Guru Granth Sahib Translation Project

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ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला ५ ॥ माझ महला,पांचवें गुरु द्वारा : ५ ॥
ਸਫਲ ਸੁ ਬਾਣੀ ਜਿਤੁ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੀ ॥ सफल सु बाणी जितु नामु वखाणी ॥ वहीं वाणी शुभ फलदायक है, जिससे हरि के नाम का जाप किया जाता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਕਿਨੈ ਵਿਰਲੈ ਜਾਣੀ ॥ गुर परसादि किनै विरलै जाणी ॥ कोई विरला ही पुरुष है, जिसने गुरु की कृपा से ऐसी वाणी को समझा है।
ਧੰਨੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਗਾਵਤ ਸੁਨਣਾ ਆਏ ਤੇ ਪਰਵਾਨਾ ਜੀਉ ॥੧॥ धंनु सु वेला जितु हरि गावत सुनणा आए ते परवाना जीउ ॥१॥ वह समय बड़ा शुभ है, जब परमात्मा का यशोगान किया जाता एवं सुना जाता है। जगत् में जन्म लेकर इस संसार में उस जीव का आगमन ही स्वीकृत है, जो भगवान् का यश गाते एवं सुनते हैं ॥ १॥
ਸੇ ਨੇਤ੍ਰ ਪਰਵਾਣੁ ਜਿਨੀ ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਾ ॥ से नेत्र परवाणु जिनी दरसनु पेखा ॥ धन्य हैं वह नेत्र, जिन्होंने भगवान् के दर्शन किए हैं।
ਸੇ ਕਰ ਭਲੇ ਜਿਨੀ ਹਰਿ ਜਸੁ ਲੇਖਾ ॥ से कर भले जिनी हरि जसु लेखा ॥ वह हाथ प्रशंसनीय है जो (ईश्वर की) उपमा लिखते हैं।
ਸੇ ਚਰਣ ਸੁਹਾਵੇ ਜੋ ਹਰਿ ਮਾਰਗਿ ਚਲੇ ਹਉ ਬਲਿ ਤਿਨ ਸੰਗਿ ਪਛਾਣਾ ਜੀਉ ॥੨॥ से चरण सुहावे जो हरि मारगि चले हउ बलि तिन संगि पछाणा जीउ ॥२॥ वह चरण सुन्दर हैं जो परमेश्वर के मार्ग पर चलते हैं। मैं स्वयं को ऐसे लोगों के प्रति समर्पित करता हूँ जिनकी संगति करके मैंने भगवान् को पहचान लिया है ॥२॥
ਸੁਣਿ ਸਾਜਨ ਮੇਰੇ ਮੀਤ ਪਿਆਰੇ ॥ सुणि साजन मेरे मीत पिआरे ॥ हे मेरे प्रिय मित्र एवं सज्जन ! कृपया मेरी प्रार्थना सुनो,"
ਸਾਧਸੰਗਿ ਖਿਨ ਮਾਹਿ ਉਧਾਰੇ ॥ साधसंगि खिन माहि उधारे ॥ हे पवित्र मण्डली, मुझ पर कृपा करें, सन्त व्यक्तियों की संगति में मनुष्य क्षण भर में विकारों से बच जाता है।
ਕਿਲਵਿਖ ਕਾਟਿ ਹੋਆ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਮਿਟਿ ਗਏ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਜੀਉ ॥੩॥ किलविख काटि होआ मनु निरमलु मिटि गए आवण जाणा जीउ ॥३॥ उसने मेरे पाप काट दिए हैं और मेरा मन निर्मल हो गया है। अब मैं जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो गया हूँ। ३॥
ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਇਕੁ ਬਿਨਉ ਕਰੀਜੈ ॥ दुइ कर जोड़ि इकु बिनउ करीजै ॥ प्रभु ! अपने दोनों हाथ जोड़कर मैं एक प्रार्थना करता हूँ।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਡੁਬਦਾ ਪਥਰੁ ਲੀਜੈ ॥ करि किरपा डुबदा पथरु लीजै ॥ मुझ पर दया कीजिए और डूबते हुए पत्थर को बचा लीजिए।
ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲਾ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਭਾਣਾ ਜੀਉ ॥੪॥੨੨॥੨੯॥ नानक कउ प्रभ भए क्रिपाला प्रभ नानक मनि भाणा जीउ ॥४॥२२॥२९॥ भगवान् नानक पर दयावान हो गए हैं और नानक को प्रसन्नचित्त करते हैं।॥ ४॥ २२॥ २९ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला ५ ॥ माझ महला,पांचवें गुरु द्वारा : ५ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤੇਰੀ ॥ अम्रित बाणी हरि हरि तेरी ॥ हे हरि-परमेश्वर ! आपकी वाणी अमृतमय है।
