਧਨੀ ਅਚਿੰਤੁ ਪਛਾਨਾ ॥ निहचल धनी अचिंतु पछाना ॥ सहज स्वभाव ही निश्चल मालिक को पहचान लिया है।
ਅਚਿੰਤੋ ਉਪਜਿਓ ਸਗਲ ਬਿਬੇਕਾ ॥ अचिंतो उपजिओ सगल बिबेका ॥ स्वतः ही विवेक बुद्धि उत्पन्न हुई है और
ਅਚਿੰਤ ਚਰੀ ਹਥਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਟੇਕਾ ॥੭॥ अचिंत चरी हथि हरि हरि टेका ॥७॥ नैसर्गिक ही ईश्वर का आसरा मिला है॥७॥
ਅਚਿੰਤ ਪ੍ਰਭੂ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ॥ अचिंत प्रभू धुरि लिखिआ लेखु ॥ सहज स्वभाव ही प्रभु ने भाग्यालेख लिखा,
ਅਚਿੰਤ ਮਿਲਿਓ ਪ੍ਰਭੁ ਠਾਕੁਰੁ ਏਕੁ ॥ अचिंत मिलिओ प्रभु ठाकुरु एकु ॥ जिसके फलस्वरूप उस एक ईश्वर से साक्षात्कार हो गया।
ਚਿੰਤ ਅਚਿੰਤਾ ਸਗਲੀ ਗਈ ॥ चिंत अचिंता सगली गई ॥ चिन्ता एवं अचिंता सब दूर हो गई हैं और
ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਨਾਨਕ ਨਾਨਕ ਮਈ ॥੮॥੩॥੬॥ प्रभ नानक नानक नानक मई ॥८॥३॥६॥ प्रभु नानक एवं नानक प्रभुमयी हो गया है॥ ८॥३॥६॥
ਭੈਰਉ ਬਾਣੀ ਭਗਤਾ ਕੀ ॥ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਘਰੁ ੧ भैरउ बाणी भगता की ॥ कबीर जीउ घरु १ भैरउ बाणी भगता की॥ कबीर जीउ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਇਹੁ ਧਨੁ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਉ ॥ इहु धनु मेरे हरि को नाउ ॥ परमात्मा का नाम मेरा अक्षुण्ण धन है,
ਗਾਂਠਿ ਨ ਬਾਧਉ ਬੇਚਿ ਨ ਖਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गांठि न बाधउ बेचि न खाउ ॥१॥ रहाउ ॥ जिसे न ही गाँठ में बाँधता हूँ और न ही बेचकर खाता हूँ॥१॥ रहाउ॥
ਨਾਉ ਮੇਰੇ ਖੇਤੀ ਨਾਉ ਮੇਰੇ ਬਾਰੀ ॥ नाउ मेरे खेती नाउ मेरे बारी ॥ नाम ही मेरी खेतीबाड़ी है,"
ਭਗਤਿ ਕਰਉ ਜਨੁ ਸਰਨਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥੧॥ भगति करउ जनु सरनि तुम्हारी ॥१॥ हे परमेश्वर ! तुम्हारी शरण में आकर ही भक्ति करता हूँ॥१॥
ਨਾਉ ਮੇਰੇ ਮਾਇਆ ਨਾਉ ਮੇਰੇ ਪੂੰਜੀ ॥ नाउ मेरे माइआ नाउ मेरे पूंजी ॥ प्रभु का नाम मेरी धन-सम्पदा है, नाम ही मेरी पूंजी है।
ਤੁਮਹਿ ਛੋਡਿ ਜਾਨਉ ਨਹੀ ਦੂਜੀ ॥੨॥ तुमहि छोडि जानउ नही दूजी ॥२॥ हे दीनदयाल ! तुम्हें छोड़कर अन्य किसी को नहीं जानता।॥२॥
ਨਾਉ ਮੇਰੇ ਬੰਧਿਪ ਨਾਉ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥ नाउ मेरे बंधिप नाउ मेरे भाई ॥ परमेश्वर का नाम ही मेरा बंधु एवं मेरा भाई है और
ਨਾਉ ਮੇਰੇ ਸੰਗਿ ਅੰਤਿ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥੩॥ नाउ मेरे संगि अंति होइ सखाई ॥३॥ नाम ही मेरा अन्त तक साथीं एवं सहायक होगा॥३॥
ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਜਿਸੁ ਰਖੈ ਉਦਾਸੁ ॥ माइआ महि जिसु रखै उदासु ॥ मोह माया में जिसे वह निर्लिप्त रखता है,
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਹਉ ਤਾ ਕੋ ਦਾਸੁ ॥੪॥੧॥ कहि कबीर हउ ता को दासु ॥४॥१॥ कबीर जी कहते हैं कि, मैं तो उसका ही दास हूँ॥४॥१॥
ਨਾਂਗੇ ਆਵਨੁ ਨਾਂਗੇ ਜਾਨਾ ॥ नांगे आवनु नांगे जाना ॥ जीव ने नग्न ही आना है एवं नग्न ही चले जाना है,
ਕੋਇ ਨ ਰਹਿਹੈ ਰਾਜਾ ਰਾਨਾ ॥੧॥ कोइ न रहिहै राजा राना ॥१॥ कोई राजा अथवा राणा सदैव जीवित नहीं रहता।॥१॥


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