Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1363

Page 1363

ਹੈ ਕੋਊ ਐਸਾ ਮੀਤੁ ਜਿ ਤੋਰੈ ਬਿਖਮ ਗਾਂਠਿ ॥ क्या कोई ऐसा मित्र है जो संसार की विषम गांठ को तोड़ दे।
ਨਾਨਕ ਇਕੁ ਸ੍ਰੀਧਰ ਨਾਥੁ ਜਿ ਟੂਟੇ ਲੇਇ ਸਾਂਠਿ ॥੧੫॥ गुरु नानक कथन करते हैं- केवल एक मालिक प्रभु ही है जो अपने से टूटे हुए को जोड़ लेता है॥ १५॥
ਧਾਵਉ ਦਸਾ ਅਨੇਕ ਪ੍ਰੇਮ ਪ੍ਰਭ ਕਾਰਣੇ ॥ प्रभु प्रेम की खातिर मैं अनेक दिशाओं में दौड़ता फिर रहा हूँ।
ਪੰਚ ਸਤਾਵਹਿ ਦੂਤ ਕਵਨ ਬਿਧਿ ਮਾਰਣੇ ॥ काम-क्रोध रूपी पाँच दुष्ट मुझे तंग कर रहे हैं, इनको किस उपाय से मारा जाए।
ਤੀਖਣ ਬਾਣ ਚਲਾਇ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭ ਧ੍ਯ੍ਯਾਈਐ ॥ "(उत्तर-) प्रभु-नाम का ध्यान करो, यही तीक्षण वाण है।
ਹਰਿਹਾਂ ਮਹਾਂ ਬਿਖਾਦੀ ਘਾਤ ਪੂਰਨ ਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ॥੧੬॥ हरिहां, पूर्ण गुरु को पाकर महां दुखदायक विकारों का अन्त हो जाता है॥ १६॥
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ਮੂਲਿ ਨ ਨਿਖੁਟਈ ॥ सतगुरु ने हरिनाम रूपी ऐसा दान दिया है, जो कभी खत्म नहीं होता।
ਖਾਵਹੁ ਭੁੰਚਹੁ ਸਭਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਛੁਟਈ ॥ सब इसका भोग (अर्थात् हरि-भजन) करो, गुरु के सान्निध्य में संसार के बन्धनों से मुक्ति हो जाती है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਦਿਤਾ ਤੁਸਿ ਹਰਿ ॥ परमेश्वर ने प्रसन्न होकर हमें सुखों का घर अमृतमय हरिनाम दिया है।
ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਅਰਾਧਿ ਕਦੇ ਨ ਜਾਂਹਿ ਮਰਿ ॥੧੭॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि हे सज्जनो ! सदैव हरि की आराधना करो, जन्म-मरण का चक्र छूट जाता है॥ १७॥
ਜਿਥੈ ਜਾਏ ਭਗਤੁ ਸੁ ਥਾਨੁ ਸੁਹਾਵਣਾ ॥ जहाँ भक्त जाता है, वह स्थान खुशहाल हो जाता है।
ਸਗਲੇ ਹੋਏ ਸੁਖ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਣਾ ॥ हरिनाम का ध्यान करने से सब ओर सुख प्राप्त हो जाते हैं।
ਜੀਅ ਕਰਨਿ ਜੈਕਾਰੁ ਨਿੰਦਕ ਮੁਏ ਪਚਿ ॥ सब जीव भक्त की जय-जयकार करते हैं परन्तु निन्दक दुखों में जलते हैं।
ਸਾਜਨ ਮਨਿ ਆਨੰਦੁ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ॥੧੮॥ गुरु नानक कथन करते हैं- हरिनाम का जाप करने से सज्जनों के मन में आनंद बना रहता है ॥१८॥
ਪਾਵਨ ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਕਤਹ ਨਹੀ ਸੇਵੀਐ ॥ जो पतितों को पावन करने वाला है, उस पावन-स्वरूप ईश्वर की हम कभी उपासना नहीं करते।
ਝੂਠੈ ਰੰਗਿ ਖੁਆਰੁ ਕਹਾਂ ਲਗੁ ਖੇਵੀਐ ॥ संसार के झूठे रंगों में परेशान होते हैं तो इस तरह कब तक गुजारा होगा।
ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਪੇਖਿ ਕਾਹੇ ਸੁਖੁ ਮਾਨਿਆ ॥ हरिश्चन्द्र की नगरी समान संसार को देखकर सुख मानते हैं।
ਹਰਿਹਾਂ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿੰਨ ਜਿ ਦਰਗਹਿ ਜਾਨਿਆ ॥੧੯॥ हरिहां, हम तो उन भक्तों पर कुर्बान जाते हैं, जो प्रभु के दरबार में प्रतिष्ठा के पात्र बने हैं।॥ १९॥
ਕੀਨੇ ਕਰਮ ਅਨੇਕ ਗਵਾਰ ਬਿਕਾਰ ਘਨ ॥ मूर्ख व्यक्ति पाप-विकारयुक्त अनेक कर्म करता है।
