Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1407

Page 1407

ਗੁਰ ਅਰਜੁਨ ਗੁਣ ਸਹਜਿ ਬਿਚਾਰੰ ॥ प्रेमपूर्वक गुरु अर्जुन देव जी का यशगान करता हूँ।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਘਰਿ ਕੀਅਉ ਪ੍ਰਗਾਸਾ ॥ वाणी के जहाज, गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु रामदास जी के घर (बीबी भानी जी के उदर से सन् १५६३ ई. को गोइंदवाल) में जन्म लिया और
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰੀ ਆਸਾ ॥ सब मनोरथ एवं कामनाएँ पूरी हो गई।
ਤੈ ਜਨਮਤ ਗੁਰਮਤਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਣਿਓ ॥ हे गुरु अर्जुन ! तुमने जन्म लेते गुरु-मत से ब्रह्म को पहचान लिया था।
ਕਲ੍ ਜੋੜਿ ਕਰ ਸੁਜਸੁ ਵਖਾਣਿਓ ॥ कल्ह कवि हाथ जोड़ कर तेरा ही यश गा रहा है।
ਭਗਤਿ ਜੋਗ ਕੌ ਜੈਤਵਾਰੁ ਹਰਿ ਜਨਕੁ ਉਪਾਯਉ ॥ तुमने भक्ति एवं योग को जीत लिया था और परमेश्वर ने ‘जनक' पैदा किया है।
ਸਬਦੁ ਗੁਰੂ ਪਰਕਾਸਿਓ ਹਰਿ ਰਸਨ ਬਸਾਯਉ ॥ तुमने शब्द-गुरु को प्रगट किया है और अपनी रसना से हरिनाम का उच्चारण करते उसे दिल में बसाए रखा।
ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਅੰਗਦ ਅਮਰ ਲਾਗਿ ਉਤਮ ਪਦੁ ਪਾਯਉ ॥ तुमनै गुरु मानक, गुरु अंगद, गुरु अमरदास जी के चरण कमल में लगकर उत्तम पद पा लिया है।
ਗੁਰੁ ਅਰਜੁਨੁ ਘਰਿ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਭਗਤ ਉਤਰਿ ਆਯਉ ॥੧॥ इस तरह गुरु रामदास जी के घर हरि के परम भक्त गुरु अर्जुन देव जी का अवतार हुआ है।॥१॥
ਬਡਭਾਗੀ ਉਨਮਾਨਿਅਉ ਰਿਦਿ ਸਬਦੁ ਬਸਾਯਉ ॥ गुरु अर्जुन देव जी भाग्यशाली हैं, शांतचित्त खिले हुए हैं और उनके ह्रदय में प्रभु-शब्द बसा हुआ है।
ਮਨੁ ਮਾਣਕੁ ਸੰਤੋਖਿਅਉ ਗੁਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ੍ਹਾਯਉ ॥ हे गुरु अर्जुन देव ! आपके मन में माणिक्य रूपी संतोष है और गुरुदेव पिता ने आपको हरिनाम का जाप करवाया है।
ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦਰਸਾਯਉ ॥ इस तरह सतिगुरु श्री रामदास जी ने आपको अपहुँच, ज्ञानेन्द्रियों से परे परब्रह्म का दर्शन करवाया है।
ਗੁਰੁ ਅਰਜੁਨੁ ਘਰਿ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਅਨਭਉ ਠਹਰਾਯਉ ॥੨॥ गुरु रामदास जी के घर में ईश्वर ने गुरु अर्जुन देव को ज्ञान रूप में टिकाया है ॥२॥
ਜਨਕ ਰਾਜੁ ਬਰਤਾਇਆ ਸਤਜੁਗੁ ਆਲੀਣਾ ॥ जनक सरीखे गुरु अर्जुन ने सत्य, धर्म एवं ज्ञान को सर्वत्र फैला दिया है, जिससे हर तरफ सतियुग ही विद्यमान लग रहा है।
