Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1351

Page 1351

ਸਭੋ ਹੁਕਮੁ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਆਪੇ ਨਿਰਭਉ ਸਮਤੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥੩॥ सब ओर परमात्मा का हुक्म व्याप्त है, वह निर्भय परमेश्वर को एक रूप ही मानता है॥ ३॥
ਜੋ ਜਨ ਜਾਨਿ ਭਜਹਿ ਪੁਰਖੋਤਮੁ ਤਾ ਚੀ ਅਬਿਗਤੁ ਬਾਣੀ ॥ जो व्यक्ति पुरुषोत्तम परमेश्वर का भजन करते हैं, उनकी वाणी अटल है।
ਨਾਮਾ ਕਹੈ ਜਗਜੀਵਨੁ ਪਾਇਆ ਹਿਰਦੈ ਅਲਖ ਬਿਡਾਣੀ ॥੪॥੧॥ नामदेव जी कहते हैं कि उन्होंने अपने हृदय में संसार के जीवन, रहस्यमय परमात्मा को पा लिया है॥ ४॥१॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ॥ प्रभाती ॥
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਜੁਗੋ ਜੁਗੁ ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਨਿਆ ॥ सृष्टि रचना से पूर्व, अनादि काल से, (सतयुग, त्रैता, द्वापर, कलियुग) युग-युग ईश्वर ही मौजूद है, उसका रहस्य (ज्ञानी, ध्यानी, महात्मा, देवता, त्रिदेव इत्यादि) कोई नहीं पा सका।
ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਰਾਮੁ ਰਹਿਆ ਰਵਿ ਐਸਾ ਰੂਪੁ ਬਖਾਨਿਆ ॥੧॥ उसका यही रूप बताया गया है कि सब में निरन्तर रूप से केवल परमेश्वर ही विद्यमान है॥ १॥
ਗੋਬਿਦੁ ਗਾਜੈ ਸਬਦੁ ਬਾਜੈ ॥ ਆਨਦ ਰੂਪੀ ਮੇਰੋ ਰਾਮਈਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ शब्द की ध्वनि से वह प्रगट हो रहा है,
ਬਾਵਨ ਬੀਖੂ ਬਾਨੈ ਬੀਖੇ ਬਾਸੁ ਤੇ ਸੁਖ ਲਾਗਿਲਾ ॥ मेरा प्रभु आनंदस्वरूप है॥ १॥रहाउ॥
ਸਰਬੇ ਆਦਿ ਪਰਮਲਾਦਿ ਕਾਸਟ ਚੰਦਨੁ ਭੈਇਲਾ ॥੨॥ ज्यों चन्दन का वृक्ष जंगल में होता है और सबको उसकी खुशबू का सुख प्राप्त होता है।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਚੇ ਪਾਰਸੁ ਹਮ ਚੇ ਲੋਹਾ ਸੰਗੇ ਕੰਚਨੁ ਭੈਇਲਾ ॥ इसी तरह ईश्वर सब जीवों का आदि है, सर्वगुण रूपी महक का मूल है, जिससे जीव रूपी लकड़ियाँ चन्दन बन जाती हैं।॥ २॥
ਤੂ ਦਇਆਲੁ ਰਤਨੁ ਲਾਲੁ ਨਾਮਾ ਸਾਚਿ ਸਮਾਇਲਾ ॥੩॥੨॥ हे परमेश्वर ! तुम पारस हो और मैं लोहा हूँ लेकिन तेरी संगत में कंचन बन गया हूँ।
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ॥ दू दया का सागर है, अमूल्य रत्न है, नामदेव सदैव सत्यस्वरूप की आराधना में लीन रहता है॥ ३॥ २॥
ਅਕੁਲ ਪੁਰਖ ਇਕੁ ਚਲਿਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥ प्रभाती ॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਲੁਕਾਇਆ ॥੧॥ कुलातीत परम शक्ति परमेश्वर ने एक कौतुक रचा और
ਜੀਅ ਕੀ ਜੋਤਿ ਨ ਜਾਨੈ ਕੋਈ ॥ प्रत्येक शरीर में वह ब्रह्म प्रच्छन्न रूप में व्याप्त हो गया॥ १॥
ਤੈ ਮੈ ਕੀਆ ਸੁ ਮਾਲੂਮੁ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जीवों में व्याप्त उस परम-ज्योति को कोई नहीं जानता,
ਜਿਉ ਪ੍ਰਗਾਸਿਆ ਮਾਟੀ ਕੁੰਭੇਉ ॥ परन्तु अच्छा-बुरा हम जो करते हैं, उसे मालूम हो जाता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਆਪ ਹੀ ਕਰਤਾ ਬੀਠੁਲੁ ਦੇਉ ॥੨॥ ज्यों मिट्टी से घड़ा तैयार होता है,
