Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1037

Page 1037

ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਸੁ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ਮਾਨੈ ਹੁਕਮੁ ਸਮਾਇਦਾ ॥੯॥ जो गुरुमुख होता है, वही ईश्वर के हुक्म को पहचानता और मानकर उसके हुक्म में ही समा जाता है।॥ ९॥
ਹੁਕਮੇ ਆਇਆ ਹੁਕਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥ प्रत्येक जीव ईश्वर के हुक्म से ही पैदा हुआ है और हुक्म से ही उसमें विलीन हो गया है।
ਹੁਕਮੇ ਦੀਸੈ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥ समूचा दृष्टिमान जगत् उसके हुक्म से ही उत्पन्न हुआ है।
ਹੁਕਮੇ ਸੁਰਗੁ ਮਛੁ ਪਇਆਲਾ ਹੁਕਮੇ ਕਲਾ ਰਹਾਇਦਾ ॥੧੦॥ उसके हुक्म में स्वर्गलोक, मृत्युलोक एवं पाताललोक की रचना हुई और हुक्म से ही उसने इनमें शक्ति स्थित की॥ १०॥
ਹੁਕਮੇ ਧਰਤੀ ਧਉਲ ਸਿਰਿ ਭਾਰੰ ॥ ईश्वर के हुक्म में ही धर्म रूपी बेल ने सिर पर धरती का भार उठाया हुआ है।
ਹੁਕਮੇ ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਗੈਣਾਰੰ ॥ उसके हुक्म से ही पवन एवं पानी कार्यशील हैं।
ਹੁਕਮੇ ਸਿਵ ਸਕਤੀ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਹੁਕਮੇ ਖੇਲ ਖੇਲਾਇਦਾ ॥੧੧॥ उसके हुक्म में ही शिव (जीव) ने शक्ति (माया) के घर में वास किया हुआ है और हुक्म में ही जीवन रूपो खेल खेलाता है॥ ११॥
ਹੁਕਮੇ ਆਡਾਣੇ ਆਗਾਸੀ ॥ हुक्म में आकाश का प्रसार है,
ਹੁਕਮੇ ਜਲ ਥਲ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਵਾਸੀ ॥ उसके हुक्म में ही तीनों लोकों के वासी जीव जल एवं थल में रहते हैं।
ਹੁਕਮੇ ਸਾਸ ਗਿਰਾਸ ਸਦਾ ਫੁਨਿ ਹੁਕਮੇ ਦੇਖਿ ਦਿਖਾਇਦਾ ॥੧੨॥ उसके हुक्म में ही जीव सॉस-ग्रास लेता है और पुनः हुक्म में ही देखता एवं दिखाता है॥ १२॥
ਹੁਕਮਿ ਉਪਾਏ ਦਸ ਅਉਤਾਰਾ ॥ ईश्वर के हुक्म के अन्तर्गत ही दस अवतार (मच्छ, कच्छ, वाराह, नृसिंह, वामन, राम, कृष्ण, परशुराम इत्यादि) पैदा हुए और
ਦੇਵ ਦਾਨਵ ਅਗਣਤ ਅਪਾਰਾ ॥ हुक्म में ही असंख्य देव-दानव उत्पन्न किए।
ਮਾਨੈ ਹੁਕਮੁ ਸੁ ਦਰਗਹ ਪੈਝੈ ਸਾਚਿ ਮਿਲਾਇ ਸਮਾਇਦਾ ॥੧੩॥ जो उसके हुक्म को मानता है वही उसके दरबार में शोभा का पात्र बनता है और परम-सत्य में ही विलीन हो जाता है॥ १३॥
ਹੁਕਮੇ ਜੁਗ ਛਤੀਹ ਗੁਦਾਰੇ ॥ हुक्म में ही ईश्वर ने छत्तीस युग शून्य समाधि में व्यतीत कर दिए।
ਹੁਕਮੇ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਵੀਚਾਰੇ ॥ चिंतनशील सिध-साधक उसके हुक्म से ही पैदा हुए हैं।
