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ਆਖਹਿ ਗੋਪੀ ਤੈ ਗੋਵਿੰਦ ॥
आखहि बरमे आखहि इंद ॥
गिरिधर गोपाल कृष्ण तथा उसकी गोपियाँ भी उस निरंकार का गुणगान करती हैं ।
ਆਖਹਿ ਈਸਰ ਆਖਹਿ ਸਿਧ ॥
महादेव तथा गोरख आदि सिद्ध भी उसकी कीर्ति को कहते हैं ।
ਆਖਹਿ ਕੇਤੇ ਕੀਤੇ ਬੁਧ ॥
उस सृष्टिकर्ता ने इस जगत् में जितने भी बुद्धिमान जीव उत्पन्न किए हैं वे भी उसके यश को कहते हैं।
ਆਖਹਿ ਦਾਨਵ ਆਖਹਿ ਦੇਵ ॥
समस्त दैत्य व देवतादि भी उसकी महिमा को कहते हैं ।
ਆਖਹਿ ਸੁਰਿ ਨਰ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸੇਵ ॥
संसार के सभी पुण्य-कर्मी मानव, नारद आदि ऋषि-मुनि तथा अन्य भक्त जन उसकी प्रशंसा के गीत गाते हैं ।
ਕੇਤੇ ਆਖਹਿ ਆਖਣਿ ਪਾਹਿ ॥
कितने ही जीव वर्तमान में कह रहे हैं, तथा कितने ही भविष्य में कहने का यत्न करेंगे
ਕੇਤੇ ਕਹਿ ਕਹਿ ਉਠਿ ਉਠਿ ਜਾਹਿ ॥
कितने ही जीव भूतकाल में कहते हुए अपना जीवन समाप्त कर चुके हैं ।
ਏਤੇ ਕੀਤੇ ਹੋਰਿ ਕਰੇਹਿ ॥
इतने तो हम गिन चुके हैं यदि इतने ही और भी साथ मिला लिए जाएँ ।
ਤਾ ਆਖਿ ਨ ਸਕਹਿ ਕੇਈ ਕੇਇ ॥
तो भी कोई किसी साधन से उसकी अमूल्य स्तुति कह नहीं सकता ।
ਜੇਵਡੁ ਭਾਵੈ ਤੇਵਡੁ ਹੋਇ ॥
ईश्वर जितना स्व-विस्तार चाहते हैं उतने ही विस्तृत हो जाते हैं ।
ਨਾਨਕ ਜਾਣੈ ਸਾਚਾ ਸੋਇ ॥
श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि, वह सत्य स्वरूप निरंकार ही अपने अमूल्य गुणों को जानता है।
ਜੇ ਕੋ ਆਖੈ ਬੋਲੁਵਿਗਾੜੁ ॥
यदि कोई निरर्थक बोलने वाला परमेश्वर का अंत कहे कि वह इतना है
ਤਾ ਲਿਖੀਐ ਸਿਰਿ ਗਾਵਾਰਾ ਗਾਵਾਰੁ ॥੨੬॥
तो उसे महामूर्खों में अंकित किया जाता है॥ २६ ॥
ਸੋ ਦਰੁ ਕੇਹਾ ਸੋ ਘਰੁ ਕੇਹਾ ਜਿਤੁ ਬਹਿ ਸਰਬ ਸਮਾਲੇ ॥
उस प्रतिपालक ईश्वर का द्वार तथा घर कैसा है, जहाँ बैठकर वह सम्पूर्ण सृष्टि को सम्भाल रहा है ?
