Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1041

Page 1041

ਸਚ ਬਿਨੁ ਭਵਜਲੁ ਜਾਇ ਨ ਤਰਿਆ ॥ सत्य के बिना जगत्-सागर से पार नहीं हुआ जा सकता,
ਏਹੁ ਸਮੁੰਦੁ ਅਥਾਹੁ ਮਹਾ ਬਿਖੁ ਭਰਿਆ ॥ यह अथाह समुद्र है, जो महा विष से भरा हुआ है।
ਰਹੈ ਅਤੀਤੁ ਗੁਰਮਤਿ ਲੇ ਊਪਰਿ ਹਰਿ ਨਿਰਭਉ ਕੈ ਘਰਿ ਪਾਇਆ ॥੬॥ जो गुरु की शिक्षा लेकर वासनाओं से अलिप्त रहता है, वह निर्भय प्रभु के घर में स्थान पा लेता है। ६॥
ਝੂਠੀ ਜਗ ਹਿਤ ਕੀ ਚਤੁਰਾਈ ॥ दुनिया के मोह की चतुराई झूठी है,
ਬਿਲਮ ਨ ਲਾਗੈ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥ इससे जन्म-मरण में कोई देरी नहीं लगती।
ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਚਲਹਿ ਅਭਿਮਾਨੀ ਉਪਜੈ ਬਿਨਸਿ ਖਪਾਇਆ ॥੭॥ अभिमानी आदमी नाम को विस्मृत करके जग से चल देते हैं, जिसके कारण जन्म-मरण के चक्र में दुखी होते हैं।७॥
ਉਪਜਹਿ ਬਿਨਸਹਿ ਬੰਧਨ ਬੰਧੇ ॥ वे जन्मते-मरते हैं और बन्धनों में ही फंसे रहते हैं।
ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਕੇ ਗਲਿ ਫੰਧੇ ॥ उनके गले में अहम् और मोह-माया का फंदा पड़ा रहता है।
ਜਿਸੁ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਾਹੀ ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਸੋ ਜਮ ਪੁਰਿ ਬੰਧਿ ਚਲਾਇਆ ॥੮॥ जिसने गुरु मतानुसार राम नाम को नहीं बसाया, उसे बाँधकर यमपुरी में भेज दिया गया है॥ ८॥
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਮੋਖ ਮੁਕਤਿ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ॥ गुरु के बिना मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है और
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਕਿਉ ਧਿਆਈਐ ॥ गुरु बिन राम नाम का मनन कैसे किया जा सकता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਲੇਹੁ ਤਰਹੁ ਭਵ ਦੁਤਰੁ ਮੁਕਤਿ ਭਏ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੯॥ गुरुमत को ग्रहण करके दुस्तर भवसागर से पार हो जाओ, जो मुक्ति प्राप्त कर गए हैं, उन्होंने सुख पा लिया है॥ ९॥
ਗੁਰਮਤਿ ਕ੍ਰਿਸਨਿ ਗੋਵਰਧਨ ਧਾਰੇ ॥ गुरु-मतानुसार श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को ऊँगली पर धारण कर लिया था और
ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਇਰਿ ਪਾਹਣ ਤਾਰੇ ॥ श्रीराम ने समुद्र पर पत्थर तैरा दिए थे।
ਗੁਰਮਤਿ ਲੇਹੁ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੧੦॥ गुरु की मत ग्रहण करने से परमपद प्राप्त होता है। हे नानक ! गुरु ही भ्रम मिटाने वाला है॥ १०॥
ਗੁਰਮਤਿ ਲੇਹੁ ਤਰਹੁ ਸਚੁ ਤਾਰੀ ॥ गुरु की शिक्षा प्राप्त करो और सत्य द्वारा भवसागर से पार हो जाओ।
ਆਤਮ ਚੀਨਹੁ ਰਿਦੈ ਮੁਰਾਰੀ ॥ आत्मा एवं हृदय में ईश्वर को पहचान लो।
ਜਮ ਕੇ ਫਾਹੇ ਕਾਟਹਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਅਕੁਲ ਨਿਰੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ॥੧੧॥ परमात्मा का जाप करने से यम के फंदे कट जाते हैं और मायातीत की प्राप्ति हो जाती है॥ ११॥
ਗੁਰਮਤਿ ਪੰਚ ਸਖੇ ਗੁਰ ਭਾਈ ॥ गुरुमत द्वारा ही संत-मित्र एवं गुरुभाई का परस्पर संबंध होता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਅਗਨਿ ਨਿਵਾਰਿ ਸਮਾਈ ॥ गुरु की मति तृष्णाग्नि को निवृत कर देती है।
ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਜਗਜੀਵਨ ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ॥੧੨॥ अपने मन एवं मुख से जीवनदाता ईश्वर का नाम जपो; इस तरह ह्रदय में ही अदृष्ट प्रभु के दर्शन हो जाते हैं। १२॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਸਬਦਿ ਪਤੀਜੈ ॥ गुरुमुख इस तथ्य को बूझ लेता है और नाम द्वारा संतुष्ट हो जाता है,
