Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1350

Page 1350

ਲੋਗਾ ਭਰਮਿ ਨ ਭੂਲਹੁ ਭਾਈ ॥ लोगा भरमि न भूलहु भाई ॥ हे लोगो, हे मेरे भाई ! किसी भ्रम में मत भूलो।
ਖਾਲਿਕੁ ਖਲਕ ਖਲਕ ਮਹਿ ਖਾਲਿਕੁ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸ੍ਰਬ ਠਾਂਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ खालिकु खलक खलक महि खालिकु पूरि रहिओ स्रब ठांई ॥१॥ रहाउ ॥ यह खलक (सृष्टि) खालिक (रचनहार) ने रची है और खालिक अपनी खलकत (रचना) में ही है। सृष्टि के हर स्थान पर वही मौजूद है॥ १॥रहाउ॥
ਮਾਟੀ ਏਕ ਅਨੇਕ ਭਾਂਤਿ ਕਰਿ ਸਾਜੀ ਸਾਜਨਹਾਰੈ ॥ माटी एक अनेक भांति करि साजी साजनहारै ॥ उस बनाने वाले ने एक ही मिट्टी से अनेक प्रकार के जीवों की सृजना की है,
ਨਾ ਕਛੁ ਪੋਚ ਮਾਟੀ ਕੇ ਭਾਂਡੇ ਨਾ ਕਛੁ ਪੋਚ ਕੁੰਭਾਰੈ ॥੨॥ ना कछु पोच माटी के भांडे ना कछु पोच कु्मभारै ॥२॥ न ही मिट्टी के बर्तन (मनुष्य) का कोई कसूर है और न ही बनानेवाले का कसूर है॥ २॥
ਸਭ ਮਹਿ ਸਚਾ ਏਕੋ ਸੋਈ ਤਿਸ ਕਾ ਕੀਆ ਸਭੁ ਕਛੁ ਹੋਈ ॥ सभ महि सचा एको सोई तिस का कीआ सभु कछु होई ॥ सब में एक परमेश्वर ही मौजूद है, उसका किया ही सब कुछ होता है।
ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਨੈ ਸੁ ਏਕੋ ਜਾਨੈ ਬੰਦਾ ਕਹੀਐ ਸੋਈ ॥੩॥ हुकमु पछानै सु एको जानै बंदा कहीऐ सोई ॥३॥ जो उसके हुक्म को मानता है, केवल उसी पर निष्ठा रखता है, वास्तव में वही नेक पुरुष कहलाता है।॥ ३॥
ਅਲਹੁ ਅਲਖੁ ਨ ਜਾਈ ਲਖਿਆ ਗੁਰਿ ਗੁੜੁ ਦੀਨਾ ਮੀਠਾ ॥ अलहु अलखु न जाई लखिआ गुरि गुड़ु दीना मीठा ॥ अल्लाह अदृष्ट है, वह दिखाई नहीं देता। गुरु ने मुझे उस गुड़ की मिठास प्रदान की है।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਮੇਰੀ ਸੰਕਾ ਨਾਸੀ ਸਰਬ ਨਿਰੰਜਨੁ ਡੀਠਾ ॥੪॥੩॥ कहि कबीर मेरी संका नासी सरब निरंजनु डीठा ॥४॥३॥ कबीर जी कहते हैं कि मेरी सारी शंका समाप्त हो गई है, मुझे तो सब में ईश्वर ही दिखाई देता है॥ ४॥ ३॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ॥ प्रभाती ॥ प्रभाती ॥
ਬੇਦ ਕਤੇਬ ਕਹਹੁ ਮਤ ਝੂਠੇ ਝੂਠਾ ਜੋ ਨ ਬਿਚਾਰੈ ॥ बेद कतेब कहहु मत झूठे झूठा जो न बिचारै ॥ वेदों एवं कुरान को झूठा मत कहो: दरअसल झूठा वही है जो इनका चिंतन नहीं करता।
ਜਉ ਸਭ ਮਹਿ ਏਕੁ ਖੁਦਾਇ ਕਹਤ ਹਉ ਤਉ ਕਿਉ ਮੁਰਗੀ ਮਾਰੈ ॥੧॥ जउ सभ महि एकु खुदाइ कहत हउ तउ किउ मुरगी मारै ॥१॥ तुम्हारा कहना है कि सब में एक खुदा ही मौजूद है तो फिर मुर्गी कृो क्यों मार रहे हो॥ १॥
ਮੁਲਾਂ ਕਹਹੁ ਨਿਆਉ ਖੁਦਾਈ ॥ मुलां कहहु निआउ खुदाई ॥ हे मुल्ला ! मुझे बताओ, क्या यह खुदा का इंसाफ है,
