Guru Granth Sahib Translation Project

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ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ਪਹਿਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ॥ राग सिरी, प्रथम गुरु, प्रथम ताल। १ ॥
ਮੋਤੀ ਤ ਮੰਦਰ ਊਸਰਹਿ ਰਤਨੀ ਤ ਹੋਹਿ ਜੜਾਉ ॥ यदि मेरे लिए मोती व रत्न जड़ित भवन निर्मित हो जाएँ।
ਕਸਤੂਰਿ ਕੁੰਗੂ ਅਗਰਿ ਚੰਦਨਿ ਲੀਪਿ ਆਵੈ ਚਾਉ ॥ उन भवनों पर कस्तूरी, केसर, सुगंधित काष्ठ व चंदन की लकड़ी आदि के लेपन करके मन में उत्साह पैदा हो जाए।
ਮਤੁ ਦੇਖਿ ਭੂਲਾ ਵੀਸਰੈ ਤੇਰਾ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ਨਾਉ ॥੧॥ कहीं ऐसा न हो कि इन्हें देखकर मैं भूल जाऊँ और निरंकार का नाम अपने हृदय से विस्मृत कर दूँ। (इसलिए मैं ऐसे भ्रमित करने वाले पदार्थों की ओर देखता भी नहीं हूँ)॥ १॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਜੀਉ ਜਲਿ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥ ईश्वर से अलग होकर मेरा शरीर ऐसी पीड़ा सहता है, जैसे वह अग्नि में जलकर झुलस गया हो।
ਮੈ ਆਪਣਾ ਗੁਰੁ ਪੂਛਿ ਦੇਖਿਆ ਅਵਰੁ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैंने अपने अराध्य इष्ट से पूछ कर देख लिया है कि निरंकार के अतिरिक्त अन्य कोई पदार्थ व स्थान जीव की मुक्ति के योग्य नहीं है॥ १॥ रहाउ ॥
ਧਰਤੀ ਤ ਹੀਰੇ ਲਾਲ ਜੜਤੀ ਪਲਘਿ ਲਾਲ ਜੜਾਉ ॥ धरती में हीरे जड़े हुए हों, मेरे घर में पड़ा पलंघ लाल-रत्न से सुशोभित हो।
ਮੋਹਣੀ ਮੁਖਿ ਮਣੀ ਸੋਹੈ ਕਰੇ ਰੰਗਿ ਪਸਾਉ ॥ घर में मन को मोह लेने वाली सुन्दर स्त्रियों का मुख मणियों की भाँति प्रकाशमान हो और वे प्रेम-भाव का आनंद प्रकट करती हों।
ਮਤੁ ਦੇਖਿ ਭੂਲਾ ਵੀਸਰੈ ਤੇਰਾ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ਨਾਉ ॥੨॥ कहीं ऐसा न हो कि इन्हें देखकर मैं भूल जाऊँ और निरंकार का नाम अपने हृदय से विस्मृत कर दूँ। (इसलिए मैं ऐसे भ्रमित करने वाले पदार्थों की ओर देखता भी नहीं हूँ) ॥२॥
ਸਿਧੁ ਹੋਵਾ ਸਿਧਿ ਲਾਈ ਰਿਧਿ ਆਖਾ ਆਉ ॥ सिद्ध होकर सिद्धियाँ भी लगाऊं और ऋद्धियों भी कहने मात्र से मेरे पास आ जाएँ।
ਗੁਪਤੁ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ਬੈਸਾ ਲੋਕੁ ਰਾਖੈ ਭਾਉ ॥ स्वेच्छा से अलोक व आलोक हो जाऊँ, जिससे लोगों के मन में मेरे प्रति श्रद्धा पैदा हो।
ਮਤੁ ਦੇਖਿ ਭੂਲਾ ਵੀਸਰੈ ਤੇਰਾ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ਨਾਉ ॥੩॥ कहीं ऐसा न हो कि इन शक्तियों से भ्रमित होकर मैं भूल जाऊँ और निरंकार का नाम अपने हृदय से विस्मृत कर दूँ। इसलिए मैं ऐसे भ्रमित करने वाले पदार्थों की ओर देखता भी नहीं हूँ॥ ३॥
ਸੁਲਤਾਨੁ ਹੋਵਾ ਮੇਲਿ ਲਸਕਰ ਤਖਤਿ ਰਾਖਾ ਪਾਉ ॥ बादशाह होकर सेना एकत्रित कर लूं और सिंहासन पर विराजमान हो जाऊँ
