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ਭੈ ਨਿਰਭਉ ਮਾਣਿਅਉ ਲਾਖ ਮਹਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਯਉ ॥
गुरु अर्जुन देव जी ने अभय ईश्वर की अनुभूति की है, जो लाखों में अदृष्ट रूप से व्याप्त है।
ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰ ਗਤਿ ਗਭੀਰੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਪਰਚਾਯਉ ॥
सतिगुरु रामदास ने आप को मन-वाणी से परे, अत्यंत गंभीर ईश्वर का उपदेश दिया।
ਗੁਰ ਪਰਚੈ ਪਰਵਾਣੁ ਰਾਜ ਮਹਿ ਜੋਗੁ ਕਮਾਯਉ ॥
गुरु के उपदेश में सफल होकर गुरु अर्जुन देव जी ने राज में योग कर्म किया है।
ਧੰਨਿ ਧੰਨਿ ਗੁਰੁ ਧੰਨਿ ਅਭਰ ਸਰ ਸੁਭਰ ਭਰਾਯਉ ॥
गुरु अर्जुन देव जी धन्य धन्य हैं, जिन्होंने खाली दिलों को नाम रस से भर दिया है।
ਗੁਰ ਗਮ ਪ੍ਰਮਾਣਿ ਅਜਰੁ ਜਰਿਓ ਸਰਿ ਸੰਤੋਖ ਸਮਾਇਯਉ ॥
गुरु पदवी पाने के कारण वे अजर अवस्था में स्थिर रहे और संतोष के सरोवर में विलीन रहे।
ਗੁਰ ਅਰਜੁਨ ਕਲ੍ਯ੍ਯੁਚਰੈ ਤੈ ਸਹਜਿ ਜੋਗੁ ਨਿਜੁ ਪਾਇਯਉ ॥੮॥
कवि कलसहार का कथन है कि हे गुरु अर्जुन ! तुमने स्वाभाविक सहज योग पा लिया है॥ ८ ॥
ਅਮਿਉ ਰਸਨਾ ਬਦਨਿ ਬਰ ਦਾਤਿ ਅਲਖ ਅਪਾਰ ਗੁਰ ਸੂਰ ਸਬਦਿ ਹਉਮੈ ਨਿਵਾਰ੍ਉ ॥
हे गुरु अर्जुन ! आप जी के मुखारबिंद से हरिनामामृत की वर्षा होती है, आप अपने शिष्यों-श्रद्धालुओं को वरदान देते हो, अलख अपार रूप परमात्मा हो, शब्द के सूरमा हो एवं अहंकार का निवारण करने वाले हो।
ਪੰਚਾਹਰੁ ਨਿਦਲਿਅਉ ਸੁੰਨ ਸਹਜਿ ਨਿਜ ਘਰਿ ਸਹਾਰ੍ਉ ॥
हे गुरु अर्जुन ! आप ने पाँच विकारों का अंत कर दिया है। आप जी ने अज्ञानता एवं विकारों का संहार कर दिया है, आप शून्यावस्था में सहज समाधि ईश्वर के ध्यान में रत रहते हो।
ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਲਾਗਿ ਜਗ ਉਧਰ੍ਉ ਸਤਿਗੁਰੁ ਰਿਦੈ ਬਸਾਇਅਉ ॥
हरिनाम संकीर्तन में तल्लीन होकर आप ने जगत के लोगों का उद्धार किया है और सतिगुरु रामदास को हृदय में बसाया है।
ਗੁਰ ਅਰਜੁਨ ਕਲ੍ਯ੍ਯੁਚਰੈ ਤੈ ਜਨਕਹ ਕਲਸੁ ਦੀਪਾਇਅਉ ॥੯॥
कलसहार कवि का कथन है कि हे गुरु अर्जुन ! तुमने जनक-सा ज्ञान दीपक प्रज्वलित किया है॥६॥
ਸੋਰਠੇ ॥
सोरठे ॥
