Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1289

Page 1289

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक महला १॥
ਪਉਣੈ ਪਾਣੀ ਅਗਨੀ ਜੀਉ ਤਿਨ ਕਿਆ ਖੁਸੀਆ ਕਿਆ ਪੀੜ ॥ पउणै पाणी अगनी जीउ तिन किआ खुसीआ किआ पीड़ ॥ हवा, पानी, अग्नि इत्यादि पंच तत्वों तथा प्राणों का संचार करके प्राणी को बना दिया। उसे अनेक खुशियाँ एवं दुख-दर्द भी मिलते हैं।
ਧਰਤੀ ਪਾਤਾਲੀ ਆਕਾਸੀ ਇਕਿ ਦਰਿ ਰਹਨਿ ਵਜੀਰ ॥ धरती पाताली आकासी इकि दरि रहनि वजीर ॥ कोई धरती, आकाश, पाताल पर रहता है तो कोई किसी द्वार पर वजीर में खुश रहता है।
ਇਕਨਾ ਵਡੀ ਆਰਜਾ ਇਕਿ ਮਰਿ ਹੋਹਿ ਜਹੀਰ ॥ इकना वडी आरजा इकि मरि होहि जहीर ॥ किसी को लम्बी उम्र हासिल होती है तो कोई मरकर दुख भोगता है।
ਇਕਿ ਦੇ ਖਾਹਿ ਨਿਖੁਟੈ ਨਾਹੀ ਇਕਿ ਸਦਾ ਫਿਰਹਿ ਫਕੀਰ ॥ इकि दे खाहि निखुटै नाही इकि सदा फिरहि फकीर ॥ कोई इतना धनवान होता है, जितना भी उपयोग करता है, कभी कमी नहीं आती तो कोई फकीर बनकर घर-घर मांगता फिरता है।
ਹੁਕਮੀ ਸਾਜੇ ਹੁਕਮੀ ਢਾਹੇ ਏਕ ਚਸੇ ਮਹਿ ਲਖ ॥ हुकमी साजे हुकमी ढाहे एक चसे महि लख ॥ ईश्वर अपने हुक्मानुसार एक पल में लाखों बनाकर नष्ट भी कर देता है।
ਸਭੁ ਕੋ ਨਥੈ ਨਥਿਆ ਬਖਸੇ ਤੋੜੇ ਨਥ ॥ सभु को नथै नथिआ बखसे तोड़े नथ ॥ समूची दुनिया को मालिक ने अपने नियंत्रण में किया हुआ है, अपनी रज़ा से वह हुक्म करके नुकेल तोड़ देता है।
ਵਰਨਾ ਚਿਹਨਾ ਬਾਹਰਾ ਲੇਖੇ ਬਾਝੁ ਅਲਖੁ ॥ वरना चिहना बाहरा लेखे बाझु अलखु ॥ वह रूप-रंग, वर्ण जाति से रहित है, वह कर्म दोषों से भी रहित है।
ਕਿਉ ਕਥੀਐ ਕਿਉ ਆਖੀਐ ਜਾਪੈ ਸਚੋ ਸਚੁ ॥ किउ कथीऐ किउ आखीऐ जापै सचो सचु ॥ उसकी क्या महिमा कथन की जाए, उसके उपकारों का वर्णन भी नहीं किया जा सकता, एकमात्र वह सत्यस्वरूप ही सबकुछ है।
ਕਰਣਾ ਕਥਨਾ ਕਾਰ ਸਭ ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਅਕਥੁ ॥ करणा कथना कार सभ नानक आपि अकथु ॥ करना एवं कथन सब उसी का कर्म है। हे नानक ! वह स्वयं अकथनीय है।
ਅਕਥ ਕੀ ਕਥਾ ਸੁਣੇਇ ॥ अकथ की कथा सुणेइ ॥ जो अकथ की कथा सुनता है,
