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ਸਭੋ ਹੁਕਮੁ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਆਪੇ ਨਿਰਭਉ ਸਮਤੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥੩॥
सभो हुकमु हुकमु है आपे निरभउ समतु बीचारी ॥३॥
सब ओर परमात्मा का हुक्म व्याप्त है, वह निर्भय परमेश्वर को एक रूप ही मानता है॥ ३॥
ਜੋ ਜਨ ਜਾਨਿ ਭਜਹਿ ਪੁਰਖੋਤਮੁ ਤਾ ਚੀ ਅਬਿਗਤੁ ਬਾਣੀ ॥
जो जन जानि भजहि पुरखोतमु ता ची अबिगतु बाणी ॥
जो व्यक्ति पुरुषोत्तम परमेश्वर का भजन करते हैं, उनकी वाणी अटल है।
ਨਾਮਾ ਕਹੈ ਜਗਜੀਵਨੁ ਪਾਇਆ ਹਿਰਦੈ ਅਲਖ ਬਿਡਾਣੀ ॥੪॥੧॥
नामा कहै जगजीवनु पाइआ हिरदै अलख बिडाणी ॥४॥१॥
नामदेव जी कहते हैं कि उन्होंने अपने हृदय में संसार के जीवन, रहस्यमय परमात्मा को पा लिया है॥ ४॥१॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ॥
प्रभाती ॥
प्रभाती ॥
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਜੁਗੋ ਜੁਗੁ ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਨਿਆ ॥
आदि जुगादि जुगादि जुगो जुगु ता का अंतु न जानिआ ॥
सृष्टि रचना से पूर्व, अनादि काल से, (सतयुग, त्रैता, द्वापर, कलियुग) युग-युग ईश्वर ही मौजूद है, उसका रहस्य (ज्ञानी, ध्यानी, महात्मा, देवता, त्रिदेव इत्यादि) कोई नहीं पा सका।
ਸਰਬ ਨਿਰੰਤਰਿ ਰਾਮੁ ਰਹਿਆ ਰਵਿ ਐਸਾ ਰੂਪੁ ਬਖਾਨਿਆ ॥੧॥
सरब निरंतरि रामु रहिआ रवि ऐसा रूपु बखानिआ ॥१॥
उसका यही रूप बताया गया है कि सब में निरन्तर रूप से केवल परमेश्वर ही विद्यमान है॥ १॥
ਗੋਬਿਦੁ ਗਾਜੈ ਸਬਦੁ ਬਾਜੈ ॥ ਆਨਦ ਰੂਪੀ ਮੇਰੋ ਰਾਮਈਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गोबिदु गाजै सबदु बाजै ॥
शब्द की ध्वनि से वह प्रगट हो रहा है,
ਬਾਵਨ ਬੀਖੂ ਬਾਨੈ ਬੀਖੇ ਬਾਸੁ ਤੇ ਸੁਖ ਲਾਗਿਲਾ ॥
आनद रूपी मेरो रामईआ ॥१॥ रहाउ ॥
मेरा प्रभु आनंदस्वरूप है॥ १॥रहाउ॥
ਸਰਬੇ ਆਦਿ ਪਰਮਲਾਦਿ ਕਾਸਟ ਚੰਦਨੁ ਭੈਇਲਾ ॥੨॥
बावन बीखू बानै बीखे बासु ते सुख लागिला ॥
ज्यों चन्दन का वृक्ष जंगल में होता है और सबको उसकी खुशबू का सुख प्राप्त होता है।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਚੇ ਪਾਰਸੁ ਹਮ ਚੇ ਲੋਹਾ ਸੰਗੇ ਕੰਚਨੁ ਭੈਇਲਾ ॥
सरबे आदि परमलादि कासट चंदनु भैइला ॥२॥
इसी तरह ईश्वर सब जीवों का आदि है, सर्वगुण रूपी महक का मूल है, जिससे जीव रूपी लकड़ियाँ चन्दन बन जाती हैं।॥ २॥
ਤੂ ਦਇਆਲੁ ਰਤਨੁ ਲਾਲੁ ਨਾਮਾ ਸਾਚਿ ਸਮਾਇਲਾ ॥੩॥੨॥
तुम्ह चे पारसु हम चे लोहा संगे कंचनु भैइला ॥
हे परमेश्वर ! तुम पारस हो और मैं लोहा हूँ लेकिन तेरी संगत में कंचन बन गया हूँ।