ਗੁਰੁ ਅਰਜੁਨੁ ਪੁਰਖੁ ਪ੍ਰਮਾਣੁ ਪਾਰਥਉ ਚਾਲੈ ਨਹੀ ॥
गुरु अर्जुन देव जी साक्षात् ईश्वर का रूप हैं, वे पांडव अर्जुन की तरह कर्म से विचलित नहीं होते।
ਨੇਜਾ ਨਾਮ ਨੀਸਾਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਿਅਉ ॥੧॥
परमात्मा का नाम उनका नेजा है और सतिगुरु के उपदेश ने उनका जीवन सफल कर दिया है॥१॥
ਭਵਜਲੁ ਸਾਇਰੁ ਸੇਤੁ ਨਾਮੁ ਹਰੀ ਕਾ ਬੋਹਿਥਾ ॥
यह भवसागर दुस्तर है, हरिनाम सेतु एवं पार लंघाने वाला जहाज है।
ਤੁਅ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰ ਹੇਤੁ ਨਾਮਿ ਲਾਗਿ ਜਗੁ ਉਧਰ੍ਯ੍ਯਉ ॥੨॥
हे गुरु अर्जुन ! तुम्हारा सतिगुरु से ही प्रेम लगा रहता है और प्रभु नाम में लगकर जगत का उद्धार कर दिया है॥२॥
ਜਗਤ ਉਧਾਰਣੁ ਨਾਮੁ ਸਤਿਗੁਰ ਤੁਠੈ ਪਾਇਅਉ ॥
हे गुरु अर्जुन ! सतिगुरु की प्रसन्नता से आप ने जगत का उद्धार करने के लिए हरिनाम प्राप्त किया है।
ਅਬ ਨਾਹਿ ਅਵਰ ਸਰਿ ਕਾਮੁ ਬਾਰੰਤਰਿ ਪੂਰੀ ਪੜੀ ॥੩॥੧੨॥
गुरु-घर में सब पूरा हो गया है, अतः किसी अन्य से अब कोई लगाव नहीं ॥३॥१२ ॥
ਜੋਤਿ ਰੂਪਿ ਹਰਿ ਆਪਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕੁ ਕਹਾਯਉ ॥
ज्योति-स्वरूप परमेश्वर आप गुरु नानक कहलाया है।
ਤਾ ਤੇ ਅੰਗਦੁ ਭਯਉ ਤਤ ਸਿਉ ਤਤੁ ਮਿਲਾਯਉ ॥
फिर उसी ज्योति से ज्योति मिलकर गुरु अंगद का अवतार हुआ।
ਅੰਗਦਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ਅਮਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਥਿਰੁ ਕੀਅਉ ॥
गुरु अंगद ने कृपा करके गुरु अमरदास जी को गुरु नानक गद्दी पर मनोनीत किया।
ਅਮਰਦਾਸਿ ਅਮਰਤੁ ਛਤ੍ਰੁ ਗੁਰ ਰਾਮਹਿ ਦੀਅਉ ॥
फिर गुरु अमरदास ने यह अमृत छत्र गुरु रामदास को प्रदान कर दिया।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਦਰਸਨੁ ਪਰਸਿ ਕਹਿ ਮਥੁਰਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਯਣ ॥
मथुरा कवि का कथन है कि गुरु रामदास के दर्शन-स्पर्श से गुरु अर्जुन देव जी की वाणी अमृतमय हो गई।
ਮੂਰਤਿ ਪੰਚ ਪ੍ਰਮਾਣ ਪੁਰਖੁ ਗੁਰੁ ਅਰਜੁਨੁ ਪਿਖਹੁ ਨਯਣ ॥੧॥
"(कवि कहता है कि) नि:संकोच उसने पाँचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव जी को साक्षात् ईश्वर मूर्ति के रूप में आँखों से देखा है॥१॥