ਗੁਰ ਸਬਦੇ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਅਪਤੀਜੁ ਪਤੀਣਾ ॥ गुरु के उपदेश से आपका मन पूर्णतया तृप्त हो गया है, जो इससे पूर्व अतृप्त रहता था।
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਸਚੁ ਨੀਵ ਸਾਜਿ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗਿ ਲੀਣਾ ॥ गुरु नानक देव जी सत्य की आधारशिला रखकर सतिगुरु अर्जुन देव जी में समाहित हुए हैं।
ਗੁਰੁ ਅਰਜੁਨੁ ਘਰਿ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਅਪਰੰਪਰੁ ਬੀਣਾ ॥੩॥ गुरु रामदास के घर गुरु अर्जुन देव जी अपरंपार रूप बने हुए हैं।॥३॥
ਖੇਲੁ ਗੂੜ੍ਹ੍ਹਉ ਕੀਅਉ ਹਰਿ ਰਾਇ ਸੰਤੋਖਿ ਸਮਾਚਰ੍ਯ੍ਯਿਓ ਬਿਮਲ ਬੁਧਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਮਾਣਉ ॥ ईश्वर ने विचित्र ही लीला की है, गुरु अर्जुन देव जी शान्ति एवं संतोष में रहते हैं और वे निर्मल बुद्धि में लीन हैं।
ਆਜੋਨੀ ਸੰਭਵਿਅਉ ਸੁਜਸੁ ਕਲ੍ ਕਵੀਅਣਿ ਬਖਾਣਿਅਉ ॥ वे जन्म-मरण से रहित हैं, स्वयंभू परमेश्वर रूप हैं और कवि कल्ह उनका सुयश गा रहा है।
ਗੁਰਿ ਨਾਨਕਿ ਅੰਗਦੁ ਵਰ੍ਉ ਗੁਰਿ ਅੰਗਦਿ ਅਮਰ ਨਿਧਾਨੁ ॥ गुरु नानक ने (सेवा भाव एवं भक्ति से प्रसन्न होकर) गुरु अंगद को वर प्रदान किया और गुरु अंगद ने तो गुरु अमरदास को कृपादृष्टि करके पूरा खजाना ही दे दिया।
ਗੁਰਿ ਰਾਮਦਾਸ ਅਰਜੁਨੁ ਵਰ੍ਉ ਪਾਰਸੁ ਪਰਸੁ ਪ੍ਰਮਾਣੁ ॥੪॥ गुरु रामदास ने गुरु अर्जुन देव को वरदान देकर पारस की तरह बना दिया है।॥४॥
ਸਦ ਜੀਵਣੁ ਅਰਜੁਨੁ ਅਮੋਲੁ ਆਜੋਨੀ ਸੰਭਉ ॥ गुरु अर्जुन देव जी चिरंजीव हैं, उनके गुणों का मूल्य नहीं किया जा सकता है, वे जन्म-मरण के चक्र से स्वतंत्र हैं एवं स्वयंभू हैं।
ਭਯ ਭੰਜਨੁ ਪਰ ਦੁਖ ਨਿਵਾਰੁ ਅਪਾਰੁ ਅਨੰਭਉ ॥ वे भय को समाप्त करने वाले हैं, लोगों के दुखों का निवारण करने वाले हैं, अपरंपार एवं ज्ञान की मूर्त हैं।
ਅਗਹ ਗਹਣੁ ਭ੍ਰਮੁ ਭ੍ਰਾਂਤਿ ਦਹਣੁ ਸੀਤਲੁ ਸੁਖ ਦਾਤਉ ॥ वे अगम्य को पहुँचने वाले, भ्रम-भांतियों का नाश करने वाले, शान्ति का घर एवं सुखों के दाता हैं।
ਆਸੰਭਉ ਉਦਵਿਅਉ ਪੁਰਖੁ ਪੂਰਨ ਬਿਧਾਤਉ ॥ ऐसा लग रहा है, जैसे स्वयंभू, अनादि, पूर्ण पुरुष विधाता संसार में प्रगट हो गया है।
ਨਾਨਕ ਆਦਿ ਅੰਗਦ ਅਮਰ ਸਤਿਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਮਾਇਅਉ ॥ आदि गुरु नानक, गुरु अंगद, गुरु अमरदास के वर से सतिगुरु अर्जुन शब्द में समाहित हैं।
ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਗੁਰੁ ਜਿਨਿ ਪਾਰਸੁ ਪਰਸਿ ਮਿਲਾਇਅਉ ॥੫॥ श्री गुरु रामदास जी धन्य हैं, जिन्होंने गुरु अर्जुन देव जी को पारस की तरह अपने जैसा (महान्) बना लिया है॥५॥
ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਜਾਸੁ ਜਗ ਅੰਦਰਿ ਮੰਦਰਿ ਭਾਗੁ ਜੁਗਤਿ ਸਿਵ ਰਹਤਾ ॥ जिस गुरु अर्जुन की पूरी दुनिया में जय-जयकार हो रही है, वे पूर्ण सौभाग्यशाली हैं, वे ईश-वंदना में लीन रहते हैं।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਯਉ ਬਡ ਭਾਗੀ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਮੇਦਨਿ ਭਰੁ ਸਹਤਾ ॥ बड़े भाग्य से उन्होंने पूर्ण गुरु प्राप्त किया है, वे ईश्वर के ध्यान में लीन रहते हैं, पूरी पृथ्वी का भार सहन करते है।
ਭਯ ਭੰਜਨੁ ਪਰ ਪੀਰ ਨਿਵਾਰਨੁ ਕਲ੍ਯ੍ਯ ਸਹਾਰੁ ਤੋਹਿ ਜਸੁ ਬਕਤਾ ॥ वे भय को नाश करने वाले, दूसरों की पीड़ा एवं दर्द का निवारण करने वाले हैं। भाट कलसहार उस महान् मूर्ति गुरु अर्जुन जी का यश गाता है।
ਕੁਲਿ ਸੋਢੀ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਤਨੁ ਧਰਮ ਧੁਜਾ ਅਰਜੁਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਾ ॥੬॥ सोढी वंश के दीपक, गुरु रामदास जी के सुपुत्र, धर्म ध्वजा वाले, शान्ति के पुंज गुरु अर्जुन देव जी परमात्मा के परम भक्त हैं॥६ ॥
ਧ੍ਰੰਮ ਧੀਰੁ ਗੁਰਮਤਿ ਗਭੀਰੁ ਪਰ ਦੁਖ ਬਿਸਾਰਣੁ ॥ वे धर्मात्मा हैं, सहनशील हैं, गुरु-मत में गहन-गंभीर हैं, गुरु अर्जुन देव जी दूसरों के दुख दूर करने वाले हैं।
ਸਬਦ ਸਾਰੁ ਹਰਿ ਸਮ ਉਦਾਰੁ ਅਹੰਮੇਵ ਨਿਵਾਰਣੁ ॥ वे शब्द में श्रेष्ठ, परमात्मा के समान उदारशील एवं अहंकार का निवारण करने वाले हैं।
ਮਹਾ ਦਾਨਿ ਸਤਿਗੁਰ ਗਿਆਨਿ ਮਨਿ ਚਾਉ ਨ ਹੁਟੈ ॥ सतिगुरु अर्जुन देव जी महादानी एवं ज्ञानी हैं और उनके मन से ईशोपासना का चाव कभी नहीं छूटता।
ਸਤਿਵੰਤੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੰਤ੍ਰੁ ਨਵ ਨਿਧਿ ਨ ਨਿਖੁਟੈ ॥ वे सत्यशील हैं और हरिनाम मंत्र रूपी सुखों की निधि उन से कभी खत्म नहीं होती।
ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਤਨੁ ਸਰਬ ਮੈ ਸਹਜਿ ਚੰਦੋਆ ਤਾਣਿਅਉ ॥ गुरु रामदास जी के सुपुत्र गुरु अर्जुन देव जी नभ की तरह सर्वव्यापक हैं और उन्होंने सहज स्वभाव का चंदोआ तान रखा है।
ਗੁਰ ਅਰਜੁਨ ਕਲ੍ਯ੍ਯੁਚਰੈ ਤੈ ਰਾਜ ਜੋਗ ਰਸੁ ਜਾਣਿਅਉ ॥੭॥ कलसहार का कथन है कि हे गुरु अर्जुन ! तुमने राज योग का रस जान लिया है॥७ ॥


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