ਰਿਧਿ ਬੁਧਿ ਸਿਧਿ ਗਿਆਨੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੧॥ रिधि बुधि सिधि गिआनु सदा सुखु होइ ॥१॥ उसे ऋद्धियाँ, सिद्धियाँ, बुद्धि एवं सुखों का घर सब प्राप्त हो जाता है।॥१॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ महला १॥
ਅਜਰੁ ਜਰੈ ਤ ਨਉ ਕੁਲ ਬੰਧੁ ॥ अजरु जरै त नउ कुल बंधु ॥ जो असह्य को सहन कर लेता है, उसके नौ द्वार वशीभूत हो जाते हैं।
ਪੂਜੈ ਪ੍ਰਾਣ ਹੋਵੈ ਥਿਰੁ ਕੰਧੁ ॥ पूजै प्राण होवै थिरु कंधु ॥ यदि प्राण रहने तक परमात्मा की पूजा-अर्चना की जाए तो शरीर स्थिर हो जाता है।
ਕਹਾਂ ਤੇ ਆਇਆ ਕਹਾਂ ਏਹੁ ਜਾਣੁ ॥ कहां ते आइआ कहां एहु जाणु ॥ कहाँ से आया है, कहाँ जाना है,
ਜੀਵਤ ਮਰਤ ਰਹੈ ਪਰਵਾਣੁ ॥ जीवत मरत रहै परवाणु ॥ जन्म-मरण से मुक्त होकर वही स्वीकार होता है।
ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਤਤੁ ਪਛਾਣੈ ॥ हुकमै बूझै ततु पछाणै ॥ जो उसके हुक्म को मानता है, वह सार तत्व को पहचान लेता है।
ਇਹੁ ਪਰਸਾਦੁ ਗੁਰੂ ਤੇ ਜਾਣੈ ॥ इहु परसादु गुरू ते जाणै ॥ यह प्रसाद गुरु से ही मिलता है।
ਹੋਂਦਾ ਫੜੀਅਗੁ ਨਾਨਕ ਜਾਣੁ ॥ होंदा फड़ीअगु नानक जाणु ॥ हे नानक ! अभिमानी अक्सर पकड़ा जाता है,
ਨਾ ਹਉ ਨਾ ਮੈ ਜੂਨੀ ਪਾਣੁ ॥੨॥ ना हउ ना मै जूनी पाणु ॥२॥ यदि अहम्-भाव न हो तो योनियों में नहीं पड़ता॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पउड़ी॥
ਪੜ੍ਹ੍ਹੀਐ ਨਾਮੁ ਸਾਲਾਹ ਹੋਰਿ ਬੁਧੀ ਮਿਥਿਆ ॥ पड़्हीऐ नामु सालाह होरि बुधीं मिथिआ ॥ हरिनाम का पाठ करो, उसी का स्तुतिगान करो, अन्य कार्यों में बुद्धि झूठी सिद्ध होती है।
ਬਿਨੁ ਸਚੇ ਵਾਪਾਰ ਜਨਮੁ ਬਿਰਥਿਆ ॥ बिनु सचे वापार जनमु बिरथिआ ॥ हरिनाम सरीखे सच्चे व्यापार बिना जीवन व्यर्थ है।
ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ਨ ਕਿਨ ਹੀ ਪਾਇਆ ॥ अंतु न पारावारु न किन ही पाइआ ॥ ईश्वर का रहस्य एवं आर-पार कोई नहीं पा सका।
ਸਭੁ ਜਗੁ ਗਰਬਿ ਗੁਬਾਰੁ ਤਿਨ ਸਚੁ ਨ ਭਾਇਆ ॥ सभु जगु गरबि गुबारु तिन सचु न भाइआ ॥ समूचा जगत अहंकार में लीन है और उसे सत्य अच्छा नहीं लगता।
ਚਲੇ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਤਾਵਣਿ ਤਤਿਆ ॥ चले नामु विसारि तावणि ततिआ ॥ परमात्मा के नाम को भुलाकर जाने वाले गर्म तवे में ही तपते हैं।
