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ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਰੋਗੁ ਗਵਾਇਆ ॥
जन्म-जन्मांतरों के विकारों से उत्पन्न रोग दूर हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਸਫਲ ਏਹਾ ਹੈ ਕਾਰੀ ਜੀਉ ॥੩॥
अतः दिन-रात भगवान् का भजन करते रहो, क्योंकि यही जीवन यात्रा में फलदायक है॥३॥
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਧਾਰਿ ਅਪਨਾ ਦਾਸੁ ਸਵਾਰਿਆ ॥
अपनी कृपा-दृष्टि से प्रभु ने अपने भक्त को आध्यात्मिक गुणों से सुशोभित किया है,
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨਮਸਕਾਰਿਆ ॥
वह भक्त प्रत्येक हृदय में विद्यमान प्रभु को नमस्कार करता है।
ਇਕਸੁ ਵਿਣੁ ਹੋਰੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਬਾਬਾ ਨਾਨਕ ਇਹ ਮਤਿ ਸਾਰੀ ਜੀਉ ॥੪॥੩੯॥੪੬॥
नानक कहते हैं कि, ईश्वर के अतिरिक्त उसके जैसा अन्य कोई नहीं है और यह ज्ञान सर्वश्रेष्ठ है॥ ४ ॥ ३९ ॥ ४६ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਰਤਾ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ॥
हे मेरे प्यारे मित्र, यदि तुम चाहते हो कि यह मन एवं तन प्रिय राम के प्रेम में ही मग्न रहे तो..
ਸਰਬਸੁ ਦੀਜੈ ਅਪਨਾ ਵਾਰੇ ॥
हमें अपना सर्वस्व ही प्रभु प्रेम के लिए न्योछावर कर देना चाहिए।
ਆਠ ਪਹਰ ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ਬਿਸਰੁ ਨ ਕੋਈ ਸਾਸਾ ਜੀਉ ॥੧॥
हमें दिन के आठ प्रहर भगवान् की महिमा-स्तुति करनी चाहिए और एक भी सांस लेते उस प्रभु को भूलना नहीं चाहिए॥१॥
ਸੋਈ ਸਾਜਨ ਮੀਤੁ ਪਿਆਰਾ ॥
वही मेरा प्रिय मित्र एवं सज्जन है,
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਬੀਚਾਰਾ ॥
जो सत्संग में राम के नाम का चिन्तन करता है।
ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਤਰੀਜੈ ਸਾਗਰੁ ਕਟੀਐ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸਾ ਜੀਉ ॥੨॥
संतों की संगति करने से ही हम विकार रूपी भवसागर को पार करते हैं और मृत्यु पाश कट जाता है।॥२॥
ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ॥
चारों पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रभु की भक्ति से प्राप्त होते हैं।
ਪਾਰਜਾਤੁ ਜਪਿ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ॥
अदृष्य एवं भेद रहित परमात्मा की उपासना करना सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले पौराणिक कल्प वृक्ष को प्राप्त करने के समान है।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਕਿਲਬਿਖ ਗੁਰਿ ਕਾਟੇ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਆਸਾ ਜੀਉ ॥੩॥
सत् गुरु जिस व्यक्ति के अन्तर्मन से काम, क्रोध एवं पाप निवृत कर देते हैं, उसकी प्रभु मिलन की आशा पूरी हो जाती है॥३॥
ਪੂਰਨ ਭਾਗ ਭਏ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥
वह नश्वर प्राणी जिसे उत्तम भाग्य का आर्शीवाद मिलता है,
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲੇ ਸਾਰੰਗਪਾਣੀ ॥
उसे संतों की संगति करने से भगवान् मिल जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਜਿਸੁ ਅੰਤਰਿ ਪਰਵਾਣੁ ਗਿਰਸਤ ਉਦਾਸਾ ਜੀਉ ॥੪॥੪੦॥੪੭॥
हे नानक ! जिसके हृदय में प्रभु का नाम निवास कर जाता है, वह गृहस्थ जीवन व्यतीत करताहुआ भी माया से उदासीन रहता है और भगवान् के दरबार में स्वीकृत हो जाता है।॥४॥४०॥४७॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
हरि का नाम-सिमरन करने से मुझे हृदय में सुख प्राप्त हुआ है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭਗਤੀ ਪ੍ਰਗਟਾਇਆ ॥
भगवान् के भक्तों ने कृपा करके उसे मेरे मन में प्रगट कर दिया है।
ਸੰਤਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਬਿਨਸੇ ਆਲਸ ਰੋਗਾ ਜੀਉ ॥੧॥
संतों की सभा में मिलकर मैंने हरि-प्रभु के नाम का ही जाप किया है और मेरा आलस्य रोग मिट गया है ॥१॥