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ॥
तू दइआलु रतनु लालु नामा साचि समाइला ॥३॥२॥
दू दया का सागर है, अमूल्य रत्न है, नामदेव सदैव सत्यस्वरूप की आराधना में लीन रहता है॥ ३॥ २॥
ਅਕੁਲ ਪੁਰਖ ਇਕੁ ਚਲਿਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
प्रभाती ॥
प्रभाती ॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਲੁਕਾਇਆ ॥੧॥
अकुल पुरख इकु चलितु उपाइआ ॥
कुलातीत परम शक्ति परमेश्वर ने एक कौतुक रचा और
ਜੀਅ ਕੀ ਜੋਤਿ ਨ ਜਾਨੈ ਕੋਈ ॥
घटि घटि अंतरि ब्रहमु लुकाइआ ॥१॥
प्रत्येक शरीर में वह ब्रह्म प्रच्छन्न रूप में व्याप्त हो गया॥ १॥
ਤੈ ਮੈ ਕੀਆ ਸੁ ਮਾਲੂਮੁ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जीअ की जोति न जानै कोई ॥
जीवों में व्याप्त उस परम-ज्योति को कोई नहीं जानता,
ਜਿਉ ਪ੍ਰਗਾਸਿਆ ਮਾਟੀ ਕੁੰਭੇਉ ॥
तै मै कीआ सु मालूमु होई ॥१॥ रहाउ ॥
परन्तु अच्छा-बुरा हम जो करते हैं, उसे मालूम हो जाता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਆਪ ਹੀ ਕਰਤਾ ਬੀਠੁਲੁ ਦੇਉ ॥੨॥
जिउ प्रगासिआ माटी कु्मभेउ ॥
ज्यों मिट्टी से घड़ा तैयार होता है,
ਜੀਅ ਕਾ ਬੰਧਨੁ ਕਰਮੁ ਬਿਆਪੈ ॥
आप ही करता बीठुलु देउ ॥२॥
वैसे ही परमात्मा सबको बनाने वाला है॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕੀਆ ਸੁ ਆਪੈ ਆਪੈ ॥੩॥
जीअ का बंधनु करमु बिआपै ॥
जीवों के कर्म ही उनके बन्धन बन जाते हैं,
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਮਦੇਉ ਇਹੁ ਜੀਉ ਚਿਤਵੈ ਸੁ ਲਹੈ ॥
जो किछु कीआ सु आपै आपै ॥३॥
"(जीव लाचार है, उसके वश में कुछ नहीं) वस्तुतः शुभाशुभ सब करने-करवाने वाला परमात्मा आप ही है॥ ३॥
ਅਮਰੁ ਹੋਇ ਸਦ ਆਕੁਲ ਰਹੈ ॥੪॥੩॥
प्रणवति नामदेउ इहु जीउ चितवै सु लहै ॥
नामदेव प्रार्थना करते हैं कि यह जीव जैसी कामना करता है, वैसा ही फल प्राप्त करता है।
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਭਗਤ ਬੇਣੀ ਜੀ ਕੀ
अमरु होइ सद आकुल रहै ॥४॥३॥
यदि ईश्वर की भक्ति में लीन रहे तो जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।॥ ४॥ ३॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
प्रभाती भगत बेणी जी की
प्रभाती भगत बेणी जी की
ਤਨਿ ਚੰਦਨੁ ਮਸਤਕਿ ਪਾਤੀ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਿਦ ਅੰਤਰਿ ਕਰ ਤਲ ਕਾਤੀ ॥
तनि चंदनु मसतकि पाती ॥
तन पर चंदन लगा लिया और माथे पर तुलसी पत्र लगा लिए।
ਠਗ ਦਿਸਟਿ ਬਗਾ ਲਿਵ ਲਾਗਾ ॥
