Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 13

ਰਾਗੁ ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ रागु धनासरी महला १ ॥
ਗਗਨ ਮੈ ਥਾਲੁ ਰਵਿ ਚੰਦੁ ਦੀਪਕ ਬਨੇ ਤਾਰਿਕਾ ਮੰਡਲ ਜਨਕ ਮੋਤੀ ॥ सम्पूर्ण गगन रूपी थाल में सूर्य व चंद्रमा दीपक बने हुए हैं, तारों का समूह जैसे थाल में मोती जड़े हुए हों।
ਧੂਪੁ ਮਲਆਨਲੋ ਪਵਣੁ ਚਵਰੋ ਕਰੇ ਸਗਲ ਬਨਰਾਇ ਫੂਲੰਤ ਜੋਤੀ ॥੧॥ मलय पर्वत की ओर से आने वाली चंदन की सुगंध धूप के समान है, वायु चंवर कर रही है, समस्त वनस्पति जो फूल आदि खिलते हैं, ज्योति स्वरूप अकाल पुरख की आरती के लिए समर्पित हैं।॥ १॥
ਕੈਸੀ ਆਰਤੀ ਹੋਇ ॥ ਭਵ ਖੰਡਨਾ ਤੇਰੀ ਆਰਤੀ ॥ प्रकृति में तेरी कैसी अलौकिक आरती हो रही है सृष्टि के जीवों का जन्म-मरण नाश करने वाले हे प्रभु !
ਅਨਹਤਾ ਸਬਦ ਵਾਜੰਤ ਭੇਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कि जो एक रस वेद ध्वनि हो रही है वह मानों नगारे बज रहे हों। ॥१॥ रहाउ॥
ਸਹਸ ਤਵ ਨੈਨ ਨਨ ਨੈਨ ਹਹਿ ਤੋਹਿ ਕਉ ਸਹਸ ਮੂਰਤਿ ਨਨਾ ਏਕ ਤੋੁਹੀ ॥ हे सर्वव्यापक निराकार ईश्वर ! तुम्हारी हज़ारों आँखें हैं, लेकिन निर्गुण स्वरूप में तुम्हारी कोई भी आँख नहीं है, इसी प्रकार हज़ारों तुम्हारी मूर्तियाँ हैं, परंतु तुम्हारा एक भी रूप नहीं हैं क्योंकि तुम निर्गुण स्वरूप हों,
ਸਹਸ ਪਦ ਬਿਮਲ ਨਨ ਏਕ ਪਦ ਗੰਧ ਬਿਨੁ ਸਹਸ ਤਵ ਗੰਧ ਇਵ ਚਲਤ ਮੋਹੀ ॥੨॥ सगुण स्वरूप में तुम्हारे हज़ारों निर्मल चरण-कमल हैं किंतु तुम्हारा निर्गुण स्वरूप होने के कारण एक भी चरण नहीं है, तुम घाणेन्द्रिय (नासिका) रहित भी हो और तुम्हारी हज़ारों ही नासिकाएँ है; तुम्हारा यह आश्चर्यजनक स्वरूप मुझे मोहित कर रहा है॥ २॥
ਸਭ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਜੋਤਿ ਹੈ ਸੋਇ ॥ सृष्टि के समस्त प्राणियों में उस ज्योति-स्वरूप की ज्योति ही प्रकाशमान है।
ਤਿਸ ਦੈ ਚਾਨਣਿ ਸਭ ਮਹਿ ਚਾਨਣੁ ਹੋਇ ॥ उसी की प्रकाश रूपी कृपा से सभी में जीवन का प्रकाश है।
ਗੁਰ ਸਾਖੀ ਜੋਤਿ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥ किंतु गुरु उपदेश द्वारा ही इस ज्योति का बोध होता है।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੁ ਆਰਤੀ ਹੋਇ ॥੩॥ जो उस ईश्वर को भला लगता है वही उसकी आरती होती है॥ ३॥
ਹਰਿ ਚਰਣ ਕਵਲ ਮਕਰੰਦ ਲੋਭਿਤ ਮਨੋ ਅਨਦਿਨੋੁ ਮੋਹਿ ਆਹੀ ਪਿਆਸਾ ॥ हरि के चरण रूपी पुष्पों के रस को मेरा मन लालायित है, नित्य-प्रति मुझे इसी रस की प्यास रहती है।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਜਲੁ ਦੇਹਿ ਨਾਨਕ ਸਾਰਿੰਗ ਕਉ ਹੋਇ ਜਾ ਤੇ ਤੇਰੈ ਨਾਇ ਵਾਸਾ ॥੪॥੩॥ हे निरंकार ! मुझ नानक पपीहे को अपना कृपा-जल दो, जिससे मेरे मन का टिकाव तुम्हारे नाम में हो जाए॥ ४॥ ३॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ रागु गउड़ी पूरबी महला ४ ॥
