Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1356

Page 1356

ਘਟਿ ਘਟਿ ਬਸੰਤ ਬਾਸੁਦੇਵਹ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰਹ ॥ वह परब्रह्म परमेश्वर घट घट में बसा हुआ है।
ਜਾਚੰਤਿ ਨਾਨਕ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪ੍ਰਸਾਦੰ ਨਹ ਬਿਸਰੰਤਿ ਨਹ ਬਿਸਰੰਤਿ ਨਾਰਾਇਣਹ ॥੨੧॥ नानक विनयपूर्वक कामना करते हैं कि हे कृपानिधि नारायण ! ऐसी कृपा करो कि हम तुझे कभी विस्मृत न करें ॥२१॥
ਨਹ ਸਮਰਥੰ ਨਹ ਸੇਵਕੰ ਨਹ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਰਮ ਪੁਰਖੋਤਮੰ ॥ हे परम पुरुषोत्तम ! न ही मुझ में कोई योग्यता है, न ही तेरी भक्ति की है औरं न ही तुझसे प्रीति लगाई है।
ਤਵ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸਿਮਰਤੇ ਨਾਮੰ ਨਾਨਕ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਰੰ ॥੨੨॥ नानक विनती करते हैं कि हे परमेश्वर ! तेरी कृपा से ही हम तेरा नाम-स्मरण करते हैं, तू कृपा का घर है।॥२२॥
ਭਰਣ ਪੋਖਣ ਕਰੰਤ ਜੀਆ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ਛਾਦਨ ਦੇਵੰਤ ਦਾਨੰ ॥ जन्मदाता ईश्वर सब जीवों का भरण-पोषण करता है, वह हमारे रहने के लिए मकान, कपड़े इत्यादि अनेक सुविधाएँ देता है।
ਸ੍ਰਿਜੰਤ ਰਤਨ ਜਨਮ ਚਤੁਰ ਚੇਤਨਹ ॥ उसने अमूल्य मानव जन्म देकर चतुर एवं बुद्धिमान बनाया है।
ਵਰਤੰਤਿ ਸੁਖ ਆਨੰਦ ਪ੍ਰਸਾਦਹ ॥ उसकी कृपा से हम आनंदपूर्ण एवं सुखी रहते हैं।
ਸਿਮਰੰਤ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰੇ ॥ गुरु नानक कथन करते हैं- जो ईश्वर का स्मरण करते हैं,
ਅਨਿਤੵ ਰਚਨਾ ਨਿਰਮੋਹ ਤੇ ॥੨੩॥ वे नाशवान् रचना के मोह से बचे रहते हैं।॥ २३॥
ਦਾਨੰ ਪਰਾ ਪੂਰਬੇਣ ਭੁੰਚੰਤੇ ਮਹੀਪਤੇ ॥ बड़े-बड़े शासक पूर्व जन्म में किए पुण्य कर्म का फल भोगते हैं।
ਬਿਪਰੀਤ ਬੁਧੵੰ ਮਾਰਤ ਲੋਕਹ ਨਾਨਕ ਚਿਰੰਕਾਲ ਦੁਖ ਭੋਗਤੇ ॥੨੪॥ हे नानक ! मृत्युलोक में विपरीत बुद्धि वाले लम्बे समय तक दुख भोगते हैं।॥ २४॥
ਬ੍ਰਿਥਾ ਅਨੁਗ੍ਰਹੰ ਗੋਬਿੰਦਹ ਜਸੵ ਸਿਮਰਣ ਰਿਦੰਤਰਹ ॥ जिनके दिल में ईश्वर का भजन-सिमरन होता है, वे दिल के दर्द को भी उसकी कृपा ही मानते हैं।