ਸਤਿ ਰੂਪੁ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਧਰਿਓ ਉਰਿ ॥
गुरु अर्जुन देव जी सत्य के मूर्त रूप हैं और उन्होंने अपने हृदय में सत्यस्वरूप ईश्वर एवं सत्य-संतोष को धारण किया हुआ है।
ਆਦਿ ਪੁਰਖਿ ਪਰਤਖਿ ਲਿਖ੍ਉ ਅਛਰੁ ਮਸਤਕਿ ਧੁਰਿ ॥
विधाता ने प्रारंभ से उनके माथे पर ऐसा भाग्य लिखा हुआ है।
ਪ੍ਰਗਟ ਜੋਤਿ ਜਗਮਗੈ ਤੇਜੁ ਭੂਅ ਮੰਡਲਿ ਛਾਯਉ ॥
उनमें साक्षात् प्रभु-ज्योति जगमगा रही है और उनका तेज पूरे भूमण्डल में फैला हुआ है।
ਪਾਰਸੁ ਪਰਸਿ ਪਰਸੁ ਪਰਸਿ ਗੁਰਿ ਗੁਰੂ ਕਹਾਯਉ ॥
वे गुरु रामदास रूपी पारस के स्पर्श से पारस रूप गुरु कहलाए हैं।
ਭਨਿ ਮਥੁਰਾ ਮੂਰਤਿ ਸਦਾ ਥਿਰੁ ਲਾਇ ਚਿਤੁ ਸਨਮੁਖ ਰਹਹੁ ॥
मथुरा कवि का कथन है कि सत्य की मूर्ति गुरु अर्जुन में ध्यान लगाओ और मन लगाकर उनके सन्मुख रहो।
ਕਲਜੁਗਿ ਜਹਾਜੁ ਅਰਜੁਨੁ ਗੁਰੂ ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸ੍ਟਿ ਲਗਿ ਬਿਤਰਹੁ ॥੨॥
गुरु अर्जुन देव जी कलियुग में जहाज समान हैं, पूरी सृष्टि उनके चरणों में लगकर संसार-सागर से पार उतर सकती है॥ २ ॥
ਤਿਹ ਜਨ ਜਾਚਹੁ ਜਗਤ੍ਰ ਪਰ ਜਾਨੀਅਤੁ ਬਾਸੁਰ ਰਯਨਿ ਬਾਸੁ ਜਾ ਕੋ ਹਿਤੁ ਨਾਮ ਸਿਉ ॥
हे जिज्ञासुओ ! उस दाता गुरु (अर्जुन) से (मुरादें) मांगो, जो पूरे जगत में माननीय है, जो दिन-रात प्रभु-भक्ति में लीन रहता है।
ਪਰਮ ਅਤੀਤੁ ਪਰਮੇਸੁਰ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰੰਗ੍ਯ੍ਯੌ ਬਾਸਨਾ ਤੇ ਬਾਹਰਿ ਪੈ ਦੇਖੀਅਤੁ ਧਾਮ ਸਿਉ ॥
वह परम वैराग्यवान है और परमेश्वर के रंग में रंगा हुआ है, वह वासनाओं से परे है और गृहस्थी भी दिखाई देता है।
ਅਪਰ ਪਰੰਪਰ ਪੁਰਖ ਸਿਉ ਪ੍ਰੇਮੁ ਲਾਗ੍ਯ੍ਯੌ ਬਿਨੁ ਭਗਵੰਤ ਰਸੁ ਨਾਹੀ ਅਉਰੈ ਕਾਮ ਸਿਉ ॥
वह अपरंपार परमपुरुष के प्रेम में लीन रहता है और भगवंत भजन रस के अतिरिक्त उसे अन्य कोई काम नहीं।
ਮਥੁਰਾ ਕੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸ੍ਰਬ ਮਯ ਅਰਜੁਨ ਗੁਰੁ ਭਗਤਿ ਕੈ ਹੇਤਿ ਪਾਇ ਰਹਿਓ ਮਿਲਿ ਰਾਮ ਸਿਉ ॥੩॥
भाट मथुरा के लिए तो गुरु अर्जुन ही सर्वव्याप्त प्रभु है और भक्ति की खातिर वह तो हरदम राम में लीन रहता है।॥३॥