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ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੇਈ ਜਨ ਊਤਮ ਜੋ ਭਾਵਹਿ ਸੁਆਮੀ ਤੁਮ ਮਨਾ ॥੧੬॥੧॥੮॥
नानक का कथन है कि हे स्वामी ! वही मनुष्य उत्तम हैं, जो तेरे मन को भा जाते हैं।१६॥१॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥
मारू महला ५॥
ਪ੍ਰਭ ਸਮਰਥ ਸਰਬ ਸੁਖ ਦਾਨਾ ॥
हे समर्थ प्रभु ! तू सर्व सुख देने वाला है,"
ਸਿਮਰਉ ਨਾਮੁ ਹੋਹੁ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ॥
मुझ पर मेहरबान हो जाओ, ताकि तेरा नाम-स्मरण करता रहूँ
ਹਰਿ ਦਾਤਾ ਜੀਅ ਜੰਤ ਭੇਖਾਰੀ ਜਨੁ ਬਾਂਛੈ ਜਾਚੰਗਨਾ ॥੧॥
है हरि! तू ही दाता है, सभी जीव भिखारी हैं, मैं याचक बनकर तुझसे दान मांगता हैं॥१॥
ਮਾਗਉ ਜਨ ਧੂਰਿ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਵਉ ॥
मैं भक्तजनों की चरण-धूलि माँगता है,ताकि परमगति प्राप्त हो जाए,"
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਮੈਲੁ ਮਿਟਾਵਉ ॥
इससे जन्म-जन्मातर की मैल मिट जाती है।
ਦੀਰਘ ਰੋਗ ਮਿਟਹਿ ਹਰਿ ਅਉਖਧਿ ਹਰਿ ਨਿਰਮਲਿ ਰਾਪੈ ਮੰਗਨਾ ॥੨॥
हरि-नाम रूपी औषधि से पुराने रोग भी मिट जाते हैं। यह दान भी माँगता हैं कि निर्मल हरि के प्रेम-रंग में मेरा मन रंग जाए॥२॥
ਸ੍ਰਵਣੀ ਸੁਣਉ ਬਿਮਲ ਜਸੁ ਸੁਆਮੀ ॥
हे स्वामी ! मैं कानों से तेरा पावन यश सुनता रहूं
ਏਕਾ ਓਟ ਤਜਉ ਬਿਖੁ ਕਾਮੀ ॥
मैं विष रूपी कामवासना को तज दूँ और एक तेरी ही शरण में रहूं ।
ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਪਾਇ ਲਗਉ ਦਾਸ ਤੇਰੇ ਕਰਿ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਨਾਹੀ ਸੰਗਨਾ ॥੩॥
मैं झुकझुक कर तेरे दासों के चरणों में लगता रहूं और यह शुभ कर्म करते हुए संकोच ना करू॥३॥
ਰਸਨਾ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਹਰਿ ਤੇਰੇ ॥
हे परमात्मा ! मेरी जीभ तेरे ही गुण गाती रहे,"
ਮਿਟਹਿ ਕਮਾਤੇ ਅਵਗੁਣ ਮੇਰੇ ॥
ताकि मेरे पूर्व किए हुए अवगुण मिट जाएँ।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਮਨੁ ਜੀਵੈ ਪੰਚ ਦੂਤ ਤਜਿ ਤੰਗਨਾ ॥੪॥
दुखी करने वाले पाँच विकार त्याग कर मेरा मन स्वामी की स्मृति में जीता रहे॥४॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਜਪਿ ਬੋਹਿਥਿ ਚਰੀਐ ॥
तेरा नाम जपकर तेरे चरण-कमल रुपी जहाज़ पर चढ़ा जा सकता है,"
ਸੰਤਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਸਾਗਰੁ ਤਰੀਐ ॥
संतों के संग संसार-सागर से पार हुआ जा सकता है,"
ਅਰਚਾ ਬੰਦਨ ਹਰਿ ਸਮਤ ਨਿਵਾਸੀ ਬਾਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਨੰਗਨਾ ॥੫॥
परमात्मा को सर्वव्यापी समझना ही उसकी पूजा-अर्चना एवं वंदना है और इस प्रकार जीव को बार-बार योनि-चक्र में अपमानित नहीं होना पड़ता॥ ५॥
ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੋ ਕਰਿ ਲੇਹੁ ਗੋੁਪਾਲਾ ॥ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
हे प्रभु ! मुझे अपने दासों का दास बना लो; तू कृपा का भण्डार है, दीनदयाल है।
ਸਖਾ ਸਹਾਈ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਮਿਲੁ ਕਦੇ ਨ ਹੋਵੀ ਭੰਗਨਾ ॥੬॥
हे पूर्ण परमेश्वर ! तू ही मित्र एवं सहायक हैं,मुझे आन मिलों, ताकि तुझसे मेरी मैत्री कभी न टूटे॥ ६॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪਿ ਧਰੀ ਹਰਿ ਆਗੈ ॥
मैंने अपना तन-मन सब कुछ भगवान् के समक्ष अर्पण कर दिया है और
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਸੋਇਆ ਜਾਗੈ ॥
जन्म-जन्मांतर का अज्ञानता में सोया हुआ मन जाग्रत हो गया है।