रिद अंतरि कर तल काती ॥
परन्तु हृदय में ऐसा लग रहा है कि हाथ में छुरी पकड़ी हुई है।
ਦੇਖਿ ਬੈਸਨੋ ਪ੍ਰਾਨ ਮੁਖ ਭਾਗਾ ॥੧॥
ठग दिसटि बगा लिव लागा ॥
दृष्टि धोखा देने की है और बगुले की तरह समाधि लगाई हुई है।
ਕਲਿ ਭਗਵਤ ਬੰਦ ਚਿਰਾਂਮੰ ॥
देखि बैसनो प्रान मुख भागा ॥१॥
देखने में ऐसा वैष्णव यूं लगता है, जैसे मुँह से प्राण ही छूट गए हैं।॥ १॥
ਕ੍ਰੂਰ ਦਿਸਟਿ ਰਤਾ ਨਿਸਿ ਬਾਦੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कलि भगवत बंद चिरांमं ॥
यह भक्त लम्बे समय तक वन्दना करता रहता है,
ਨਿਤਪ੍ਰਤਿ ਇਸਨਾਨੁ ਸਰੀਰੰ ॥
क्रूर दिसटि रता निसि बादं ॥१॥ रहाउ ॥
लेकिन इसकी नजर बुरी है और रोज़ झगड़ों में लिप्त रहता है॥ १॥रहाउ॥
ਦੁਇ ਧੋਤੀ ਕਰਮ ਮੁਖਿ ਖੀਰੰ ॥
नितप्रति इसनानु सरीरं ॥
वह प्रतिदिन शरीर को स्नान करवाता है,
ਰਿਦੈ ਛੁਰੀ ਸੰਧਿਆਨੀ ॥
दुइ धोती करम मुखि खीरं ॥
दो धोतियाँ धारण करता है और दूध पीता है।
ਪਰ ਦਰਬੁ ਹਿਰਨ ਕੀ ਬਾਨੀ ॥੨॥
रिदै छुरी संधिआनी ॥
उसके हृदय में छुरी है और
ਸਿਲ ਪੂਜਸਿ ਚਕ੍ਰ ਗਣੇਸੰ ॥
पर दरबु हिरन की बानी ॥२॥
पराया धन छीनने की पुरानी आदत है॥ २॥
ਨਿਸਿ ਜਾਗਸਿ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਵੇਸੰ ॥
सिल पूजसि चक्र गणेसं ॥
वह मूर्ति-पूजा करता, गणेश के चिन्ह लगाता है।
ਪਗ ਨਾਚਸਿ ਚਿਤੁ ਅਕਰਮੰ ॥
निसि जागसि भगति प्रवेसं ॥
रात को जागकर भक्ति करता है,
ਏ ਲੰਪਟ ਨਾਚ ਅਧਰਮੰ ॥੩॥
पग नाचसि चितु अकरमं ॥
पैरों से झूमता है, परन्तु इसका मन बुरे कर्मों में लीन रहता है।
ਮ੍ਰਿਗ ਆਸਣੁ ਤੁਲਸੀ ਮਾਲਾ ॥
ए ल्मपट नाच अधरमं ॥३॥
अरे लालची ! ऐसे अधर्म करता है॥ ३॥
ਕਰ ਊਜਲ ਤਿਲਕੁ ਕਪਾਲਾ ॥
म्रिग आसणु तुलसी माला ॥
मृगशाला पर आसन लगा लिया, तुलसी-माला ले ली,
ਰਿਦੈ ਕੂੜੁ ਕੰਠਿ ਰੁਦ੍ਰਾਖੰ ॥
कर ऊजल तिलकु कपाला ॥
उज्ज्वल हाथों से तिलक लगा लिया।
ਰੇ ਲੰਪਟ ਕ੍ਰਿਸਨੁ ਅਭਾਖੰ ॥੪॥
रिदै कूड़ु कंठि रुद्राखं ॥
हृदय में झूठ भरा हुआ है, गले में रुंद्राक्ष पहन रखा है।
ਜਿਨਿ ਆਤਮ ਤਤੁ ਨ ਚੀਨ੍ਹ੍ਹਿਆ ॥
रे ल्मपट क्रिसनु अभाखं ॥४॥
अरे लंपट ! कृष्ण-कृष्ण जपने का झूठा ढोंग कर रहे हो॥ ४॥
ਸਭ ਫੋਕਟ ਧਰਮ ਅਬੀਨਿਆ ॥
जिनि आतम ततु न चीन्हिआ ॥
जिसने आत्म-तत्व को नहीं पहचाना,
ਕਹੁ ਬੇਣੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਧਿਆਵੈ ॥
सभ फोकट धरम अबीनिआ ॥
उसके सभी कर्म-धर्म बेकार हैं।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਬਾਟ ਨ ਪਾਵੈ ॥੫॥੧॥
कहु बेणी गुरमुखि धिआवै ॥
बेणी जी कहते हैं कि जो गुरुमुख बनकर भगवान का ध्यान करता है,