ਮਹਾ ਦ੍ਰੁਗੰਧਤ ਵਾਸੁ ਸਠ ਕਾ ਛਾਰੁ ਤਨ ॥ वह महा बदबूदार स्थान में रहता है और इस प्रकार मूर्ख का शरीर धूल में मिल जाता है।
ਫਿਰਤਉ ਗਰਬ ਗੁਬਾਰਿ ਮਰਣੁ ਨਹ ਜਾਨਈ ॥ वह हरदम अहंकार में लीन रहता है और मौत को भी भुला देता है।
ਹਰਿਹਾਂ ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਪੇਖਿ ਕਾਹੇ ਸਚੁ ਮਾਨਈ ॥੨੦॥ हरिहां, वह नाशवान संसार को देखकर उसे ही सत्य मानता है॥ २०॥
ਜਿਸ ਕੀ ਪੂਜੈ ਅਉਧ ਤਿਸੈ ਕਉਣੁ ਰਾਖਈ ॥ जिसकी जिन्दगी के दिन पूरे हो जाते हैं तो फिर भला उसे मौत के मुँह से कौन बचा सकता है।
ਬੈਦਕ ਅਨਿਕ ਉਪਾਵ ਕਹਾਂ ਲਉ ਭਾਖਈ ॥ चिकित्सक चाहे अनेक उपाय, दवा-परहेज एवं हिदायतें देता रहे, पर सब व्यर्थ है।
ਏਕੋ ਚੇਤਿ ਗਵਾਰ ਕਾਜਿ ਤੇਰੈ ਆਵਈ ॥ अरे गंवार ! केवल परमात्मा का चिंतन कर, यही तेरे काम आना है।
ਹਰਿਹਾਂ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਤਨੁ ਛਾਰੁ ਬ੍ਰਿਥਾ ਸਭੁ ਜਾਵਈ ॥੨੧॥ हरिहां, हरिनाम स्मरण बिना शरीर धूल समान है और सब वृथा ही जाता है॥ २१॥
ਅਉਖਧੁ ਨਾਮੁ ਅਪਾਰੁ ਅਮੋਲਕੁ ਪੀਜਈ ॥ हरिनाम अमूल्य अपार औषधि है, इसका पान करना चाहिए।
ਮਿਲਿ ਮਿਲਿ ਖਾਵਹਿ ਸੰਤ ਸਗਲ ਕਉ ਦੀਜਈ ॥ संत पुरुष मिलकर इसका सेवन करते हैं और अन्य जिज्ञासुओं को भी देते हैं।
ਜਿਸੈ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ਤਿਸੈ ਹੀ ਪਾਵਣੇ ॥ वही इस दवा को पाता है, जिसे संतों की प्राप्ति होती है।
ਹਰਿਹਾਂ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿੰਨ੍ਹ੍ਹ ਜਿ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਰਾਵਣੇ ॥੨੨॥ हरिहां, हम उन जिज्ञासुओं पर बलिहारी जाते हैं, जो परमात्मा के रंग में लीन रहते हैं॥ २२॥
ਵੈਦਾ ਸੰਦਾ ਸੰਗੁ ਇਕਠਾ ਹੋਇਆ ॥ संतों की मण्डली वैद्य रूप में इकट्ठा होती है।
ਅਉਖਦ ਆਏ ਰਾਸਿ ਵਿਚਿ ਆਪਿ ਖਲੋਇਆ ॥ तब हरिनाम रूपी औषधि अपना पूरा असर करती है, क्योंकि इसमें ईश्वर स्वयं विराजमान होता है।
ਜੋ ਜੋ ਓਨਾ ਕਰਮ ਸੁਕਰਮ ਹੋਇ ਪਸਰਿਆ ॥ वे जो-जो कर्म करते हैं, वे सुकर्म बनकर लोगों में फैलते हैं।
ਹਰਿਹਾਂ ਦੂਖ ਰੋਗ ਸਭਿ ਪਾਪ ਤਨ ਤੇ ਖਿਸਰਿਆ ॥੨੩॥ हरिहां, इस तरह दुख-रोग एवं सब पाप शरीर से निवृत्त हो जाते हैं।॥ २३॥
ਚਉਬੋਲੇ ਮਹਲਾ ੫ चउबोले महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ वह परब्रह्म केवल एक (ऑकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਸੰਮਨ ਜਉ ਇਸ ਪ੍ਰੇਮ ਕੀ ਦਮ ਕ੍ਯ੍ਯਿਹੁ ਹੋਤੀ ਸਾਟ ॥ हे सम्मन ! यदि प्रेम की खरीदारी धन-दौलत से हो सकती तो लंकापति रावण जैसा बादशाह कंगाल नहीं था,
ਰਾਵਨ ਹੁਤੇ ਸੁ ਰੰਕ ਨਹਿ ਜਿਨਿ ਸਿਰ ਦੀਨੇ ਕਾਟਿ ॥੧॥ जिसने शिव को प्रसन्न करने के लिए ग्यारह बार अपना सिर काट कर भेंट कर दिया था॥ १॥
ਪ੍ਰੀਤਿ ਪ੍ਰੇਮ ਤਨੁ ਖਚਿ ਰਹਿਆ ਬੀਚੁ ਨ ਰਾਈ ਹੋਤ ॥ जिसका मन अपने प्रियतम के प्रेम में लीन रहता है, उसके भीतर थोड़ा-सा भी फर्क नहीं होता।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨੁ ਬੇਧਿਓ ਬੂਝਨੁ ਸੁਰਤਿ ਸੰਜੋਗ ॥੨॥ मन तो प्रियतम के चरण-कमल में बिंध जाता है, अन्तरात्मा प्रेम लगन में लीन रहकर चेतन हो जाती है॥ २॥


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