ਵਾਜੇ ਨਾਦ ਅਨੇਕ ਅਸੰਖਾ ਕੇਤੇ ਵਾਵਣਹਾਰੇ ॥
(यहाँ पर सतगुरु जी इस प्रश्न की निवृति में उत्तर देते हैं) हे मानव! ईश्वर की इस अद्वितीय रचना में अनगिनत संगीतज्ञ विविध वाद्ययंत्रों से अनंत रागों का सृजन करते हैं।
ਕੇਤੇ ਰਾਗ ਪਰੀ ਸਿਉ ਕਹੀਅਨਿ ਕੇਤੇ ਗਾਵਣਹਾਰੇ ॥
कितने ही राग हैं जो रागिनियों के संग वहाँ गान किए जा रहे हैं और उन रागों को गाने वाले गंधर्व आदि रागी भी कितने ही हैं ।(अनगिनत गायक अपने सहगायकों के साथ मिलकर ईश्वरीय संगीत की रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं।)
ਗਾਵਹਿ ਤੁਹਨੋ ਪਉਣੁ ਪਾਣੀ ਬੈਸੰਤਰੁ ਗਾਵੈ ਰਾਜਾ ਧਰਮੁ ਦੁਆਰੇ ॥
उस निरंकार का यश पवन, जल तथा अग्नि देव गा रहे हैं तथा समस्त जीवों के कर्मों का विश्लेषक धर्मराज भी उसके द्वार पर खड़ा उसकी महिमा को गाता है ।
ਗਾਵਹਿ ਚਿਤੁ ਗੁਪਤੁ ਲਿਖਿ ਜਾਣਹਿ ਲਿਖਿ ਲਿਖਿ ਧਰਮੁ ਵੀਚਾਰੇ ॥
जीवों द्वारा किए जाने वाले कर्मों को लिखने वाले चित्र-गुप्त भी उस अकाल-पुरख का यशोगान करते हैं तथा धर्मराज चित्रगुप्त द्वारा लिखे जाने वाले शुभाशुभ कर्मों का विचार करता है ।
ਗਾਵਹਿ ਈਸਰੁ ਬਰਮਾ ਦੇਵੀ ਸੋਹਨਿ ਸਦਾ ਸਵਾਰੇ ॥
परमात्मा द्वारा प्रतिपादित शिव, ब्रह्मा व उनकी देवियों (शक्ति) जो शोभायमान हैं, सदैव उसका स्तुति-गान करते हैं ।
ਗਾਵਹਿ ਇੰਦ ਇਦਾਸਣਿ ਬੈਠੇ ਦੇਵਤਿਆ ਦਰਿ ਨਾਲੇ ॥
हे निरंकार ! समस्त देवताओं व स्वर्ग का अधिपति इन्द्र अपने सिंहासन पर बैठा अन्य देवताओं के साथ मिलकर आपके द्वार पर खड़ा आपका यश गा रहे हैं ।
ਗਾਵਹਿ ਸਿਧ ਸਮਾਧੀ ਅੰਦਰਿ ਗਾਵਨਿ ਸਾਧ ਵਿਚਾਰੇ ॥
सिद्ध पुरुष ध्यान की गहराई में आपकी महिमा का गान करते हैं, संतगण चिंतन में डूबकर आपके गुणों का गान करते हैं।
ਗਾਵਨਿ ਜਤੀ ਸਤੀ ਸੰਤੋਖੀ ਗਾਵਹਿ ਵੀਰ ਕਰਾਰੇ ॥
आपकी स्तुतिगान यति, सती और संतोषी व्यक्ति भी गाते हैं तथा पराक्रमी योद्धा भी आपकी महिमा का गान करते हैं ।
ਗਾਵਨਿ ਪੰਡਿਤ ਪੜਨਿ ਰਖੀਸਰ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਵੇਦਾ ਨਾਲੇ ॥
संसार के समस्त विद्वान व महान् जितेन्द्रिय ऋषि-मुनि युगों-युगों से वेदों को पढ़-पढ़ कर उस अकाल पुरख का यशोगान कर रहे हैं ।
ਗਾਵਹਿ ਮੋਹਣੀਆ ਮਨੁ ਮੋਹਨਿ ਸੁਰਗਾ ਮਛ ਪਇਆਲੇ ॥
मन को मोह लेने वाली समस्त सुन्दर स्त्रियां स्वर्ग लोक, मृत्यु लोक व पाताल लोक में आपका गुणगान कर रही हैं ।