ਤੇਰੇ ਮਨ ਕਾ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तेरे मन का भरमु न जाई ॥१॥ रहाउ ॥ तेरे मन का भ्रम अभी दूर नहीं हुआ॥ १॥रहाउ॥
ਪਕਰਿ ਜੀਉ ਆਨਿਆ ਦੇਹ ਬਿਨਾਸੀ ਮਾਟੀ ਕਉ ਬਿਸਮਿਲਿ ਕੀਆ ॥ पकरि जीउ आनिआ देह बिनासी माटी कउ बिसमिलि कीआ ॥ जीव (मुर्गी) को पकड़ कर लाया, शरीर को नाश कर दिया, उसकी मिट्टी को खत्म कर दिया।
ਜੋਤਿ ਸਰੂਪ ਅਨਾਹਤ ਲਾਗੀ ਕਹੁ ਹਲਾਲੁ ਕਿਆ ਕੀਆ ॥੨॥ जोति सरूप अनाहत लागी कहु हलालु किआ कीआ ॥२॥ जीव की ज्योति ईश्वर में ही मिल जाती है, फिर हलाल क्या किया॥ १॥
ਕਿਆ ਉਜੂ ਪਾਕੁ ਕੀਆ ਮੁਹੁ ਧੋਇਆ ਕਿਆ ਮਸੀਤਿ ਸਿਰੁ ਲਾਇਆ ॥ किआ उजू पाकु कीआ मुहु धोइआ किआ मसीति सिरु लाइआ ॥ वुजू किया, हाथ-मुंह धोकर पवित्र हुए तथा मस्जिद में सिर झुकाया गया,
ਜਉ ਦਿਲ ਮਹਿ ਕਪਟੁ ਨਿਵਾਜ ਗੁਜਾਰਹੁ ਕਿਆ ਹਜ ਕਾਬੈ ਜਾਇਆ ॥੩॥ जउ दिल महि कपटु निवाज गुजारहु किआ हज काबै जाइआ ॥३॥ इन सबका क्या फायदा, जब दिल में कपट ही है तो नमाज अदा करने या हज्ज के लिए काबे में जाने का कोई लाभ नहीं॥ ३॥
ਤੂੰ ਨਾਪਾਕੁ ਪਾਕੁ ਨਹੀ ਸੂਝਿਆ ਤਿਸ ਕਾ ਮਰਮੁ ਨ ਜਾਨਿਆ ॥ तूं नापाकु पाकु नही सूझिआ तिस का मरमु न जानिआ ॥ तू मन से अपवित्र है, पवित्र खुदा को नहीं समझा और न ही तूने उसके रहस्य को जाना है।
ਕਹਿ ਕਬੀਰ ਭਿਸਤਿ ਤੇ ਚੂਕਾ ਦੋਜਕ ਸਿਉ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥੪॥੪॥ कहि कबीर भिसति ते चूका दोजक सिउ मनु मानिआ ॥४॥४॥ कबीर जी कहते हैं कि इस तरह तू बहिश्त से वंचित हो गया और तेरा मन नरक में जाने के लिए तैयार हो जाता है ॥४॥४॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ॥ प्रभाती ॥ प्रभाती ॥
ਸੁੰਨ ਸੰਧਿਆ ਤੇਰੀ ਦੇਵ ਦੇਵਾਕਰ ਅਧਪਤਿ ਆਦਿ ਸਮਾਈ ॥ सुंन संधिआ तेरी देव देवाकर अधपति आदि समाई ॥ हे जगत के मालिक ! हे देवाधिदेव ! हे आदिपुरुष ! शून्यावस्था में लीन होना ही तुम्हारी (प्रातः दोपहर, सायंकालीन) वंदना है।
ਸਿਧ ਸਮਾਧਿ ਅੰਤੁ ਨਹੀ ਪਾਇਆ ਲਾਗਿ ਰਹੇ ਸਰਨਾਈ ॥੧॥ सिध समाधि अंतु नही पाइआ लागि रहे सरनाई ॥१॥ सिद्धों ने समाधि लगाकर तुम्हारा रहस्य नहीं पाया और वे तेरी शरण में लीन रहे हैं।॥ १॥
ਲੇਹੁ ਆਰਤੀ ਹੋ ਪੁਰਖ ਨਿਰੰਜਨ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਜਹੁ ਭਾਈ ॥ लेहु आरती हो पुरख निरंजन सतिगुर पूजहु भाई ॥ हे भाई ! मायातीत ईश्वर की आरती करो, उस सतगुरु का पूजन करो।
ਠਾਢਾ ਬ੍ਰਹਮਾ ਨਿਗਮ ਬੀਚਾਰੈ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖਿਆ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ठाढा ब्रहमा निगम बीचारै अलखु न लखिआ जाई ॥१॥ रहाउ ॥ ब्रह्मा ने वेदों का चिंतन किया परन्तु अदृष्ट परमेश्वर के रहस्य को नहीं जान पाया॥ १॥रहाउ॥