ਜੀਅ ਕਾ ਬੰਧਨੁ ਕਰਮੁ ਬਿਆਪੈ ॥ वैसे ही परमात्मा सबको बनाने वाला है॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕੀਆ ਸੁ ਆਪੈ ਆਪੈ ॥੩॥ जीवों के कर्म ही उनके बन्धन बन जाते हैं,
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਮਦੇਉ ਇਹੁ ਜੀਉ ਚਿਤਵੈ ਸੁ ਲਹੈ ॥ "(जीव लाचार है, उसके वश में कुछ नहीं) वस्तुतः शुभाशुभ सब करने-करवाने वाला परमात्मा आप ही है॥ ३॥
ਅਮਰੁ ਹੋਇ ਸਦ ਆਕੁਲ ਰਹੈ ॥੪॥੩॥ नामदेव प्रार्थना करते हैं कि यह जीव जैसी कामना करता है, वैसा ही फल प्राप्त करता है।
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਭਗਤ ਬੇਣੀ ਜੀ ਕੀ यदि ईश्वर की भक्ति में लीन रहे तो जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।॥ ४॥ ३॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ प्रभाती भगत बेणी जी की
ਤਨਿ ਚੰਦਨੁ ਮਸਤਕਿ ਪਾਤੀ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਕਰ ਤਲ ਕਾਤੀ ॥ तन पर चंदन लगा लिया और माथे पर तुलसी पत्र लगा लिए।
ਠਗ ਦਿਸਟਿ ਬਗਾ ਲਿਵ ਲਾਗਾ ॥ परन्तु हृदय में ऐसा लग रहा है कि हाथ में छुरी पकड़ी हुई है।
ਦੇਖਿ ਬੈਸਨੋ ਪ੍ਰਾਨ ਮੁਖ ਭਾਗਾ ॥੧॥ दृष्टि धोखा देने की है और बगुले की तरह समाधि लगाई हुई है।
ਕਲਿ ਭਗਵਤ ਬੰਦ ਚਿਰਾਂਮੰ ॥ देखने में ऐसा वैष्णव यूं लगता है, जैसे मुँह से प्राण ही छूट गए हैं।॥ १॥
ਕ੍ਰੂਰ ਦਿਸਟਿ ਰਤਾ ਨਿਸਿ ਬਾਦੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ यह भक्त लम्बे समय तक वन्दना करता रहता है,
ਨਿਤਪ੍ਰਤਿ ਇਸਨਾਨੁ ਸਰੀਰੰ ॥ लेकिन इसकी नजर बुरी है और रोज़ झगड़ों में लिप्त रहता है॥ १॥रहाउ॥
ਦੁਇ ਧੋਤੀ ਕਰਮ ਮੁਖਿ ਖੀਰੰ ॥ वह प्रतिदिन शरीर को स्नान करवाता है,
ਰਿਦੈ ਛੁਰੀ ਸੰਧਿਆਨੀ ॥ दो धोतियाँ धारण करता है और दूध पीता है।
ਪਰ ਦਰਬੁ ਹਿਰਨ ਕੀ ਬਾਨੀ ॥੨॥ उसके हृदय में छुरी है और
ਸਿਲ ਪੂਜਸਿ ਚਕ੍ਰ ਗਣੇਸੰ ॥ पराया धन छीनने की पुरानी आदत है॥ २॥
ਨਿਸਿ ਜਾਗਸਿ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਵੇਸੰ ॥ वह मूर्ति-पूजा करता, गणेश के चिन्ह लगाता है।
ਪਗ ਨਾਚਸਿ ਚਿਤੁ ਅਕਰਮੰ ॥ रात को जागकर भक्ति करता है,
ਏ ਲੰਪਟ ਨਾਚ ਅਧਰਮੰ ॥੩॥ पैरों से झूमता है, परन्तु इसका मन बुरे कर्मों में लीन रहता है।
ਮ੍ਰਿਗ ਆਸਣੁ ਤੁਲਸੀ ਮਾਲਾ ॥ अरे लालची ! ऐसे अधर्म करता है॥ ३॥
ਕਰ ਊਜਲ ਤਿਲਕੁ ਕਪਾਲਾ ॥ मृगशाला पर आसन लगा लिया, तुलसी-माला ले ली,
ਰਿਦੈ ਕੂੜੁ ਕੰਠਿ ਰੁਦ੍ਰਾਖੰ ॥ उज्ज्वल हाथों से तिलक लगा लिया।
ਰੇ ਲੰਪਟ ਕ੍ਰਿਸਨੁ ਅਭਾਖੰ ॥੪॥ हृदय में झूठ भरा हुआ है, गले में रुंद्राक्ष पहन रखा है।
ਜਿਨਿ ਆਤਮ ਤਤੁ ਨ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਿਆ ॥ अरे लंपट ! कृष्ण-कृष्ण जपने का झूठा ढोंग कर रहे हो॥ ४॥
ਸਭ ਫੋਕਟ ਧਰਮ ਅਬੀਨਿਆ ॥ जिसने आत्म-तत्व को नहीं पहचाना,
ਕਹੁ ਬੇਣੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਧਿਆਵੈ ॥ उसके सभी कर्म-धर्म बेकार हैं।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਟ ਨ ਪਾਵੈ ॥੫॥੧॥ बेणी जी कहते हैं कि जो गुरुमुख बनकर भगवान का ध्यान करता है,


© 2017 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top