Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1379

Page 1379

ਧਿਗੁ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਦਾ ਜੀਵਿਆ ਜਿਨਾ ਵਿਡਾਣੀ ਆਸ ॥੨੧॥ ऐसे लोगों का जीना धिक्कार योग्य है, जो रब को छोड़कर पराई आशा में रहते हैं।॥२१॥
ਫਰੀਦਾ ਜੇ ਮੈ ਹੋਦਾ ਵਾਰਿਆ ਮਿਤਾ ਆਇੜਿਆਂ ॥ हे फरीद ! यदि अतिथि सज्जनों से मैं कुछ छिपाकर रखूं तो
ਹੇੜਾ ਜਲੈ ਮਜੀਠ ਜਿਉ ਉਪਰਿ ਅੰਗਾਰਾ ॥੨੨॥ मेरा शरीर आग के अंगारों में यूं जल जाए, ज्यों मजीठ जल जाती है।॥२२॥
ਫਰੀਦਾ ਲੋੜੈ ਦਾਖ ਬਿਜਉਰੀਆਂ ਕਿਕਰਿ ਬੀਜੈ ਜਟੁ ॥ हे फरीद ! किसान बोता तो बबूल है, परन्तु मेवों को खाना चाहता है।
ਹੰਢੈ ਉਂਨ ਕਤਾਇਦਾ ਪੈਧਾ ਲੋੜੈ ਪਟੁ ॥੨੩॥ यूं ही जो व्यक्ति ऊन कातता फिरता है, वह रेशमी वस्त्र को पहनने की इच्छा लगा लेता है अर्थात् जीव काम तो थोड़ा-सा करता है, लेकिन उम्मीद ज्यादा की करता है॥२३॥
ਫਰੀਦਾ ਗਲੀਏ ਚਿਕੜੁ ਦੂਰਿ ਘਰੁ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੇ ਨੇਹੁ ॥ बाबा फरीद कहते हैं, गली में कीचड़ है, जिससे प्रेम लगाया हुआ है, उसका घर दूर है।
ਚਲਾ ਤ ਭਿਜੈ ਕੰਬਲੀ ਰਹਾਂ ਤ ਤੁਟੈ ਨੇਹੁ ॥੨੪॥ यदि मैं उसको मिलने जाता हूँ तो बारिश के कारण मेरा कंबल भीगता है और यदि नहीं जाता तो मेरा प्रेम टूटता है॥२४॥
ਭਿਜਉ ਸਿਜਉ ਕੰਬਲੀ ਅਲਹ ਵਰਸਉ ਮੇਹੁ ॥ मेरा कम्बल बेशक भीग कर पानी से भर जाए, अल्लाह की रजा से बरसात होती रहे,
ਜਾਇ ਮਿਲਾ ਤਿਨਾ ਸਜਣਾ ਤੁਟਉ ਨਾਹੀ ਨੇਹੁ ॥੨੫॥ मैं उन सज्जनों को जाकर जरूर मिलूंगा ताकि उनसे मेरा प्रेम टूट न जाए ॥२५॥
ਫਰੀਦਾ ਮੈ ਭੋਲਾਵਾ ਪਗ ਦਾ ਮਤੁ ਮੈਲੀ ਹੋਇ ਜਾਇ ॥ हे फरीद ! मुझे अपनी पगड़ी का फिक्र था कि कहीं यह मैली न हो जाए।
ਗਹਿਲਾ ਰੂਹੁ ਨ ਜਾਣਈ ਸਿਰੁ ਭੀ ਮਿਟੀ ਖਾਇ ॥੨੬॥ परन्तु गाफिल रूह यह नहीं जानती कि आखिरकार सिर को भी मिट्टी ने ही खा जाना है॥२६॥
ਫਰੀਦਾ ਸਕਰ ਖੰਡੁ ਨਿਵਾਤ ਗੁੜੁ ਮਾਖਿਓ‍ੁ ਮਾਂਝਾ ਦੁਧੁ ॥ फरीद जी कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि शक्कर, खांड, मिश्री, गुड़, शहद एवं भैस का दूध इत्यादि सब वस्तुएँ मीठी हैं परन्तु
ਸਭੇ ਵਸਤੂ ਮਿਠੀਆਂ ਰਬ ਨ ਪੁਜਨਿ ਤੁਧੁ ॥੨੭॥ हे मेरे रब ! यह सब तेरी बराबरी नहीं कर सकती (क्योंकि तेरा नाम ही सबसे मीठा है) ॥२७ ॥
