Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 104

ਆਸ ਮਨੋਰਥੁ ਪੂਰਨੁ ਹੋਵੈ ਭੇਟਤ ਗੁਰ ਦਰਸਾਇਆ ਜੀਉ ॥੨॥ गुरु के दर्शन करने से उसके समस्त मनोरथ व दिल की इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।॥ २॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਕਿਛੁ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੀ ॥ अगम्य व अगोचर प्रभु का अंत जाना नहीं जा सकता।
ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਧਿਆਵਹਿ ਗਿਆਨੀ ॥ ज्ञांनी, सिद्ध, योग-साधक उस भगवान् का ही ध्यान करते हैं।
ਖੁਦੀ ਮਿਟੀ ਚੂਕਾ ਭੋਲਾਵਾ ਗੁਰਿ ਮਨ ਹੀ ਮਹਿ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ਜੀਉ ॥੩॥ जिस व्यक्ति का अहंकार मिट जाता है और भ्रम दूर हो जाता है, गुरु उसके हृदय में ही भगवान् को प्रगट कर देते हैं।॥ ३॥
ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਕਲਿਆਣ ਨਿਧਾਨਾ ॥ भगवान् के नाम का जाप करने से आनंद एवं खुशियाँ प्राप्त हो जाती हैं और यह मुक्तिदायक एवं गुणों का भण्डार है।
ਸੂਖ ਸਹਜ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਨਾ ॥ जो व्यक्ति भगवान् के नाम का सिमरन करता है, उसे जीवन में सुख एवं आनंद का संतुलन उपलब्ध हो जाता हैं।
ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਸੁਆਮੀ ਅਪਨਾ ਨਾਉ ਨਾਨਕ ਘਰ ਮਹਿ ਆਇਆ ਜੀਉ ॥੪॥੨੫॥੩੨॥ हे नानक ! जिस व्यक्ति पर मेरा स्वामी कृपालु हो जाता है, उसके हृदय-घर में ही भगवान् का नाम निवास करता है॥ ४ ॥ २५ ॥ ३२ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਜੀਵਾ ਸੋਇ ਤੁਮਾਰੀ ॥ हे प्रभु ! अपने कानों से तेरी शोभा सुन-सुनकर ही जीता हूँ।
ਤੂੰ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਠਾਕੁਰੁ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ॥ हे मेरे महान ठाकुर ! तुम मेरे प्रियतम हो।
ਤੁਮਰੇ ਕਰਤਬ ਤੁਮ ਹੀ ਜਾਣਹੁ ਤੁਮਰੀ ਓਟ ਗੋੁਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੧॥ हे गोपाल ! अपने कर्म तू ही जानता है। मुझे तेरा ही आश्रय है॥ १॥
ਗੁਣ ਗਾਵਤ ਮਨੁ ਹਰਿਆ ਹੋਵੈ ॥ तेरी महिमा-स्तुति गाने से मेरा मन प्रफुल्लित हो जाता है।
ਕਥਾ ਸੁਣਤ ਮਲੁ ਸਗਲੀ ਖੋਵੈ ॥ तेरी कथा सुनने से मेरे मन के विकारों की समस्त मलिनता दूर हो जाती है।
ਭੇਟਤ ਸੰਗਿ ਸਾਧ ਸੰਤਨ ਕੈ ਸਦਾ ਜਪਉ ਦਇਆਲਾ ਜੀਉ ॥੨॥ साधुओं एवं संतों की संगति में मिलकर मैं सदैव दयालु परमेश्वर का चिन्तन करता हूँ॥ २॥
ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮਾਰਉ ॥ अपने प्रभु को मैं श्वास-श्वास से स्मरण करता हूँ।
ਇਹ ਮਤਿ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮਨਿ ਧਾਰਉ ॥ मैंने गुरु की कृपा से यह शिक्षा अपने मन में धारण कर ली है।
ਤੁਮਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ਸਰਬ ਮਇਆ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੩॥ हे भगवान्! सभी के पालनकर्ता, केवल आपकी कृपा से ही कोई व्यक्ति ऐसे दिव्य ज्ञान से प्रबुद्ध होता है।॥ ३॥
ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥ प्रभु शाश्वत सत्य है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਦ ਆਪੇ ਹੋਈ ॥ और वह प्रभु सर्वदा स्वयंभू था और रहेगा ।
ਚਲਿਤ ਤੁਮਾਰੇ ਪ੍ਰਗਟ ਪਿਆਰੇ ਦੇਖਿ ਨਾਨਕ ਭਏ ਨਿਹਾਲਾ ਜੀਉ ॥੪॥੨੬॥੩੩॥ हे प्रिय प्रभु ! आपकी अदभुत लीलाएँ जगत् में प्रत्यक्ष हैं एवं उन अद्भुत लीलाओं को देखकर मैं नानक कृतार्थ हो गया हूँ। ॥४॥२६॥३३॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਹੁਕਮੀ ਵਰਸਣ ਲਾਗੇ ਮੇਹਾ ॥ भगवान् की आज्ञा से नाम के मेघ बरसने लगे हैं।
ਸਾਜਨ ਸੰਤ ਮਿਲਿ ਨਾਮੁ ਜਪੇਹਾ ॥ जब सज्जन और संत मिलकर भगवान् के नाम का जाप करते हैं।
ਸੀਤਲ ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਠਾਢਿ ਪਾਈ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ਜੀਉ ॥੧॥ संतों के हृदय शीतल एवं शांत हो गए हैं और उन्हें सहज सुख उपलब्ध हो गया है। भगवान् ने स्वयं ही संतों के हृदय में शांति प्रदान की है॥ १॥