ਆਰੋਗੵੰ ਮਹਾ ਰੋਗੵੰ ਬਿਸਿਮ੍ਰਿਤੇ ਕਰੁਣਾ ਮਯਹ ॥੨੫॥ परन्तु जिनको करुणामय परमेश्वर भूल जाता है, वे स्वस्थ होते हुए भी महारोगी हैं।॥ २५॥
ਰਮਣੰ ਕੇਵਲੰ ਕੀਰਤਨੰ ਸੁਧਰਮੰ ਦੇਹ ਧਾਰਣਹ ॥ मनुष्य का धर्म केवल परमात्मा का कीर्तिगान करना है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਨਾਰਾਇਣ ਨਾਨਕ ਪੀਵਤੰ ਸੰਤ ਨ ਤ੍ਰਿਪੵਤੇ ॥੨੬॥ हे नानक ! संतजन चाहे जितना भी नारायण के अमृतमय नाम का पान करते रहें, परन्तु वे तृप्त नहीं होते॥ २६॥
ਸਹਣ ਸੀਲ ਸੰਤੰ ਸਮ ਮਿਤ੍ਰਸੵ ਦੁਰਜਨਹ ॥ संतजन सहनशील हैं, वे मित्रों एवं शत्रुओं को एक समान ही मानते हैं।
ਨਾਨਕ ਭੋਜਨ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰੇਣ ਨਿੰਦਕ ਆਵਧ ਹੋਇ ਉਪਤਿਸਟਤੇ ॥੨੭॥ हे नानक ! बेशक कोई अनेक प्रकार का भोजन लेकर आए, कोई निन्दा करे, चाहे कोई मारने के लिए आ जाए, वे सबको एक समान ही देखते हैं॥ २७॥
ਤਿਰਸਕਾਰ ਨਹ ਭਵੰਤਿ ਨਹ ਭਵੰਤਿ ਮਾਨ ਭੰਗਨਹ ॥ उनका न ही तिरस्कार होता है, न ही कभी मान-सम्मान भंग होता है।
ਸੋਭਾ ਹੀਨ ਨਹ ਭਵੰਤਿ ਨਹ ਪੋਹੰਤਿ ਸੰਸਾਰ ਦੁਖਨਹ ॥ न ही वे शोभाहीन होते हैं और न ही संसार के दुख उनको प्रभावित करते हैं।
ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਮ ਜਪੰਤਿ ਮਿਲਿ ਸਾਧ ਸੰਗਹ ਨਾਨਕ ਸੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸੁਖ ਬਾਸਨਹ ॥੨੮॥ नानक वचन करते हैं कि साधु पुरुषों के साथ मिलकर ईश्वर का नाम जपने वाले ऐसे प्राणी सदा सुखी रहते हैं।॥ २८॥
ਸੈਨਾ ਸਾਧ ਸਮੂਹ ਸੂਰ ਅਜਿਤੰ ਸੰਨਾਹੰ ਤਨਿ ਨਿੰਮ੍ਰਤਾਹ ॥ साधु मण्डली अजय शूरवीरों की सेना है, जिन्होंने तन पर नम्रता का कवच धारण किया हुआ है।
ਆਵਧਹ ਗੁਣ ਗੋਬਿੰਦ ਰਮਣੰ ਓਟ ਗੁਰ ਸਬਦ ਕਰ ਚਰਮਣਹ ॥ ईश्वर का कीर्तिगान ही उनके शस्त्र हैं और शब्द-गुरु की ओट उनके हाथ की ढाल है।
ਆਰੂੜਤੇ ਅਸ੍ਵ ਰਥ ਨਾਗਹ ਬੁਝੰਤੇ ਪ੍ਰਭ ਮਾਰਗਹ ॥ प्रभु मार्ग का परिचय ही उनके लिए हाथी, घोड़ों एवं रथों की सवारी है।
ਬਿਚਰਤੇ ਨਿਰਭਯੰ ਸਤ੍ਰੁ ਸੈਨਾ ਧਾਯੰਤੇ ਗੋੁਪਾਲ ਕੀਰਤਨਹ ॥ वे निर्भय होकर रहते हैं और ईश्वर का कीर्तन करते हुए कामादिक शत्रु सेना पर आक्रमण करते हैं।
