Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 53

ਭਾਈ ਰੇ ਸਾਚੀ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵ ॥ हे भाई ! केवल सतगुरु की श्रद्धापूर्वक निष्काम सेवा ही सत्य है।
ਸਤਿਗੁਰ ਤੁਠੈ ਪਾਈਐ ਪੂਰਨ ਅਲਖ ਅਭੇਵ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जब सतिगुरु परम-प्रसन्न हो जाते हैं, तभी सर्वव्यापक अगाध, अदृश्य स्वामी प्राप्त होता है ॥१॥ रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਟਹੁ ਵਾਰਿਆ ਜਿਨਿ ਦਿਤਾ ਸਚੁ ਨਾਉ ॥ मैं सतगुरु पर बलिहारी जाता हूँ, जिसने मुझे सत्य-नाम प्रदान किया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਚੁ ਸਲਾਹਣਾ ਸਚੇ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥ अब तो रात्रि-दिवस उस सत्यपुरुष का यशोगान करता रहता हूँ और सत्य की ही मैं कीर्ति करता रहता हूँ।
ਸਚੁ ਖਾਣਾ ਸਚੁ ਪੈਨਣਾ ਸਚੇ ਸਚਾ ਨਾਉ ॥੨॥ उस सत्य स्वरूप परमात्मा का भोजन भी सत्य है और उसकी पोशाक भी सत्य है और उस सच्चे प्रभु के सत्य नाम का स्मरण करता हूँ॥ २॥
ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਨ ਵਿਸਰੈ ਸਫਲੁ ਮੂਰਤਿ ਗੁਰੁ ਆਪਿ ॥ हे प्राणी ! श्वास लेते तथा भोजनपान करते मुझे गुरु कभी विस्मृत नहीं होते, जो स्वयं ही दाता गुरु-मूर्ति हैं।
ਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦਿਸਈ ਆਠ ਪਹਰ ਤਿਸੁ ਜਾਪਿ ॥ गुरु के समान अन्य कोई भी दिखाई नहीं देता, इसलिए दिन के आठों पहर उनकी ही वंदना करनी चाहिए।
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਪਾਈਐ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਗੁਣਤਾਸਿ ॥੩॥ यदि गुरु जी अपनी कृपा-दृष्टि करें, तब मनुष्य गुणों के भण्डार सत्य नाम को पा लेता है ॥३॥
ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਏਕੁ ਹੈ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥ गुरदेव एवं ईश्वर एक है और ईश्वर रूप गुरु सब के भीतर व्यापक हो रहा है।
ਜਿਨ ਕਉ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਸੇਈ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥ जिनके सुकर्मों से भाग्य में लिखा हो तो वह ईश्वर के नाम का सिमरन करते हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਰਣਾਗਤੀ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥੪॥੩੦॥੧੦੦॥ हे नानक ! गुरु के आश्रय में आने से जन्म-मरण का चक्कर छूट गया है, वह अब पुनः आवागमन के चक्कर में नहीं आएगा ॥४॥ ३०॥१००॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਅਸਟਪਦੀਆ ॥
ਆਖਿ ਆਖਿ ਮਨੁ ਵਾਵਣਾ ਜਿਉ ਜਿਉ ਜਾਪੈ ਵਾਇ ॥ हमारे मन में उठने वाली भावों की तरंगों के संग हम प्रभु की स्तुति कर सकते हैं और गा सकते हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਵਾਇ ਸੁਣਾਈਐ ਸੋ ਕੇਵਡੁ ਕਿਤੁ ਥਾਇ ॥ जिसे मन वाद्य बजा कर सुनाया जाता है, वह कितना महान है और किस स्थान पर रहता है।
ਆਖਣ ਵਾਲੇ ਜੇਤੜੇ ਸਭਿ ਆਖਿ ਰਹੇ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੧॥ जितने भी अल्लाह का यश करने वाले है, वह सभी उसका यश करते एवं उसमें सुरति मन लगाते हैं ॥१॥
ਬਾਬਾ ਅਲਹੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰੁ ॥ हे बाबा ! अल्लाह अगम्य एवं अपार है।
ਪਾਕੀ ਨਾਈ ਪਾਕ ਥਾਇ ਸਚਾ ਪਰਵਦਿਗਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उस अल्लाह का नाम बड़ा पवित्र है तथा बड़ा ही पावन स्थल है जहाँ वह रहता है। वह सदैव सत्य है और सारे संसार का पालन पोषण करता है ॥१॥ रहाउ॥