ਆਪਿ ਨਾਥੁ ਨਥੀ ਸਭ ਜਾ ਕੀ ਬਖਸੇ ਮੁਕਤਿ ਕਰਾਇਦਾ ॥੧੪॥ वह सृष्टि का मालिक है और सब उसके नियंत्रण में है। जिस पर कृपा करता है, उसे मुक्त कर देता है॥ १४॥
ਕਾਇਆ ਕੋਟੁ ਗੜੈ ਮਹਿ ਰਾਜਾ ॥ शरीर रूपी किले में मन राजा है।
ਨੇਬ ਖਵਾਸ ਭਲਾ ਦਰਵਾਜਾ ॥ कर्मन्द्रियाँ एवं ज्ञानेन्द्रियाँ इसके नायब एवं खास सेवक हैं और मुंह इसका दरवाजा है।
ਮਿਥਿਆ ਲੋਭੁ ਨਾਹੀ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਲਬਿ ਪਾਪਿ ਪਛੁਤਾਇਦਾ ॥੧੫॥ किन्तु मिथ्या लोभ के कारण जीव को सच्चे घर में वास नहीं मिलता और लालच, पाप के कारण पछताता है॥ १५॥
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਨਗਰ ਮਹਿ ਕਾਰੀ ॥ सत्य एवं संतोष भी शरीर रूपी नगर में अधिकारी हैं,
ਜਤੁ ਸਤੁ ਸੰਜਮੁ ਸਰਣਿ ਮੁਰਾਰੀ ॥ जो यतीत्व, सदाचार एवं संयम द्वारा मन रूपी राजा को ईश्वर की शरण में जाने के लिए प्रेरित करते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਮਿਲੈ ਜਗਜੀਵਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਪਤਿ ਪਾਇਦਾ ॥੧੬॥੪॥੧੬॥ हे नानक ! ईश्वर सहज स्वभाव ही मिलता है और शब्द-गुरु द्वारा ही जीव को सम्मान प्राप्त होता है॥१६॥४॥१६॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥ मारू महला १॥
ਸੁੰਨ ਕਲਾ ਅਪਰੰਪਰਿ ਧਾਰੀ ॥ ईश्वर ने सर्वप्रथम शून्य समाधि धारण की थी,
ਆਪਿ ਨਿਰਾਲਮੁ ਅਪਰ ਅਪਾਰੀ ॥ वह अपरंपार स्वयं निर्लिप्त था।
ਆਪੇ ਕੁਦਰਤਿ ਕਰਿ ਕਰਿ ਦੇਖੈ ਸੁੰਨਹੁ ਸੁੰਨੁ ਉਪਾਇਦਾ ॥੧॥ वह स्वयं ही कुदरत को उत्पन्न कर करके देखता है और शून्य समाधि में शून्य से सब उत्पन्न करता है॥ १॥
ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਸੁੰਨੈ ਤੇ ਸਾਜੇ ॥ शून्य से उसने पवन-पानी का निर्माण किया,
ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਇ ਕਾਇਆ ਗੜ ਰਾਜੇ ॥ सृष्टि उत्पन्न करके शरीर रूपी किले में मन रूपी राजा को पैदा किया।
ਅਗਨਿ ਪਾਣੀ ਜੀਉ ਜੋਤਿ ਤੁਮਾਰੀ ਸੁੰਨੇ ਕਲਾ ਰਹਾਇਦਾ ॥੨॥ हे ईश्वर ! अग्नि, पानी एवं जीव में तुम्हारी ही ज्योति है और समूची शक्ति शून्य में ही स्थिर की हुई है । २॥
ਸੁੰਨਹੁ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸੁ ਉਪਾਏ ॥ शून्य से ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश उत्पन्न किए,
ਸੁੰਨੇ ਵਰਤੇ ਜੁਗ ਸਬਾਏ ॥ सभी युग शून्य में ही बीत गए।
