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ਕੀਰਤਨੰ ਸਾਧਸੰਗੇਣ ਨਾਨਕ ਨਹ ਦ੍ਰਿਸਟੰਤਿ ਜਮਦੂਤਨਹ ॥੩੪॥
नानक का कथन है कि साधु पुरुषों के साथ परमात्मा का कीर्तन करो, यमदूत दृष्टि भी नहीं करते॥ ३४॥
ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਧਨੰ ਰੂਪੰ ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਸ੍ਵਰਗ ਰਾਜਨਹ ॥
न ही धन-दौलत दुर्लभ है, न ही रूप-सौन्दर्य दुर्लभ है तथा स्वर्ग का शासन भी दुर्लभ नहीं।
ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਭੋਜਨੰ ਬਿੰਜਨੰ ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਸ੍ਵਛ ਅੰਬਰਹ ॥
विभिन्न व्यंजनों वाला भोजन भी दुर्लभ नहीं और न ही स्वच्छ वस्त्र दुर्लभ हैं।
ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਸੁਤ ਮਿਤ੍ਰ ਭ੍ਰਾਤ ਬਾਂਧਵ ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਬਨਿਤਾ ਬਿਲਾਸਹ ॥
पुत्र, मित्र, भाई, रिश्तेदार भी दुर्लभ नहीं और न ही पत्नी के साथ भोग-विलास दुर्लभ है।
ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਬਿਦਿਆ ਪ੍ਰਬੀਣੰ ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਚਤੁਰ ਚੰਚਲਹ ॥
विद्या में निपुण होना भी दुर्लभ नहीं। अगर कोई चतुर-चालाक कहा जाए तो वह भी दुर्लभ नहीं।
ਦੁਰਲਭੰ ਏਕ ਭਗਵਾਨ ਨਾਮਹ ਨਾਨਕ ਲਬਧੵਿੰ ਸਾਧਸੰਗਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪ੍ਰਭੰ ॥੩੫॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- केवल भगवान का नाम कीर्तन ही दुर्लभ है और नाम सिर्फ साधुओं की संगत में प्रभु-कृपा से ही प्राप्त होता है॥ ३५॥
ਜਤ ਕਤਹ ਤਤਹ ਦ੍ਰਿਸਟੰ ਸ੍ਵਰਗ ਮਰਤ ਪਯਾਲ ਲੋਕਹ ॥
स्वर्गलोक, मृत्युलोक, पाताललोक जहाँ भी दृष्टि जाती है, ईश्वर ही दृष्टिगत होता है।
ਸਰਬਤ੍ਰ ਰਮਣੰ ਗੋਬਿੰਦਹ ਨਾਨਕ ਲੇਪ ਛੇਪ ਨ ਲਿਪੵਤੇ ॥੩੬॥
नानक का फुरमान है कि परमेश्वर सर्वत्र व्याप्त है, वह कर्म दोषों, पाप-पुण्यों से रहित है॥ ३६॥
ਬਿਖਯਾ ਭਯੰਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੰ ਦ੍ਰੁਸਟਾਂ ਸਖਾ ਸ੍ਵਜਨਹ ॥
ईश्वर कृपा कर दे तो जहर भी अमृत हो जाता है, दुष्ट शत्रु भी सज्जन सखा बन जाते हैं।
ਦੁਖੰ ਭਯੰਤਿ ਸੁਖੵੰ ਭੈ ਭੀਤੰ ਤ ਨਿਰਭਯਹ ॥