ਫਰੀਦਾ ਰੋਟੀ ਮੇਰੀ ਕਾਠ ਕੀ ਲਾਵਣੁ ਮੇਰੀ ਭੁਖ ॥ फरीद जी कहते हैं कि मेरी रोटी लकड़ी की है, इसी से मेरी भूख दूर हो जाती है।
ਜਿਨਾ ਖਾਧੀ ਚੋਪੜੀ ਘਣੇ ਸਹਨਿਗੇ ਦੁਖ ॥੨੮॥ जो पाप-कर्म करके घी से चुपड़ी रोटी खाएँगे, वे बहुत दुख पाएँगे ॥२८॥
ਰੁਖੀ ਸੁਖੀ ਖਾਇ ਕੈ ਠੰਢਾ ਪਾਣੀ ਪੀਉ ॥ बाबा फरीद जी नेक कमाई का सादा भोजन करने की हिदायत देते हुए कहते हैं कि रूखी-सूखी दाल-रोटी खाकर ठण्डा पानी पी लो।
ਫਰੀਦਾ ਦੇਖਿ ਪਰਾਈ ਚੋਪੜੀ ਨਾ ਤਰਸਾਏ ਜੀਉ ॥੨੯॥ हे फरीद ! पराई (अमीरों की) चुपड़ी हुई रोटी देखकर अपने दिल को मत तरसाओ ॥२६ ॥
ਅਜੁ ਨ ਸੁਤੀ ਕੰਤ ਸਿਉ ਅੰਗੁ ਮੁੜੇ ਮੁੜਿ ਜਾਇ मैं तो केवल आज ही अपने प्रभु से दूर रही हूँ, जिससे मेरे हाथ-पैर पूरा शरीर दर्द कर रहा है।
ਜਾਇ ਪੁਛਹੁ ਡੋਹਾਗਣੀ ਤੁਮ ਕਿਉ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਇ ॥੩੦॥ उन दुहागिनों से जाकर पूछो कि तुम्हारी जीवन-रात्रि कैसे गुजरी है॥३०॥
ਸਾਹੁਰੈ ਢੋਈ ਨਾ ਲਹੈ ਪੇਈਐ ਨਾਹੀ ਥਾਉ ॥ जिस स्त्री को न ससुराल (परलोक) में आसरा मिलता है, न ही पीहर (इहलोक) में कोई स्थान मिलता है।
ਪਿਰੁ ਵਾਤੜੀ ਨ ਪੁਛਈ ਧਨ ਸੋਹਾਗਣਿ ਨਾਉ ॥੩੧॥ पति-प्रभु उसकी बात नहीं पूछता, फिर ऐसी स्त्री यदि खुद को सुहागिन कहती है तो ठीक नहीं ॥३१ ॥
ਸਾਹੁਰੈ ਪੇਈਐ ਕੰਤ ਕੀ ਕੰਤੁ ਅਗੰਮੁ ਅਥਾਹੁ ॥ ससुराल (परलोक) हो या पीहर (इहलोक) जीव-स्त्री तो प्रभु की ही है, वह अगम्य एवं अथाह है।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜੁ ਭਾਵੈ ਬੇਪਰਵਾਹ ॥੩੨॥ गुरु नानक फुरमान करते हैं कि असल में वही सुहागिन है, जो प्रभु को अच्छी लगती है॥३२॥
ਨਾਤੀ ਧੋਤੀ ਸੰਬਹੀ ਸੁਤੀ ਆਇ ਨਚਿੰਦੁ ॥ नहा-धोकर, खूब सज-सैंवर कर जीव-स्त्री बेफिक्र होकर मोह की नींद में सोई रही।
ਫਰੀਦਾ ਰਹੀ ਸੁ ਬੇੜੀ ਹਿੰਙੁ ਦੀ ਗਈ ਕਥੂਰੀ ਗੰਧੁ ॥੩੩॥ पर हे फरीद ! उस स्त्री की कस्तूरी वाली गंध तो चली गई और वह हिंग की बदबू में पड़ी रही ॥३३॥
ਜੋਬਨ ਜਾਂਦੇ ਨਾ ਡਰਾਂ ਜੇ ਸਹ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਜਾਇ ॥ अगर मेरी पति-प्रभु से प्रीति बनी रहे तो मुझे अपनी जवानी के जाने का भी कोई डर नहीं,
ਫਰੀਦਾ ਕਿਤੀ ਜੋਬਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਿਨੁ ਸੁਕਿ ਗਏ ਕੁਮਲਾਇ ॥੩੪॥ हे फरीद ! प्रभु प्रीति के बिना कितने ही जीवों की जवानी सूख कर कुम्हला गई है॥३४॥
