Guru Granth Sahib Translation Project

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ਨਾਨਕ ਆਖਣਿ ਸਭੁ ਕੋ ਆਖੈ ਇਕ ਦੂ ਇਕੁ ਸਿਆਣਾ ॥ सतगुरु जी कहते हैं कि कहने को तो हर कोई एक दूसरे से अधिक बुद्धिमान बनकर उस परमात्मा की श्लाघा को कहता है।
ਵਡਾ ਸਾਹਿਬੁ ਵਡੀ ਨਾਈ ਕੀਤਾ ਜਾ ਕਾ ਹੋਵੈ ॥ किंतु परमेश्वर महान् है, उसका नाम उससे भी महान् है, सृष्टि में जो भी हो रहा है वह सब उसके किए से ही हो रहा है।
ਨਾਨਕ ਜੇ ਕੋ ਆਪੌ ਜਾਣੈ ਅਗੈ ਗਇਆ ਨ ਸੋਹੈ ॥੨੧॥ हे नानक ! यदि कोई जीव उस अभेद निरंकार के गुणात्मक रहस्य को जानने का अभिमान करता है तो उसे इस लोक में तो क्या परलोक में भी सम्मान नहीं मिलता ॥ २१ ॥
ਪਾਤਾਲਾ ਪਾਤਾਲ ਲਖ ਆਗਾਸਾ ਆਗਾਸ ॥ सतगुरु जी जन-साधारण के मन में सात आकाश व सात पाताल होने के संशय की निवृति करते हुए कहते हैं कि सृष्टि की रचना में पाताल-दर-पाताल लाखों ही हैं तथा आकाश-दर-आकाश भी लाखों ही हैं।
ਓੜਕ ਓੜਕ ਭਾਲਿ ਥਕੇ ਵੇਦ ਕਹਨਿ ਇਕ ਵਾਤ ॥ वेद-ग्रंथों में भी यही एक बात कही गई है कि ढूंढने वाले इसको अंतिम छोर तक ढूंढ कर थक गए हैं किंतु इसका अंत किसी ने नहीं पाया है।
ਸਹਸ ਅਠਾਰਹ ਕਹਨਿ ਕਤੇਬਾ ਅਸੁਲੂ ਇਕੁ ਧਾਤੁ ॥ सभी धर्म ग्रन्थों में अठ्ठारह हजार जगत् होने की बात कही गई है परंतु वास्तव में इनका मूल एक ही परमेश्वर है जो कि इनका स्रष्टा है।
ਲੇਖਾ ਹੋਇ ਤ ਲਿਖੀਐ ਲੇਖੈ ਹੋਇ ਵਿਣਾਸੁ ॥ उनकी रचना के आकार का अनुमान या गणना नहीं की जा सकती है, और यह किसी भी मानवीय गणना से परे है।
ਨਾਨਕ ਵਡਾ ਆਖੀਐ ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਆਪੁ ॥੨੨॥ हे नानक ! जिस सृजनहार को इस सम्पूर्ण जगत् में महान कहा जा रहा है वह स्वयं को स्वयं ही जानता है अथवा जान सकता है ॥ २२॥
ਸਾਲਾਹੀ ਸਾਲਾਹਿ ਏਤੀ ਸੁਰਤਿ ਨ ਪਾਈਆ ॥ स्तुति करने वाले साधकों ने भी उस परमात्मा की स्तुति करके उसकी सीमा को नहीं पाया।
ਨਦੀਆ ਅਤੈ ਵਾਹ ਪਵਹਿ ਸਮੁੰਦਿ ਨ ਜਾਣੀਅਹਿ ॥ जैसे नदियां-नाले समुद्र में मिलकर उसका अथाह अंत नहीं पा सकते, बल्कि अपना अस्तित्व भी खो देते हैं, वैसे ही स्तुति करने वाले स्तुति करते-करते उसमें ही लीन हो जाते हैं।
ਸਮੁੰਦ ਸਾਹ ਸੁਲਤਾਨ ਗਿਰਹਾ ਸੇਤੀ ਮਾਲੁ ਧਨੁ ॥ समुद्रों के राजा और सम्राट, पर्वत समान अतुल्य धन-सम्पत्ति के स्वामी होकर भी,