दुख सुखों में बदल जाता है और डरपोक मनुष्य भी निडर हो जाता है।
ਥਾਨ ਬਿਹੂਨ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ਨਾਮੰ ਨਾਨਕ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਰਹ ॥੩੭॥
स्थान विहीन को सुख का स्थान मिल जाता है। हे नानक ! परमात्मा की कृपा से नाम-कीर्तन से सर्व सुख प्राप्त होते हैं।॥ ३७॥
ਸਰਬ ਸੀਲ ਮਮੰ ਸੀਲੰ ਸਰਬ ਪਾਵਨ ਮਮ ਪਾਵਨਹ ॥
सर्वशील प्रभु ही मुझे शील प्रदान करता है। वह सर्व पावन ही मुझे पावन करता है।
ਸਰਬ ਕਰਤਬ ਮਮੰ ਕਰਤਾ ਨਾਨਕ ਲੇਪ ਛੇਪ ਨ ਲਿਪੵਤੇ ॥੩੮॥
सब कार्य करने वाला ही मेरा कर्ता है। हे नानक ! वह पाप-दोषों से सदा मुक्त है॥ ३८॥
ਨਹ ਸੀਤਲੰ ਚੰਦ੍ਰ ਦੇਵਹ ਨਹ ਸੀਤਲੰ ਬਾਵਨ ਚੰਦਨਹ ॥
न ही चन्द्र देव इतने शीतल हैं, न ही बावन चन्दन शीतल है।
ਨਹ ਸੀਤਲੰ ਸੀਤ ਰੁਤੇਣ ਨਾਨਕ ਸੀਤਲੰ ਸਾਧ ਸ੍ਵਜਨਹ ॥੩੯॥
हे नानक ! शरद ऋतु भी इतनी शीतल नहीं है, जितना साधु-महात्मा शीतल हैं॥ ३६॥
ਮੰਤ੍ਰੰ ਰਾਮ ਰਾਮ ਨਾਮੰ ਧੵਾਨੰ ਸਰਬਤ੍ਰ ਪੂਰਨਹ ॥
साधु महापुरुषों का मंत्र केवल राम नाम जपना है, उनका ध्यान यही है कि ईश्वर सृष्टि के कण-कण में मौजूद है।
ਗੵਾਨੰ ਸਮ ਦੁਖ ਸੁਖੰ ਜੁਗਤਿ ਨਿਰਮਲ ਨਿਰਵੈਰਣਹ ॥
सुख-दुख को एक समान मानना ही उनका ज्ञान है और उनकी जीवन-युक्ति पूरे संसार के साथ प्रेम करना है।
ਦਯਾਲੰ ਸਰਬਤ੍ਰ ਜੀਆ ਪੰਚ ਦੋਖ ਬਿਵਰਜਿਤਹ ॥
वे सब जीवों पर दयालु रहते हैं और कामादिक पाँच दोषों को विवर्जित करते हैं।
ਭੋਜਨੰ ਗੋਪਾਲ ਕੀਰਤਨੰ ਅਲਪ ਮਾਯਾ ਜਲ ਕਮਲ ਰਹਤਹ ॥
भगवान का भजन-कीर्तन ही उनका भोजन है और वे माया से यूं निर्लिप्त रहते हैं, जिस प्रकार जल में कमल रहता है।
ਉਪਦੇਸੰ ਸਮ ਮਿਤ੍ਰ ਸਤ੍ਰਹ ਭਗਵੰਤ ਭਗਤਿ ਭਾਵਨੀ ॥
कोई मित्र हो अथवा शत्रु, वे सब को समान उपदेश देते हैं और भगवान की भक्ति ही उनको प्यारी लगती है।
"ਪਰ ਨਿੰਦਾ ਨਹ ਸ੍ਰੋਤਿ ਸ੍ਰਵਣੰ ਆਪੁ ਤੵਿਾਗਿ ਸਗਲ ਰੇਣੁਕਹ ॥
वे अपने कानों से पराई निन्दा नहीं सुनते और अहम्-भाव छोड़कर सबकी चरणरज बने रहते हैं।
ਖਟ ਲਖੵਣ ਪੂਰਨੰ ਪੁਰਖਹ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਸਾਧ ਸ੍ਵਜਨਹ ॥੪੦॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं- पूर्ण पुरुषों में यही छः लक्षण होते हैं और इनका नाम ही साधु महापुरुष कहलाता है॥ ४०॥