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਹੋਵੈ ਪਰਮ ਗਤਿ ਮੇਰੀ ॥ सुणि सुणि होवै परम गति मेरी ॥ इस अमृत वाणी को सुन-सुनकर मुझे सर्वोच्च आध्यात्मिक अवस्था प्राप्त हुई है।
ਜਲਨਿ ਬੁਝੀ ਸੀਤਲੁ ਹੋਇ ਮਨੂਆ ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਪਾਏ ਜੀਉ ॥੧॥ जलनि बुझी सीतलु होइ मनूआ सतिगुर का दरसनु पाए जीउ ॥१॥ सतगुरु की कृपापूर्ण दृष्टि और शिक्षा से, मेरे मन की तृष्णा रूपी दर्द का निर्वाह हो गया है और मेरा मन शीतल हो गया है॥ १॥
ਸੂਖੁ ਭਇਆ ਦੁਖੁ ਦੂਰਿ ਪਰਾਨਾ ॥ सूखु भइआ दुखु दूरि पराना ॥ मेरा सारा दुःख दूर हो गया और मेरे मन में शांति आ गई है।
ਸੰਤ ਰਸਨ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਨਾ ॥ संत रसन हरि नामु वखाना ॥ जब गुरु ने अपनी जिह्वा से भगवान् के नाम का गुणगान किया।
ਜਲ ਥਲ ਨੀਰਿ ਭਰੇ ਸਰ ਸੁਭਰ ਬਿਰਥਾ ਕੋਇ ਨ ਜਾਏ ਜੀਉ ॥੨॥ जल थल नीरि भरे सर सुभर बिरथा कोइ न जाए जीउ ॥२॥ जैसे वर्षा होने से सभी स्थान भर जाते हैं और नदियाँ उफान पर आ जाती हैं, उसी प्रकार पवित्र मण्डली में सभी प्रभु नाम के अमृत से संतृप्त हो जाते हैं और कोई भी नहीं छूटता। ॥ २॥
ਦਇਆ ਧਾਰੀ ਤਿਨਿ ਸਿਰਜਨਹਾਰੇ ॥ दइआ धारी तिनि सिरजनहारे ॥ सृजनहार प्रभु ने अपनी दया न्यौछावर की है
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥ जीअ जंत सगले प्रतिपारे ॥ और समस्त जीव-जन्तुओं को जीविका प्रदान की है।
ਮਿਹਰਵਾਨ ਕਿਰਪਾਲ ਦਇਆਲਾ ਸਗਲੇ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਏ ਜੀਉ ॥੩॥ मिहरवान किरपाल दइआला सगले त्रिपति अघाए जीउ ॥३॥ ईश्वर की परोपकारिता, कृपालुता एवं दयालुता के कारण, गुरु की शरण में आए हुए सभी जीव तृप्त एवं संतुष्ट हो जाते हैं तथा माया के बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं। ॥३॥
ਵਣੁ ਤ੍ਰਿਣੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣੁ ਕੀਤੋਨੁ ਹਰਿਆ ॥ वणु त्रिणु त्रिभवणु कीतोनु हरिआ ॥ ईश्वर ने ब्रह्माण्ड की सभी वन-तृण और प्राणियों को जीवन प्रदान किया है।
ਕਰਣਹਾਰਿ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਕਰਿਆ ॥ करणहारि खिन भीतरि करिआ ॥ कर्ता परमेश्वर ने एक क्षण में ही यह सब कुछ कर दिया।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਨਕ ਤਿਸੈ ਅਰਾਧੇ ਮਨ ਕੀ ਆਸ ਪੁਜਾਏ ਜੀਉ ॥੪॥੨੩॥੩੦॥ गुरमुखि नानक तिसै अराधे मन की आस पुजाए जीउ ॥४॥२३॥३०॥ हे नानक ! जो व्यक्ति गुरु के माध्यम से भगवान् की विनम्रतापूर्वक आराधना करता है, भगवान् उसके मन की सभी आशाएं पूरी कर देते हैं ॥ ४॥ २३॥ ३०॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला ५ ॥ माझ महला,पांचवें गुरु द्वारा : ५ ॥
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਪਿਤਾ ਤੂੰਹੈ ਮੇਰਾ ਮਾਤਾ ॥ तूं मेरा पिता तूंहै मेरा माता ॥ हे भगवान् ! आप ही मेरे पिता है एवं आप ही मेरी माता है।
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਬੰਧਪੁ ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਭ੍ਰਾਤਾ ॥ तूं मेरा बंधपु तूं मेरा भ्राता ॥ आप ही मेरे बन्धु हैं और आप ही मेरे भ्राता है।
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਰਾਖਾ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ਤਾ ਭਉ ਕੇਹਾ ਕਾੜਾ ਜੀਉ ॥੧॥ तूं मेरा राखा सभनी थाई ता भउ केहा काड़ा जीउ ॥१॥ जब तू ही समस्त स्थानों में मेरा रक्षक है तो मुझे कैसा भय व चिंता कैसी होगी ॥ १॥
ਤੁਮਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਤੁਧੁ ਪਛਾਣਾ ॥ तुमरी क्रिपा ते तुधु पछाणा ॥ आपकी दया से मैं आपको समझता हूँ।
ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਓਟ ਤੂੰਹੈ ਮੇਰਾ ਮਾਣਾ ॥ तूं मेरी ओट तूंहै मेरा माणा ॥ आप ही मेरा आश्रय है और आप ही मेरी प्रतिष्ठा है।
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ਖੇਲੁ ਅਖਾੜਾ ਜੀਉ ॥੨॥ तुझ बिनु दूजा अवरु न कोई सभु तेरा खेलु अखाड़ा जीउ ॥२॥ तेरे बिना मेरा अन्य कोई नहीं। यह सारी सृष्टि तेरी एक खेल है और यह धरती जीवों के लिए जीवन खेल का मैदान है॥ २॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤੁਧੁ ਉਪਾਏ ॥ जीअ जंत सभि तुधु उपाए ॥ हे भगवान ! समस्त जीव-जन्तु तूने ही उत्पन्न किए हैं।
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਭਾਣਾ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਾਏ ॥ जितु जितु भाणा तितु तितु लाए ॥ जिस तरह तेरी इच्छा है वैसे ही कार्यों में तूने उन्हें कार्यरत किया है।
ਸਭ ਕਿਛੁ ਕੀਤਾ ਤੇਰਾ ਹੋਵੈ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਅਸਾੜਾ ਜੀਉ ॥੩॥ सभ किछु कीता तेरा होवै नाही किछु असाड़ा जीउ ॥३॥ जगत् में जो कुछ भी हो रहा है, सब तेरा ही किया हो रहा है। इसमें हमारा कुछ भी नहीं ॥ ३ ॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ नामु धिआइ महा सुखु पाइआ ॥ तेरे नाम की आराधना करने से मुझे महासुख प्राप्त हुआ है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਸੀਤਲਾਇਆ ॥ हरि गुण गाइ मेरा मनु सीतलाइआ ॥ हरि प्रभु का यशोगान करने से मेरा मन शीतल हो गया है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ਨਾਨਕ ਜਿਤਾ ਬਿਖਾੜਾ ਜੀਉ ॥੪॥੨੪॥੩੧॥ गुरि पूरै वजी वाधाई नानक जिता बिखाड़ा जीउ ॥४॥२४॥३१॥ हे नानक ! पूर्ण गुरु की दया से मैंने काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी विषम मैदान-ए-जंग जीत लिया है और मुझे विजय की शुभकामनाएँ मिल रही हैं॥॥ ४ ॥ २४ ॥ ३१ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला ५ ॥ माझ महला,पांचवें गुरु द्वारा : ५ ॥
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਣ ਪ੍ਰਭ ਮਨਹਿ ਅਧਾਰਾ ॥ जीअ प्राण प्रभ मनहि अधारा ॥ भगवान् अपने भक्तों की आत्मा, प्राण एवं मन का आधार है।
ਭਗਤ ਜੀਵਹਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਅਪਾਰਾ ॥ भगत जीवहि गुण गाइ अपारा ॥ भक्त भगवान् की अपार महिमा-स्तुति गायन करके ही जीते हैं।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ਧਿਆਇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜੀਉ ॥੧॥ गुण निधान अम्रितु हरि नामा हरि धिआइ धिआइ सुखु पाइआ जीउ ॥१॥ भगवान् का नाम अमृत एवं गुणों का भण्डार है और भगवान् के भक्त उसका नाम-सिमरन करके बड़ा सुख प्राप्त करते हैं।॥ १॥
ਮਨਸਾ ਧਾਰਿ ਜੋ ਘਰ ਤੇ ਆਵੈ ॥ मनसा धारि जो घर ते आवै ॥ जो व्यक्ति ईश्वर से एकाकार की अभिलाषा धारण करके घर से आता है,
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਨਮੁ ਮਰਣੁ ਮਿਟਾਵੈ ॥ साधसंगि जनमु मरणु मिटावै ॥ वह संतों की संगति करके अपना जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।


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