ਜਿਸ ਕਾ ਸਾ ਸੋਈ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਕੁ ਹਤਿ ਤਿਆਗੀ ਹਉਮੈ ਹੰਤਨਾ ॥੭॥
जिसने बनाया है, वहीं हमारा पोषण करने वाला है। मारने वाले अहम् को त्याग कर मिटा दिया है॥७॥
ਜਲਿ ਥਲਿ ਪੂਰਨ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
अन्तर्यामी परमेश्वर जल, धरती सबमें व्याप्त है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਵਿਆ ਅਛਲ ਸੁਆਮੀ ॥
वह घट-घट में रमण कर रहा है और उस स्वामी से छल-कपट नहीं किया जा सकता।
ਭਰਮ ਭੀਤਿ ਖੋਈ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਏਕੁ ਰਵਿਆ ਸਰਬੰਗਨਾ ॥੮॥
पूर्ण गुरु ने मेरी अहम की दीवार नष्ट कर दी है और अब मुझे सबमें एक परमेश्वर ही दृष्टिगत हो रहा॥८॥
ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਪ੍ਰਭ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ॥
मैं जिधर भी देखता हूँ, सुखों का सागर प्रभु ही है।
ਹਰਿ ਤੋਟਿ ਭੰਡਾਰ ਨਾਹੀ ਰਤਨਾਗਰ ॥
रत्नाकर हरि के भण्डार में कभी कोई कमी नहीं आती।
ਅਗਹ ਅਗਾਹ ਕਿਛੁ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈਐ ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸੁ ਕਿਰਪੰਗਨਾ ॥੯॥
वह अथाह और असीम है और उसका कुछ भी विस्तार नहीं पाया जा सकता।वहीं उसे बुझता हैं, जिस पर उसकी कृपा होती है॥९॥
ਛਾਤੀ ਸੀਤਲ ਮਨੁ ਤਨੁ ਠੰਢਾ ॥
मेरी छाती शीतल एवं मन-तन ठण्डा हो गया है,"
ਜਨਮ ਮਰਣ ਕੀ ਮਿਟਵੀ ਡੰਝਾ ॥
जन्म-मरण की चिंता मिट गई है।
ਕਰੁ ਗਹਿ ਕਾਢਿ ਲੀਏ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਅਮਿਓ ਧਾਰਿ ਦ੍ਰਿਸਟੰਗਨਾ ॥੧੦॥
मेरे प्रभु ने अमृत-दृष्टि धारण करके मेरा हाथ पकड़कर मुझे संसार सागर में से निकाल लिया हैं॥१०॥
ਏਕੋ ਏਕੁ ਰਵਿਆ ਸਭ ਠਾਈ ॥
एक ईश्वर सब स्थानों में रमण कर रहा है,"
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ॥
उसके बिना अन्य कोई नहीं।
ਆਦਿ ਮਧਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰਵਿਆ ਤ੍ਰਿਸਨ ਬੁਝੀ ਭਰਮੰਗਨਾ ॥੧੧॥
सृष्टि के आदि, मध्य एवं अन्त में प्रभु सदैव व्याप्त है, मेरी तृष्णा बुझ गई हैं और भ्रम मिट गया है॥११॥
ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦੁ ॥
गुरु परमेश्वर हैं, गुरु ही गोविन्द है।
ਗੁਰੁ ਕਰਤਾ ਗੁਰੁ ਸਦ ਬਖਸੰਦੁ ॥
गुरु ही बनाने वाला है, वह सदैव क्षमावान् है।
ਗੁਰ ਜਪੁ ਜਾਪਿ ਜਪਤ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਗਿਆਨ ਦੀਪਕੁ ਸੰਤ ਸੰਗਨਾ ॥੧੨॥
गुरु का जाप जपकर मनवांछित फल पा लिया है और संतों की संगत करने से ज्ञान का दीपक आलोकित हो गया है॥१२॥
ਜੋ ਪੇਖਾ ਸੋ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੁਆਮੀ ॥
जो भी देखता हूँ, सब कुछ मेरा स्वामी ही है।
ਜੋ ਸੁਨਣਾ ਸੋ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਬਾਨੀ ॥
जो कुछ सुनता हूँ, वह प्रभु की ही वाणी है।
ਜੋ ਕੀਨੋ ਸੋ ਤੁਮਹਿ ਕਰਾਇਓ ਸਰਣਿ ਸਹਾਈ ਸੰਤਹ ਤਨਾ ॥੧੩॥
हे ईश्वर ! जो कुछ किया है, वह तूने ही मुझसे करवाया है, जो संतों की शरण में आता है, तू उनकी ही सहायता करता है॥१३॥
ਜਾਚਕੁ ਜਾਚੈ ਤੁਮਹਿ ਅਰਾਧੈ ॥
याचक तुम्हारी आराधना ही माँगता हैं।
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭ ਸਾਧੈ ॥
हे पूर्ण प्रभु ! तू पतितों को पावन करने वाला है और उनका जीवन संवार देता हैं।
ਏਕੋ ਦਾਨੁ ਸਰਬ ਸੁਖ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਆਨ ਮੰਗਨ ਨਿਹਕਿੰਚਨਾ ॥੧੪॥
हे सर्व सुख दाता, हे गुणों के भण्डार ! मैं तुझसे एक दान ही माँगता हूँ, अन्य कुछ माँगना तो व्यर्थ हैं॥१४॥