ਜਿਤਤੇ ਬਿਸ੍ਵ ਸੰਸਾਰਹ ਨਾਨਕ ਵਸੵੰ ਕਰੋਤਿ ਪੰਚ ਤਸਕਰਹ ॥੨੯॥ हे नानक ! ऐसे महारथी काम, क्रोध रूपी पाँच लुटेरों को वश में करके पूरे विश्व को विजय कर लेते हैं।॥ २६॥
ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਗੰਧਰਬ ਨਗਰੰ ਦ੍ਰੁਮ ਛਾਯਾ ਰਚਿ ਦੁਰਮਤਿਹ ॥ दुर्बुद्धि वाला मनुष्य मृगतृष्णा, गंधर्व नगरी एवं पेड़ की छाया समान जीवन रचता है।
ਤਤਹ ਕੁਟੰਬ ਮੋਹ ਮਿਥੵਾ ਸਿਮਰੰਤਿ ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਰਾਮ ਨਾਮਹ ॥੩੦॥ इसी तरह परिवार का मोह भी झूठा है अतः नानक का उपदेश है कि राम नाम का सिमरन करते रहो॥ ३०॥
ਨਚ ਬਿਦਿਆ ਨਿਧਾਨ ਨਿਗਮੰ ਨਚ ਗੁਣਗ ਨਾਮ ਕੀਰਤਨਹ ॥ व्यक्ति के पास न ही वेद-विद्या का भण्डार है, न ही वह गुणज्ञ है, न तो वह नाम-संकीर्तन में लीन होता है।
ਨਚ ਰਾਗ ਰਤਨ ਕੰਠੰ ਨਹ ਚੰਚਲ ਚਤੁਰ ਚਾਤੁਰਹ ॥ न ही उसका कठ संगीत के योग्य है, और तो और वह चतुर एवं बुद्धिमान भी नहीं माना जाता।
ਭਾਗ ਉਦਿਮ ਲਬਧੵੰ ਮਾਇਆ ਨਾਨਕ ਸਾਧਸੰਗਿ ਖਲ ਪੰਡਿਤਹ ॥੩੧॥ हे नानक ! यह सब उपलब्धि केवल उत्तम भाग्य से ही होती है और साधु पुरुषों की संगत में मूर्ख जीव भी पण्डित बन जाता है॥ ३१॥
ਕੰਠ ਰਮਣੀਯ ਰਾਮ ਰਾਮ ਮਾਲਾ ਹਸਤ ਊਚ ਪ੍ਰੇਮ ਧਾਰਣੀ ॥ जिसके कण्ठ में राम नाम जपने की सुन्दर माला होती है, प्रेम धारण करना गोमुखी होता है।
ਜੀਹ ਭਣਿ ਜੋ ਉਤਮ ਸਲੋਕ ਉਧਰਣੰ ਨੈਨ ਨੰਦਨੀ ॥੩੨॥ जिह्म से जो उत्तम श्लोक उच्चारण करता है, ऐसा व्यक्ति आँखों को सुख देने वाली माया से मुक्त हो जाता है॥ ३२॥
ਗੁਰ ਮੰਤ੍ਰ ਹੀਣਸੵ ਜੋ ਪ੍ਰਾਣੀ ਧ੍ਰਿਗੰਤ ਜਨਮ ਭ੍ਰਸਟਣਹ ॥ जो प्राणी गुरु के मंत्र से विहीन रहते हैं, उनका जन्म धिक्कार योग्य एवं भ्रष्ट है।
ਕੂਕਰਹ ਸੂਕਰਹ ਗਰਧਭਹ ਕਾਕਹ ਸਰਪਨਹ ਤੁਲਿ ਖਲਹ ॥੩੩॥ ऐसे मूर्ख तो असल में कुत्ते, सूअर, गधे, कौए एवं साँप समान हैं।॥ ३३॥
ਚਰਣਾਰਬਿੰਦ ਭਜਨੰ ਰਿਦਯੰ ਨਾਮ ਧਾਰਣਹ ॥ हे सज्जनो,ईश्वर के चरणों का भजन करो, हृदय में हरिनाम धारण करो।


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