Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1340

Page 1340

ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਦਾ ਸਦ ਅਟਲਾ ॥ प्रभाती महला ५ ॥ गुरु का शब्द सदैव अटल है।
ਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ॥ गुरु पूरा पूरी ता की कला ॥ जिसके मन में गुरु की वाणी बस जाती है, उसका दुख-दर्द सब निवृत्त हो जाता है॥ १॥
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਸਭੁ ਤਾ ਕਾ ਨਸੈ ॥੧॥ हरि रंगि राता मनु राम गुन गावै ॥ परमात्मा के रंग में लीन मन उसी के गुण गाता है।
ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਮਨੁ ਰਾਮ ਗੁਨ ਗਾਵੈ ॥ मुकतो साधू धूरी नावै ॥१॥ रहाउ ॥ जो साधुओं की चरण-धूल में स्नान करता है, वह सब बन्धनों से मुक्त हो जाता है॥ १॥रहाउ॥
ਮੁਕਤੋੁ ਸਾਧੂ ਧੂਰੀ ਨਾਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर परसादी उतरे पारि ॥ गुरु की कृपा से जीव संसार-सागर से पार उतरता है और
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਉਤਰੇ ਪਾਰਿ ॥ ਭਉ ਭਰਮੁ ਬਿਨਸੇ ਬਿਕਾਰ ॥ भउ भरमु बिनसे बिकार ॥ उसके भ्रम-भय, विकार नष्ट हो जाते हैं।
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਬਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨਾ ॥ मन तन अंतरि बसे गुर चरना ॥ जिसके मन तन में गुरु के चरण बस जाते हैं,
ਨਿਰਭੈ ਸਾਧ ਪਰੇ ਹਰਿ ਸਰਨਾ ॥੨॥ निरभै साध परे हरि सरना ॥२॥ वह निर्भय भावना से प्रभु की शरण में पड़ता है।॥ २॥
ਅਨਦ ਸਹਜ ਰਸ ਸੂਖ ਘਨੇਰੇ ॥ ਦੁਸਮਨੁ ਦੂਖੁ ਨ ਆਵੈ ਨੇਰੇ ॥ अनद सहज रस सूख घनेरे ॥ वह सहज आनंद एवं अनेक सुख प्राप्त करता है,कोई दुश्मन अथवा दुख भी उसके पास नहीं फटकता।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਅਪੁਨੇ ਕਰਿ ਰਾਖੇ ॥ दुसमनु दूखु न आवै नेरे ॥ पूर्ण गुरु अपना बनाकर उसकी रक्षा करता है और
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਕਿਲਬਿਖ ਸਭਿ ਲਾਥੇ ॥੩॥ गुरि पूरै अपुने करि राखे ॥ परमात्मा का जाप करते हुए उसके सब पाप-दोष निवृत्त हो जाते हैं।॥ ३॥
ਸੰਤ ਸਾਜਨ ਸਿਖ ਭਏ ਸੁਹੇਲੇ ॥ हरि नामु जपत किलबिख सभि लाथे ॥३॥ असल में संत, सज्जन एवं शिष्य ही सुखी रहते हैं,
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਲੈ ਮੇਲੇ ॥ संत साजन सिख भए सुहेले ॥ पूर्ण गुरु उनको प्रभु से मिला देता है।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਖ ਫਾਹਾ ਕਾਟਿਆ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਪੜਦਾ ਢਾਕਿਆ ॥੪॥੮॥ गुरि पूरै प्रभ सिउ लै मेले ॥ हे नानक ! उनके जन्म-मरण के दुखों का फंदा कट जाता है औरगुरु उनका पर्दा ढकता है॥ ४॥ ८॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ जनम मरन दुख फाहा काटिआ ॥ प्रभाती महला ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਨਾਮੁ ਦੀਆ ॥ कहु नानक गुरि पड़दा ढाकिआ ॥४॥८॥ पूर्ण सतगुरु ने हरिनाम ही दिया है,
ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਕਲਿਆਣ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਕਾਰਜੁ ਸਗਲਾ ਰਾਸਿ ਥੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभाती महला ५ ॥ जिससे आनंद-खुशियाँ, कल्याण एवं सदैव सुख प्राप्त हुआ है और हमारे सभी कार्य सम्पन्न हो गए हैं।॥ १॥रहाउ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰ ਕੇ ਮਨਿ ਵੂਠੇ ॥ सतिगुरि पूरै नामु दीआ ॥ गुरु के चरण कमल मेरे मन में बस गए हैं,
ਦੂਖ ਦਰਦ ਭ੍ਰਮ ਬਿਨਸੇ ਝੂਠੇ ॥੧॥ अनद मंगल कलिआण सदा सुखु कारजु सगला रासि थीआ ॥१॥ रहाउ ॥ जिससे दुख-दर्द, झूठा भ्रम नाश हो गया है॥ १॥
ਨਿਤ ਉਠਿ ਗਾਵਹੁ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥ ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਸਿਮਰਹੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ॥੨॥ चरन कमल गुर के मनि वूठे ॥ नित्य उठकर प्रभु की वाणी गाओ।हे प्राणी ! आठ प्रहर परमात्मा का स्मरण करो॥ २॥
ਘਰਿ ਬਾਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥ दूख दरद भ्रम बिनसे झूठे ॥१॥ घर बाहर हर स्थान पर प्रभु ही विद्यमान है,
ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਜਹ ਹਉ ਜਾਈ ॥੩॥ नित उठि गावहु प्रभ की बाणी ॥ जहाँ भी हम जाते हैं, वहाँ साथ देकर सहायता करता है॥ ३॥
ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਕਰੀ ਅਰਦਾਸਿ ॥ आठ पहर हरि सिमरहु प्राणी ॥२॥ नानक दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि
ਸਦਾ ਜਪੇ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥੪॥੯॥ घरि बाहरि प्रभु सभनी थाई ॥ सदैव गुणों के घर ईश्वर का जाप करो॥ ४॥ ६॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ संगि सहाई जह हउ जाई ॥३॥ प्रभाती महला ५ ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣੁ ॥ दुइ कर जोड़ि करी अरदासि ॥ परब्रह्म प्रभु सर्वगुणसम्पन्न एवं बुद्धिमान है।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ਵਡਭਾਗੀ ਦਰਸਨ ਕਉ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सदा जपे नानकु गुणतासु ॥४॥९॥ पूर्णगुरु बड़े भाग्य से ही प्राप्त होता है, मैं उसके दर्शनों पर कुर्बान जाता हूँ॥ १॥रहाउ॥
ਕਿਲਬਿਖ ਮੇਟੇ ਸਬਦਿ ਸੰਤੋਖੁ ॥ प्रभाती महला ५ ॥ गुरु के शब्द से सब पाप मिट गए हैं और मन को संतोष मिला है।
ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਨ ਹੋਆ ਜੋਗੁ ॥ पारब्रहमु प्रभु सुघड़ सुजाणु ॥ परमात्मा का नाम आराधना के योग्य है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਹੋਆ ਪਰਗਾਸੁ ॥ गुरु पूरा पाईऐ वडभागी दरसन कउ जाईऐ कुरबाणु ॥१॥ रहाउ ॥ साधुओं की संगत में ज्ञान का प्रकाश होता है और
ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਨ ਮਾਹਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥੧॥ किलबिख मेटे सबदि संतोखु ॥ प्रभु के चरण कमल मन में बस जाते हैं।॥ १॥
ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਲੀਆ ਰਾਖਿ ॥ नामु अराधन होआ जोगु ॥ जिस मालिक ने हमें उत्पन्न किया, उसी ने बचा लिया है।