ਕਾਮਿ ਕਰੋਧਿ ਨਗਰੁ ਬਹੁ ਭਰਿਆ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਖੰਡਲ ਖੰਡਾ ਹੇ ॥ यह मानव शरीर काम व क्रोध जैसे विकारों से पूरी तरह भरा हुआ है; लेकिन सन्तजनों के मिलाप से तुमने काम, क्रोध को क्षीण कर दिया हैं।
ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਤ ਲਿਖੇ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਮਨਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਮੰਡਲ ਮੰਡਾ ਹੇ ॥੧॥ जिस मनुष्य ने पूर्व लिखित कर्मो के माध्यम से गुरु को प्राप्त किया है, उसका चंचल मन ही ईश्वर में लीन हुआ है॥ १॥
ਕਰਿ ਸਾਧੂ ਅੰਜੁਲੀ ਪੁਨੁ ਵਡਾ ਹੇ ॥ संत-जनों को हाथ जोड़कर वंदना करना बड़ा पुण्य कर्म है।
ਕਰਿ ਡੰਡਉਤ ਪੁਨੁ ਵਡਾ ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उन्हें दण्डवत् प्रणाम करना भी महान् पुण्य कार्य है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਕਤ ਹਰਿ ਰਸ ਸਾਦੁ ਨ ਜਾਣਿਆ ਤਿਨ ਅੰਤਰਿ ਹਉਮੈ ਕੰਡਾ ਹੇ ॥ पतित मनुष्यों (माया में लिप्त अथवा जो परमेश्वर से विस्मृत) ने अकाल पुरख के रस का आनंद नहीं पाया,क्योंकि उनके अंतर में अहंकार रूपी कांटा होता है।
ਜਿਉ ਜਿਉ ਚਲਹਿ ਚੁਭੈ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਜਮਕਾਲੁ ਸਹਹਿ ਸਿਰਿ ਡੰਡਾ ਹੇ ॥੨॥ जैसे-जैसे वह अहंकारवश जीवन मार्ग पर चलते हैं, वह अहं का कांटा उन्हें चुभ-चुभ कर कष्ट देता रहता है और अंतिम समय में यमों द्वारा दी जाने वाली यातना को सहन करते हैं।॥ २ ॥
ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੇ ਦੁਖੁ ਜਨਮ ਮਰਣ ਭਵ ਖੰਡਾ ਹੇ ॥ इसके अतिरिक्त जो मानव जीव सांसारिक वैभव अथवा भौतिक पदार्थों का त्याग करके परमेश्वर के भक्त बन कर उसके सिमरन में लीन रहते हैं, वें आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त करके संसार के दु:खों से छूट जाते हैं,
ਅਬਿਨਾਸੀ ਪੁਰਖੁ ਪਾਇਆ ਪਰਮੇਸਰੁ ਬਹੁ ਸੋਭ ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡਾ ਹੇ ॥੩॥ उन्हें नाश रहित सर्वव्यापक परमात्मा मिल जाता हैं और खण्डों-ब्रह्मण्डों में उनको शोभायमान किया जाता है॥ ३||
ਹਮ ਗਰੀਬ ਮਸਕੀਨ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੇ ਹਰਿ ਰਾਖੁ ਰਾਖੁ ਵਡ ਵਡਾ ਹੇ ॥ हे प्रभु ! हम निर्धन व निराश्रय तुम्हारे ही अधीन हैं, तुम सर्वोच्चतम शक्ति हो, इसलिए हमें इन विकारों से बचा लो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਟੇਕ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਮੰਡਾ ਹੇ ॥੪॥੪॥ हे नानक ! जीव को तुम्हारे ही नाम का आश्रय है, हरि के नाम में लिप्त होने से ही आत्मिक सुखों की प्राप्ति होती है॥ ४॥ ४॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रागु गउड़ी पूरबी महला ५ ॥