ਇਸੁ ਪਦ ਵੀਚਾਰੇ ਸੋ ਜਨੁ ਪੂਰਾ ਤਿਸੁ ਮਿਲੀਐ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਦਾ ॥੩॥ इस पद को जो व्यक्ति विचार लेता है, वही पूर्ण ज्ञानी है और उससे मिलकर भ्रम दूर हो जाता है।॥ ३॥
ਸੁੰਨਹੁ ਸਪਤ ਸਰੋਵਰ ਥਾਪੇ ॥ शून्य में ही परमेश्वर ने सात सरोवर (पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, मन-बुद्धि) बनाए,"
ਜਿਨਿ ਸਾਜੇ ਵੀਚਾਰੇ ਆਪੇ ॥ जिसने इसे बनाया है, वह स्वयं ही इनका विचार करता है।
ਤਿਤੁ ਸਤ ਸਰਿ ਮਨੂਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਵੈ ਫਿਰਿ ਬਾਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਪਾਇਦਾ ॥੪॥ जिस गुरुमुख का मन इन सात सरोवरों में स्नान करता है, वह पुनः योनि-चक्र में नहीं पड़ता॥ ४॥
ਸੁੰਨਹੁ ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਗੈਣਾਰੇ ॥ शून्य से ही उसने चाँद, सूर्य एवं गगन बनाए और
ਤਿਸ ਕੀ ਜੋਤਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸਾਰੇ ॥ उसकी ज्योति तीनों लोकों में फैली हुई है।
ਸੁੰਨੇ ਅਲਖ ਅਪਾਰ ਨਿਰਾਲਮੁ ਸੁੰਨੇ ਤਾੜੀ ਲਾਇਦਾ ॥੫॥ अलख, अपार निर्लिप्त परमात्मा स्वयं भी शून्य में ही समाया हुआ है और शून्य में ही समाधि लगाता है॥ ५॥
ਸੁੰਨਹੁ ਧਰਤਿ ਅਕਾਸੁ ਉਪਾਏ ॥ शून्य से ही धरती एवं आकाश उत्पन्न किए और
ਬਿਨੁ ਥੰਮਾ ਰਾਖੇ ਸਚੁ ਕਲ ਪਾਏ ॥ बिना स्तम्भ के अपनी सत्य की शक्ति से स्थित किया हुआ है।
ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸਾਜਿ ਮੇਖੁਲੀ ਮਾਇਆ ਆਪਿ ਉਪਾਇ ਖਪਾਇਦਾ ॥੬॥ उसने तीनों लोकों की रचना करके उन्हें माया रूपी रस्सी से बांध रखा है और वह स्वयं ही पैदा करके नष्ट भी कर देता है॥ ६॥
ਸੁੰਨਹੁ ਖਾਣੀ ਸੁੰਨਹੁ ਬਾਣੀ ॥ शून्य से ही जीवों की उत्पत्ति के चारों स्रोत अस्तित्व में आए और शून्य से ही चारों वाणियों आई।
ਸੁੰਨਹੁ ਉਪਜੀ ਸੁੰਨਿ ਸਮਾਣੀ ॥ ये सब शून्य से उत्पन्न होकर शून्य में ही विलीन हो गए।
ਉਤਭੁਜੁ ਚਲਤੁ ਕੀਆ ਸਿਰਿ ਕਰਤੈ ਬਿਸਮਾਦੁ ਸਬਦਿ ਦੇਖਾਇਦਾ ॥੭॥ करतार ने अपने शब्द द्वारा वनस्पति की रचना करके एक बड़ी अद्भुत लीला कर दिखाई है॥ ७॥
ਸੁੰਨਹੁ ਰਾਤਿ ਦਿਨਸੁ ਦੁਇ ਕੀਏ ॥ दिन और रात दोनों ही उसने शून्य से उत्पन्न किए और
ਓਪਤਿ ਖਪਤਿ ਸੁਖਾ ਦੁਖ ਦੀਏ ॥ इसी से जीवों को जन्म-मरण, दुख-सुख दिए हैं।
ਸੁਖ ਦੁਖ ਹੀ ਤੇ ਅਮਰੁ ਅਤੀਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਜ ਘਰੁ ਪਾਇਦਾ ॥੮॥ गुरुमुख सुख-दुख से रहित होकर अमर हो गया और उसने अपने सच्चे घर में स्थान पा लिया ॥८॥


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