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਬਹੁਤੋ ਬਹੁਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥ (पवित्र सभा में नाम की वर्षा के परिणामस्वरूप) भगवान् ने सभी आध्यात्मिक गुणों की प्रचुरता उत्पन्न की है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਸਗਲ ਰਜਾਇਆ ॥ अपनी कृपा से परमात्मा ने सभी संतों को सन्तुष्ट कर दिया है।
ਦਾਤਿ ਕਰਹੁ ਮੇਰੇ ਦਾਤਾਰਾ ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਧ੍ਰਾਪੇ ਜੀਉ ॥੨॥ हे दयालु दाता, अपनी ऐसी कृपा करें कि सभी जीव-जंतु तृप्त हो जाए, ठीक उसी प्रकार जब आप नाम की वर्षा करें तो सभी भक्त तृप्त हो जाए।।॥ २॥
ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੀ ਨਾਈ ॥ प्रभु शाश्वत है और उनकी महिमा भी शाश्वत है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਤਿਸੁ ਸਦਾ ਧਿਆਈ ॥ गुरु की कृपा से मैं सदैव ही उसका ध्यान करता रहता हूँ।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਭੈ ਕਾਟੇ ਮੋਹਾ ਬਿਨਸੇ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪੇ ਜੀਉ ॥੩॥ उस प्रभु ने मेरा जन्म-मरण का भय एवं माया का मोह नाश कर दिया है॥३ ॥
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਨਾਨਕੁ ਸਾਲਾਹੇ ॥ नानक तो श्वास-श्वास से भगवान् की महिमा-स्तुति ही करता है।
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਕਾਟੇ ਸਭਿ ਫਾਹੇ ॥ प्रेम एवं भक्ति से भगवान् का सिमरन करने से माया के सभी बंधन तमाम कट जाते हैं।
ਪੂਰਨ ਆਸ ਕਰੀ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਜਾਪੇ ਜੀਉ ॥੪॥੨੭॥੩੪॥ भगवान् ने एक क्षण में उसकी आशा पूरी कर दी है, अब तो वह भगवान के नाम का ही जाप करता रहता है और उसकी ही महिमा गाता रहता है॥ ४ ॥ २७ ॥ ३४ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਆਉ ਸਾਜਨ ਸੰਤ ਮੀਤ ਪਿਆਰੇ ॥ हे मेरे संतजनों एवं प्रिय मित्रों ! आओ
ਮਿਲਿ ਗਾਵਹ ਗੁਣ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥ हम मिलकर अगम्य व अनन्त प्रभु का यशोगान करें।
ਗਾਵਤ ਸੁਣਤ ਸਭੇ ਹੀ ਮੁਕਤੇ ਸੋ ਧਿਆਈਐ ਜਿਨਿ ਹਮ ਕੀਏ ਜੀਉ ॥੧॥ भगवान् की महिमा गाने एवं सुनने वाले सभी व्यक्ति माया के बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं। आओ हम उस प्रभु की आराधना करें जिसने हमें उत्पन्न किया है। ॥१॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਜਾਵਹਿ ॥ भगवान् का सिमरन करने से जन्म-जन्मांतरों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं l
ਮਨਿ ਚਿੰਦੇ ਸੇਈ ਫਲ ਪਾਵਹਿ ॥ और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
ਸਿਮਰਿ ਸਾਹਿਬੁ ਸੋ ਸਚੁ ਸੁਆਮੀ ਰਿਜਕੁ ਸਭਸੁ ਕਉ ਦੀਏ ਜੀਉ ॥੨॥ उस सत्य प्रभु-परमेश्वर की आराधना करो, जो सभी को भोज्य पदार्थ देता है॥ २॥
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਸਰਬ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥ भगवान् के नाम का जाप करने से सर्व सुख मिल जाते हैं।
ਸਭੁ ਭਉ ਬਿਨਸੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥ हरि-प्रभु की आराधना करने से सभी सांसारिक भय नष्ट हो जाते हैं।
ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਸੋ ਪਾਰਗਿਰਾਮੀ ਕਾਰਜ ਸਗਲੇ ਥੀਏ ਜੀਉ ॥੩॥ जो व्यक्ति प्रेमपूर्वक भगवान् का स्मरण करता है, वह संसार-सागर से पार हो जाता है और उसके सभी कार्य सुलझ जाते हैं।॥ ३॥
ਆਇ ਪਇਆ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥ हे प्रभु ! मैं तेरी शरण में आ गया हूँ,
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਲੈਹਿ ਮਿਲਾਈ ॥ जैसे तुझे अच्छा लगता है वैसे ही मुझे अपने साथ मिला लो।
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