ਅਜਾ ਭੋਗੰਤ ਕੰਦ ਮੂਲੰ ਬਸੰਤੇ ਸਮੀਪਿ ਕੇਹਰਹ ॥
चाहे बकरी कंदमूल खाती हुई शेर के समीप ही रहती है, फिर भी उसे मौत का डर बना रहता है।
ਤਤ੍ਰ ਗਤੇ ਸੰਸਾਰਹ ਨਾਨਕ ਸੋਗ ਹਰਖੰ ਬਿਆਪਤੇ ॥੪੧॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि यही हाल संसार के लोगों का है, जिनको खुशियों के साथ-साथ गम भी मिलता है॥ ४१॥
ਛਲੰ ਛਿਦ੍ਰੰ ਕੋਟਿ ਬਿਘਨੰ ਅਪਰਾਧੰ ਕਿਲਬਿਖ ਮਲੰ ॥
मनुष्य लोगों को धोखा देता है, करोड़ों विध्न पैदा करता है, पाप-अपराधों की मैल में फंस जाता है।
ਭਰਮ ਮੋਹੰ ਮਾਨ ਅਪਮਾਨੰ ਮਦੰ ਮਾਯਾ ਬਿਆਪਿਤੰ ॥
वह भ्रम, मोह, मान-अपमान, माया के नशे में लिप्त रहता है।
ਮ੍ਰਿਤੵੁ ਜਨਮ ਭ੍ਰਮੰਤਿ ਨਰਕਹ ਅਨਿਕ ਉਪਾਵੰ ਨ ਸਿਧੵਤੇ ॥
जीवन-मृत्यु के चक्र में नरक भोगता है, परन्तु अनेक उपायों द्वारा भी बन्धनों से मुक्त नहीं होता।
ਨਿਰਮਲੰ ਸਾਧ ਸੰਗਹ ਜਪੰਤਿ ਨਾਨਕ ਗੋਪਾਲ ਨਾਮੰ ॥
हे नानक ! साधु पुरुषों के साथ परमात्मा का नाम जपने से ही जीवन निर्मल होता है,
ਰਮੰਤਿ ਗੁਣ ਗੋਬਿੰਦ ਨਿਤ ਪ੍ਰਤਹ ॥੪੨॥
अतः प्रतिदिन ईश्वर का गुणानुवाद करो॥ ४२॥
ਤਰਣ ਸਰਣ ਸੁਆਮੀ ਰਮਣ ਸੀਲ ਪਰਮੇਸੁਰਹ ॥
परमेश्वर की शरण में मुक्ति संभव है, वह शीलवान है, लीला करने वाला है।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥਹ ਦਾਨੁ ਦੇਤ ਪ੍ਰਭੁ ਪੂਰਨਹ ॥
वह सब करने-करवाने में समर्थ है और पूर्ण प्रभु सबको देने वाला है।
ਨਿਰਾਸ ਆਸ ਕਰਣੰ ਸਗਲ ਅਰਥ ਆਲਯਹ ॥
वह निराश लोगों की आशा पूरी करता है और सर्व सुख पदार्थों का घर है।
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਸਿਮਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਸਗਲ ਜਾਚੰਤ ਜਾਚਿਕਹ ॥੪੩॥
हे नानक ! संसार उस गुणों के भण्डार का सिमरन करता है और सभी विनयपूर्वक उसी से मांगते हैं।॥ ४३॥
ਦੁਰਗਮ ਸਥਾਨ ਸੁਗਮੰ ਮਹਾ ਦੂਖ ਸਰਬ ਸੂਖਣਹ ॥
दुर्गम स्थान भी सुगम हो जाते हैं, बड़े से बड़े दुख सब सुखों में तबदील हो जाते हैं।
ਦੁਰਬਚਨ ਭੇਦ ਭਰਮੰ ਸਾਕਤ ਪਿਸਨੰ ਤ ਸੁਰਜਨਹ ॥
दुर्वचन, भेद, मतावलंबी एवं चुगलखोर भी नेक एवं सज्जन बन जाते हैं।
ਅਸਥਿਤੰ ਸੋਗ ਹਰਖੰ ਭੈ ਖੀਣੰ ਤ ਨਿਰਭਵਹ ॥
गम खुशियों में बदल जाता है और डरपोक व्यक्ति निडर बन जाता है।