ਤੇਰਾ ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਪੀ ਕੇਤੜਾ ਲਿਖਿ ਨ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥ हे परमेश्वर ! कोई ज्ञान नहीं होता कि तेरा हुक्म कितना महान है? कोई भी तेरे हुक्म को नहीं जानता और न ही वह उसे लिख सकता है।
ਜੇ ਸਉ ਸਾਇਰ ਮੇਲੀਅਹਿ ਤਿਲੁ ਨ ਪੁਜਾਵਹਿ ਰੋਇ ॥ यदि सैंकड़ों कवि एकत्रित हो जाएँ, वे भी तेरे हुक्म को तिल-मात्र वर्णन करने में भी समर्थ नहीं।
ਕੀਮਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈਆ ਸਭਿ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਆਖਹਿ ਸੋਇ ॥੨॥ कोई भी तेरा मूल्यांकन करने में समर्थ नहीं हो सका, सभी लोग दूसरों से सुन कर तेरे बारे कहते जाते हैं।॥२॥
ਪੀਰ ਪੈਕਾਮਰ ਸਾਲਕ ਸਾਦਕ ਸੁਹਦੇ ਅਉਰੁ ਸਹੀਦ ॥ कोई भी तेरा मूल्यांकन करने में समर्थ नहीं हो सका, सभी लोग दूसरों से सुन कर तेरे बारे कहते जाते हैं।॥२॥
ਸੇਖ ਮਸਾਇਕ ਕਾਜੀ ਮੁਲਾ ਦਰਿ ਦਰਵੇਸ ਰਸੀਦ ॥ शेख, काजी, मुल्लां, दरवेश, साहिब के दरबार में पहुँचे हुए साधु,"
ਬਰਕਤਿ ਤਿਨ ਕਉ ਅਗਲੀ ਪੜਦੇ ਰਹਨਿ ਦਰੂਦ ॥੩॥ जो प्रभु का यशोगान करते रहते हैं उन्हें प्रभु की कृपा से बड़ा यश प्राप्त होता है॥३॥
ਪੁਛਿ ਨ ਸਾਜੇ ਪੁਛਿ ਨ ਢਾਹੇ ਪੁਛਿ ਨ ਦੇਵੈ ਲੇਇ ॥ परमात्मा जब सृष्टि का निर्माण करता है तो वह किसी की सलाह नहीं लेता और जब विनाश करता है तो भी किसी की सलाह नहीं लेता। वह जीवों को दान किसी से पूछकर नहीं देता और न ही किसी से पूछकर उनसे वापिस लेता है।
ਆਪਣੀ ਕੁਦਰਤਿ ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਆਪੇ ਕਰਣੁ ਕਰੇਇ ॥ अपनी प्रकृति को वह स्वयं ही जानता है और वह स्वयं ही सारे कार्य सम्पूर्ण करता है।
ਸਭਨਾ ਵੇਖੈ ਨਦਰਿ ਕਰਿ ਜੈ ਭਾਵੈ ਤੈ ਦੇਇ ॥੪॥ वह सबको समान कृपा दृष्टि से देखता है। परन्तु वह उसको फल प्रदान करता है। जिस पर उसकी प्रसन्नता होती है । ॥४॥
ਥਾਵਾ ਨਾਵ ਨ ਜਾਣੀਅਹਿ ਨਾਵਾ ਕੇਵਡੁ ਨਾਉ ॥ नाम ने इतने स्थान रचे हुए हैं कि उनके नाम जाने नहीं जा सकते। उस प्रभु का नाम कितना महान् है इस बारे असमर्थ मनुष्य अनभिज्ञ हैं।
ਜਿਥੈ ਵਸੈ ਮੇਰਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਸੋ ਕੇਵਡੁ ਹੈ ਥਾਉ ॥ वह स्थान कितना महान् है, जहाँ मेरा पारब्रह्म परमेश्वर निवास करता है?"
ਅੰਬੜਿ ਕੋਇ ਨ ਸਕਈ ਹਉ ਕਿਸ ਨੋ ਪੁਛਣਿ ਜਾਉ ॥੫॥ वहाँ तक कोई भी प्राणी नहीं पहुँच सकता। मैं वहाँ तक जाने का रहस्य किससे पूछू॥५॥
ਵਰਨਾ ਵਰਨ ਨ ਭਾਵਨੀ ਜੇ ਕਿਸੈ ਵਡਾ ਕਰੇਇ ॥ जब प्रभु किसी एक को बड़ा करता है तो उसे उसकी उच्च अथवा निम्न जाति अच्छी नहीं लगती।
ਵਡੇ ਹਥਿ ਵਡਿਆਈਆ ਜੈ ਭਾਵੈ ਤੈ ਦੇਇ ॥ परमात्मा समर्थ शाली है, वह जिसे चाहे बड़ाई दे सकता है लेकिन बड़ाई उसी को देता है जिसे वह पसंद करता है।
ਹੁਕਮਿ ਸਵਾਰੇ ਆਪਣੈ ਚਸਾ ਨ ਢਿਲ ਕਰੇਇ ॥੬॥ सब कुछ उसी के वश में है। वह अपनी आज्ञा से उसका जीवन संवार देता है। परमेश्वर क्षण मात्र भी विलम्ब नहीं होने देता ॥६॥
ਸਭੁ ਕੋ ਆਖੈ ਬਹੁਤੁ ਬਹੁਤੁ ਲੈਣੈ ਕੈ ਵੀਚਾਰਿ ॥ उससे प्राप्ति के विचार से सभी इसकी महानता का गुणगान करते हैं कि “मुझे और अधिक प्रदान करो, और अधिक।” किन्तु वह प्रभु बड़ा दानशील है।
ਕੇਵਡੁ ਦਾਤਾ ਆਖੀਐ ਦੇ ਕੈ ਰਹਿਆ ਸੁਮਾਰਿ ॥ वह गणना से बाहर अनगिनत बेअंत फल प्रदान करता है।
ਨਾਨਕ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵਈ ਤੇਰੇ ਜੁਗਹ ਜੁਗਹ ਭੰਡਾਰ ॥੭॥੧॥ हे नानक ! उस परमात्मा के भण्डार असीम हैं, प्रत्येक युग में परिपूर्ण हैं और कदाचित् उनमें कमी नहीं आती ॥७॥१॥
ਮਹਲਾ ੧ ॥ महला १ ॥
ਸਭੇ ਕੰਤ ਮਹੇਲੀਆ ਸਗਲੀਆ ਕਰਹਿ ਸੀਗਾਰੁ ॥ समस्त जीव उस प्राणपति (प्रभु) की स्त्रियाँ हैं एवं सभी जीव-स्त्रियों उसे प्रसन्न करने के लिए हार-श्रृंगार करती हैं।
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