ਫਰੀਦਾ ਚਿੰਤ ਖਟੋਲਾ ਵਾਣੁ ਦੁਖੁ ਬਿਰਹਿ ਵਿਛਾਵਣ ਲੇਫੁ ॥ फरीद जी कहते हैं कि चिंता हमारी चारपाई है, जो दुःख रूपी रस्सियों से बुनी हुई है और वियोग का दुख ही हमारा विछौना एवं रजाई है।
ਏਹੁ ਹਮਾਰਾ ਜੀਵਣਾ ਤੂ ਸਾਹਿਬ ਸਚੇ ਵੇਖੁ ॥੩੫॥ हे सच्चे मालिक ! तू हमारी दशा तो देख, यही हमारा जीवन है॥ ३५ ॥
ਬਿਰਹਾ ਬਿਰਹਾ ਆਖੀਐ ਬਿਰਹਾ ਤੂ ਸੁਲਤਾਨੁ ॥ विरह-वियोग कहकर हर कोई दुखी हो रहा है। हे वियोग ! तू ही बादशाह है,
ਫਰੀਦਾ ਜਿਤੁ ਤਨਿ ਬਿਰਹੁ ਨ ਊਪਜੈ ਸੋ ਤਨੁ ਜਾਣੁ ਮਸਾਨੁ ॥੩੬॥ क्योंकि फरीद जी कहते हैं, जिस शरीर में वियोग पैदा नहीं होता, उसे शमशान के समान मानो, जहाँ नित्य आग जलती रहती है।॥३६॥
ਫਰੀਦਾ ਏ ਵਿਸੁ ਗੰਦਲਾ ਧਰੀਆਂ ਖੰਡੁ ਲਿਵਾੜਿ ॥ फरीद जी कहते हैं- यह दुनिया के पदार्थ जहर से भरे हुए साग की तरह हैं, जो मोह रूपी खाण्ड में लपेट रखे हैं।
ਇਕਿ ਰਾਹੇਦੇ ਰਹਿ ਗਏ ਇਕਿ ਰਾਧੀ ਗਏ ਉਜਾੜਿ ॥੩੭॥ कुछ लोग इन पदार्थों को बोते-तैयार करते ही मर गए हैं और कुछ छोड़कर चले गए॥३७ ॥
ਫਰੀਦਾ ਚਾਰਿ ਗਵਾਇਆ ਹੰਢਿ ਕੈ ਚਾਰਿ ਗਵਾਇਆ ਸੰਮਿ ॥ फरीद जी कहते हैं कि हे जीव ! दिन के चार प्रहर तूने मौज-मस्ती एवं खानपान में गंवा दिए और रात के चार प्रहर सो कर गंवा दिए। (रब की बंदगी न की)
ਲੇਖਾ ਰਬੁ ਮੰਗੇਸੀਆ ਤੂ ਆਂਹੋ ਕੇਰ੍ਹੇ ਕੰਮਿ ॥੩੮॥ आखिरकार रब तुझसे हिसाब मांगेगा कि केवल तुम यही काम करते रहे॥ ३८ ॥
ਫਰੀਦਾ ਦਰਿ ਦਰਵਾਜੈ ਜਾਇ ਕੈ ਕਿਉ ਡਿਠੋ ਘੜੀਆਲੁ ॥ फरीद जी (पाप-दोषों से सावधान करते हुए) कहते हैं कि हे भाई ! तूने किसी के दरवाजे पर जाकर घड़ियाल बजता देखा है?
ਏਹੁ ਨਿਦੋਸਾਂ ਮਾਰੀਐ ਹਮ ਦੋਸਾਂ ਦਾ ਕਿਆ ਹਾਲੁ ॥੩੯॥ जब यह बेचारा निदॉष ही मार खाता है तो फिर हम दोषियों का पता नहीं क्या हाल होगा ॥३६॥
ਘੜੀਏ ਘੜੀਏ ਮਾਰੀਐ ਪਹਰੀ ਲਹੈ ਸਜਾਇ ॥ बेचारे घड़ियाल को हर घड़ी मार पड़ती है और हर प्रहर उपरांत सजा मिलती है।
ਸੋ ਹੇੜਾ ਘੜੀਆਲ ਜਿਉ ਡੁਖੀ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਇ ॥੪੦॥ वह शरीर भी जो गुनहगार है, घड़ियाल की मानिंद अपनी उम्र रूपी रात्रि यो यूँ ही दुखों में व्यतीत करता है॥ ४० ॥


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