ਉਸਤਤਿ ਨਿੰਦਾ ਕਿਸ ਕੀ ਕੀਜੈ ॥ फिर किसकी प्रशंसा एवं निंदा की जाए।
ਚੀਨਹੁ ਆਪੁ ਜਪਹੁ ਜਗਦੀਸਰੁ ਹਰਿ ਜਗੰਨਾਥੁ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥੧੩॥ अपना आप पहचानो, जगदीश्वर का नाम जपो, संसार का स्वामी हरि ही मन को माया है॥ १३॥
ਜੋ ਬ੍ਰਹਮੰਡਿ ਖੰਡਿ ਸੋ ਜਾਣਹੁ ॥ जो खण्ड-ब्रह्माण्ड में समाया हुआ है, उसे जानो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝਹੁ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣਹੁ ॥ गुरु के सान्निध्य में सत्य को बूझो, शब्द की पहचान करो।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਭੋਗੇ ਭੋਗਣਹਾਰਾ ਰਹੈ ਅਤੀਤੁ ਸਬਾਇਆ ॥੧੪॥ वह भोगनेवाला ईश्वर घट-घट (प्रत्येक शरीर) में व्याप्त होकर सब पदार्थ भोग रहा है, लेकिन फिर भी सबसे अलिप्त रहता है॥ १४॥
ਗੁਰਮਤਿ ਬੋਲਹੁ ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੂਚਾ ॥ गुरु-मतानुसार पावन हरि-यश बोलो,
ਗੁਰਮਤਿ ਆਖੀ ਦੇਖਹੁ ਊਚਾ ॥ गुरु-मतानुसार आँखों से प्रभु को देखो।
ਸ੍ਰਵਣੀ ਨਾਮੁ ਸੁਣੈ ਹਰਿ ਬਾਣੀ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰੰਗਾਇਆ ॥੧੫॥੩॥੨੦॥ हे नानक ! जो कानों से हरि-नाम एवं वाणी सुनता है, वह उसके प्रेम-रंग में ही रंग गया है॥ १५॥ ३॥ २०॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥ मारू महला १॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਪਰਹਰੁ ਪਰ ਨਿੰਦਾ ॥ हे मानव जीवो ! काम, क्रोध एवं पराई निंदा को छोड़ दो;
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਤਜਿ ਹੋਹੁ ਨਿਚਿੰਦਾ ॥ लालच, लोभ को तज कर निश्चिन्त हो जाओ।
ਭ੍ਰਮ ਕਾ ਸੰਗਲੁ ਤੋੜਿ ਨਿਰਾਲਾ ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥ जो भ्रम की जंजीर तोड़कर निर्लिप्त हो गया है, उसने अन्तर्मन में ही हरि-रस पा लिया है॥ १॥
ਨਿਸਿ ਦਾਮਨਿ ਜਿਉ ਚਮਕਿ ਚੰਦਾਇਣੁ ਦੇਖੈ ॥ जैसे रात्रिकाल कोई बिजली की चमक जैसा प्रकाश देखता है,
ਅਹਿਨਿਸਿ ਜੋਤਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ਪੇਖੈ ॥ वैसे ही में निशदिन प्रभु-ज्योति को निरंतर देखता हूँ।
ਆਨੰਦ ਰੂਪੁ ਅਨੂਪੁ ਸਰੂਪਾ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਦੇਖਾਇਆ ॥੨॥ पूर्ण गुरु ने आनंद-स्वरूप एवं अनुपम स्वरूप प्रभु के दर्शन करवाए हैं।॥ २॥
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਹੁ ਆਪੇ ਪ੍ਰਭੁ ਤਾਰੇ ॥ सतगुरु से साक्षात्कार होने पर प्रभु स्वयं ही जगत्-सागर से पार उतार देता है।
ਸਸਿ ਘਰਿ ਸੂਰੁ ਦੀਪਕੁ ਗੈਣਾਰੇ ॥ हृदय रूपी घर में यूं आलोक हो जाता है, जैसे आकाश में दीपक रूपी सूर्योदय होता है।
ਦੇਖਿ ਅਦਿਸਟੁ ਰਹਹੁ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਸਭੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਸਬਾਇਆ ॥੩॥ उस अदृष्ट ईश्वर को सर्वत्र देखकर उसमें लगन लगाओ, तीनों लोकों में ब्रह्म का ही प्रसार है॥ ३॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਾਏ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਭਉ ਜਾਏ ॥ हरि-नाम रूपी अमृत-रस को पाने से तृष्णा एवं भय का निवारण हो जाता है।
ਅਨਭਉ ਪਦੁ ਪਾਵੈ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥ जो अहम् को मिटा देता है, उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
ਊਚੀ ਪਦਵੀ ਊਚੋ ਊਚਾ ਨਿਰਮਲ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇਆ ॥੪॥ जिसने निर्मल शब्द की साधना की है, उसने सर्वोच्च पदवी पा ली है और वह सर्वश्रेष्ठ बन गया है॥ ४॥
ਅਦ੍ਰਿਸਟ ਅਗੋਚਰੁ ਨਾਮੁ ਅਪਾਰਾ ॥ ईश्वर का नाम अदृष्ट एवं इन्द्रियातीत है और


© 2017 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top