ਕੀੜੀ ਤੁਲਿ ਨ ਹੋਵਨੀ ਜੇ ਤਿਸੁ ਮਨਹੁ ਨ ਵੀਸਰਹਿ ॥੨੩॥ उस चींटी के भी समान नहीं हो सकते, यदि उनके मन से परमेश्वर विस्मृत नहीं हुआ होता ॥ २३॥
ਅੰਤੁ ਨ ਸਿਫਤੀ ਕਹਣਿ ਨ ਅੰਤੁ ॥ उस निरंकार की स्तुति करने की कोई सीमा नहीं तथा कहने से भी उसकी प्रशंसा का अन्त नहीं हो सकता ।
ਅੰਤੁ ਨ ਕਰਣੈ ਦੇਣਿ ਨ ਅੰਤੁ ॥ सृजनहार द्वारा रची गई सृष्टि का भी कोई अन्त नहीं परंतु जब वह देता है तब भी उसका कोई अन्त नहीं है ।
ਅੰਤੁ ਨ ਵੇਖਣਿ ਸੁਣਣਿ ਨ ਅੰਤੁ ॥ उसके देखने व सुनने का भी अन्त नहीं है, अर्थात्-वह निरंकार सर्वद्रष्टा व सर्वश्रोता है ।
ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਪੈ ਕਿਆ ਮਨਿ ਮੰਤੁ ॥ ईश्वर के हृदय का रहस्य क्या है, उसका बोध भी नहीं हो सकता ।
ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਪੈ ਕੀਤਾ ਆਕਾਰੁ ॥ इस सृष्टि का प्रसार जो उसने किया उसकी अवधि अथवा सीमा को भी नहीं जाना जा सकता ।
ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਪੈ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥ उसके आदि व अन्त को भी नहीं जाना जा सकता ।
ਅੰਤ ਕਾਰਣਿ ਕੇਤੇ ਬਿਲਲਾਹਿ ॥ अनेकानेक जीव उसका अन्त पाने के लिए बिलखते फिर रहे हैं ।
ਤਾ ਕੇ ਅੰਤ ਨ ਪਾਏ ਜਾਹਿ ॥ किन्तु उस अथाह, अनन्त अकाल पुरुष का अंत नहीं पाया जा सकता ।
ਏਹੁ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ॥ उसके गुणों का अन्त कहाँ होता है यह कोई नहीं जान सकता ।
ਬਹੁਤਾ ਕਹੀਐ ਬਹੁਤਾ ਹੋਇ ॥ उस पारब्रह्म की प्रशंसा, स्तुति, आकार अथवा गुणों को जितना कहा जाता है वह उतने ही अधिक होते जाते हैं
ਵਡਾ ਸਾਹਿਬੁ ਊਚਾ ਥਾਉ ॥ निरंकार सर्वश्रेष्ठ है, उसका स्थान सर्वोच्च है ।
ਊਚੇ ਉਪਰਿ ਊਚਾ ਨਾਉ ॥ किन्तु उस सर्वश्रेष्ठ निरंकार का नाम महानतम है ।
ਏਵਡੁ ਊਚਾ ਹੋਵੈ ਕੋਇ ॥ यदि कोई शक्ति उससे बड़ी अथवा ऊँची है,
ਤਿਸੁ ਊਚੇ ਕਉ ਜਾਣੈ ਸੋਇ ॥ तो वह ही उस सर्वोच्च मालिक को जान सकती है ।
ਜੇਵਡੁ ਆਪਿ ਜਾਣੈ ਆਪਿ ਆਪਿ ॥ निरंकार अपना सर्वस्व स्वयं ही जानता है अथवा जान सकता है, अन्य कोई नहीं
ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਕਰਮੀ ਦਾਤਿ ॥੨੪॥ सतगुरु नानक देव जी का कथन है कि वह कृपासागर जीवों पर करुणा करके उनके कर्मों के अनुसार उन्हें समस्त पदार्थ प्रदान करता है॥ २४॥