ਗਾਵਨਿ ਰਤਨ ਉਪਾਏ ਤੇਰੇ ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਨਾਲੇ ॥
निरंकार द्वारा उत्पन्न किए हुए चौदह रत्न, संसार के अठसठ तीर्थ तथा उन में विद्यमान संत जन (श्रेष्ठ जन) भी उसके यश को गाते हैं ।
ਗਾਵਹਿ ਜੋਧ ਮਹਾਬਲ ਸੂਰਾ ਗਾਵਹਿ ਖਾਣੀ ਚਾਰੇ ॥
सभी योद्धा, महाबली, शूरवीर अकाल पुरख का यश गाते हैं, उत्पत्ति के चारों स्रोत (अण्डज, जरायुज, स्वेदज व उदभिज्ज) भी उसके गुणों को गाते हैं ।
ਗਾਵਹਿ ਖੰਡ ਮੰਡਲ ਵਰਭੰਡਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਰਖੇ ਧਾਰੇ ॥
नवखण्ड, मण्डल व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, जो उस सृजनहार ने बना-बना कर धारण कर रखे हैं, वे सभी आपकी स्तुति गाते हैं ।
ਸੇਈ ਤੁਧੁਨੋ ਗਾਵਹਿ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵਨਿ ਰਤੇ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਰਸਾਲੇ ॥
वास्तव में केवल वे ही आपकी कीर्ति को गा सकते हैं जो आपकी भक्ति में लीन हैं, आपकाेनाम के रसिया हैं, और जो आपको अच्छे लगते हैं ।
ਹੋਰਿ ਕੇਤੇ ਗਾਵਨਿ ਸੇ ਮੈ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਨਿ ਨਾਨਕੁ ਕਿਆ ਵੀਚਾਰੇ ॥
अनेकानेक और भी कई ऐसे जीव मुझे स्मरण नहीं हो रहे हैं, जो आपका यशोगान करते हैं, हे नानक ! मैं कहाँ तक उन जीवों की गणना अर्थात् विचार करूँ ।
ਸੋਈ ਸੋਈ ਸਦਾ ਸਚੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸਾਚਾ ਸਾਚੀ ਨਾਈ ॥
वह सत्यस्वरूप अकाल पुरख भूतकाल में थे, वही सद्गुणी निरंकार वर्तमान में भी है
ਹੈ ਭੀ ਹੋਸੀ ਜਾਇ ਨ ਜਾਸੀ ਰਚਨਾ ਜਿਨਿ ਰਚਾਈ ॥
वह भविष्य में सदैव रहेगा, वह सृजनहार परमात्मा न जन्म लेता है और न ही उसका नाश होता है।
ਰੰਗੀ ਰੰਗੀ ਭਾਤੀ ਕਰਿ ਕਰਿ ਜਿਨਸੀ ਮਾਇਆ ਜਿਨਿ ਉਪਾਈ ॥
जिस सृष्टि रचयिता ईश्वर ने रंग-बिरंगी, तरह-तरह के आकार वाली व अनेकानेक जीवों की उत्पत्ति अपनी माया द्वारा की है ।
ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖੈ ਕੀਤਾ ਆਪਣਾ ਜਿਵ ਤਿਸ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ॥
अपनी इस उत्पत्ति को कर-करके वह अपनी रुचि अनुसार ही देखता है अर्थात् उनकी देखभाल अपनी इच्छानुसार ही करता है ।
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਕਰਸੀ ਹੁਕਮੁ ਨ ਕਰਣਾ ਜਾਈ ॥