ਬਲਦੀ ਅੰਦਰਿ ਤੇਲੁ ਦੁਬਿਧਾ ਘਤਿਆ ॥ बलदी अंदरि तेलु दुबिधा घतिआ ॥ ऐसे लोग जलती कड़ाही में दुविधा का तेल डालते हैं।
ਆਇਆ ਉਠੀ ਖੇਲੁ ਫਿਰੈ ਉਵਤਿਆ ॥ आइआ उठी खेलु फिरै उवतिआ ॥ व्यक्ति जिंदगी का खेल खेलकर संसार से चला जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਚੈ ਮੇਲੁ ਸਚੈ ਰਤਿਆ ॥੨੪॥ नानक सचै मेलु सचै रतिआ ॥२४॥ गुरु नानक फुरमाते हैं कि जो लोग परम सत्य प्रभु में मिल जाते हैं, वे उसी में रत रहते हैं।॥२४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक महला १॥
ਪਹਿਲਾਂ ਮਾਸਹੁ ਨਿੰਮਿਆ ਮਾਸੈ ਅੰਦਰਿ ਵਾਸੁ ॥ पहिलां मासहु निमिआ मासै अंदरि वासु ॥ सबसे पहले मांस पिता के वीर्य से गर्भ धारण होता है और नौ महीने तक पेट रूपी मांस में रहता है।
ਜੀਉ ਪਾਇ ਮਾਸੁ ਮੁਹਿ ਮਿਲਿਆ ਹਡੁ ਚੰਮੁ ਤਨੁ ਮਾਸੁ ॥ जीउ पाइ मासु मुहि मिलिआ हडु चमु तनु मासु ॥ प्राणों का संचार हुआ तो समयानुसार मुंह, हड्डी, त्वचा, शरीर सब मांस ही मिलता है।
ਮਾਸਹੁ ਬਾਹਰਿ ਕਢਿਆ ਮੰਮਾ ਮਾਸੁ ਗਿਰਾਸੁ ॥ मासहु बाहरि कढिआ ममा मासु गिरासु ॥ गर्भाशय मांस से बाहर निकल कर बच्चे का जन्म होता है तो स्तनपान मांस रूप में खुराक मिलती है।
ਮੁਹੁ ਮਾਸੈ ਕਾ ਜੀਭ ਮਾਸੈ ਕੀ ਮਾਸੈ ਅੰਦਰਿ ਸਾਸੁ ॥ मुहु मासै का जीभ मासै की मासै अंदरि सासु ॥ इसका मुँह एवं जीभ भी मांस की होती है और मांस में ही सांस लेता है।
ਵਡਾ ਹੋਆ ਵੀਆਹਿਆ ਘਰਿ ਲੈ ਆਇਆ ਮਾਸੁ ॥ वडा होआ वीआहिआ घरि लै आइआ मासु ॥ जब बड़ा होता है तो विवाह रचा कर स्त्री के रूप में मांस ही घर ले आता है।
ਮਾਸਹੁ ਹੀ ਮਾਸੁ ਊਪਜੈ ਮਾਸਹੁ ਸਭੋ ਸਾਕੁ ॥ मासहु ही मासु ऊपजै मासहु सभो साकु ॥ मांस से मांस संभोग कर बच्चों के रूप में मांस पैदा करता है और मांस से ही सब रिश्ते, भाई, बहन, माता-पिता इत्यादि होते हैं।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਹੁਕਮੁ ਬੁਝੀਐ ਤਾਂ ਕੋ ਆਵੈ ਰਾਸਿ ॥ सतिगुरि मिलिऐ हुकमु बुझीऐ तां को आवै रासि ॥ यदि सतिगुरु मिल जाए, ईश्वर की रज़ा को समझा जाए तो ही जीवन सफल होता है।
ਆਪਿ ਛੁਟੇ ਨਹ ਛੂਟੀਐ ਨਾਨਕ ਬਚਨਿ ਬਿਣਾਸੁ ॥੧॥ आपि छुटे नह छूटीऐ नानक बचनि बिणासु ॥१॥ हे नानक ! अपने आप मुक्त नहीं हुआ जाता और व्यर्थ बातों से नुक्सान ही होता है।॥१॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ महला १॥