ਜਾ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਹਰਿ ਭਾਈ ॥
हे भाई ! प्रभु का नाम नव निधियों के समान मूल्यवान है, जो उसी के ध्यान से मिलता है;
ਤਿਸੁ ਮਿਲਿਆ ਜਿਸੁ ਪੁਰਬ ਕਮਾਈ ॥
भगवान् उस व्यक्ति को ही मिलता है, जिसने पूर्व जन्म में नाम-सिमरन के शुभ कर्म किए हैं।
ਗਿਆਨ ਧਿਆਨ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸੁਰ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭਨਾ ਗਲਾ ਜੋਗਾ ਜੀਉ ॥੨॥
ऐसा व्यक्ति दिव्य ज्ञान और पूर्ण परमेश्वर पर ध्यान से धन्य होता है, (और वास्तव में विश्वास करता है कि) परमेश्वर सब कुछ करने में सक्षम है।॥२॥
ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਨਹਾਰਾ ॥
परमेश्वर क्षण में ही जगत् की उत्पति तथा विनाश करने वाला है।
ਆਪਿ ਇਕੰਤੀ ਆਪਿ ਪਸਾਰਾ ॥
वह स्वयं ही एकमात्र विरक्त हो जाता है, और वह स्वयं ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है।
ਲੇਪੁ ਨਹੀ ਜਗਜੀਵਨ ਦਾਤੇ ਦਰਸਨ ਡਿਠੇ ਲਹਨਿ ਵਿਜੋਗਾ ਜੀਉ ॥੩॥
प्रभु जगत् का जीवन एवं दाता है और माया उसे प्रभावित नहीं करती, वह निर्लिप्त है। उस प्रभु के दर्शन करने से विरह की पीड़ा निवृत हो जाती है। ॥३॥
ਅੰਚਲਿ ਲਾਇ ਸਭ ਸਿਸਟਿ ਤਰਾਈ ॥
वह परमात्मा मनुष्यों को अपना वस्त्र धारण कराकर (उन्हें गुरु से मिला कर) सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को विकारों के संसार सागर से तरने के योग्य बनाते हैं।
ਆਪਣਾ ਨਾਉ ਆਪਿ ਜਪਾਈ ॥
भगवान् गुरु द्वारा अपने नाम की जीवों से स्वयं ही आराधना करवाता है।
ਗੁਰ ਬੋਹਿਥੁ ਪਾਇਆ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਨਾਨਕ ਧੁਰਿ ਸੰਜੋਗਾ ਜੀਉ ॥੪॥੪੧॥੪੮॥
हे नानक ! केवल ईश्वर की कृपा और पूर्व-निर्धारित अच्छे भाग्य से ही मनुष्य को भवसागर पार करने के लिए मोक्ष के स्रोत गुरु की प्राप्ति होती है।॥४॥४१॥४८॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਸੋਈ ਕਰਣਾ ਜਿ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥
हे भगवान् ! मैं वही कुछ करता हूँ जो आप स्वयं ही मुझ से करवाते हो।
ਜਿਥੈ ਰਖੈ ਸਾ ਭਲੀ ਜਾਏ ॥
मेरे लिए वहीं स्थान उत्तम है, जिस स्थान पर आप मुझे रखते हो।
ਸੋਈ ਸਿਆਣਾ ਸੋ ਪਤਿਵੰਤਾ ਹੁਕਮੁ ਲਗੈ ਜਿਸੁ ਮੀਠਾ ਜੀਉ ॥੧॥
वहीं व्यक्ति बुद्धिमान और प्रतिष्ठित है जिसको ईश्वर की आज्ञा मीठी लगती है॥१॥
ਸਭ ਪਰੋਈ ਇਕਤੁ ਧਾਗੈ ॥
ईश्वर ने (संपूर्ण ब्रह्माण्ड को एक सार्वभौमिक नियम के अधीन कर दिया है, मानो उसने) सम्पूर्ण सृष्टि को माया रूपी एक सूत्र में पिरो दिया हो।
ਜਿਸੁ ਲਾਇ ਲਏ ਸੋ ਚਰਣੀ ਲਾਗੈ ॥
वही व्यक्ति भगवान् के चरणों में लगता है, जिसे वह स्वयं अपने चरणों में लगाता है।
ਊਂਧ ਕਵਲੁ ਜਿਸੁ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ਤਿਨਿ ਸਰਬ ਨਿਰੰਜਨੁ ਡੀਠਾ ਜੀਉ ॥੨॥
प्रबुद्ध हृदय वाला व्यक्ति सभी में ईश्वर को देखता है, और वह खिले हुए कमल के फूल के समान चमकता है।॥२॥
ਤੇਰੀ ਮਹਿਮਾ ਤੂੰਹੈ ਜਾਣਹਿ ॥
हे भगवान् ! अपनी महिमा को आप स्वयं ही जानते हो
ਅਪਣਾ ਆਪੁ ਤੂੰ ਆਪਿ ਪਛਾਣਹਿ ॥
और आप अपने स्वरूप को स्वयं ही पहचान सकते हो।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਸੰਤਨ ਤੇਰੇ ਜਿਨਿ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਪੀਠਾ ਜੀਉ ॥੩॥
मैं तेरे संतों पर बलिहारी जाता हूँ, जिन्होंने अपने काम, क्रोध एवं लालच को पीस दिया है॥३॥
ਤੂੰ ਨਿਰਵੈਰੁ ਸੰਤ ਤੇਰੇ ਨਿਰਮਲ ॥
हे ईश्वर ! आपमें कोई घृणा या प्रतिशोध नहीं है; आपके संत निष्कलंक और शुद्ध हैं।
ਜਿਨ ਦੇਖੇ ਸਭ ਉਤਰਹਿ ਕਲਮਲ ॥
जो लोग (गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं), उनके सभी पाप धुल जाते हैं।।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਧਿਆਇ ਜੀਵੈ ਬਿਨਸਿਆ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਧੀਠਾ ਜੀਉ ॥੪॥੪੨॥੪੯॥
हे नानक, जो भगवान् के नाम का ध्यान करता है, उसका आध्यात्मिक कायाकल्प हो जाता है तथा उसके सभी कठोर संदेह और भय दूर हो जाते हैं।॥४॥४२॥४९॥