ਤਤੁ ਤੇਲੁ ਨਾਮੁ ਕੀਆ ਬਾਤੀ ਦੀਪਕੁ ਦੇਹ ਉਜ੍ਯ੍ਯਾਰਾ ॥ ततु तेलु नामु कीआ बाती दीपकु देह उज्यारा ॥ जब ज्ञान का तेल डालकर प्रभु के नाम की बाती का दीया प्रज्वलित किया जाता है तो देह में उजाला होता है।
ਜੋਤਿ ਲਾਇ ਜਗਦੀਸ ਜਗਾਇਆ ਬੂਝੈ ਬੂਝਨਹਾਰਾ ॥੨॥ जोति लाइ जगदीस जगाइआ बूझै बूझनहारा ॥२॥ इससे ईश्वर नाम की ज्योति जगमगाती है, जिसे कोई समझदार ही समझता है॥ २॥
ਪੰਚੇ ਸਬਦ ਅਨਾਹਦ ਬਾਜੇ ਸੰਗੇ ਸਾਰਿੰਗਪਾਨੀ ॥ पंचे सबद अनाहद बाजे संगे सारिंगपानी ॥ प्रभु के साक्षात्कार से पाँचों शब्द एवं अनाहत ध्वनि गूंज उठी है।
ਕਬੀਰ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਆਰਤੀ ਕੀਨੀ ਨਿਰੰਕਾਰ ਨਿਰਬਾਨੀ ॥੩॥੫॥ कबीर दास तेरी आरती कीनी निरंकार निरबानी ॥३॥५॥ दास कबीर का कथन है कि हे निराकार ! यह तेरी आरती हैi॥ ३॥ ५॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਨਾਮਦੇਵ ਜੀ ਕੀ प्रभाती बाणी भगत नामदेव जी की प्रभाती बाणी भगत नामदेव जी की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮਨ ਕੀ ਬਿਰਥਾ ਮਨੁ ਹੀ ਜਾਨੈ ਕੈ ਬੂਝਲ ਆਗੈ ਕਹੀਐ ॥ मन की बिरथा मनु ही जानै कै बूझल आगै कहीऐ ॥ मन की व्यथा मन ही जानता है या उसे समझने वाले (परमेश्वर) के आगे बताया जा सकता है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਰਾਮੁ ਰਵਾਂਈ ਮੈ ਡਰੁ ਕੈਸੇ ਚਹੀਐ ॥੧॥ अंतरजामी रामु रवांई मै डरु कैसे चहीऐ ॥१॥ मैं अन्तर्यामी परमात्मा की भक्ति में लीन हूँ, फिर मुझे कैसे डर हो सकता है।॥ १॥
ਬੇਧੀਅਲੇ ਗੋਪਾਲ ਗੋੁਸਾਈ ॥ बेधीअले गोपाल गोसाई ॥ ईश्वर ने मुझे विंध लिया है,
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਰਵਿਆ ਸਰਬੇ ਠਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मेरा प्रभु रविआ सरबे ठाई ॥१॥ रहाउ ॥ मेरा प्रभु तो हर जगह पर विद्यमान है॥ १॥रहाउ॥
ਮਾਨੈ ਹਾਟੁ ਮਾਨੈ ਪਾਟੁ ਮਾਨੈ ਹੈ ਪਾਸਾਰੀ ॥ मानै हाटु मानै पाटु मानै है पासारी ॥ यह मन ही दुकान एवं नगर है और मन का ही प्रसार है।
ਮਾਨੈ ਬਾਸੈ ਨਾਨਾ ਭੇਦੀ ਭਰਮਤੁ ਹੈ ਸੰਸਾਰੀ ॥੨॥ मानै बासै नाना भेदी भरमतु है संसारी ॥२॥ मन अनेक रंगों में रहता है और मन ही संसार में भ्रमता है॥ २॥
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਏਹੁ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਦੁਬਿਧਾ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣੀ ॥ गुर कै सबदि एहु मनु राता दुबिधा सहजि समाणी ॥ यह मन जब गुरु के उपदेश में लीन हो जाता है तो स्वाभाविक ही दुविधा दूर हो जाती है।


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