ਮਾਸੁ ਮਾਸੁ ਕਰਿ ਮੂਰਖੁ ਝਗੜੇ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਨਹੀ ਜਾਣੈ ॥ मासु मासु करि मूरखु झगड़े गिआनु धिआनु नही जाणै ॥ कुछ मूर्ख लोग (स्वयं मांस खाना त्यागकर) मांस खाने पर झगड़ा करते हैं परन्तु उनको ज्ञान-ध्यान की जानकारी नहीं होती।
ਕਉਣੁ ਮਾਸੁ ਕਉਣੁ ਸਾਗੁ ਕਹਾਵੈ ਕਿਸੁ ਮਹਿ ਪਾਪ ਸਮਾਣੇ ॥ कउणु मासु कउणु सागु कहावै किसु महि पाप समाणे ॥ क्या मांस है, क्या शाक-सब्जी है, किस में पाप है, यह नहीं जानते ।
ਗੈਂਡਾ ਮਾਰਿ ਹੋਮ ਜਗ ਕੀਏ ਦੇਵਤਿਆ ਕੀ ਬਾਣੇ ॥ गैंडा मारि होम जग कीए देवतिआ की बाणे ॥ (माना जाता है कि) देवता मांस पर स्वाभाविक ही प्रसन्न होते हैं, इसलिए देवताओं को खुश करने के लिए होम-यज्ञ करके गैडे की बलि दी जाती थी।
ਮਾਸੁ ਛੋਡਿ ਬੈਸਿ ਨਕੁ ਪਕੜਹਿ ਰਾਤੀ ਮਾਣਸ ਖਾਣੇ ॥ मासु छोडि बैसि नकु पकड़हि राती माणस खाणे ॥ कुछ मांस खाना छोड़कर मांस की दुर्गन्ध आने पर भी नाक पकड़ लेते हैं परन्तु रात को वासना का शिकार बनाकर मांस ही तो खा जाते हैं।
ਫੜੁ ਕਰਿ ਲੋਕਾਂ ਨੋ ਦਿਖਲਾਵਹਿ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਨਹੀ ਸੂਝੈ ॥ फड़ु करि लोकां नो दिखलावहि गिआनु धिआनु नही सूझै ॥ वे नाक पकड़ कर लोगों को दिखाते हैं परन्तु ज्ञान-ध्यान की कोई सूझ नहीं होती।
ਨਾਨਕ ਅੰਧੇ ਸਿਉ ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਕਹੈ ਨ ਕਹਿਆ ਬੂਝੈ ॥ नानक अंधे सिउ किआ कहीऐ कहै न कहिआ बूझै ॥ हे नानक ! अन्धे को क्या बताया जाए, सच्चाई बताने पर भी नहीं समझता।
ਅੰਧਾ ਸੋਇ ਜਿ ਅੰਧੁ ਕਮਾਵੈ ਤਿਸੁ ਰਿਦੈ ਸਿ ਲੋਚਨ ਨਾਹੀ ॥ अंधा सोइ जि अंधु कमावै तिसु रिदै सि लोचन नाही ॥ अन्धा वही है जो कुटिल कर्म करता है, उसका हृदय तो है, मगर ज्ञान की आँखें नहीं।
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਕੀ ਰਕਤੁ ਨਿਪੰਨੇ ਮਛੀ ਮਾਸੁ ਨ ਖਾਂਹੀ ॥ मात पिता की रकतु निपंने मछी मासु न खांही ॥ हम लोग माता-पिता के रक्त-वीर्य से उत्पन्न हुए हैं, परन्तु मांस मछली को नहीं खाते।


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