जो भी उस अकाल पुरख को भला लगता है वही कार्य वह करता है और भविष्य में करेगा, इसके प्रति उसको आदेश करने वाला उसके समान कोई नहीं है ।
ਸੋ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਸਾਹਾ ਪਾਤਿਸਾਹਿਬੁ ਨਾਨਕ ਰਹਣੁ ਰਜਾਈ ॥੨੭॥
गुरु नानक जी का कथन है कि हे मानव ! वह ईश्वर शाहों का शाह अर्थात शहंशाह है, उसकी आज्ञा में रहना ही उचित है॥ २७ ॥
ਮੁੰਦਾ ਸੰਤੋਖੁ ਸਰਮੁ ਪਤੁ ਝੋਲੀ ਧਿਆਨ ਕੀ ਕਰਹਿ ਬਿਭੂਤਿ ॥
गुरु जी कहते हैं कि हे मानव योगी ! तुम संतोष रूपी मुद्राएँ, दुष्कर्मों से लाज रूपी पात्र, पाप रहित होकर लोक-परलोक में बनाई जाने वाली प्रतिष्ठा रूपी चोली ग्रहण कर तथा शरीर को प्रभु की नाम-सिमरन रूपी विभूति लगाकर रख ।
ਖਿੰਥਾ ਕਾਲੁ ਕੁਆਰੀ ਕਾਇਆ ਜੁਗਤਿ ਡੰਡਾ ਪਰਤੀਤਿ ॥
मृत्यु का स्मरण करना तेरी गोद है, शरीर का पवित्र रहना योग की युक्ति है, अकाल पुरख पर दृढ़ विश्वास तुम्हारा डण्डा है । इन सब सदाचारों को ग्रहण करना ही वास्तविक योगी भेष है ।
ਆਈ ਪੰਥੀ ਸਗਲ ਜਮਾਤੀ ਮਨਿ ਜੀਤੈ ਜਗੁ ਜੀਤੁ ॥
संसार के समस्त जीवों में तुम्हारा प्रेम हो अर्थात् उनके दुःख-सुख को तुम अपना दुःख-सुख अनुभव करो, यही तुम्हारा श्रेष्ठ पंथ (योगियों का श्रेष्ठ पंथ) है । काम आदि विकारों से मन को जीत लेना जगत् पर विजय प्राप्त कर लेने के समान है ।
ਆਦੇਸੁ ਤਿਸੈ ਆਦੇਸੁ ॥
ईश्वर को विनम्रता पूर्वक प्रणाम करें।
ਆਦਿ ਅਨੀਲੁ ਅਨਾਦਿ ਅਨਾਹਤਿ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਏਕੋ ਵੇਸੁ ॥੨੮॥
जो सभी का मूल, रंग रहित, पवित्र स्वरूप, आदि रहित, अनश्वर व अपरिवर्तनीय स्वरूप है।॥२८॥
ਭੁਗਤਿ ਗਿਆਨੁ ਦਇਆ ਭੰਡਾਰਣਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਾਜਹਿ ਨਾਦ ॥
हे योगी, उस ब्रह्मज्ञान को अपना आहार बनाओ, दया को अपनी निःस्वार्थ सेविका बनाकर अपनाओ,और हृदय की हर एक धड़कन को पवित्र सींग स्वर का रूप दे दो।
ਆਪਿ ਨਾਥੁ ਨਾਥੀ ਸਭ ਜਾ ਕੀ ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਅਵਰਾ ਸਾਦ ॥
ईश्वर ही सर्वशक्तिमय स्वामी है, जो पूरे ब्रह्माण्ड का पालन-पोषण करता है; परन्तु चमत्कार और अन्य आध्यात्मिक विभ्रम व्यक्ति को ईश्वर से दूर कर देते हैं।
ਸੰਜੋਗੁ ਵਿਜੋਗੁ ਦੁਇ ਕਾਰ ਚਲਾਵਹਿ ਲੇਖੇ ਆਵਹਿ ਭਾਗ ॥
संयोग व वियोग रूपी नियम दोनों मिलकर इस सृष्टि का कार्य चला रहे हैं, कर्मानुसार ही जीवों को अपने-अपने भाग्य की प्राप्ति होती है l