ਬਹੁਤਾ ਕਰਮੁ ਲਿਖਿਆ ਨਾ ਜਾਇ ॥ उसके उपकार इतने अधिक हैं कि उनको लिखने की समर्थता किसी में भी नहीं ।
ਵਡਾ ਦਾਤਾ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਇ ॥ वह अनेक बख्शिशें करने वाला होने के कारण बड़ा है किंतु उसमें लोभ लेश मात्र भी नहीं है ।
ਕੇਤੇ ਮੰਗਹਿ ਜੋਧ ਅਪਾਰ ॥ कई अनगिनत शूरवीर उसकी कृपा-दृष्टि की चाह रखते हैं ।
ਕੇਤਿਆ ਗਣਤ ਨਹੀ ਵੀਚਾਰੁ ॥ उनकी संख्या की तो बात ही नहीं हो सकती ।
ਕੇਤੇ ਖਪਿ ਤੁਟਹਿ ਵੇਕਾਰ ॥ कई मानव निरंकार द्वारा प्रदत पदार्थों को विकारों हेतु भोगने के लिए जूझ-जूझ कर मर जाते हैं ।
ਕੇਤੇ ਲੈ ਲੈ ਮੁਕਰੁ ਪਾਹਿ ॥ कई अकाल पुरख द्वारा दिए जाने वाले पदार्थों को लेकर इन्कार कर जाते हैं ।
ਕੇਤੇ ਮੂਰਖ ਖਾਹੀ ਖਾਹਿ ॥ कई मूढ़ व्यक्ति परमात्मा से पदार्थ ले लेकर खाते रहते हैं, कभी उसे स्मरण नहीं करते ।
ਕੇਤਿਆ ਦੂਖ ਭੂਖ ਸਦ ਮਾਰ ॥ कईयों को दुःख व भूख की मार सदैव पड़ती रहती है, क्योंकि यह उनके कर्मों में ही लिखा होता है ।
ਏਹਿ ਭਿ ਦਾਤਿ ਤੇਰੀ ਦਾਤਾਰ ॥ किन्तु सज्जन पुरुष ऐसी मार को उस परमात्मा का आर्शीवाद ही मानते हैं ।
ਬੰਦਿ ਖਲਾਸੀ ਭਾਣੈ ਹੋਇ ॥ इन्हीं कष्टों के कारण ही मानव जीव को वाहेगुरु का स्मरण होता है ।
ਹੋਰੁ ਆਖਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਇ ॥ मनुष्य को माया-मोह के बंधन से छुटकारा भी ईश्वर की आज्ञा में रहने से ही मिलता है।
ਜੇ ਕੋ ਖਾਇਕੁ ਆਖਣਿ ਪਾਇ ॥ ईश्वर की आज्ञा में रहने के अतिरिक्त माया के मोह-बंधन से छुटकारा पाने की कोई अन्य विधि कोई नहीं बता सकता ।
ਓਹੁ ਜਾਣੈ ਜੇਤੀਆ ਮੁਹਿ ਖਾਇ ॥ यदि अज्ञानता वश कोई व्यक्ति इसके बारे में कथन करने की चेष्टा करे तो फिर उसे ही मालूम पड़ेगा कि उसे अपने मुँह पर यमों आदि की कितनी चोटें खानी पड़ी हैं ।
ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਆਪੇ ਦੇਇ ॥ परमात्मा संसार के समस्त प्राणियों की ज़रूरतों को जानता है और उन्हें स्वयं ही प्रदान भी करता है ।
ਆਖਹਿ ਸਿ ਭਿ ਕੇਈ ਕੇਇ ॥ संसार में सभी जीव अकृतज्ञ ही नहीं हैं, कई व्यक्ति ऐसे भी हैं जो इस बात को मानते हैं
ਜਿਸ ਨੋ ਬਖਸੇ ਸਿਫਤਿ ਸਾਲਾਹ ॥ परमात्मा प्रसन्न होकर जिस व्यक्ति को अपनी स्तुति को गाने की शक्ति प्रदान करता है