ਕਰਉ ਬੇਨੰਤੀ ਸੁਣਹੁ ਮੇਰੇ ਮੀਤਾ ਸੰਤ ਟਹਲ ਕੀ ਬੇਲਾ ॥ हे सत्संगी मित्रो ! सुनो, मैं तुम्हे प्रार्थना करता हूँ कि यह जो मानव शरीर प्राप्त हुआ हैं, वह संत जनों की सेवा करने का शुभावसर है।
ਈਹਾ ਖਾਟਿ ਚਲਹੁ ਹਰਿ ਲਾਹਾ ਆਗੈ ਬਸਨੁ ਸੁਹੇਲਾ ॥੧॥ यदि सेवा करोगे तो इस जन्म में प्रभु के नाम-सिमरन का लाभ प्राप्त होगा, जिससे परलोक में वास सरलता से होगा ॥ १॥
ਅਉਧ ਘਟੈ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਾਰੇ ॥ हे मन ! समय व्यतीत होते हुए निशदिन यह उम्र कम हो रही है।
ਮਨ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਕਾਜ ਸਵਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इसलिए तुम गुरु से मिलकर उनकी शिक्षा ग्रहण करके अपने जीवन के पार हेतु समस्त कार्य पूर्ण कर लो॥ १॥ रहाउ॥
ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਬਿਕਾਰੁ ਸੰਸੇ ਮਹਿ ਤਰਿਓ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ॥ इस जगत् में समस्त जीव काम-क्रोधादि विकारों और भ्रमों में लिप्त हैं, यहाँ से कोई तत्वेता यानी ब्रह्म का ज्ञान रखने वाला ही मोक्ष को प्राप्त हुआ है।
ਜਿਸਹਿ ਜਗਾਇ ਪੀਆਵੈ ਇਹੁ ਰਸੁ ਅਕਥ ਕਥਾ ਤਿਨਿ ਜਾਨੀ ॥੨॥ विकारों में लिप्त जिस मानव को ईश्वर ने स्वयं माया रूपी निद्रा से जगाकर नाम-रस पिला दिया, वही उस अकथनीय प्रभु की अलौकिक कथा को जान सका है॥
ਜਾ ਕਉ ਆਏ ਸੋਈ ਬਿਹਾਝਹੁ ਹਰਿ ਗੁਰ ਤੇ ਮਨਹਿ ਬਸੇਰਾ ॥ इसलिए हे सत्संगियों ! जिस नाम रूप अमूल्य वस्तु का व्यापार करने आए हो उसे ही खरीदो, इस मन में हरि का वास गुरु द्वारा ही होता है।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਮਹਲੁ ਪਾਵਹੁ ਸੁਖ ਸਹਜੇ ਬਹੁਰਿ ਨ ਹੋਇਗੋ ਫੇਰਾ ॥੩॥ यदि तुम गुरु की शरण लोगे तभी इस हृदय रूपी घर में हरि का स्वरूप बसा सकोगे और आत्मिक सुखों का आनंद प्राप्त करोगे, जिससे फिर इस संसार में आने-जाने का चक्र समाप्त हो जाएगा ॥ ३॥
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ਸਰਧਾ ਮਨ ਕੀ ਪੂਰੇ ॥ हे मेरे अंतर्मन को जानने वाले सर्वव्यापक सृजनहार ! मेरे मन की श्रद्धा को पूर्ण करो।
ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਇਹੈ ਸੁਖੁ ਮਾਗੈ ਮੋ ਕਉ ਕਰਿ ਸੰਤਨ ਕੀ ਧੂਰੇ ॥੪॥੫॥ गुरु साहिब कथन करते हैं कि यह सेवक केवल यही कामना करता है कि मुझे केवल संतों की चरण-धूल बना दो अर्थात् मुझे उनके बताए मार्ग का अनुगामी बना दो ॥४ ॥ ५॥
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