ਹੁਕਮੁ ਹਾਸਲੁ ਕਰੀ ਬੈਠਾ ਨਾਨਕਾ ਸਭ ਵਾਉ ॥ वहाँ बैठ कर जो चाहूँ आदेश करके प्राप्त कर लूं, सतगुरु जी कहते हैं कि यह सब कुछ व्यर्थ है।
ਮਤੁ ਦੇਖਿ ਭੂਲਾ ਵੀਸਰੈ ਤੇਰਾ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ਨਾਉ ॥੪॥੧॥ कहीं ऐसा न हो कि इन शक्तियों से भ्रमित होकर मैं भूल जाऊँ और निरंकार का नाम अपने हृदय से विस्मृत कर दूँ॥ ४ ॥ १॥
ਸਿਰੀਰਾਗੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥ सिरी राग, प्रथम गुरु: १ ॥
ਕੋਟਿ ਕੋਟੀ ਮੇਰੀ ਆਰਜਾ ਪਵਣੁ ਪੀਅਣੁ ਅਪਿਆਉ ॥ हे निरंकार ! निःसंदेह मेरी आयु करोड़ों युगों तक हो जाए (समस्त पदार्थों को छोड़कर) पवन ही मेरा खाना-पीना हो।
ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਦੁਇ ਗੁਫੈ ਨ ਦੇਖਾ ਸੁਪਨੈ ਸਉਣ ਨ ਥਾਉ ॥ जहाँ पर चंद्रमा व सूर्य दोनों का प्रवेश न हो, ऐसी गुफा में बैठ कर मैं आपका चिन्तन करूँ और स्वप्न में भी निद्रा का स्थान न हो।
ਭੀ ਤੇਰੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਹਉ ਕੇਵਡੁ ਆਖਾ ਨਾਉ ॥੧॥ (ऐसी कठिन तपस्या करने के उपरान्त भी) हे भगवान् ! तो भी मैं आपका मूल्यांकन नहीं कर सकता, मैं आपके नाम की महानता का वर्णन कैसे करूँ? ॥ १ ॥
ਸਾਚਾ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਨਿਜ ਥਾਇ ॥ सत्यस्वरूप निरंकार सदा अपनी महिमा में ही स्थित है।
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਆਖਣੁ ਆਖਣਾ ਜੇ ਭਾਵੈ ਕਰੇ ਤਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ शास्त्रों से अध्ययन करके ही कोई उसके गुणों को कथन करता है, किन्तु जिस पर निरंकार की कृपा होती है उसी में (उसके गुण श्रवण व कथन करने की) जिज्ञासा उत्पन्न होती है॥ १॥ रहाउ॥
ਕੁਸਾ ਕਟੀਆ ਵਾਰ ਵਾਰ ਪੀਸਣਿ ਪੀਸਾ ਪਾਇ ॥ यदि मैं पुनः पुनः कष्ट देकर काट दिया जाऊँ तथा चक्की में डाल कर पीस दिया जाऊँ।
ਅਗੀ ਸੇਤੀ ਜਾਲੀਆ ਭਸਮ ਸੇਤੀ ਰਲਿ ਜਾਉ ॥ अग्नि में मेरे शरीर को जला दिया जाए अथवा शरीर को भस्म लगा कर रखूँ
ਭੀ ਤੇਰੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਹਉ ਕੇਵਡੁ ਆਖਾ ਨਾਉ ॥੨॥ हे भगवान् ! तो भी मैं आपका मूल्यांकन नहीं कर सकता, मैं आपके नाम की महानता का वर्णन कैसे करूँ? ॥ २॥
ਪੰਖੀ ਹੋਇ ਕੈ ਜੇ ਭਵਾ ਸੈ ਅਸਮਾਨੀ ਜਾਉ ॥ (सिद्धियों के बल पर) मैं पक्षी बनकर आकाश में भ्रमण करूं और इतना ऊँचा चला जाऊँ कि सैंकड़ों ही आसमान छू लूं।
ਨਦਰੀ ਕਿਸੈ ਨ ਆਵਊ ਨਾ ਕਿਛੁ ਪੀਆ ਨ ਖਾਉ ॥ ऐसा सूक्ष्म हो जाऊँ कि किसी की दृष्टि में न आऊं और न कुछ पीऊं न कुछ खाऊं।
ਭੀ ਤੇਰੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਹਉ ਕੇਵਡੁ ਆਖਾ ਨਾਉ ॥੩॥ हे भगवान् ! तो भी मैं आपका मूल्यांकन नहीं कर सकता, मैं आपके नाम की महानता का वर्णन कैसे करूँ? ॥ ३॥


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