ਪ੍ਰਭੁ ਪੂਰਾ ਅਨਾਥ ਕਾ ਨਾਥੁ ॥ साधसंगि होआ परगासु ॥ पूर्ण प्रभु अनाथों का नाथ है।
ਜਿਸਹਿ ਨਿਵਾਜੇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥ चरन कमल मन माहि निवासु ॥१॥ जिस पर वह कृपा-दृष्टि करता है,
ਪੂਰਨ ਕਰਮ ਤਾ ਕੇ ਆਚਾਰ ॥੨॥ जिनि कीआ तिनि लीआ राखि ॥ उसके सब आचरण एवं कर्म पूरे हो जाते हैं।॥ २॥
ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਿਤ ਨਿਤ ਨਿਤ ਨਵੇ ॥ प्रभु पूरा अनाथ का नाथु ॥ वह हर रोज़ ईश्वर के गुण गाता है और
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਜੋਨਿ ਨ ਭਵੇ ॥ जिसहि निवाजे किरपा धारि ॥ चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त हो जाता है।
ਈਹਾਂ ਊਹਾਂ ਚਰਣ ਪੂਜਾਰੇ ॥ पूरन करम ता के आचार ॥२॥ लोक-परलोक में उसके चरणों की पूजा होती है और
ਮੁਖੁ ਊਜਲੁ ਸਾਚੇ ਦਰਬਾਰੇ ॥੩॥ गुण गावै नित नित नित नवे ॥ सच्चे दरबार में उसी का मुख उज्ज्वल होता है।॥ २॥
ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਗੁਰਿ ਧਰਿਆ ਹਾਥੁ ॥ लख चउरासीह जोनि न भवे ॥ जिसके मस्तक पर गुरु हाथ रखता है,
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਦਾਸੁ ॥ ईहां ऊहां चरण पूजारे ॥ करोड़ों में ऐसा कोई विरला ही दास होता है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੇਖੈ ਭਰਪੂਰਿ ॥ मुखु ऊजलु साचे दरबारे ॥३॥ वह समुद्र, धरती, आकाश सब में ईश्वर को ही व्यापक देखता है।
ਨਾਨਕ ਉਧਰਸਿ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀ ਧੂਰਿ ॥੪॥੧੦॥ जिसु मसतकि गुरि धरिआ हाथु ॥ नानक फुरमान करते हैं कि उस भक्त की चरण-धूल से उद्धार हो जाता है।॥ ४॥ १०॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कोटि मधे को विरला दासु ॥ प्रभाती महला ५ ॥
ਕੁਰਬਾਣੁ ਜਾਈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਅਪਨੇ ॥ जलि थलि महीअलि पेखै भरपूरि ॥ मैं अपने पूर्णगुरु पर कुर्बान जाता हूँ,
ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਜਪਨੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ नानक उधरसि तिसु जन की धूरि ॥४॥१०॥ जिसकी कृपा से परमात्मा का जाप किया है॥ १॥रहाउ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਣੀ ਸੁਣਤ ਨਿਹਾਲ ॥ प्रभाती महला ५ ॥ उसकी अमृतवाणी सुनने से मन निहाल हो गया है और
ਬਿਨਸਿ ਗਏ ਬਿਖਿਆ ਜੰਜਾਲ ॥੧॥ कुरबाणु जाई गुर पूरे अपने ॥ विकारों के जंजाल नष्ट हो गए हैं।॥ १॥
ਸਾਚ ਸਬਦ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ जिसु प्रसादि हरि हरि जपु जपने ॥१॥ रहाउ ॥ सच्चे शब्द से प्रीति लगाई तो
ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਆਇਆ ਚੀਤਿ ॥੨॥ अम्रित बाणी सुणत निहाल ॥ अपना प्रभु ही याद आया॥ २॥
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਹੋਆ ਪਰਗਾਸੁ ॥ बिनसि गए बिखिआ जंजाल ॥१॥ हरिनाम का जाप करने से ज्ञान का प्रकाश हुआ है और


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