ਨਾਨਕ ਪਾਤਿਸਾਹੀ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ॥੨੫॥ हे नानक ! वह बादशाहों का भी बादशाह हो जाता है ; अर्थात्- उसे ऊँचा व उत्तम पद प्राप्त हो जाता है ॥ २५ ॥
ਅਮੁਲ ਗੁਣ ਅਮੁਲ ਵਾਪਾਰ ॥ निरंकार के जिन गुणों को कथन नहीं किया जा सकता वे अमूल्य हैं, और इस निरंकार का सिमरन अमूल्य व्यापार है ।
ਅਮੁਲ ਵਾਪਾਰੀਏ ਅਮੁਲ ਭੰਡਾਰ ॥ यह सिमरन रूपी व्यापार का मार्गदर्शन करने वाले संत भी अमूल्य व्यापारी हैं और उन संतों के पास जो सद्गुणों का भण्डार है वह भी अमूल्य है ।
ਅਮੁਲ ਆਵਹਿ ਅਮੁਲ ਲੈ ਜਾਹਿ ॥ जो व्यक्ति इन संतों के पास प्रभु-मिलाप हेतु आते हैं वे भी अमूल्य हैं और इनसे जो गुण ले जाते हैं वे भी अमूल्य हैं ।
ਅਮੁਲ ਭਾਇ ਅਮੁਲਾ ਸਮਾਹਿ ॥ परस्पर गुरु-सिक्ख का प्रेम अमूल्य है, गुरु के प्रेम से आत्मा को प्राप्त होने वाला आनंद भी अमूल्य है ।
ਅਮੁਲੁ ਧਰਮੁ ਅਮੁਲੁ ਦੀਬਾਣੁ ॥ अकाल-पुरुष का न्याय भी अमूल्य है, उसका न्यायालय भी अमूल्य है ।
ਅਮੁਲੁ ਤੁਲੁ ਅਮੁਲੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥ अकाल पुरख की न्याय करने वाली तराज़ू अमूल्य है, और जीवों के अच्छे-बुरे कर्मों को तोलने हेतु परिमाण भी अमूल्य है ।
ਅਮੁਲੁ ਬਖਸੀਸ ਅਮੁਲੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥ अकाल पुरख द्वारा प्रदान किए जाने वाले पदार्थ भी अमूल्य हैं और उन पदार्थों का चिन्ह भी अमूल्य है ।
ਅਮੁਲੁ ਕਰਮੁ ਅਮੁਲੁ ਫੁਰਮਾਣੁ ॥ निरंकार की जीव पर होने वाली कृपा भी अमूल्य है तथा उसका आदेश भी अमूल्य है ।
ਅਮੁਲੋ ਅਮੁਲੁ ਆਖਿਆ ਨ ਜਾਇ ॥ वह परमात्मा अति अमूल्य है उसका कथन घनिष्ठता से कर पाना असम्भव है ।
ਆਖਿ ਆਖਿ ਰਹੇ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ परंतु फिर भी अनेक भक्त जन उसके गुणों का वर्णन करते हुए भूत, भविष्य व वर्तमान काल में उसमें लीन हो रहे हैं ।
ਆਖਹਿ ਵੇਦ ਪਾਠ ਪੁਰਾਣ ॥ चारों वेद व अट्ठारह पुराणों में भी उसकी महिमा कही गई है ।
ਆਖਹਿ ਪੜੇ ਕਰਹਿ ਵਖਿਆਣ ॥ उनको पढ़ने वाले भी अकाल-पुरख का व्याख्यान करते हैं ।
ਆਖਹਿ ਬਰਮੇ ਆਖਹਿ ਇੰਦ ॥ सृष्टिकर्ता ब्रह्मा व स्वर्गाधिपति इन्द्र भी उसके अमूल्य गुणों को कथन करते हैं ।
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