Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1271

Page 1271

ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੈ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੇ ॥੪॥੨॥੨੦॥ नानक तिन कै सद कुरबाणे ॥४॥२॥२०॥ नानक फुरमाते हैं कि हम उन पर सदैव कुर्बान जाते हैं।॥४॥२॥२०॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥ मलार महला ५ ॥ मलार महला ५ ॥
ਪਰਮੇਸਰੁ ਹੋਆ ਦਇਆਲੁ ॥ परमेसरु होआ दइआलु ॥ परमेश्वर दयालु हुआ है,
ਮੇਘੁ ਵਰਸੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰ ॥ मेघु वरसै अम्रित धार ॥ अमृतमयं वर्षा हुई है।
ਸਗਲੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ॥ सगले जीअ जंत त्रिपतासे ॥ सब जीव तृप्त हो गए हैं और
ਕਾਰਜ ਆਏ ਪੂਰੇ ਰਾਸੇ ॥੧॥ कारज आए पूरे रासे ॥१॥ सभी कार्य सम्पन्न हो गए हैं।॥१॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਮਨ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥ सदा सदा मन नामु सम्हालि ॥ हे मन ! सदैव हरिनाम की आराधना करो;
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਸੇਵਾ ਪਾਇਆ ਐਥੈ ਓਥੈ ਨਿਬਹੈ ਨਾਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर पूरे की सेवा पाइआ ऐथै ओथै निबहै नालि ॥१॥ रहाउ ॥ यह पूर्ण गुरु की सेवा से ही प्राप्त होता है और लोक-परलोक में साथ निभाता है॥१॥रहाउ॥
ਦੁਖੁ ਭੰਨਾ ਭੈ ਭੰਜਨਹਾਰ ॥ दुखु भंना भै भंजनहार ॥ सब भय नष्ट करने वाले ईश्वर ने दुखों का नाश कर दिया है और
ਆਪਣਿਆ ਜੀਆ ਕੀ ਕੀਤੀ ਸਾਰ ॥ आपणिआ जीआ की कीती सार ॥ अपने जीवों की संभाल की है।
ਰਾਖਨਹਾਰ ਸਦਾ ਮਿਹਰਵਾਨ ॥ राखनहार सदा मिहरवान ॥ वह संसार का रखवाला है, सदैव मेहरबान है,
ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਨ ॥੨॥ सदा सदा जाईऐ कुरबान ॥२॥ हम उस पर सदैव कुर्बान जाते हैं।॥२॥
ਕਾਲੁ ਗਵਾਇਆ ਕਰਤੈ ਆਪਿ ॥ कालु गवाइआ करतै आपि ॥ कर्ता-पुरुष ने मौत को भी दूर कर दिया है,
ਸਦਾ ਸਦਾ ਮਨ ਤਿਸ ਨੋ ਜਾਪਿ ॥ सदा सदा मन तिस नो जापि ॥ मन में सदैव उसका जाप करो।
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਧਾਰਿ ਰਾਖੇ ਸਭਿ ਜੰਤ ॥ द्रिसटि धारि राखे सभि जंत ॥ वह अपनी कृपा-दृष्टि धारण करके सब जीवों की रक्षा करता है,
ਗੁਣ ਗਾਵਹੁ ਨਿਤ ਨਿਤ ਭਗਵੰਤ ॥੩॥ गुण गावहु नित नित भगवंत ॥३॥ नित्य भगवान के गुण गाओ॥३॥
ਏਕੋ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਆਪ ॥ एको करता आपे आप ॥ एकमात्र परमेश्वर ही कर्ता है,
ਹਰਿ ਕੇ ਭਗਤ ਜਾਣਹਿ ਪਰਤਾਪ ॥ हरि के भगत जाणहि परताप ॥ भगवान के भक्त उसका प्रताप जानते हैं।
ਨਾਵੈ ਕੀ ਪੈਜ ਰਖਦਾ ਆਇਆ ॥ नावै की पैज रखदा आइआ ॥ परमात्मा अनंतकाल से अपने नाम की लाज रखता आ रहा है और
ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੈ ਤਿਸ ਕਾ ਬੋਲਾਇਆ ॥੪॥੩॥੨੧॥ नानकु बोलै तिस का बोलाइआ ॥४॥३॥२१॥ नानक वही बोल रहा है, जो वह उससे बुलवा रहा है॥४॥३॥२१॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ॥ मलार महला ५ ॥ मलार महला ५ ॥
ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਸਗਲ ਨਿਧਾਨ ॥ गुर सरणाई सगल निधान ॥ गुरु की शरण में सर्व सुखों के भण्डार प्राप्त होते हैं,
ਸਾਚੀ ਦਰਗਹਿ ਪਾਈਐ ਮਾਨੁ ॥ साची दरगहि पाईऐ मानु ॥ सच्चे दरबार में मान-सम्मान प्राप्त होता है,
ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਸਭੁ ਜਾਇ ॥ भ्रमु भउ दूखु दरदु सभु जाइ ॥ भ्रम, भय, दुख-दर्द सब मिट जाता है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਸਦ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੧॥ साधसंगि सद हरि गुण गाइ ॥१॥ साधु-महापुरुषों के साथ परमात्मा का गुणगान करो॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸਾਲਾਹਿ ॥ मन मेरे गुरु पूरा सालाहि ॥ हे मेरे मन ! पूर्ण गुरु की स्तुति करो,
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਜਪਹੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਮਨ ਚਿੰਦੇ ਫਲ ਪਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ नामु निधानु जपहु दिनु राती मन चिंदे फल पाइ ॥१॥ रहाउ ॥ सुखों के भण्डार हरिनाम का दिन-रात जाप करो और मनवांछित फल पा लो॥१॥रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ सतिगुर जेवडु अवरु न कोइ ॥ सतगुरु सरीखा अन्य कोई नहीं है,
ਗੁਰੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਸੋਇ ॥ गुरु पारब्रहमु परमेसरु सोइ ॥ गुरु ही परब्रह्म है, वही परम परमेश्वर है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੂਖ ਤੇ ਰਾਖੈ ॥ जनम मरण दूख ते राखै ॥ वह जन्म-मरण के दुखों से बचाने वाला है।
ਮਾਇਆ ਬਿਖੁ ਫਿਰਿ ਬਹੁੜਿ ਨ ਚਾਖੈ ॥੨॥ माइआ बिखु फिरि बहुड़ि न चाखै ॥२॥ फिर माया का जहर पुनः नहीं चखना पड़ता॥२॥
ਗੁਰ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਕਥਨੁ ਨ ਜਾਇ ॥ गुर की महिमा कथनु न जाइ ॥ गुरु की महिमा अकथनीय है।
ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਸਾਚੈ ਨਾਇ ॥ गुरु परमेसरु साचै नाइ ॥ सच्चे नाम का चिंतन करने वाले जिज्ञासुओं के लिए गुरु ही परमेश्वर है।
ਸਚੁ ਸੰਜਮੁ ਕਰਣੀ ਸਭੁ ਸਾਚੀ ॥ सचु संजमु करणी सभु साची ॥ उनका जीवन-आचरण, संयम एवं सब सत्य है।
ਸੋ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਜੋ ਗੁਰ ਸੰਗਿ ਰਾਚੀ ॥੩॥ सो मनु निरमलु जो गुर संगि राची ॥३॥ वही मन निर्मल होता है, जो गुरु के साथ लीन रहता है॥३॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ਵਡ ਭਾਗਿ ॥ गुरु पूरा पाईऐ वड भागि ॥ भाग्यशाली को ही पूर्ण गुरु प्राप्त होता है और
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਮਨ ਤੇ ਤਿਆਗਿ ॥ कामु क्रोधु लोभु मन ते तिआगि ॥ काम, क्रोध एवं लोभ का मन से त्याग हो जाता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰ ਚਰਣ ਨਿਵਾਸਿ ॥ ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਸਚੁ ਅਰਦਾਸਿ ॥੪॥੪॥੨੨॥ करि किरपा गुर चरण निवासि ॥ कृपा करके गुरु के चरणों में ही रखना नानक की प्रभु के समक्ष यही सच्ची प्रार्थना है ॥४॥४॥२२॥
ਰਾਗੁ ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ਪੜਤਾਲ ਘਰੁ ੩ नानक की प्रभ सचु अरदासि ॥४॥४॥२२॥ रागु मलार महला ५ पड़ताल घरु ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ रागु मलार महला ५ पड़ताल घरु ३ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਗੁਰ ਮਨਾਰਿ ਪ੍ਰਿਅ ਦਇਆਰ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ਕੀਆ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हे सत्संगी सहेली ! गुरु को मनाकर दयालु प्रियतम के संग आनंद किया है।
ਕੀਨੋ ਰੀ ਸਗਲ ਸੀਗਾਰ ॥ गुर मनारि प्रिअ दइआर सिउ रंगु कीआ ॥ शुभ गुण रूपी सब श्रृंगार किए हैं,
ਤਜਿਓ ਰੀ ਸਗਲ ਬਿਕਾਰ ॥ कीनो री सगल सींगार ॥ सब विकारों को त्याग दिया है तथा
ਧਾਵਤੋ ਅਸਥਿਰੁ ਥੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तजिओ री सगल बिकार ॥ चंचल मन को स्थिर कर लिया है॥१॥रहाउ॥
ਐਸੇ ਰੇ ਮਨ ਪਾਇ ਕੈ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ਕੈ ਕਰਿ ਸਾਧਨ ਸਿਉ ਸੰਗੁ ॥ धावतो असथिरु थीआ ॥१॥ रहाउ ॥ हे मन ! अहम् छोड़कर साधु पुरुषों की संगत करो, इस प्रकार प्रभु को पाकर सुख मनाया है।
ਬਾਜੇ ਬਜਹਿ ਮ੍ਰਿਦੰਗ ਅਨਾਹਦ ਕੋਕਿਲ ਰੀ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਬੋਲੈ ਮਧੁਰ ਬੈਨ ਅਤਿ ਸੁਹੀਆ ॥੧॥ ऐसे रे मन पाइ कै आपु गवाइ कै करि साधन सिउ संगु ॥ खुशियों के बाजे बज रहे हैं, संतों की जिव्हा राम नाम जपती हुई कोयल की तरह मीठे एवं अत्यंत सुंदर वचन बोल रही है॥१॥
ਐਸੀ ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਕੀ ਸੋਭ ਅਤਿ ਅਪਾਰ ਪ੍ਰਿਅ ਅਮੋਘ ਤੈਸੇ ਹੀ ਸੰਗਿ ਸੰਤ ਬਨੇ ॥ बाजे बजहि म्रिदंग अनाहद कोकिल री राम नामु बोलै मधुर बैन अति सुहीआ ॥१॥ हे प्रियतम ! तेरे दर्शनों की शोभा अत्यंत अपार है, वैसे ही संतों के मन में दर्शनों का चाव है।
ਭਵ ਉਤਾਰ ਨਾਮ ਭਨੇ ॥ ऐसी तेरे दरसन की सोभ अति अपार प्रिअ अमोघ तैसे ही संगि संत बने ॥ वे संसार-सागर से पार उतरने के लिए राम नाम जपते हैं और
ਰਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਮਾਲ ॥ भव उतार नाम भने ॥ राम नाम का मंत्र ही उनकी माला है।


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